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    Home»Top Story»एक नाम के इर्द-गिर्द घूम रही तमाड़ की सियासत
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    एक नाम के इर्द-गिर्द घूम रही तमाड़ की सियासत

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskDecember 7, 2019No Comments6 Mins Read
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    बदल गये हैं विकास के लिए क्षेत्र के राजनीतिक समीकरण
    तमाड़ विधानसभा में वर्ष 2005 में जदयू के टिकट पर चुनाव जीतकर रमेश सिंह मुंडा विधायक बने। 2008 में उनकी हत्या हो गयी। इसके बाद वर्ष 2009 में हुए
    उपचुनाव में राजा पीटर झारखंड पार्टी के टिकट पर विजयी हुए। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को लगभग 9 हजार मतों से शिकस्त दी थी। इसके बाद शिबू सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार गिर गयी। इसी वर्ष झारखंड विधानसभा का चुनाव नये सिरे से कराया गया। राजा पीटर इस बार जदयू के टिकट पर लड़े और दुबारा इस सीट से जीत हासिल की। वर्ष 2014 में स्व. रमेश सिंह मुंडा के बेटे विकास सिंह मुंडा आजसू प्र्रत्याशी के रूप में उतरे और राजा पीटर से यह सीट छीन ली। इस बार विकास सिंह मुंडा ने पार्टी बदल ली है। वह झामुमो के उम्मीदवार हैं। उनका मुकाबला राजा पीटर और नक्सली से नेता बने कुंदन पाहन के अलावा भाजपा की रीता देवी, आजसू के राम दुर्लभ सिंह मुंडा और झाविमो के प्रेम शंकर शाही मुंडा से है। इन पांच योद्धाओं से मुकाबिल विकास सिंह मुंडा के लिए यह चुनाव लिटमस टेस्ट है। उनके समक्ष दोहरी चुनौती है। पहली चुनौती तो अपने प्रतिद्वंद्वियों से निपटने की है और दूसरी चुनौती पार्टी बदलने के बाद जनता के भरोसे को बरकरार रखना है। विकास सिंह मुंडा को जिनसे चुनाव में दो-दो हाथ करना है, उनमें से एक कुंदन पाहन उनके पिता रमेश सिंह मुंडा की हत्या का मुख्य आरोपी है। वहीं राजा पीटर पर इस हत्याकांड कीसाजिश रचने का आरोप है। कुंदन और राजा पीटर दोनों जेल में हैं। जाहिर है कि ये दोनों उम्मीदवार विकास सिंह मुंडा को फूटी आंख भी नहीं सुहाते। कुंदन पाहन और राजा पीटर भी विकास सिंह मुंडा को देखना नहीं चाहते। ऐसे में इस सीट पर राजनीतिक समीकरण दिलचस्प हो गया है। विकास सिंह मुंडा के सामने दिक्कत यह है कि आजसू छोड़ने के साथ क्षेत्र के महतो वोटरों का एक कुनबा उनसे दूर चला गया है, वहीं झामुमो में नया-नवेला होने के कारण झामुमो के कार्यकर्ता पूरी तरह से उनके साथ नहीं जुड़े हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने जिस राजा पीटर को हराया था, वे अपनी खोयी सीट हासिल करने के लिए पूरी ऊर्जा झोंक रहे हैं।

    शिबू को हराकर चर्चा में आये थे राजा पीटर
    वर्ष 2009 के उपचुनाव में राजा पीटर ने इस सीट से दिशोम गुरु शिबू सोरेन को हराकर सुर्खियां बटोरी थीं। बाद में वह झारखंड सरकार में मंत्री बनने में भी कामयाब रहे थे। शिबू सोरेन के हारते ही राज्य में झामुमो, कांग्रेस और राजद के गठबंधन वाली सरकार गिर गयी थी और राजा पीटर का राजनीतिक ग्राफ किसी बुलेट ट्रेन की तरह चढ़ा था। शिबू सोरेन उस समय राज्य के मुख्यमंत्री थे, इसलिए राजा पीटर उन्हें हराकर रातों-रात हीरो बन गये थे। वर्ष 2014 के चुनाव में उन्हें विकास सिंह मुंडा के हाथों पराजित होना पड़ा। विकास सिंह मुंडा के दूसरे प्रमुख प्रतिद्वंद्वी कुंदन पाहन का अतीत दागदार रहा है। नक्सली संगठन में कमांडर रहे कुंदन पाहन ने वर्ष 2017 में पुलिस के समक्ष सरेंडर किया था। कुंदन पाहन पर किसी समय खूंटी, रांची और चाईबासा में 120 से अधिक मामले दर्ज थे। आज भी करीब 50 मामले हैं। सरेंडर करने के बाद कुंदन पाहन को सरकार ने हजारीबाग की ओपेन जेल में रखा है। अदालत से अनुमति मिलने के बाद वह मैदान में उतरा है। कुंदन पाहन का कहना है कि अब राजनीति के जरिए वह क्षेत्र के लोगों की सेवा में जुटना चाहता है। कुंदन जेल में है, लेकिन उसकी पत्नी और उसके समर्थकों ने पूरी मजबूती से चुनावी मोर्चा संभाल रखा है। इधर, विकास सिंह मुंडा को पांच साल के कार्यकाल के दौरान किये गये अपने कामकाज पर भरोसा है। विकास सिंह मुंडा का कहना है कि जब मैं विधायक बना था, तो क्षेत्र में सड़क, बिजली और पानी की समस्या चरम पर थी। गांवों में बिजली नहीं पहुंची थी और ट्रांसफार्मर भी नहीं थे। आज गांव में स्थिति बदली है। सड़कों की हालत सुधरी है और बुंडू तथा तमाड़ के शहरी इलाकों में मैंने पेयजल की व्यवस्था करायी है। किसानों के खेतों में पानी पहुंचे इसके लिए तीन सिंचाई योजनाओं का जीर्णोद्धार करवाया है। एक नहर का पक्कीकरण करवाया है। तीन पावर सब स्टेशन की मंजूरी दिलवायी, जिसमें से दो का काम पूरा हो चुका है। एक का निर्माण कार्य चल रहा है। एक विधायक के तौर पर मुझसे जितना हो सका, उतना मैंने किया है। वहीं उनके विरोधी कहते हैं कि बतौर विधायक विकास सिंह मुंडा सफल नहीं रहे। जनता उनमें दिवंगत विधायक रमेश सिंह मुंडा का उत्तराधिकारी ढूंढ़ती रही, लेकिन वह लोगों के लिए समय निकाल नहीं पाते। क्षेत्र में सिंचाई और पेयजल के लिए पानी की किल्लत बरकरार है, तो उन्होंने क्या काम किया है। जिस दल के टिकट पर वे चुनाव जीते, उसी को उन्होंने ठेंगा दिखा दिया।
    आजसू पार्टी के बुद्धिजीवी मंच के प्रखंड अध्यक्ष शशिभूषण सिंह मुंडा का कहना है कि विकास सिंह मुंडा ने आजसू के कैडरों की कद्र नहीं की। उनसे कोई सलाह-मशविरा नहीं लिया और इस बार जब उन्हें लगा कि वे चुनाव हार जायेंगे तो उन्होंने पार्टी बदल ली। वहीं इस सीट से आजसू के उम्मीदवार राम दुर्लभ सिंह मुंडा ने कहा कि यदि मुझे जनता चुनाव में विजयी बनाती है, तो पूरे मन से क्षेत्र के लोगों की सेवा करेंगे और भविष्य में कभी भी पार्टी नहीं बदलेंगे। राम दुर्लभ सिंह मुंडा आजसू के पुराने कैडर हैं तथा आजसू के उलगुलान फाउंडेशन के उपाध्यक्ष भी हैं। राम दुर्लभ सिंह मुंडा लंबे समय से राजनीति में सक्रिय रहे हैं। राजा पीटर के जेल में बंद रहने के कारण राजा पीटर के चुनाव प्रचार की कमान उनकी पत्नी आरती कुमारी ने संभाल रखी है। आरती का दावा है कि उनके पति की जीत पक्की है। क्षेत्र के लोगों के बीच उनकी छवि किसी मसीहा से कम नहीं है। हर किसी के सुख-दुख में वे शामिल होते थे। उन्हें साजिश के तहत जेल में रखा गया है, जिससे वे चुनाव न लड़ सकें, पर उनके विरोधियों की साजिश सफल नहीं होगी। वहीं कुंदन पाहन के चुनाव प्रचार की कमान संभाल रहे अजय चौधरी का कहना है कि कुंदन ने कोई गुनाह नहीं किया। जंगल में रहकर वे क्षेत्र के लोगों की भलाई के लिए काम करते थे। गरीबों को शोषण से बचाते थे। क्षेत्र के 99 फीसदी युवा कुंदन के पक्ष में हैं। छह सौ युवा तो स्वेच्छा से गांव-गांव घूमकर उनका चुनाव प्रचार कर रहे हैं। बहरहाल, दावों-प्रतिदावों के बीच इनमें से किसके सिर ताज सजेगा और किसके हाथों हार आयेगी, यह चुनाव के परिणाम बतायेंगे।

    पानी की किल्लत है बड़ा मुद्दा
    तमाड़ सीट पर पानी की किल्लत बड़ा मुद्दा है। कांची नदी से इस क्षेत्र में पाखा नहर के जरिये जलापूर्ति होनी है, पर अब तक यह शुरू नहीं हो पायी है। पर जलापूर्ति के लिए पाइपलाइन अभी तक नहीं बिछी है। नतीजा पेयजल और सिंचाई के लिए पानी की किल्लत यहां समस्या है। वहीं क्षेत्र के दूरदराज के इलाकों में आवागमन आज भी समस्या है।

    Politics of Tamar revolving around a name
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