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    Home»Breaking News»झाविमो के सांसद रहे हैं डॉ अजय, कांग्रेसी कल्चर कैसे समझेंगे
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    झाविमो के सांसद रहे हैं डॉ अजय, कांग्रेसी कल्चर कैसे समझेंगे

    azad sipahiBy azad sipahiFebruary 20, 2019Updated:February 20, 2019No Comments5 Mins Read
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    रांची।  हमारे माननीय प्रदेश अध्यक्ष जी झाविमो के सांसद रह चुके हैं। उन्हें कांग्रेस के कल्चर के बारे में कुछ पता नहीं है। इसलिए वह गोड्डा सीट झाविमो के लिए छोड़ देने पर उतारू हैं। गोड्डा के कांग्रेसी कार्यकर्ता इससे बेहद नाराज हैं। यदि आलाकमान इस पर कोई ठोस फैसला नहीं करता है, तो चुनाव में इसका असर न केवल झारखंड की बाकी सीटों पर, बल्कि बिहार और बंगाल में भी पड़ेगा। अल्पसंख्यक समुदाय कमजोर नहीं है। वह केवल वोट देने के लिए नहीं है। उसे लोकसभा में समुचित प्रतिनिधित्व चाहिए। हम गोड्डा सीट पर नहीं झुकेंगे। यह बयान जामताड़ा के कांग्रेस विधायक डॉ इरफान अंसारी का है। बुधवार सुबह जब आजाद सिपाही टीम ने उन्हें फोन किया और गोड्डा सीट के बारे में पूछा, तो वह लगभग बिफर पड़े। उनके भीतर की पीड़ा मानो खुल कर सामने आ गयी। उन्होंने कहा, मैं अपने तीन सौ समर्थकों के साथ पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने दिल्ली जा रहा हूं। यह पूछने पर कि क्या उन्हें मिलने का समय मिला है, डॉ इरफान ने कहा कि समय मिला है। फिर भी यदि राहुल जी हमसे नहीं मिलते हैं, तो हम बोरिया-बिस्तर लेकर जा रहे हैं। जब तक उनसे मुलाकात नहीं होगी, हम वहीं पड़े रहेंगे।

    डॉ इरफान अंसारी का यह तेवर झारखंड में विपक्षी महागठबंधन के रास्ते में बड़ा रोड़ा अटका सकता है। दरअसल, गोड्डा सीट झाविमो को दिये जाने का फैसला वहां के कांग्रेसियों को पच नहीं रहा है। डॉ अंसारी के पिता फुरकान अंसारी वहां से कांग्रेस के सशक्त उम्मीदवार हैं। पिछले चुनाव में उन्हें दूसरा स्थान मिला था, जबकि झाविमो के प्रदीप यादव तीसरे स्थान पर रहे थे। इसी आधार पर डॉ अंसारी इस सीट पर दावा ठोंक रहे हैं। दूसरी तरफ झाविमो ने साफ कर दिया है कि वह किसी भी कीमत पर गोड्डा पर दावेदारी नहीं छोड़ेगा। उसका तर्क है कि गोड्डा में पिछले पांच साल में स्थिति बहुत बदली है। प्रदीप यादव ने वहां बहुत काम किया है। अडाणी के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया है। इसलिए इस सीट पर उसका दावा बनता है।

    गोड्डा सीट अब महागठबंधन के लिए गले की फांस बन गयी है। महागठबंधन में पहले ही तय हो गया है कि लोकसभा चुनाव में इसकी कमान कांग्रेस के हाथ में रहेगी, इसलिए राहुल के सामने अपनी ही पार्टी के भीतर से उठे बगावती तेवर से निबटने की चुनौती है। यह पूछने पर कि यदि पार्टी आलाकमान ने उनकी बात नहीं मानी, तो वह क्या करेंगे, विधायक डॉ इरफान अंसारी कहते हैं, आलाकमान कैसे नहीं मानेगा। उसे तो प्रदेश अध्यक्ष ने सही जानकारी ही नहीं दी है। प्रभारी को भी अंधेरे में रखा गया है। डॉ अंसारी कहते हैं कि गोड्डा सीट से उनके पिता सांसद रह चुके हैं। झारखंड की यही एकमात्र सीट है, जहां अल्पसंख्यकों का दावा बनता है। इसलिए पार्टी को यह सीट कदापि नहीं छोड़नी चाहिए। यह पूछने पर कि कांग्रेस यदि चतरा सीट से किसी अल्पसंख्यक को प्रत्याशी बनाती है, तब वह क्या करेंगे, डॉ अंसारी ने कहा, यह तो बचपना है।

    मैं अल्पसंख्यक कोटे की बात कर ही नहीं रहा। मैं तो कहता हूं कि पिछले चुनाव को आधार बना कर सीटों का तालमेल होना चाहिए। पिछले चुनाव में जिस सीट पर जिस पार्टी की जीत हुई थी या दूसरे स्थान पर रही थी, वह सीट उसी पार्टी के हिस्से में जानी चाहिए। यदि तीसरे स्थान पर रहनेवाले को सीट मिलेगी, तो फिर बाबूलाल मरांडी की पार्टी को दुमका से लड़ना चाहिए, क्योंकि वह वहां से तीसरे स्थान पर रह चुके हैं। डॉ अंसारी ने साफ तौर पर कहा कि प्रदीप यादव जिस आंदोलन की बात करते हैं, उसकी जमीनी हकीकत क्या है, यह किसी से छिपी नहीं है। इसके विपरीत फुरकान अंसारी और उन्होंने क्षेत्र में पार्टी को मजबूत बनाने के लिए पिछले पांच साल में बहुत काम किया है। इसके बावजूद यदि पार्टी इस पर ध्यान नहीं देगी, तो इसका खामियाजा पूरे गठबंधन को राज्य की दूसरी सीटों पर भी भुगतना पड़ेगा, क्योंकि अल्पसंख्यक समुदाय का दिल टूट जायेगा और वह महागठबंधन से बिदक जायेगा।

    अंसारी ने कहा कि इस मामले में वह पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत की तारीफ करते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने गोड्डा-जामताड़ा को लेकर कोई समझौता नहीं किया था और इसका परिणाम यह हुआ कि संथाल परगना की तीन सीटें कांग्रेस के हिस्से में आयी थीं।

    अब, जबकि डॉ इरफान अंसारी ने अपने ही प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी इस पेंच को कैसे सुलझाते हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि यदि कांग्रेस गोड्डा को लेकर कोई समझौता करती है और चतरा से अल्पसंख्यक उम्मीदवार (डॉ सरफराज अहमद) को टिकट देने का फैसला करती है, तो गोड्डा के कांग्रेसी बिदक जायेंगे और उस स्थिति में भाजपा की राह आसान हो जायेगी। महागठबंधन को गोड्डा का खामियाजा दूसरी सीटों पर भी भुगतना पड़ सकता है, जैसा कि डॉ अंसारी ने दावा किया है। लेकिन कांग्रेस का एक वर्ग और झाविमो का एक तर्क यह भी है कि अगर वहां से फुरकान अंसारी को उम्मीदवार बनाया गया, तो गोड्डा में हिंदू वोटों का पोलराइजेशन हो जायेगा और भाजपा की जीत आसान हो जायेगी।

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