ज्ञान रंजन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने केंद्रीय कैबिनेट के लिए झारखंड के अर्जुन पर भरोसा किया है। मोदी कैबिनेट में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को जगह मिली है। इसको लेकर कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्जुन मुंडा के राजनीतिक अनुभव और पार्टी के प्रति उनके समर्पण को देखते हुए कैबिनेट में शामिल किया है। झारखंड भाजपा के भीष्म पितामह कड़िया मुंडा की सीट खूंटी से पार्टी ने अर्जुन मुंडा को चुनाव लड़ाया था। यह सीट कोई सामान्य सीट नहीं थी। खूंटी की स्थिति झारखंड के अन्य लोकसभा क्षेत्रों से अलग थी। कह सकते हैं कि यदि भाजपा के लिए कोई सीट सबसे मुश्किल दिख रही थी, तो वह खूंटी ही थी। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को चुनाव पूर्व ही इसका भान था और यही वजह थी कि पार्टी ने अर्जुन मुंडा पर यहां दांव खेला। मुंडा ने भी केंद्रीय नेतृत्व को निराश नहीं किया और भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं-नेताओं संग मिल कर जीत अपने पक्ष में की।
झारखंड के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुुंडा की जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि उन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों का सामना किया, बल्कि एक स्थानीय कद्दावर प्रतिद्वंद्वी को मात दी।
झारखंड भाजपा के भीष्म पितामह कहे जानेवाले कड़िया मुंडा ने इस सीट का आठ बार प्रतिनिधित्व किया था। देश भर में इसाई मिशनरियों के इस सबसे बड़े गढ़ में भाजपा को अपराजेय बनाना आसान नहीं था। 17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में खूंटी इसलिए भी हॉट सीट बन गयी थी, क्योंकि यहां पिछले दिनों चलाये गये देशतोड़क पत्थलगड़ी अभियान के कारण स्थितियां भाजपा के प्रतिकूल हो गयी थीं। ऐसे में बढ़ती उम्र के कारण कड़िया मुंडा को भाजपा ने उम्मीदवार नहीं बना कर अर्जुन मुंडा को प्रत्याशी बनाया। यह बात सही है कि कड़िया मुंडा ने अर्जुन मुंडा को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया और उनकी जीत के लिए जम कर पसीना बहाया, लेकिन अर्जुन मुंडा की मेहनत, मुख्यमंत्री रघुवर दास की रणनीति और आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो के समर्थन ने भाजपा की राह में बिछे कांटों को बहुत हद तक दूर कर दिया।
यह सच है कि अर्जुन मुंडा की जीत का अंतर काफी कम था, लेकिन खूंटी जैसी सीट पर अर्जुन मुंडा की जीत को सामान्य जीत नहीं कहा जा सकता। इस सीट पर विपक्ष ने हर तरह का दांव खेला। भाजपा को हराने के लिए यहां मिशनरियों ने पूरी ताकत झोंक दी थी। इतना ही नहीं विदेश से आये पैसे को पानी की तरह बहाया गया। जिस तरह छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में जसपुर में जीतकर कांग्रेस पार्टी जश्न मना रही थी और नागपुर पर फतह की बात कर रही थी, कमोबेश यही सीन खूंटी में भी था। हर तरफ से मिशनरी ने अर्जुन मुंडा को घेरने का प्रयास किया। झारखंड में खूंटी मिशनरियों का अलग धर्मप्रांत है। जिस तरह से धर्मांतरण बिल और पत्थलगड़ी को लेकर मिशनरियों ने भाजपा के खिलाफ खूंटी में जनता को गोलबंद किया था, मुहिम चलायी थी, वह भाजपा के लिए विपरीत जा रहा था। लेकिन कड़िया के सहयोग से अर्जुन ने न केवल मिशनरियों के चक्रव्यूह को भेदा, बल्कि देशतोड़क पत्थलगड़ी समर्थकों को भी मुंहतोड़ जवाब दिया। सबसे बड़ी बात तो यह रही कि कड़िया मुंडा इस चुनाव में अर्जुन के साथ कृष्ण की तरह हमेशा सारथी बने रहे। उन्होंने अर्जुन मुंडा को न सिर्फ अपने उत्तराधिकारी के तौर पर जनता के समक्ष प्रस्तुत किया, बल्कि मंच-मंच, गली-गली तक अर्जुन के साथ रहे।
यह छोटी बात नहीं है कि टिकट कटने के बाद कड़िया मुंडा ने राजनीति के महान धर्म का पालन किया। भाजपा के इस वाक्य को सार्थक किया, जिसमें यह कहा जाता है कि पहले देश, तब पार्टी और इसके बाद परिवार। कड़िया मुंडा नेता हैं, अगर वह चाहते तो खूंटी में कोई भी गुल खिला सकते थे, मगर उन्होंने पार्टी के निर्णय का सम्मान किया और खूंटी में फिर से भाजपा को स्थापित किया। यही वजह है कि जैसे ही अर्जुन मुंडा को पीएम हाउस से फोन आया, वह सबसे पहले कड़िया मुंडा के आवास पर अपनी पत्नी मीरा मुंडा के साथ मिलने गये और उनका आशीर्वाद लिया। दिल्ली जाने से पहले बुधवार को अर्जुन मुंडा ने मुख्यमंत्री रघुवर दास से उनके आवास पर मुलाकात की थी। मुख्यमंत्री ने उनका स्वागत किया। इस मुलाकात के बाद से ही यह कयास तेज था कि मुंडा को मोदी कैबिनेट में जगह मिलेगी और वह हो गया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अर्जुन मुंडा न सिर्फ झारखंड के बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के सबसे मजबूत आदिवासी चेहरा हैं। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव से पहले संपन्न हर विधानसभा चुनाव में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने अर्जुन मुंडा को आदिवासी इलाके में पार्टी का स्टार प्रचारक बनाया था। गुजरात विधानसभा चुनाव की बात हो या फिर त्रिपुरा, असम या छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव, सभी में अर्जुन मुंडा का पार्टी ने उपयोग किया। अर्जुन मुंडा ने भी पार्टी को निराश नहीं किया। गुजरात में तो चार विधानसभा क्षेत्रों में इनको प्रचार में लगाया गया था और चारों सीट पर भाजपा की जीत हुई थी। झारखंड की बात करें, तो भले ही अर्जुन मुंडा पिछले साढ़े चार वर्षों से सांसद या विधायक नहीं थे, लेकिन इनकी पैठ कार्यकर्ताओं में कायम थी।
गुरुवार को जब अर्जुन मुंडा मंत्री पद की शपथ ले रहे थे, उस वक्त खूंटी में होली-दिवाली मनायी जा रही थी। यह अर्जुन मुंडा की राजनीतिक समझ और उनकी कार्यशैली ही है, जिसकी बदौलत गुड़ाबांधा के एक छोटे से घर में जन्म लेने के बाद वह केंद्रीय मंत्री तक पहुंचे हैं।
आज अर्जुन मुंडा को झारखंड भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा माना जाता है। विधानसभा का पिछला चुनाव हारने के बाद उन्होंने जिस तरह खुद को राजनीति में बनाये रखा, वह सचमुच हैरान करनेवाला था। अर्जुन मुंडा की खासियत यह है कि वह अपनी महत्वाकांक्षाओं को कर्तव्य पर कभी तरजीह नहीं देते और लोगों से हमेशा जुड़े रहते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वह राजनीतिक हालात के अनुरूप खुद को जल्दी ढाल लेते हैं और कभी शिकायत का अवसर नहीं देते। इसीलिए चुनाव के दौरान उन्होंने न केवल स्थानीय कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित किया, बल्कि लगातार संपर्क में रहे। भाजपा में अर्जुन मुंडा की जगह का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव से पहले जब अमित शाह रांची आये थे, तो एक आयोजन में उन्होंने अर्जुन मुंडा को न सिर्फ मंच पर अपने बगल में ससम्मान बिठाया, बल्कि उनकी तारीफ भी की।
अमित शाह ने कहा, आज राज्य में जो भी विकास कार्य वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास कर रहे हैं, उन सबका ब्लूप्रिंट मुंडाजी ने ही तैयार किया था।
2014 में हुए विधानसभा चुनावों में अर्जुन मुंडा खरसांवा विधानसभा सीट से हार गये थे। वह पहला चुनाव था, जिसमें उन्हें हार मिली थी। इस हार से अर्जुन मुंडा मायूस तो हुए, लेकिन उन्होंने इस मायूसी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। यही क्वालिटी अर्जुन मुंडा को औरों से अलग करती है।
संघ परिवार भी झारखंड में अर्जुन मुंडा को मानता है। प्रदेश में वनवासी कल्याण केंद्र, एकल विद्यालय योजना, सेवा भारती, विकास भारती आदि संस्थाओं के माध्यम से लंबे समय से काम कर रहे संघ को अर्जुन मुंडा के रूप में बड़ा आदिवासी चेहरा मिला हुआ है। उसके सामने अर्जुन का विकल्प नहीं है, क्योंकि भाजपा के आदिवासी विरोधी होने के विपक्षियों के दुष्प्रचार का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अर्जुन मुंडा जैसे नेता को सामने लाना जरूरी था।
सबसे कम उम्र में बने थे सीएम
अर्जुन मुंडा झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके है। महज 35 वर्ष की आयु में मुख्यमंत्री का पद संभालनेवाले अर्जुन मुंडा के नाम देश में सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड है। पांच जून 1968 को जमशेदपुर के गुड़ाबांधा में गणेश मुंडा के घर पैदा हुए अर्जुन मुंडा पहली बार 2003 में और दूसरी बार फरवरी 2005 में मुख्यमंत्री बने। उनका राजनीतिक जीवन 1980 से शुरू हुआ। वह अलग झारखंड आंदोलन का दौर था। अर्जुन मुंडा ने राजनीतिक पारी की शुरुआत झारखंड मुक्ति मोर्चा से की। आंदोलन में सक्रिय रहते हुए अर्जुन मुंडा ने जनजातीय समुदायों और समाज के पिछड़े तबकों के उत्थान की कोशिश की। 1995 में वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के उम्मीदवार के रूप में खरसावां से विधायक बने। उस चुनाव में उन्होंने बाहुबली कांग्रेसी विजय सिंह सोय को पराजित किया था।
उस समय झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने उन्हें अपना चौथा बेटा और झारखंड का भविष्य बताया था। इसके बाद अर्जुन मुंडा भाजपा में शामिल हो गये और बतौर भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी 2000 और 2005 के चुनावों में भी उन्होंने खरसावां से जीत हासिल की। वर्ष 2000 में अलग झारखंड राज्य का गठन होने के बाद अर्जुन मुंडा बाबूलाल मरांडी के कैबिनेट में समाज कल्याण मंत्री बनाये गये। वर्ष 2003 में विरोध के कारण बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री के पद से हटना पड़ा। यही वक्त था कि एक मजबूत नेता के रूप में पहचान बना चुके अर्जुन मुंडा पर भारतीय जनता पार्टी आलाकमान की नजर गयी। 18 मार्च 2003 को अर्जुन मुंडा झारखंड के दूसरे मुख्यमंत्री चुने गये। उसके बाद 12 मार्च 2005 को दुबारा उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन निर्दलीयों से समर्थन नहीं जुटा पाने के कारण उन्हें 14 मार्च 2006 को त्यागपत्र देना पड़ा। इसके बाद मुंडा झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया। पार्टी के भरोसे पर अर्जुन मुंडा खरे उतरे। उन्होंने लगभग दो लाख के मतों के अंतर से जीत हासिल की। 11 सितंबर 2010 को वह तीसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। लेकिन बीच में उन्हें फिर कुर्सी छोड़नी पड़ी, क्योंकि झामुमो के हेमंत सोरेन ने उनसे समर्थन वापस ले लिया और विपक्षियों के साथ मिल कर खुद सरकार बना ली। इसके बाद 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में वह हार गये। इसके बीच लगातार अर्जुन मुंडा भाजपा में अपने लिए राजनीतिक जमीन तलाशते रहे। यह समय आया 2019 के लोकसभा चुनाव में, जब उन्हें खूंटी से उम्मीदवार बनाया गया और वे आलाकमान के भरोसे पर खरा उतरे।