वैश्विक महामारी कोरोना को लेकर पूरी मानव सभ्यता त्राहि-त्राहि कर रही है। झारखंड में आज लॉकडाउन का दूसरा दिन है और आज लोगों की समझदारी में इजाफा हुआ है। सोमवार की बनिस्बत लोग सड़कों पर कम निकले और हालात की गंभीरता को समझते हुए अपने घरों में ही रहे। लेकिन इस संकटकालीन परिस्थिति में भी कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्होंने न केवल इस स्थिति को वरदान मान लिया है, बल्कि इसका जम कर लाभ उठा रहे हैं। ये ऐसे लोग हैं, जिन्हें देशद्रोही की संज्ञा ही दी जा सकती है। ये लोग लॉकडाउन के दौरान भी मुनाफाखोरी से बाज नहीं आ रहे हैं। मजबूर और संकट में फंसे लोगों की मदद करने की बजाय ये लोगों को लूटने में लगे हैं। लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए दोगुना-चार गुना भाड़ा वसूल रहे हैं, मास्क-सैनिटाइजर के साथ दवाओं को ऊंची कीमत पर बेच रहे हैं और यहां तक कि जरूरी सामग्री की भी कीमत अधिक वसूल रहे हैं। यह ऐसा अपराध है, जिसकी सजा कानून तो दे ही सकता है, समाज इन्हें सबक सिखा सकता है। आज का विशेष इन मुनाफाखोरों की करतूत और इससे पैदा हो रही मुश्किलों पर केंद्रित है।
रांची का व्यस्ततम अलबर्ट एक्का चौक। समय दिन के साढ़े नौ बज रहे थे। एक प्रौढ़ दंपति को रिम्स जाना था, क्योंकि महिला की तबीयत ज्यादा खराब थी। निम्न मध्य वर्ग के उस दंपति ने वहां खड़े एक आॅटो चालक से रिम्स पहुंचाने की विनती की। आॅटोचालक ने सपाट सा जवाब दिया, पांच सौ रुपये लगेंगे। बहुत कहने पर आॅटो वाले ने चार सौ रुपये लेने की बात कही। शायद उस दंपति के पास इतने पैसे नहीं थे। निराश होकर दोनों वहीं सीढ़ियों पर बैठ गये। इसी तरह कांटाटोली चौक पर एक सिटी राइड बस आकर रुकती है। वह जमशेदपुर जा रही थी। उधर जानेवाले दर्जनों लोग उसमें चढ़ने के लिए आगे बढ़े। तभी बस का कंडक्टर नीचे उतरा और हरेक यात्री से चार-चार सौ रुपये वसूलने लगा। लॉकडाउन के दूसरे दिन की यह स्थिति केवल रांची की नहीं, बल्कि राज्य के दूसरे शहरों में भी रही। चाहे रिक्शा चलानेवाले हों या बस, राशन दुकानदार हों या दूध विक्रेता, दवा दुकानदार हों या दूसरी जरूरी चीज बेचनेवाले, हर कोई कोरोना के संकट का लाभ उठाने में लगा है। और लोग भी इतने नासमझ हैं कि वे अनाप-शनाप कीमत पर सामान खरीद कर घरों में जमा कर रहे हैं।
यह स्थिति तब है, जब सरकार और प्रशासन ने जमाखोरी-मुनाफाखोरी करनेवालों को कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी है। व्यवसायियों के संगठन चैंबर आॅफ कॉमर्स ने मुनाफाखोरी नहीं करने की अपील की है। फिर भी ऐसा हो रहा है और धड़ल्ले से हो रहा है। इस प्रवृत्ति को केवल समाज विरोधी नहीं कहा जा सकता है, बल्कि असली देशद्रोह यही है। एक तरफ पूरी मानवता कोरोना के कहर से कराह रही है, लोग परेशान और तनावग्रस्त हैं, और दूसरी तरफ ये मुनाफाखोर हैं, जो इस संकट को वरदान समझ कर मनमानी कर रहे हैं।
झारखंड को सरलता और खुशमिजाजी के लिए जाना जाता है। झारखंड के बारे में कहा जाता है कि यहां बोलना ही संगीत है और चलना ही नृत्य है। ऐसे निश्छल समाज में इन मुनाफाखोरों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। हम जिस पश्चिमी समाज को संकुचित और व्यक्तिवादी कहते हैं, उसकी असलियत यह है कि लॉकडाउन वाले कई पश्चिमी देशों में लोग अपने घर के बाहर खाने का पैकेट, दवाएं और दूसरे जरूरी सामान रख दे रहे हैं, ताकि वे किसी जरूरतमंद के काम आ सकें। इतना ही नहीं, पश्चिमी देशों में सड़कों पर रहनेवाले आवारा जानवरों के खाने के लिए भी सामान रख दिये जा रहे हैं, ताकि वे भी जीवित रह सकें।
इसके विपरीत झारखंड में क्या हो रहा है। हम खुद को बेहद सामाजिक मानते हैं और एक-दूसरे की मदद के लिए हमेशा तैयार रहने का दंभ भरते हैं। लेकिन मौका आने पर हम एक-दूसरे की गर्दन काटने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। सामान्य दिनों में हम मिलावट करते हैं, नकली सामान तैयार करते हैं और लोगों को धड़ल्ले से धोखा देते हैं, क्योंकि हमारे लिए भौतिक सुख-सुविधा सबसे कीमती है। हम संकट में भी एक-दूसरे की मदद नहीं करते, बल्कि दूसरे की मजबूरी का फायदा उठाने की ताक में रहते हैं।
यह बेहद खतरनाक स्थिति है। मुनाफा कमाने और किसी की मजबूरी का फायदा उठाने की हमारी यह प्रवृत्ति हमें एक ऐसे अंधे कुएं की ओर ले जा रही है, जिसमें गिरने के बाद हम कुछ नहीं कर सकेंगे। झारखंड के लोगों को यह सोचना होगा। ऐसा कतई नहीं है कि आज जो मजबूर लोग हैं, वे कल मजबूत नहीं होंगे। और जिस दिन वे मजबूत हुए, तब क्या स्थिति होगी, इसकी कल्पना ही की जा सकती है। आज जरूरत संयम और एकजुटता की है। यह एकजुटता हमें हर उस व्यक्ति के साथ दिखानी है, जो मुश्किल में फंसा है, जिसे मदद की जरूरत है। हम सभी की पूरी मदद नहीं कर सकते, लेकिन एक व्यक्ति के चेहरे पर भी यदि हम मुस्कान ला सकें, तो यही बहुत होगा। हम इतना तो कर ही सकते हैं कि संकट के इस दौर में हम कम से कम मुनाफा कमायें, जरूरतमंदों की मदद करें और मिल-जुल कर इस संकट का सामना करें।
कोरोना के इस संकट ने मानव जाति को एक और सबक दिया है। वह सबक है पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों का महत्व सभी को समझना होगा। इस संकट ने समाज विज्ञान के उस कथन को प्रमाणित किया है, जिसमें कहा गया है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। ये मुनाफाखोर इस कथन को झुठलाने में लगे हैं, लेकिन वे नहीं समझ रहे हैं कि जब दिन समान्य होगा और लोग उनसे नफरत करने लगेंगे, तब उनका क्या होगा। इसलिए यह वक्त दूसरों की मजबूरी का फायदा उठाने का नहीं, बल्कि एक-दूसरे का हाथ थाम कर संकट का सामना करने और उसे पराजित करने की रणनीति बनाने का है। यदि हम इसमें चूक गये, तो फिर ऐसा संकट बार-बार हमारे सामने आयेगा, जिससे हम लगातार कमजोर होते जायेंगे। तो आइए, आज संकल्प लें कि हम हर जरूरतमंद की यथाशक्ति मदद करेंगे।