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    Home»Top Story»जन और तंत्र के बीच खाई का परिणाम है सिसकारी घटना 
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    जन और तंत्र के बीच खाई का परिणाम है सिसकारी घटना 

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJuly 23, 2019No Comments5 Mins Read
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    दो दिन पहले गांववालों ने कर लिया था हत्या का फैसला

    किसी ने विरोध किया न किसी की जुबान खुली

    गुमला के नगर सिसकारी गांव में जिन चार लोगों की लाठियों से पीट कर हत्या की गयी, उनके शव भले ही दफना दिये गये हैं, लेकिन उनकी कब्र से अब भी कई सवाल गांव की फिजाओं में तैर रहे हैं। इन सवालों के जवाब न तो पुलिस-प्रशासन के पास है और न ही ग्रामीणों के पास। पुलिस ने घटना में शामिल अपराधियों की पहचान कर लेने का दावा तो किया है और आठ लोगों को गिरफ्तार भी किया है, लेकिन ग्रामीणों के मन में मृतकों के प्रति नफरत अब भी बरकरार है। ग्रामीण यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि उन्होंने कोई गलत काम किया है।

    क्यों हुई बर्बर घटना

    करीब 40 घरों के नगर सिसकारी गांव में पिछले कुछ दिनों से बीमारी और अन्य तरह की समस्याएं थीं। गांव वालों को पता ही नहीं चल रहा था कि आखिर उन पर समस्याएं क्यों आन पड़ी हैं। उन्होंने अपने भगवान की पूजा की, ग्राम देवता को खुश करने के लिए विधि-विधान से आराधना की, लेकिन समस्याएं कम नहीं हुईं। थक-हार कर गांव के कुछ लोग मांडर पहुंचे, जहां ओझा-गुणियों की एक बस्ती है। वहां उन्होंने एक गुणी से संपर्क किया। उस गुणी ने उन्हें बताया कि उनके गांव की सभी समस्याओें की जड़ गांव में ही है। उसने ही गांव में टोटका कर अपना जाल फैला रखा है। गुणी ने गांव के उस व्यक्ति का हुलिया भी बताया। संयोग से यह हुलिया गांव के चापा भगत और सुना उरांव से मिलता-जुलता था। गुणी ने यह भी बताया था कि इस समस्या का निदान पूजा-पाठ से हो सकता है। ग्रामीणों ने लौट कर चापा और सुना से बात की और कहा कि पूजा-पाठ में होनेवाला खर्च वे उठायें। इन दोनों से इससे इनकार कर दिया। तब बुधवार को और फिर शुक्रवार को गांववालों ने पंचायत लगायी। इसमें इन चारों को छोड़ कर सभी ग्रामीण उपस्थित थे। उस पंचायत में एक स्वर से फैसला लिया गया कि इन चारों की हत्या कर दी जाये। फैसले को अमल में लाने की जिम्मेवारी गांव के ही कुछ लोगों को सौंपी गयी। इन लोगों ने रविवार तड़के गांव के फैसले को अमली जामा पहना दिया।

    आखिर पंचायत के फैसले की भनक क्यों नहीं लगी

    नगर सिसकारी गांव का हर व्यक्ति पंचायत में शामिल था। यहां तक कि ग्राम प्रधान, इलाके के चौकीदार और दूसरे सरकारी लोगों को भी निश्चित तौर पर फैसले की जानकारी मिली होगी। यदि उन्हें हत्या किये जाने के फैसले की जानकारी मिल गयी थी, तो फिर सवाल यह उठता है कि उन्होंने इसे रोकने की कोशिश क्यों नहीं की। और यदि उन्हें फैसले की जानकारी नहीं मिली, तो यह इस बात का संकेत है कि आम ग्रामीणों से उनका रिश्ता खत्म हो गया है। वैसे जानकारी मिली है कि कुछ ग्रामीणों ने शनिवार की रात सिसई के थानेदार और अन्य पुलिसकर्मियों को फैसले की जानकारी देने के लिए फोन किया, लेकिन लगातार घंटी बजने के बावजूद उन्होंने फोन नहीं उठाया। सिसई के थानेदार और अन्य पुलिसकर्मियों के इस रवैये की जांच होनी चाहिए।

    हर ग्रामीण एक ही बात कहता रहा

    नगर सिसकारी में चार लोगों की हत्या के बाद जब पुलिस और दूसरे लोगों ने ग्रामीणों से बात की, तो हर कोई घटना के बारे में अपनी अनभिज्ञता बताता रहा। इतना ही नहीं, हरेक ग्रामीण ने लगभग एक जैसा ही बयान दिया। घटना के बाद अधिकांश ग्रामीण घर छोड़ कर चले गये थे, लेकिन उनके लौटने के बाद बातचीत के दौरान जो जानकारी मिली, वह बेहद चौंकानेवाली थी। उनमें से किसी भी ग्रामीण के चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था। गांव के बीच में चार लोगों की लाठी-डंडे से पीट कर हत्या कर दी गयी, लेकिन उसी गांव के किसी व्यक्ति को भनक तक नहीं लगी। सभी कहते रहे कि उन्हें कुछ नहीं मालूम।

    खतरनाक संकेत

    नगर सिसकारी गांव की घटना महज अंधविश्वास के कारण नहीं हुई है, बल्कि यह गांवों के छीजते सामाजिक ताने-बाने को उजागर करती है। अब तक माना जाता है कि गांव का जनजीवन परस्पर सहयोग और विश्वास के आधार पर चलता है। गांव के लोग एक-दूसरे का भरपूर सहयोग करते हैं और एक-दूसरे को सम्मान देते हैं। शहरीकरण और भौतिक जीवन की बुराइयों ने उनके जीवन को बहुत अधिक प्रभावित नहीं किया है। लेकिन नगर सिसकारी की घटना ने इन मिथकों को तोड़ दिया है। किसी गांव में सामूहिक रूप से चार लोगों की हत्या का फैसला किया जाये और उस पर तत्काल अमल भी कर दिया जाये, तो यह उस गांव के कमजोर होते सामाजिक रिश्तों का ही परिचायक है।

    तो आखिर उपाय क्या

    नगर सिसकारी की घटना दोबारा न हो, इसके लिए केवल सरकारी तंत्र पर भी भरोसा करना उचित नहीं है। अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करने का जिम्मा पूरे समाज को उठाना होगा। इसके साथ तंत्र को उस लोक से जोड़ने के लिए सशक्त और सघन अभियान चलाना होगा, ताकि ऐसे किसी खतरनाक फैसले की जानकारी मिल सके। ग्रामीण इलाके में वह पुरानी व्यवस्था बहाल करने की कोशिश भी करनी होगी, जिसमें परस्पर सम्मान, सहयोग और विश्वास के साथ जीवन बिताया जाता था।

    The result of the gap between the mass and the mechanism is the cicameral phenomenon
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