कोरोना संक्रमण, लॉकडाउन और आर्थिक मंदी के निराशाजनक दौर में यदि कोई सकारात्मक सूचना आती है, तो आम लोगों को थोड़ी देर के लिए ही सही, खुशी जरूर मिलती है। पिछले 24 घंटे में झारखंड के लिए तीन अच्छी खबरें आयीं और इसने आम लोगों में निराशा की जगह उम्मीद की किरण दिखायी है। इन सकारात्मक खबरों से साबित हो जाता है कि राज्य की हेमंत सोरेन सरकार लॉकडाउन के दौरान कामकाज के प्रति कितनी गंभीर है और योजनाओं को जमीन पर उतारने के लिए कितना काम हो रहा है। पहली अच्छी सूचना प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना में झारखंड की कामयाबी की है, तो राज्य को दूसरी बड़ी कामयाबी शिशु रक्षा के मोर्चे पर मिली है, जिसकी रिपोर्ट भी आ गयी है। राज्य के लिए तीसरी बड़ी कामयाबी यह है कि वर्ष 2014 में यहां मनरेगा के तहत जो नयी योजना शुरू की गयी थी, उसे अब केंद्र सरकार ने पूरे देश में लागू करने का फैसला किया है। इसका मतलब यह हुआ कि झारखंड का मॉडल अब पूरे देश में दिखाई देगा। प्रत्यक्ष तौर पर ये उपलब्धियां बहुत बड़ी दिखायी नहीं देती हैं, लेकिन इनसे एक बात साबित होती है कि तमाम अवरोधों के बावजूद झारखंड में बहुत तेजी से काम हो रहा है। योजनाएं धरातल पर उतर रही हैं और लोग लाभान्वित हो रहे हैं। विकास की गाड़ी इसी तरह गति पकड़ती है और इस लिहाज से हेमंत सोरेन सरकार के कामकाज को डिस्टिंक्शन नहीं, तो प्रथम श्रेणी का अंक दिया ही जा सकता है। झारखंड की इन तीन कामयाबियों पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
कोरोना और लॉकडाउन के दौर में भी झारखंड ने बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की है। प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना में राज्य को देश में दूसरा स्थान हासिल हुआ है, तो शिशु रक्षा के मामले में झारखंड पूरे देश में संयुक्त रूप से पहले नंबर पर है। इसी तरह मनरेगा में जो मॉडल झारखंड ने 2014 में अपनाया था, उसे अब केंद्र ने भी लागू करने का फैसला किया है। अब दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार गारंटी योजना में झारखंड की झलक दिखाई देगी। ये तीन ऐसी सूचनाएं हैं, जिनसे हर झारखंडी का सीना गर्व से चौड़ा हो सकता है और वह अपनी सरकार पर गर्व कर सकता है।
सबसे पहले बात मनरेगा की। यह 2014 की कहानी है। तब राज्य की कमान हेमंत सोरेन के पास थी। केंद्र ने राज्यों को मनरेगा के तहत सीएफटी नामक विशेष परियोजना पर काम करने को कहा, जिसमें 10 राज्यों के ढाई सौ अत्यंत पिछड़े प्रखंडों में क्लस्टर फैलिसिटेशन टीम का गठन करने को कहा। हरेक प्रखंड में कम से कम तीन सीएफटी का गठन करना था और हरेक सीएफटी के लिए केंद्र सरकार ने अलग से 28 लाख रुपये वार्षिक की विशेष सहायता दी। झारखंड के 78 प्रखंडों को इसके लिए चुना गया। राज्य सरकार ने इस मौके का लाभ उठाया और एक नयी परियोजना शुरू की, जिसके तहत मनरेगा, ग्रामीण आजीविका मिशन और क्लस्टर फैलिसिटेशन टीम (सीएफटी) को मिला दिया। इसका सीधा लाभ यह हुआ कि मनरेगा के तहत काम हुए और ग्रामीणों के लिए स्थायी रोजगार की व्यवस्था हो गयी। यह काम इतने वैज्ञानिक तरीके से किया गया कि बाकी नौ राज्य झारखंड से पिछड़ गये। कुछ दिन बाद केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के संयुक्त सचिव की अगुवाई में नौ राज्यों की 70 सदस्यीय टीम यहां आयी और गुमला के रायडीह और बसिया तथा खूंटी के तोरपा में सीएफटी परियोजनाओं का जायजा लिया। वहां के काम को देख कर टीम बेहद प्रभावित हुई। तब केंद्र सरकार ने राज्य के 50 और प्रखंडों में सीएफटी परियोजना लागू करने की अनुमति दे दी। अब यही मॉडल पूरे देश में लागू किया गया है। सीएफटी परियोजना आज भी झारखंड में लागू है और इसके कारण ही हेमंत सोरेन की वर्तमान सरकार लॉकडाउन के कारण बाहर से लौटे प्रवासी कामगारों को काम भी दे रही है।
झारखंड को दूसरी कामयाबी प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के कार्यान्वयन में मिली है। पिछले छह महीने में राज्य सरकार ने इस योजना के तहत शानदार काम किया और उसे देश में दूसरा स्थान मिला है। राज्य के 12 जिले देश के टॉप 25 जिलों में शामिल हुए हैं। पिछले छह महीने में राज्य सरकार ने इस योजना के तहत दो साल पहले मिले लक्ष्य के विरुद्ध करीब 95 फीसदी आवास निर्माण कराया है। अभी इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए 33 हजार से कुछ अधिक आवास का निर्माण कराया जाना है और अगले आठ दिनों में यदि यह पूरा हो जाता है, तो झारखंड देश में पहले स्थान पर पहुंच जायेगा।
राज्य को तीसरी कामयाबी शिशु रक्षा के मोर्चे पर मिली है। रजिस्ट्रार जनरल आॅफ इंडिया द्वारा जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में शिशु रक्षा के मामले में झारखंड का स्थान जम्मू कश्मीर के साथ संयुक्त रूप से पहला है। इन दोनों राज्यों में गर्भ में मरने वाले शिशुओं की संख्या प्रति एक हजार में केवल एक पर पहुंच गयी है, जबकि राष्ट्रीय औसत तीन के करीब है। इतना ही नहीं, पिछले छह महीने में राज्य में मृत शिशुओं के जन्म लेने का सिलसिला प्रति एक हजार में एक से भी नीचे चला गया है। झारखंड जैसे राज्य के लिए यह बड़ी उपलब्धि है, जहां गर्भवतियों का पोषण और सुरक्षित प्रसव एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली, हरियाणा, केरल, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों, जहां स्वास्थ्य संबंधी संसाधनों की भरमार है, के मुकाबले झारखंड और बिहार ने इस मोर्चे पर शानदार काम किया है।
झारखंड की इन तीन उपलब्धियों से साफ हो जाता है कि राज्य में कोरोना संकट के दौरान भी काम हो रहा है। ये काम आज जमीन पर भले ही नहीं दिखते हैं, लेकिन इनकी गूंज देश भर में सुनाई दे रही है। हेमंत सोरेन सरकार के सात महीने के कार्यकाल में कई उल्लेखनीय काम हुए हैं। लगातार तीन महीने तक हर दिन 20 से 25 लाख लोगों को भोजन पहुंचाने से लेकर बाहर से लौटे प्रवासी कामगारों को काम देने के मामले में झारखंड पहले ही देश के लिए मिसाल कायम कर चुका है। ऐसे में ये तीन उपलब्धियां उसे विकास की दौड़ में काफी आगे ले जाने के लिए ऊर्जा का काम करेंगी, यही उम्मीद की जानी चाहिए। वैसे भी कोरोना संकट और लॉकडाउन के अंधेरे में ये उपलब्धियां उम्मीद की लौ तो जगाती ही हैं।