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    13 सीटों पर 192 प्रत्याशी ठोक रहे हैं एक-दूसरे के विरुद्ध ताल

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskNovember 21, 2019No Comments8 Mins Read
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    अजय शर्मा
    रांची। झारखंड विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण में 13 सीटों के लिए 30 नवंबर को मतदान होना है। जिन विधानसभा सीटों पर प्रथम चरण के चुनाव में मतदान होना है, वह इलाका सभी पूर्वानुमानों को खारिज करते रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक भी इन इलाकों में गच्चा खाते रहे हैं। पहले से यह कहना मुश्किल है कि यहां ऊंट किस करवट बैठेगा। पलामू झारखंड का पिछड़ा इलाका माना जाता है। यहां की नौ सीटों के अलावा चार और सीटों के लिए 192 प्रत्याशी मैदान में हैं। उम्मीदवारों के दावों पर अगर गौर करें, तो यहां हर कोई जीत का दावा कर रहा है, जबकि बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भी मतदाताओं का मन टटोलने में असफल होते रहे हैं। राजनीति के धुरंधर माने जानेवाले कई उम्मीदवार आमने-सामने टक्कर की स्थिति में हैं, तो कहीं त्रिकोणीय मुकाबला है। एक-दो सीटों पर तो चौतरफा मुकाबला भी है। कई ऐसी सीटें हैं, जहां जातीय समीकरण भारी रहा है। इस समीकरण को भेदना आसान भी नहीं है। यह समीकरण परिणाम को प्रभावित करता रहा है। यही वजह है कि कई दिग्गजों को कभी-कभी पटकनिया भी खानी पड़ी है। प्रथम चरण में गढ़वा, डालटनगंज, भवनाथपुर, विश्रामपुर, पांकी, लातेहार, मनिका, हुसैनाबाद, छतरपुर, गुमला, विशुनपुर, लोहरदगा और चतरा में वोट डाले जाने हैं। प्रथम चरण में कांग्रेस छह, भाजपा और झाविमो सभी सीटों पर, झामुमो चार सीट और राजद ने तीन सीट पर उम्मीदवार दिये हैं।
    कहां क्या है सीन
    पांकी: पांकी विधानसभा में सीधी टक्कर कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशी के बीच है। यहां 30 वर्षों से एक ही परिवार का कब्जा रहा है। पहले विदेश सिंह और अब उनके पुत्र देवेंद्र सिंह उर्फ बिट्टू विधायक हैं। इस बार भाजपा ने शशिभूषण प्रसाद मेहता को उम्मीदवार बनाया है। ये पहचान को मोहताज नहीं हैं। इनकी क्षेत्र के एक खास विशेष वर्ग पर मजबूत पकड़ रही है, जबकि भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ने के कारण उन्हें एक बड़ा आधार वोट बैंक मिला है। क्षेत्र में इनकी पकड़ काफी मजबूत है, जबकि इस बार देवेंद्र सिंह का खेल प्रत्याशी मुमताज खान बिगाड़ सकते हैं। पहले मुमताज खान देवेंद्र सिंह के काफी नजदीकी थी और हर चुनाव में वे कमान संभालते थे, लेकिन इस बार उन्होंने खुद बिट्टू सिंह के खिलाफ ताल ठोंक दी है। उनकी मुसलमानों के बीच गहरी पकड़ है। हालांकि बिट्टू सिंह को भी किसी मायने में कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। एक ही परिवार का कब्जा यदि 30 वर्षों तक इस सीट पर रहा है, तो इसकी कोई बड़ी वजह रही होगी। हालांकि बीच के चार वर्षों में मधु सिंह यहां से विधायक रहे। 2000 के चुनाव में मधु सिंह ने जीत दर्ज की, मंत्री भी बने, पर विदेश सिंह ने चुनाव परिणाम को हाइकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने 2004 में विदेश सिंह के पक्ष में फैसला सुना दिया और वह विधायक घोषित किये गये।
    लोहरदगा: प्रथम चरण के चुनाव में सबसे हॉट सीट के रूप में लोहरदगा को रखा गया है। झारखंड की राजनीति की दशा और दिशा तय करनेवाले दो बड़े धुरंधर यहां ताल ठोक रहे हैं। कुछ दिन पहले तक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे पूर्व प्रशासनिक अधिकारी सुखदेव भगत इस बार वहां कमल खिलाना चाहते हैं। इनका सीधा मुकाबला कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व आइपीएस अधिकारी डॉ रामेश्वर उरांव और आजसू से दो बार विधायक रहे कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत से है। यहां स्थिति साफ नहीं है। धुकधुकी सभी उम्मीदवारों को हो रही है। कोई दावे के साथ नहीं कह सकता कि सीट पर कमल खिलेगा, या केला आगे रहेगा या फिर पंजा ही पंजा दिखेगा। प्रत्याशी एक-दूसरे के विरुद्ध प्रचार के दौरान आरोप लगा रहे हैं, मतदाता इसका मजा ले रहे हैं। जब इवीएम खुलेगी, तब पता चलेगा कि किसका हुआ लोहरदगा। लोहरदगा में प्रचार करने के लिए राष्टÑीय नेता भी पहुंच रहे हैं।
    गुमला : गुमला विधानसभा में कब्जा भाजपा का है। यहां से अभी शिवशंकर उरांव विधायक हैं। परफार्मेंस ठीक नहीं होने के कारण भाजपा ने इस बार इन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया है। शिवशंकर उरांव के खराब परफार्मेंस के कारण मतदाता नाराज भी थे। लिहाजा भाजपा ने यहां कैंडिडेट बदला और अब कमल निशान के साथ मिसिर कुजूर मैदान में हैं। भाजपा ने जिसे अपना चेहरा बनाया है, उनकी छवि अच्छी मानी जाती है। इनकी सीधी टक्कर झामुमो के भूषण तिर्की से है। तिर्की जुझारू नेता रहे हैं। क यहां भाजपा उन्हें दो बार पटखनी दे चुकी है। इस विधानसभा की खासियत यह मानी जाती है कि यहां महिला मतदाता बढ़-चढ़ कर मतदान करती हैं। लिहाजा उम्मीदवार यहां महिलाओं को रिझाने में लगे हैं।
    डालटनगंज : यहां भाजपा ने वर्तमान विधायक आलोक चौरसिया पर भरोसा जताया है। चौरसिया युवा नेता हैं। पलामू में अच्छी खासी पकड़ भी है। काम के मामले में अन्य विधायकों से पीछे नहीं हैं। इनका मुकाबला कांग्रेस के कद्दावर नेता केएन त्रिपाठी से है। त्रिपाठी पलामू इलाके के धुरंधर नेताओं में हैं, लेकिन यहां चौरसिया से सीधी टक्कर की स्थिति है। यहां यह कहना मुश्किल है कि सीट पर कब्जा किसका होगा। अंतिम समय में मतदाताओं का झुकाव प्रत्याशियों का भाग्य तय करेगा। डालटनगंज अन्य मामलों में पिछड़ा जरूर है, लेकिन राजनीति में यह अव्वल स्थान रखता है।
    गढ़वा: यहां से भाजपा ने अपने पुराने उम्मीदवार को ही टिकट दिया है। यहां से सत्येंद्रनाथ तिवारी भाजपा के उम्मीदवार हैं। इनकी टक्कर झामुमो के मिथिलेश ठाकुर से है। दोनों एक ही जाति से आते हैं। तिवारी का कहना है कि उनकी पकड़ बरकरार है। उन्होंने काम किया है। मतदाता उनसे नाराज नहीं हैं। झामुमो के ठाकुर दो बार से गढ़वा में भाजपा को पटकनिया देने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हर बार उनका दांव फेल हो जा रहा है। यहां ब्राह्मण वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। अभी तो दावा दोनों कर रहे हैं, लेकिन परिणाम बतायेगा कि गढ़वा का ठाकुर कौन बनेगा।
    भवनाथपुर: यहां से भाजपा के प्रत्याशी भानु प्रताप शाही हैं। अब तक इस सीट पर कमल को मुरझाना ही पड़ता रहा है। लिहाजा इलाके में पकड़ रखनेवाले शाही पर भाजपा ने भरोसा जताया है। उम्मीद है कि ये इस इलाके में कमल खिला पायेंगे, हालांकि इनका सीधा मुकाबला पूर्व भाजपाई अनंत प्रताप देव और कांग्रेस के केपी यादव से है। भवनाथपुर उत्तरप्रदेश के बॉर्डर पर है। मतदाता अब तक शाही पर भरोसा जताते आये हैं। अब देखना यह है कि इस बार कमल के निशान के साथ उनके मैदान में उतरने से मतदाता कैसे उन्हें अपनाते हैं।
    हुसैनाबाद : यहां भाजपा समर्थित विनोद कुमार सिंह मैदान में हैं। सीधा मुकाबला आजसू के शिवपूजन मेहता के साथ है। शिवपूजन मेहता फायरी नेता माने जाते हैं। यहां इस बार इनका मुकाबला निर्दलीय उम्मीदवार विनोद सिंह, लालटेन लेकर मैदान में उतरे संजय यादव और एनसीपी के धुरंधर नेता कमलेश कुमार सिंह से है। कमलेश सिंह यहां से विधायक रह चुके हैं। वे मंत्री भी थे।
    छतरपुर : छतरपुर की सीट भाजपा के पास थी। यहां से राधाकृष्ण किशोर विधायक हैं। पर इनका टिकट भाजपा ने काट दिया। आधार माना गया कि इनकी पकड़ इलाके में कमजोर हो गयी थी। इस बार यहां से पुष्पा देवी भाजपा की उम्मीदवार हैं। ये पहले भी चुनाव लड़ चुकी हैं, लेकिन उस समय हाथ में लालटेन थी। अब यहां से वह कमल फूल को खिलाना चाहती हैं। टक्कर देने की स्थिति में वर्तमान विधायक राधाकृष्ण किशोर हैं। अब उनके हाथ में कमल की बजाय फल है, वह भी केला। इनके नजदीकी रिश्तेदार बीडी राम यहां से सांसद हैं। छतरपुर की लड़ाई काफी रोचक है। मतदाता भी चुपचाप हैं। दावों पर अगर जायें, तो सभी जीत का दावा कर रहे हैं।
    विशुनपुर : विशुनपुर में भाजपा की पकड़ रही है, पर वर्ष 2014 में तीर सीधे निशाने पर लगी और कमल मुरझा गया था। सीट झामुमो के पास है और विधायक हैं चमरा लिंडा। इनका सीधा मुकाबला भाजपा के अशोक उरांव से है। यहां वोट के ऐन वक्त पर जंगल का इशारा भी प्रत्याशियों के पक्ष में काम कर जाता है। विशुनपुर आदिवासी बहुल इलाका है। इसाई भी बड़ी संख्या में यहां रहते हैं, जो परिणाम को प्रभावित करते हैं।
    चतरा: चतरा में भाजपा ने जनार्दन पासवान को उम्मीदवार बनाया है। ये इसके पहले लालटेन लेकर घूमा करते थे। अब कमल खिलाना चाहते हैं। मौजूदा विधायक जयप्रकाश भोग्ता को भाजपा ने टिकट नहीं दिया। यहां थोड़ा भितरघात की स्थिति है। उधर पूर्व मंत्री सत्यानंद भोग्ता लालटेन की लौ तेज करने में जुटे हैं। रोचक मुकाबला यहां होगा। कौन किसको पटकनिया देगा, वह परिणाम बतायेगा।
    लातेहार : लातेहार सीट झाविमो के पास थी। प्रकाश राम कंघी फेंक कर कमल लेकर मैदान में हैं। भाजपा ने इन्हें उम्मीदवार बनाया है। इनका मुकाबला झामुमो के बैजनाथ राम के साथ है। झाविमो ने भी उम्मीदवार दिया है। मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना है।
    विश्रामपुर : यहां मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी भाजपा के उम्मीदवार हैं। इनका सीधा मुकाबला समान उम्र के कांग्रेसी प्रत्याशी चंद्रशेखर दुबे के साथ है। राजनीति के अखाड़े में दोनों किसी से कम नहीं हैं। इस सीट पर मुकाबला दो दलों के बीच है। दोनों राजनीतिक पकड़ रखनेवाले माने जाते हैं।
    मनिका : मनिका सीट पर भाजपा के हरेकृष्ण सिंह विधायक हैं। भाजपा ने उन पर भरोसा नहीं जताया। दलील दी गयी कि इनकी इलाके में पकड़ नहीं है। पांच साल तक कुछ नहीं किया। यहां से भाजपा ने रघुपाल सिंह को टिकट दिया है। मुकाबला कांग्रेस के रामचंद्र सिंह से है। देखना यह है कि राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है।

    192 candidates are pitting against each other in 13 seats
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