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    Home»अन्य खबर»कारसेवा में घोषित पहले शहीद की दैवीय कृपा से बची जान
    अन्य खबर

    कारसेवा में घोषित पहले शहीद की दैवीय कृपा से बची जान

    sonu kumarBy sonu kumarAugust 4, 2020No Comments5 Mins Read
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     आखिरकार कार सेवकों का और राम जन्म भूमि आंदोलन में हिस्सा लेने वाले सभी भक्तों का वर्षों पुराना सपना आज साकार होने जा रहा है। यह समस्त हिन्दू समाज को गौरवान्वित और रोमांचित कर रहा है। यह उद्गार अयोध्या में कार सेवा में हिस्सा लेते हुए विवादित ढांचा के इतिहास बनने के दौरान जीवन और मौत के बीच झुलने वाले असम के शिवसागर जिला में रहने वाले व मूल रूप से बिहार निवासी विकास कुमार का है। कारसेवा में देश के अन्य हिस्सों की तरह असम के कारसेवकों ने भी निभाया था अहम योगदान।

    विकास कुमार ने हिन्दुस्थान समाचार के साथ बातचीत करते हुए कहा, ‘मुझे ज्ञात है कि जब 06 दिसम्बर,1992 को अयोध्या में कारसेवा की घोषणा की गई थी तो उस समय पूरे देश से कार सेवकों का एक हुजूम प्रभु श्री रामचंद्र जी का भव्य मंदिर बनाने हेतु अयोध्या की ओर कूच कर गया था। उन खुशनसीबों में मैं भी शामिल हो गया। उस समय अपनी पढ़ाई को छोड़कर राम जन्मभूमि में भाग लेने के लिए शिवसागर (असम) से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आशीर्वाद लेकर यहां से सीधे अपने माता-पिता का आशीर्वाद लेने अपने गांव बोसी मंदार हिल भागलपुर (बिहार) पहुंचा। 02 दिसम्बर 1992 को मैं अपने माता-पिता से आशीर्वाद लेकर भागलपुर के उस समय के जिला कार्यवाह उद्यम जी के निर्देशानुसार मुझे कारसेवकों के नायक के रूप में अयोध्या जाने की अनुमति मिली। अयोध्या जाकर अपने कारसेवकों के साथ अयोध्या में बनी कुटिया में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। उस समय राम जन्म भूमि के परिसर में सुप्रीम रावत के निर्देशानुसार शंकर जी रिसीवर के रूप में कार्यरत थे। हम लोग 04 दिसम्बर को ही अयोध्या पहुंचे।’

    उन्होंने कहा, ‘मैं अयोध्या पहुंचते ही सबसे पहले स विचार में लग गया कि किस तरह से राम मंदिर के गर्भ गृह में पहुंचा जाए। गर्भ गृह में पहुंचने का मुझे एक बड़ा ही सुगम तरीका नजर आया। मैंने पाया कि वहां पर स्थित विशाल वृक्ष पर चढ़कर उससे नीचे कूद कर के ही राम मंदिर के परिसर में पहुंचा जा सकता है। बड़ी कुटिया से अपने कारसेवकों के साथ पहले अयोध्या में सरजू नदी में स्नान करने के पश्चात अपना जीवन समर्पित कर हम लोगों वहां से यह सोच कर कि किसी भी कीमत में बाबरी ढांचे को ध्वस्त कर प्रभु श्री राम का भव्य मंदिर बनाना है। इसी काम को करते हुए मैंने वहां से आगे बढ़ते-बढ़ते सारी विघ्न-बाधाओं, लाठी और बंदूक के कूंदों की मार खाते-खाते उस वृक्ष के पास पहुंच गया। मैं तुरंत वृक्ष पर चढ़कर उस टावर पर सबसे पहले पहुंचा, जहां से फ्लैश लाइट जल रही थी। वृक्ष से कूदकर मैं नीचे गया। नीचे जाकर मैं सबसे पहले गर्भ ग्रह में प्रभु श्री राम का दर्शन कर उन्हें अपने कब्जे में लिया।’

    इस बीच वहां पदस्थापित सुप्रीम कोर्ट द्वारा शंकर जी ने मुझे पकड़ लिया। लेकिन मैं उनसे अपने आपको छुड़ाते हुए सीधे बाबरी ढांचे के ऊपर चढ़ने लगा और प्रभु राम की कृपा से मैं उस समय सबसे पहले ऊपर ढांचे पर पहुंचा। गुंबद पर तक पीछे-पीछे हमारे पीछे साइकिल कारसेवक थे जो हमारे साथ-साथ उस ग्रुप में पहुंचे। उसके साथ ही ढांचे के गुंबद को तोड़ने का सिलसिला आरंभ हो गया। देखते ही देखते कुछ घंटों में बाबरी ढांचे का तीनों गुंबद ध्वस्त हो गया। इस क्रम में मैं मलबे के नीचे दब गया। उसके बाद क्या हुआ मुझे पता नहीं।

    जब मेरी आंख खुली तो मैंने अपने चारों ओर डॉक्टर के साथ-साथ लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, जादुई दादी मां, विश्व हिंदू परिषद से जुड़े लोगों और संघ से जुड़े लोग हमारे आसपास खड़े थे। मेरा इलाज चल रहा था। मुझे यह पता नहीं कि मलबे से मुझे कौन अस्पताल लाकर भर्ती कराया।

    उन्होंने बताया कि मुझे कारसेवा का पहला शहीद घोषित भी कर दिया गया था। हालांकि, इसी दौरान दक्षिण भारत के एक डॉक्टर ने मेरी नब्ज टटोली तो उन्हें नब्ज चलती महसूस हुई, जिसके बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया। उन्होंने कहा कि, मैंने अपना परिचय कार्ड अपने शर्ट के ऊपरी जेब में रखकर उसे सील दिया था। जिससे मेरी पहचान हुई और शिवसागर संघ कार्यालय के जरिए मेरे घर वालों को मेरे बारे में जानकारी मिली। विकास कुमार की फोटो पांचजन्य समेत अनेकों समाचार-पत्रों में पहले पन्न पर प्रकाशित हुई थी।

    उन्होंने बताया कि अस्पताल में कुछ और दिन इलाज के पश्चात जब मैं स्वस्थ हुआ तो वहां से निकल कर भागलपुर रवाना हुआ। वहां से मुझे हजारों की संख्या में लोगों ने विदाई दी। मैं सीधे सबसे पहले अपने घर पहुंचा। वहां संघ के कार्यकर्ताओं से मिलकर शिवसागर (असम) पहुंचा। उस समय के संघ के स्वयंसेवकों ने मेरा पूरा सम्मान किया और मुझे गर्व है कि मैं उस कार सेवा में भाग लेकर वर्षों से हिन्दू संस्कृति पर जो दाग लगा था उसको धोने में अपना कुछ योगदान दे पाया।

    आज जब राम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर का निर्माण होने जा रहा है मैं इस अवसर अपने जीवन को धन्य मानता हूं। धन्य वह माता-माता हैं जिन्होंने मुझे जन्म दिया, जिन्होंने मुझे इस संस्कार से संस्कारित किया और मैं इस कार्य में भाग ले पाया। और आज मेरी मां भी बहुत खुश हो रही है। हालांकि, वह आज बिस्तर पर पड़ी हैं। मेरी मां भी यह चाहती थी कि उनके जीवन काल में भव्य राम मंदिर बने और आज एक भव्य राम मंदिर बनने जा रहा है। हम समस्त देशवासियों से आग्रह करते हैं कि इस भव्य राम मंदिर समारोह में सभी भाग लें। 05 अगस्त को अपने-अपने घर पर दिया जलाएं, शंख ध्वनि करें, घंटी नाद करें। शंखनाद करें और अन्य लोगों को भी प्रेरित करें।

    विकास कुमार पेशे से अधिवक्ता हैं। उन्होंने काफी समय पत्रकारिता भी किया। मुख्य रूप से हिन्दुस्थान समाचार, ज़ी न्यूज़, पीटीआई, दैनिक समाचार पत्र पूर्वांचल प्रहरी, उत्तर काल, दैनिक पूर्वोदय, नार्थ स्टाइल स्टंट क्रियन एवं अन्य कई पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे। इस समय प्रभु राम की कृपा से अपने गृह नगर भागलपुर से दूर असम के शिवसागर जिला में अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ अपना संपूर्ण जीवन इस देश के लिए, इस समाज के लिए और धर्म के लिए समर्पित कर रहे हैं।

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    sonu kumar

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