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    Home»स्पेशल रिपोर्ट»कोरोना से जंग में झारखंड सरकार ने दिखाया दम
    स्पेशल रिपोर्ट

    कोरोना से जंग में झारखंड सरकार ने दिखाया दम

    azad sipahiBy azad sipahiApril 4, 2020No Comments7 Mins Read
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    • हेमंत सोरेन के हर फैसले की चहुंओर हो रही तारीफ
    • चिकित्सा से लेकर नागरिक प्रशासन तक को मिली नयी पहचान

    देश और दुनिया में इन दिनों केवल एक ही बात की चर्चा है और वह है कोरोना महामारी। पूरी मानवता के लिए खतरा बन चुके इस महामारी से झारखंड भी अछूता नहीं है और अब तक इससे संक्रमित दो मरीज यहां मिल चुके हैं। संकट के इस दौर में भी झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने अपनी जो कार्यशैली और प्रतिबद्धता दिखायी है, वह साबित करता है कि यह सरकार केवल काम करने में भरोसा करती है। जिस समय देश कोरोना के खिलाफ लंबी लड़ाई की तैयारी कर रहा था, झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने खतरे को पहले ही भांप लिया और उसके अनुरूप अपनी तैयारी भी शुरू कर दी। झारखंड ऐसा पहला राज्य बना, जहां बिना किसी संक्रमण के ही लॉकडाउन की घोषणा कर दी गयी। दूसरे राज्य जहां 31 मार्च तक शिक्षण संस्थानों को बंद करने की घोषणा कर रहे थे, हेमंत सोरेन पहले ऐसे मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने कोरोना के खतरे को भांप कर 14 अप्रैल तक के लिए शिक्षण संस्थानों को बंद कर दिया। जब प्रधानमंत्री ने तीन सप्ताह के देशव्यापी लॉकडाउन का एलान किया, तब तक झारखंड एक कदम आगे बढ़ चुका था और अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटा था। कोरोना से जंग में झारखंड सरकार की रणनीति और इसके फैसलों का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।

    बात 22 मार्च की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर देश भर में जनता कर्फ्यू की अवधि खत्म हो चुकी थी, लेकिन झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंंत सोरेन अपने आवास पर राज्य के वरिष्ठ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे थे। बैठक में कोरोना महामारी को लेकर आनेवाले संकट पर विचार हो रहा था। मीडिया के लोग सरकार के फैसले का इंतजार कर रहे थे। तब तक देश के 14 राज्यों में लॉकडाउन घोषित हो चुका था। इन सभी राज्यों में कोरोना का संक्रमण फैलने लगा था, लेकिन झारखंड इससे बचा हुआ था। मुख्यमंत्री ने बैठक में ही कहा कि झारखंड को इस महामारी से बचाने के लिए लॉकडाउन करना ही एकमात्र विकल्प है। बैठक में लॉकडाउन से पैदा होनेवाली स्थिति पर चर्चा हुई और अंतत: 31 मार्च के तक के लिए राज्य में लॉकडाउन का एलान किया गया। लेकिन सबसे अच्छी बात रही कि यह फैसला आनन-फानन में नहीं लिया गया। अच्छी तरह सोच-विचार कर और रणनीति बनाने के बाद ही राज्य को बचानेवाला यह फैसला लिया गया। लॉकडाउन घोषित होने के साथ प्रशासनिक मशीनरी काम में जुट गयी। देर रात तक तमाम जिला प्रशासनों को ताकीद कर दी गयी कि उन्हें बेहद सतर्कता से काम करना है। उस दिन सरकार के फैसले पर नाक-भौं सिकोड़े गये, लेकिन दो दिन बाद जब पूरे देश में लॉकडाउन घोषित किया गया, तब लोगों को हेमंत सोरेन के फैसले की अहमियत समझ में आयी।
    कहा जाता है कि असली नायक वही होता है, जो भविष्य के संकट की आहट पहले ही सुन लेता है। हेमंत सोरेन इस मामले में सबसे आगे निकल गये। कोरोना के संकट को पहले ही पहचानते हुए उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया। उस समय तक राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में कोरोना जांच की मशीन नहीं थी और सैंपल को जमशेदपुर भेजना पड़ता था। हेमंत सोरेन के निर्देश पर रिम्स में तत्काल एक मशीन मंगायी गयी और 48 घंटे के भीतर इसे चालू कर दिया गया। राज्य भर में क्वारेंटाइन सेंटर स्थापित करने के लिए तेजी से काम होने लगा और सरकार के सभी तंत्र युद्धस्तर पर कोरोना के संक्रमण को रोकने में जुट गये। रिम्स और राज्य के दूसरे बड़े अस्पतालों में कोरोना संक्रमित मरीजों को रखने के लिए आइसोलेशन वार्ड स्थापित कर लिये गये और कर्मियों को समुचित प्रशिक्षण देकर तैयार कर दिया गया। यह सब काम 24 मार्च तक पूरा कर लिया गया था।
    इसके साथ हेमंत सोरेन ने लॉकडाउन के कारण लोगों को होनेवाली परेशानियों पर भी ध्यान दिया। उन्होंने सरकारी गोदामों के दरवाजे खोल दिये और गरीबों को तीन महीने का राशन एडवांस में देने की घोषणा की। इसके अलावा राजधानी में एक कोरोना कंट्रोल रूम बना दिया, ताकि राज्य में रहनेवाले और बाहर फंसे झारखंड के लोग यहां से संपर्क कर मदद मांग सकें। इसके बाद हेमंत सोरेन का ध्यान देश के दूसरे हिस्सों में फंसे झारखंड के लोगों की तरफ गया। उन्होंने अपने पास आनेवाले फोन कॉल पर तत्काल कार्रवाई सुनिश्चि की। इसके साथ ही अधिकारियों की एक टीम बना दी, जिसके जिम्मे प्रवासी झारखंडियों तक मदद पहुंचाना था। टीम में शामिल अधिकारियों को अलग-अलग राज्यों का जिम्मा दिया गया।
    जब 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन हुआ, तब तक झारखंड सरकार ग्राउंड वर्क पूरा कर चुकी थी। आवागमन बंद होने के कारण बहुत से लोग दूसरे राज्यों में फंसे हुए थे और लगातार मदद की गुहार लगा रहे थे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने यह सुनिश्चित किया कि कोई भी गुहार अनसुनी न रह जाये। उन्होंने एक सप्ताह में ही करीब सात लाख लोगों तक मदद पहुंचायी। इतना ही नहीं, राज्य के विभिन्न इलाकों में रहनेवाले लोगों के दरवाजे तक आवश्यक सामग्री और दवाओं की खेप पहुंचाने की व्यवस्था लागू की गयी।
    यहां ध्यान देने की बात यह है कि तब तक झारखंड कोरोना के संक्रमण से पूरी तरह अछूता था। बाहर से जो लोग आ रहे थे, उनकी जांच करने के बाद उन्हें उनके घर में ही क्वारेंटाइन किया जा रहा था। जब मुख्यमंत्री को पता चला कि इसमें समस्या आ रही है, तब उन्होंने फैसला किया कि अब क्वारेंटाइन किया गया हर व्यक्ति सरकार की देखरेख में रहेगा। जिला प्रशासनों ने इसकी भी तैयारी तत्काल कर ली।
    लॉकडाउन के शुरूआती दिनों में लोग इसका सख्ती से पालन नहीं कर रहे थे। ऐसे में हेमंत सोरेन ने पुलिस प्रशासन को लोगों को समझाने का जिम्मा सौंपा। पुलिस सड़क पर उतरी और अनावश्यक बाहर निकले लोगों को समझाया। इसका सकारात्मक परिणाम देखने को मिला। ग्रामीण इलाकों में हाट-बाजार लगते, लेकिन कोई भी व्यक्ति अनावश्यक वहां जमा नहीं होता। इस तरह धीरे-धीरे ही सही, लॉकडाउन का सख्ती से पालन झारखंड में होने लगा है। इसके अलावा मुख्यमंत्री किचेन, मुख्यमंत्री दाल-भात केंद्र और पुलिस थानों में सामुदायिक किचेन बनाये गये, ताकि जरूरतमंदों को तैयार भोजन मिल सके।
    लॉकडाउन के दौरान दो महत्वपूर्ण त्योहार भी आये। आदिवासियों के सबसे बड़े त्योहार सरहुल और रामनवमी के दिन निकलनेवाली शोभा यात्राओं में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दोनों त्योहारों के आयोजकों को समझाया और इस बार आयोजन को स्थगित करने की सलाह दी। इन दोनों त्योहारों के आयोजक मुख्यमंत्री के आग्रह को टाल नहीं सके, क्योंकि यह एक मुख्यमंत्री का नहीं, बल्कि एक भाई का आग्रह था। हेमंत सोरेन चाहते तो एक आदेश निकाल कर इन आयोजनों को प्रतिबंधित कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वह लोगों की भावनाओं के विपरीत जाकर कोई फैसला नहीं लेना चाहते थे। सीएम का आग्रह माना गया और दोनों त्योहार बिना किसी ताम-झाम के संपन्न हो गये।
    कुल मिला कर हेमंत सोरेन सरकार ने साबित कर दिया कि यदि नीयत सही हो और आत्मविश्वास हो, तो कोई भी जंग जीती जा सकती है। लॉकडाउन के दौरान हर शाम हेमंत सोरेन दिन भर की रिपोर्ट आम लोगों के लिए जारी करते हैं और हर दिन लोगों से सहयोग मांगते हैं। यही सब गुण उन्हें दूसरों से अलग करता है। बुधवार को माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर एक सर्वेक्षण कराया गया, जिसमें कोरोना के जंग में सबसे सक्रिय मुख्यमंत्रियों का चयन करना था। इस सर्वेक्षण में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को देश के सबसे सक्रिय और विजनरी पांच मुख्यमंत्रियों में जगह मिली थी। झारखंड के लिए यह गौरव की बात है। अब झारखंड के लोगों को भरोसा होने लगा है कि राज्य सरकार की सक्रियता और प्रशासन के सकारात्मक रवैये के कारण हम कोरोना के खिलाफ यह जंग जरूर जीतेंगे।

     

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