रांची। साल 2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले की घटना है। रांची संसदीय सीट से आजसू पार्टी के उम्मीदवार सुदेश महतो चुनाव लड़ रहे थे। उस दिन उनका रोड शो था। इसमें उमड़ी भीड़ से लग रहा था कि सुदेश अपने प्रतिद्वद्वियों, भाजपा के रामटहल चौधरी और कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय को कड़ी टक्कर ही नहीं देंगे, बल्कि रेस का काला घोड़ा भी साबित हो सकते हैं। रोड शो में उमड़ी भीड़ से सुदेश के प्रतिद्वंद्वी भी आशंकित थे, क्योंकि उनके रोड शो में इतनी भीड़ नहीं हुई थी। चुनाव हुए और जब परिणाम आया, तो सुदेश महतो 1.42 लाख वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे। राजनीतिक दृष्टिकोण से पहली बार संसदीय चुनाव में उतरे सुदेश का यह प्रदर्शन कहीं से खराब नहीं था, लेकिन तभी यह सवाल उठने लगा कि आखिर रोड शो में उमड़ी भीड़ के अनुरूप उन्हें वोट क्यों नहीं मिला।
यह उदाहरण यह साबित करने के लिए काफी है कि किसी राजनीतिक कार्यक्रम में उमड़ी भीड़ से चुनावी जीत-हार तय नहीं होती है। लगभग यही स्थिति मिलन समारोहों के साथ भी है। लोकसभा चुनावों की आहट मिलने के साथ ही झारखंड के राजनीतिक दलों में मिलन समारोहों का तांता लगा हुआ है। पिछले दो महीने से एक दल को छोड़ कर दूसरे दल में शामिल होनेवालों की संख्या अचानक बढ़ गयी है। यदि दो महीने के दौरान आयोजित हुए मिलन समारोहों को जोड़ दिया जाये, तो यह संख्या चार सौ के आसपास बैठती है। इनमें गांव स्तर से राज्य स्तर तक के मिलन समारोह शामिल हैं। इन मिलन समारोहों को यदि लोकप्रियता का पैमाना माना जाये, तो राज्य का प्रमुख विपक्षी दल झामुमो निश्चित तौर पर इसमें अपने प्रतिद्वंद्वियों से बहुत आगे है।
पिछले दो महीने में झामुमो ने 125 से अधिक मिलन समारोहों का आयोजन कर दूसरे दलों को पछाड़ रखा है। इन मिलन समारोहों में करीब तीन हजार लोगों ने झामुमो की सदस्यता ग्रहण की है। झामुमो के बाद दूसरे स्थान पर आजसू है, जिसने करीब 60 मिलन समारोह आयोजित किये हैं। तीसरे स्थान पर कांग्रेस और चौथे स्थान पर झाविमो है, जिसके क्रमश: 40 और 30 मिलन समारोह आयोजित किये गये हैं। इस मोर्चे पर भाजपा सबसे अंतिम स्थान पर है, जिसने अब तक महज दर्जन भर मिलन समारोह आयोजित किये हैं। यहां एक और बात महत्वपूर्ण है और वह यह कि भाजपा में शामिल होनेवालों का जनाधार दूसरे दलों के मुकाबले काफी बड़ा है।
मिलन समारोहों की संख्या के आधार पर झामुमो का दावा है कि वह आज की तारीख में झारखंड में सबसे लोकप्रिय राजनीतिक पार्टी है। समाज के सभी वर्गों का समर्थन उसे मिल रहा है। दूसरी तरफ विरोधियों का कहना है कि मिलन समारोहों से लोकप्रियता को नहीं आंका जा सकता है। राजनीतिक विश्लेषक भी उनकी इस बात की तस्दीक करते हैं और इसके समर्थन में रैलियों, रोड शो और जनसभाओं का उदाहरण देते हैं।
इसलिए बार-बार इस बात की चर्चा होती है कि रैलियों और रोड शो में उमड़ने वाली भीड़ को वोट में बदलना उतना आसान नहीं होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो रैलियों, रोड शो और मिलन समारोहों में भीड़ जुटाना आसान है, लेकिन उस भीड़ को मतदान केंद्रों तक लाना और अपने पक्ष में मतदान करने के लिए प्रेरित करना उतना ही मुश्किल होता है।
झारखंड में सांगठनिक तौर पर निश्चित रूप से झामुमो सबसे अधिक सक्रिय है। यह बात भी सभी जानते हैं कि झारखंड के गांवों तक में झामुमो के लोग पूरी शिद्दत से अपने काम में लगे हुए हैं। चाहे दीवार लेखन हो या पोस्टर-बैनर टांगने का मुद्दा, दूसरे राजनीतिक दलों के मुकाबले झामुमो बहुत आगे है।
प्रचार-प्रसार के साथ मिलन समारोहों के जरिये लोगों को अपनी पार्टी में जोड़ने में झामुमो के आगे रहने का राजनीतिक मतलब भी निकाला जा सकता है। यदि पार्टी नेतृत्व इतनी बड़ी संख्या में पार्टी में शामिल होनेवालों को वोट में बदलने में कामयाब हो जाता है, तो चुनाव परिणाम पर इसका असर भी पड़ेगा।