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    Home»Top Story»झामुमो से निकलने के बाद चमके अर्जुन और विद्युत
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    झामुमो से निकलने के बाद चमके अर्जुन और विद्युत

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskApril 12, 2019No Comments5 Mins Read
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    झामुमो से अलग होने के बाद हेमलाल को नहीं मिला संसद का ठिकाना, फिर आजमा रहे किस्मत

    रांची। झारखंड की राजनीति में क्षेत्रीय दल के रूप में झामुमो की अलग ही पहचान है। झारखंड आंदोलन से जुड़ी इस पार्टी ने कई बार राज्य में सरकार गठन में बड़ी भूमिका निभायी। संसद में भी झारखंड का प्रतिनिधित्व किया है और इनके नेता केंद्रीय मंत्री भी बने। आज इस क्षेत्रीय पार्टी से निकले कई नेता दूसरे दल में भी शामिल होकर झारखंड की राजनीति में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। यहां तक कि झामुमो को कड़ी टक्कर भी दे रहे हैं। आलम यह है कि इस बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे भाजपा के तेरह उम्मीदवारों में से तीन उम्मीदवार कभी झामुमो के प्रमुख नेताओं में शामिल रहे हैं।

    अर्जुन बने हैं धनुर्धर, सीएम तक का सफर तय किया
    खूंटी लोकसभा क्षेत्र की चर्चा इन दिनों हर जुबान पर है। यह सीट हॉटकेक बन गयी है। कारण इस बार यहां से भाजपा ने कड़िया मुंडा का टिकट काट कर पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को प्रत्याशी बनाया है। हाल के दिनों तक विवादों से घिरा खूंटी अर्जुन मुंडा के चुनावी मैदान में उतरने के कारण राजनीति का केंद्र बन गया है। अर्जुन मुंडा आज के दिन में झारखंड के कद्दावर राजनीतिज्ञ माने जाते हैं। राजनीति का ककहरा झामुमो की पाठशाला से सीखकर इन्होंने विधायक से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया। यह शिबू सोरेन के शिष्य रहे हैं। अर्जुन मुंडा झारखंड आंदोलन की उपज हैं। जब पढ़ाई कर रहे थे, तब बिहार का दक्षिणी हिस्सा (वर्तमान झारखंड) अलग राज्य के आंदोलन से तप रहा था। सिर पर समाजसेवा की धुन सवार थी, लिहाजा कम उम्र में ही झारखंड आंदोलन से जुड़ गये। उन दिनों झामुमो अलग राज्य की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभा रहा था। झामुमो से जुड़कर वह आंदोलन के रास्ते चुनावी राजनीति में आये। खरसावां से पहली बार विधायक बने। 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा सरकार ने तीन नये राज्य बनाने की घोषणा की। घोषणा से प्रभावित अर्जुन मुंडा भाजपा में शामिल हो गये। चुनाव लड़ा और दूसरी बार भाजपा के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए। झारखंड बना तो बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी पहली राज्य सरकार में कल्याण मंत्री बने। राजनीतिक घटनाक्रम ऐसा बदला कि 35 साल की उम्र में झारखंड के मुख्यमंत्री बन गये। इसके बाद दो बार और मुख्यमंत्री पद पर काबिज होने का अवसर मिला। एक बार जमशेदपुर से सांसद निर्वाचित हुए। लेकिन अर्जुन मुंडा की भी खासियत है कि वह भी नयी पौध को मुकाम तक पहुंचाना चाहते हैं, चाहे वह राजनीतिक मैदान हो या फिर अन्य क्षेत्र अर्जुन मुंडा गोल्फ के अच्छे खिलाड़ी हैं। झारखंड में तीरंदाजी एकेडमी की स्थापना और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने में आगे रहे हैं। कई खिलाड़ियों को संरक्षण-संवर्द्धन दिया।

    शिबू के संघर्ष के साथी हेम बन गये भाजपा के कद्दावर लाल
    वहीं दूसरी ओर हेमलाल मुर्मू एक जमाने में झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन के काफी करीबी रह चुके हैं। झामुमो से ही वह सांसद से लेकर राज्य में मंत्री बने। पिछले लोकसभा चुनाव में झामुमो छोड़ भाजपा में चले गये थे। भाजपा के टिकट पर ही चुनाव लड़ा, लेकिन हार गये। इसके बाद लिट्टीपाड़ा विधानसभा उपचुनाव में भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस बार फिर भाजपा ने इन पर भरोसा जताते हुए राजमहल से उम्मीदवार बनाया है। राजमहल लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी हेमलाल मुर्मू की पहचान कद्दावर आदिवासी नेताओं में होती है। वह झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के संघर्ष के दिनों के साथी रहे हैं। झामुमो के टिकट पर तीन बार विधायक और एक बार सांसद रहे। उन्होंने मंत्री तक की कुर्सी तक का रास्ता भी तय किया। झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन से मतभेद के बाद 2014 में उन्होंने झामुमो छोड़ दिया। भाजपा के टिकट पर 2014 में राजमहल लोकसभा क्षेत्र से भाग्य आजमाया। 3.40 लाख वोट लाकर दूसरे स्थान पर रहे। इससे पहले वह 1990 में झामुमो के टिकट पर बरहेट से पहली बार विधायक चुने गये। 1995 और 2000 में भी वह विधायक चुने गये। 2004 में झामुमो के टिकट पर राजमहल लोकसभा क्षेत्र से सांसद बने। 2009 में झामुमो के टिकट पर पुन: मैदान में उतरे, लेकिन दूसरे स्थान पर रहे। 2014 में वे पुन: झामुमो से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, बावजूद पार्टी ने टिकट नहीं दिया। तब भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा से मैदान में उतरे। आज स्थिति यह है कि हेमलाल मुर्मू को खुद को साबित करने के लिए एक अदद जीत की जरूरत है।

    गुरुजी से सीखा राजनीति का ककहरा, आज खिला रहे कमल
    वहीं विद्युत वरण महतो ने भी राजनीति का पाठ झामुमो से ही पढ़ा। झामुमो की टिकट पर ही विधायक बने। इसके बाद वर्ष 2014 में इन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की और जमशेदपुर सीट से चुनाव लड़े। फिलहाल वह सांसद हैं और एक बार फिर से भाजपा की टिकट पर जमशेदपुर से चुनाव लड़ रहे हैं। झामुमो के टिकट पर ही 2009 में बहरागोड़ा के विधायक बने। आज भाजपा के कद्दावर नेता के रूप में इनकी गिनती होती है। जमशेदपुर लोकसभा सीट में विद्युत वरण महतो की अपनी पकड़ भी मजबूत है।

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