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    Home»Jharkhand Top News»पारा टीचरों को इंसाफ दिलाने की पहल
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    पारा टीचरों को इंसाफ दिलाने की पहल

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskAugust 3, 2020No Comments6 Mins Read
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    झारखंड सरकार ने प्रदेश में स्कूली शिक्षा की रीढ़ बन चुके पारा टीचरों की कई साल से लंबित मांग को पूरा करने के लिए बड़ा कदम उठा लिया है। राज्य के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो की बातों पर अगर विश्वास करें, तो सचमुच में राज्य के करीब 65 हजार पारा टीचरों को इंसाफ मिलने की उम्मीद जगी है। इससे पहले किसी भी सरकार ने यह पहल नहीं की थी, बल्कि जब-जब इन शिक्षकों ने अपनी आवाज उठायी या आंदोलन किया, तो या तो उन्हें आश्वासन मिला या फिर पुलिस की लाठी। झारखंड में पारा टीचर एक अहम राजनीतिक मुद्दा बन गये थे और पारा टीचरों तथा उनके परिजनों को वोट बैंक समझा जाने लगा था। विधानसभा के पिछले चुनाव में यह मुद्दा बेहद जोर-शोर से उठा भी था। उस समय झामुमो ने वादा किया था कि सत्ता में आते ही इन पारा टीचरों को स्थायी करने की प्रक्रिया शुरू की जायेगी। अब झामुमो ने अपना वादा निभाया है। ऐसे भी इन पारा टीचरों को इंसाफ देना बेहद जरूरी है, क्योंकि ये पिछले 18 साल से दूरदराज के गांवों में शिक्षा का अलख जगा रहे हैं। पिछले कई सालों से ये पारा टीचर महज आश्वासन पर ही काम कर रहे हैं। इतने सालों में इनके पढ़ाये कई बच्चे उच्च शिक्षा पाकर सुखमय जीवन जी रहे होंगे, लेकिन ये शिक्षक आज भी महज कुछ हजार रुपये के मानदेय पर दिन काट रहे हैं। इनका स्थायीकरण होना ही चाहिए, ताकि इनका भविष्य भी सुरक्षित हो सके और ये और अधिक मन लगा कर ज्ञान की रोशनी फैला सकें। हेमंत सोरेन सरकार यदि पारा टीचरों की समस्या का समाधान कर लेती है, तो यह उसके लिए एक उल्लेखनीय उपलब्धि होगी। राज्य सरकार की इस पहल और पारा टीचरों के मुद्दे पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    झारखंड के 65 हजार से अधिक पारा टीचरों को इंसाफ मिलने की उम्मीद जगी है। पिछले 18 साल से झारखंंड की स्कूली शिक्षा की रीढ़ बन चुके इन पारा टीचरों के बारे में आज तक किसी भी सरकार ने गंभीरता से नहीं सोचा था। यही नहीं, करीब दो साल पहले झारखंड स्थापना दिवस के दिन 15 नवंबर, 2018 को रांची के मोरहाबादी मैदान में आंदोलन कर रहे पारा टीचरों पर पुलिस ने लाठियां बरसायी थीं। कई पारा टीचर घायल हुए थे और तब उन्हें जम कर खरी-खोटी सुनायी गयी थी। उस समय इन पारा टीचरों ने खून के घूंट पी लिये थे, लेकिन उन्होंने पढ़ाना नहीं छोड़ा। इन शिक्षकों के पढ़ाये हजारों बच्चे आज देश-दुनिया में अपना नाम रौशन कर रहे होंगे, लेकिन शिक्षकों की हालत आज भी वैसी की वैसी ही है। कुछ हजार रुपये के मानदेय पर वे लगातार बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। यह मानदेय भी उन्हें कब मिलेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। पारा टीचरों की सेवा भी ग्राम शिक्षा समिति और शिक्षा परियोजना के अधिकारियों की कृपा पर ही टिकी हुई है।
    अगर शिक्षा मंत्री की बातों में सच्चाई है, तो अब हेमंत सोरेन सरकार ने इन पारा टीचरों की सेवा को स्थायी करने के लिए बड़ा कदम उठाया है। स्थायीकरण इन पारा टीचरों की सबसे प्रमुख मांग है। हेमंत सोरेन ने चुनाव से पहले इनसे वादा किया था कि सरकार बनने के बाद उनकी इस मांग को पूरा किया जायेगा। अब यह प्रक्रिया शुरू हुई है और इससे पारा टीचरों को इंसाफ मिलने की उम्मीद जगी है।
    झारखंड के पारा टीचरों के साथ अब तक अन्याय ही होता आया है। उन्हें न सम्मान मिला और न पैसा। कहा जाता है कि जिस समाज में गुरुओं का सम्मान नहीं होता, वह समाज कभी आगे नहीं बढ़ सकता। झारखंड के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। दूर-दराज के गांवों में प्राथमिक शिक्षा की अलख जगानेवाले इन पारा टीचरों को हमेशा अछूत समझा गया। एक दिहाड़ी मजदूर से भी कम पारिश्रमिक पर पारा टीचरों को बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा सौंप दिया गया। जब-जब उन्होंने आवाज उठायी, उसे या तो बलपूर्वक दबा दिया गया या फिर आश्वासनों का झुनझुना थमा कर उन्हें वापस भेज दिया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि पारा टीचर एक गंभीर प्रशासनिक और राजनीतिक मुद्दा बन गये। इतने दिनों तक अध्यापन का काम करने के बाद पारा टीचरों ने समाज में अपने लिए कुछ इज्जत कमायी थी। जब-जब पारा टीचरों के साथ अन्याय हुआ, समाज खुद को असहज महसूस करता रहा। इसलिए कहा जाता है कि विधानसभा के पिछले चुनाव में भाजपा की हार में पारा टीचरों ने भी बड़ी भूमिका निभायी।
    लेकिन अब पारा टीचरों की सबसे बड़ी मांग पूरी करने की पहल हुई है, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। हो सकता है कि राज्य सरकार स्थायीकरण की जो प्रक्रिया निर्धारित करेगी, उसमें कुछ खामियां हों, लेकिन इसका निदान यह नहीं है कि पूरी प्रक्रिया को ही खारिज कर दिया जाये। पारा टीचरों को भी समझना होगा कि इतने साल के बाद समस्या को सुलझाने के लिए एक गंभीर कोशिश की गयी है। उन्हें अभी धैर्य के साथ इसमें सहयोग करना चाहिए। यह भी सही है कि पारा टीचर राजनीतिक मुद्दा भी बन चुके हैं, लेकिन उन्हें अब इससे बाहर निकलना होगा। मिल-बैठ कर बातचीत करने से बड़ी से बड़ी समस्या सुलझायी जा सकती है, तो फिर पारा टीचर भी संयमित होकर सरकार से बातचीत कर सकते हैं। उन्हें अब तक यह तो महसूस हो ही गया होगा कि यह सरकार उनकी मांग को पूरा करने के लिए गंभीरता से प्रयास कर रही है। सरकार को भी इन पारा टीचरों के साथ इंसाफ करना चाहिए, क्योंकि समाज का यह वर्ग हमारे नौनिहालों को शिक्षा दे रहा है, उन्हें मनुष्य बना रहा है।
    पारा टीचरों की समस्या यदि सुलझ जाती है, तो यह हेमंत सोरेन के लिए बड़ी कामयाबी होगी। राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील हो चुके इस मुद्दे को सुलझा कर वह अपने विरोधियों पर बढ़त भी हासिल कर लेंगे, इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार की इस कोशिश को पारा टीचर किस नजरिये से देखते हैं और उनकी प्रतिक्रिया कैसी है। इस सवाल का उत्तर तो स्थायीकरण की प्रक्रिया निर्धारित हो जाने के बाद ही मिलेगा। तब तक उम्मीद यही की जानी चाहिए कि झारखंड के शिक्षा जगत में इतिहास करवट लेनेवाला है।

    Initiative to bring justice to mercury teachers
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