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नयी दिल्ली। चुनाव नतीजों से पहले और आखिरी चरण की वोटिंग खत्म होने के ठीक बाद मीडिया में अलग-अलग सर्वे एजेंसियों की मदद से एग्जिट पोल शुरू हो जाता है। इससे आधिकारिक नतीजों से पहले ही देश का मूड और हवा का रुख भांपने में मदद मिलती है। वोटिंग खत्म होने के बाद आधिकारिक नतीजों के ऐलान तक एग्जिट पोल के नतीजे सियासी चर्चाओं के केंद्र में रहते हैं। हालांकि, ऐसा हमेशा नहीं होता, जब एग्जिट पोल का अनुमान ठीक होता हो। अतीत में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब एग्जिट पोल वोटरों के मूड को भांप पाने में नाकाम हुए हैं। अब तक का अनुभव बताता है कि अक्सर एग्जिट पोल चुनावी नतीजों की एक बड़ी तस्वीर तो पेश करता है, पर काउंटिंग के बाद आये नतीजों से वह काफी दूर रह जाता है।
पिछली बार ज्यादातर सही साबित हुए थे एग्जिट पोल
बात अगर पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान एग्जिट पोल की करें, तो ज्यादातर के अनुमान सही पाये गये थे। ज्यादातर एग्जिट पोल में भाजपा की अगुआई में एनडीए को सरकार बनाने के करीब बताया गया था। जब नतीजे आये, तो भाजपा को खुद के दम पर बहुमत मिल गया और एनडीए 336 सीटों पर विजयी रहा। कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट कर रह गयी थी।
इसी तरह 1998 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी ज्यादातर एग्जिट पोल के अनुमान सही थे। तब सभी एग्जिट पोल में भाजपा की अगुआई वाले गठबंधन को दो सौ से ज्यादा सीटें और बहुमत के करीब बताया गया, जबकि कांग्रेस की अगुआई वाले गठबंधन को दो सौ से कम सीटों का अनुमान लगाया गया था। जब नतीजे आये, तो बीजेपी और सहयोगियों को 252, कांग्रेस और सहयोगियों को 166 और अन्य को 119 सीटें मिली थीं।
जब पूरी तरह फेल हुए एग्जिट पोल
पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान एग्जिट पोल के अनुमान बहुत हद तक सही रहे, लेकिन उससे पहले लगातार दो आम चुनावों में एग्जिट पोल सही भविष्यवाणी करने में बुरी तरह नाकाम हुए थे। एग्जिट पोल की नाकामी का सबसे चर्चित वाकया 2004 का है। उस वक्त ज्यादातर एग्जिट पोल में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार के फिर सत्ता में आने की भविष्यवाणी की गयी थी, लेकिन नतीजे बिल्कुल उलट आये। एनडीए को 189 सीटें मिलीं और कांग्रेस की अगुआई वाले यूपीए को 222 सीटें मिलीं और डॉ मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने।
2004 के बाद अगले चुनाव यानी 2009 में भी एग्जिट पोल फेल हुए। ज्यादातर एग्जिट पोल में यह तो बताया गया कि यूपीए को एनडीए पर बढ़त मिलेगी, लेकिन किसी ने भी यह अनुमान नहीं लगाया था कि कांग्रेस अकेले ही दो सौ के पार पहुंच जायेगी। परिणाम घोषित हुए तो कांग्रेस को अकेले 206 और यूपीए को 262 सीटें मिलीं।
इसी तरह 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी एग्जिट पोल सही अनुमान लगाने में पूरी तरह नाकाम साबित हुए। सभी एग्जिट पोल में भाजपा और सहयोगियों को जदयू-राजद गठबंधन पर बढ़त बतायी गयी थी, लेकिन नतीजे ठीक उलट आये। सहयोगियों के साथ भाजपा 58 सीटों पर सिमट गयी, जबकि जदयू-राजद गठबंधन ने 178 सीटों पर जीत का परचम लहराया।
52 साल पहले ऐसे हुई थी एग्जिट पोल की शुरुआत
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नयी दिल्ली। लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान हो चुके हैं। नतीजों की तारीख 23 मई तय है। देश को किसकी सरकार चलायेगी, इस सवाल का उत्तर हर कोई जानने के लिए उत्सुक है। तमाम टीवी चैनलों पर एग्जिट पोल भी आ चुके हैं। ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि आखिर एग्जिट पोल का सिलसिला कब और कैसे शुरू हुआ।
एग्जिट पोल की शुरुआत
एग्जिट पोल की शुरुआत 15 फरवरी, 1967 में नीदरलैंड में रहने वाले पूर्व राजनेता मार्सेल वॉन डैम द्वारा की गयी थी। अगर भारत में एग्जिट पोल की बात की जाये, तो भारत में इसे शुरू करने का पूरा श्रेय इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ पब्लिक ओपिनियन के मुखिया एरिक डी कोस्टा को जाता है।
कैसे बनता है एग्जिट पोल
यह एक प्रक्रिया होती है, जिसे एग्जिट पोल का नाम दिया गया है। इस प्रकिया के अंतर्गत वोट देने वाले लोगों से बातचीत, पुराने आंकड़े और पूवार्नुमानों का आकलन किया जाता है। यह इकट्ठा हुए डाटा पर आधारित होता है। मतदान शुरू होने से लेकर अंतिम चरण तक एक डाटा तैयार किया जाता है, जिसके अनुसार अनुमान लगाया जाता है कि किसकी सरकार बनेगी। बता दें ऐसा जरूरी नहीं है कि एग्जिट पोल हमेशा सही उत्तर दें। परिणाम आने पर पता चलता है कि एग्जिट पोल कितना सही था।
ओपिनियन पोल
इस सर्वे का जनक जॉर्ज गैलप और क्लॉड रोबिंसन को माना जाता है। सबसे पहले अमेरिका में चुनावी सर्वे कराया गया था। इससे प्रभावित होकर इंग्लैंड और फ्रांस ने इसे अपनाया। इंग्लैंड में इसका प्रयोग 1937 में किया गया, वहीं फ्रांस ने इसे 1938 में अपनाया।
एग्जिट पोल का ए-बी-सी
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नयी दिल्ली। 17वीं लोकसभा के लिए रविवार को सातवें चरण का मतदान संपन्न हुआ। मतदान खत्म होते ही सभी पार्टियों और आम जनता की नजर एग्जिट पोल पर टिक गयी। ये एग्जिट पोल हर बार सटीक भले ही न बैठें, लेकिन नतीजों से पहले उनकी झांकी दिखाने का काम जरूर कर जाते हैं। एग्जिट पोल क्या है, इसकी शुरुआत कब हुई, इससे जुड़े नियम क्या हैं, इन सब सवालों के जवाब यहां दिये गये हैं।
क्या होते हैं एग्जिट पोल
लगभग सभी बड़े चैनल विभिन्न एजेंसियों के साथ मिल कर आखिरी चरण का मतदान खत्म होते ही एग्जिट पोल दिखाती हैं। इसमें बताया जाता है कि नतीजे किसके पक्ष में होंगे और किस पार्टी को कितनी सीटें मिल सकती हैं। इनसे एक मोटा-मोटा अंदाजा हो जाता है कि नतीजे क्या आ सकते हैं। हालांकि, यह कहना ठीक नहीं कि चुनाव के नतीजे एग्जिट पोल के अनुसार ही आयें। भारत में सबसे पहले एग्जिट पोल 1960 में सेंटर फॉर द स्टडी आॅफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) ने जारी किये थे।
कौन करवाता है एग्जिट पोल
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि एग्जिट पोल करने का तरीका क्या होता है? एग्जिट पोल के लिए तमाम एजेंसी वोट डालने के तुरंत बाद वोटरों से उनकी राय जानती हैं और उन्हीं रायों के आधार एग्जिट पोल के नतीजे तैयार किये जाते हैं। भारत में जहां चुनाव विकास से लेकर जाति-धर्म जैसे तमाम मुद्दों पर लड़ा जाता है, ऐसे में मतदाता ने किसको वोट दिया है, यह पता करना भी आसान नहीं है। अक्सर मतदाता इस सवाल का सही जवाब नहीं देते कि उन्होंने किसे वोट दिया। इस वजह से भी एग्जिट पोल चुनावी नतीजों से विपरीत भी आते हैं।
एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल में अंतर
इन दोनों में मोटा फर्क तो यह है कि ओपिनियन पोल चुनाव से पहले और एग्जिट पोल चुनाव के बाद आते हैं। ओपिनियन पोल में वोटरों की राय जानी जाती है और उसी आधार पर सर्वे तैयार किया जाता है। इसमें वे लोग भी शामिल होते हैं, जो हो सकता है कि चुनाव वाले दिन वोट डालें ही नहीं। वहीं एग्जिट पोल से जुड़े सवाल चुनाव वाले दिन ही सिर्फ वोट डाल कर आये लोगों से पूछे जाते हैं।
नियम और सजा का प्रावधान
रिपे्रजेंटेशन आॅफ द पीपुल्स एक्ट, 1951 के सेक्शन 126-अ के तहत चुनाव के शुरू होने से पहले और आखिर चरण की वोटिंग के खत्म होने के आधे घंटे बाद ही एग्जिट पोल दिखा सकते हैं। सेक्शन में साफ कहा गया है कि कोई भी किसी भी तरह के एग्जिट पोल को मीडिया के किसी रूप (प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक) में दिखा या छाप नहीं सकता। इस नियम को तोड़ने पर दो साल की सजा, जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं।
पार्टियों के निशाने पर भी रहती हैं एजेंसियां
आलोचक और राजनीतिक पार्टियां अकसर एग्जिट पोल करवाने वाली एजेंसियों को अपनी पसंद, तरीके आदि के हिसाब से पक्षपात वाला बताती हैं। उनके पक्ष में न आने पर पार्टियां यह तक कहती हैं कि विरोधी दलों ने एग्जिट पोल एजेंसियों को इसके लिए पैसे देकर मतदाता की असल भावना को छिपाया है।