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    रहस्यमयी चंद्रमा की नदी पर पुल

    azad sipahiBy azad sipahiAugust 7, 2020No Comments6 Mins Read
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    धवल पटेल
    राष्ट्रीय ट्रांसपोर्टर ने अपने विशाल भारतीय रेलवे नेटवर्क के जरिये धरती के स्वर्ग कश्मीर घाटी को जोड़ने के लिए एक नयी ब्रॉड गेज रेलवे लाइन के निर्माण की एक महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की है। इस राष्ट्रीय परियोजना के तीन चरण पूरे हो चुके हैं। उसमें सबसे कठिन और अंतिम चरण में 111 किमी लंबा कटरा- बनिहाल खंड का निर्माण शामिल है, जिस पर काम चल रहा है। आइकॉनिक ‘चिनाब ब्रिज’ इस खंड में तैयार होने वाली की प्रमुख संरचनाओं में से एक है। जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले से 110 किमी की दूरी पर स्थित यह पुल इंजीनियरिंग का अद्भुत चमत्कार है। इसका निर्माण रहस्यमयी चिनाब नदी पर किया जा रहा है जिसे लोककथाओं में चंद्रमा की नदी कहा गया है।

    इस परियोजना के तहत गहरी चिनाब घाटी के आर-पार निर्माण किया जा रहा है, जो इस नदी पर पुल बनाने के लिए आवश्यक है। इस मेगा संरचना के निर्माण के लिए बक्कल (कटरा छोर) और कौरी (श्रीनगर छोर) के बीच एक उपयुक्त स्थान चुना गया है। यह चिनाब नदी पर नीचे की ओर बने मौजूदा सलाल हाइड्रो पावर डैम के समीप है। पूरा होने पर यह चिनाब ब्रिज दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज होगा। यह नदी तल से 359 मीटर की ऊंचाई पर है। यह पुल एफिल टॉवर (324 मीटर) से 35 मीटर ऊंचा और कुतुब मीनार के मुकाबले लगभग 5 गुना अधिक ऊंचा होगा।

    यूएसबीआरएल प्रोजेक्ट एक ट्रांस-हिमालयन रेलवे लाइन है। हिमालय एक नवोदित पहाड़ है। इसलिए बिखराव, परत एवं कटाव के लिहाज से उसकी भूवैज्ञानिक विशेषताएं काफी जटिल, नाजुक एवं चुनौतीपूर्ण हैं। यह क्षेत्र भूकंप के लिहाज से अत्यधिक सक्रिय क्षेत्र (जोन 5) है, जहां हल्के से मध्यम क्षमता के भूकंप अक्सर आते रहते हैं। मॉनसून के दौरान भारी बारिश और सर्दियों में बर्फबारी से इस क्षेत्र में मौसम की स्थिति अक्सर प्रतिकूल बनी रहती है। खराब मौसम के अलावा इस क्षेत्र में कई सामाजिक एवं कानून व्यवस्था संबंधी समस्याएं भी हैं। इसके अलावा संकड़ी खाई एवं जबरदस्त वायु वेग इस परियोजना स्थल की एक अन्य बड़ी चुनौती है। भारत में पहले ऐसे किसी पुल का निर्माण नहीं हुआ था और इसलिए इस विशाल संरचना के निर्माण के लिए कोई संदर्भ कोड या डिजाइन भी उपलब्ध नहीं था। ऐसे में इस विशाल निर्माण के लिए वास्तुशिल्प अंतत: दुनिया भर में इसी तरह की परियोजनाओं से प्राप्त अनुभवों और कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर की एजेंसियों के विशेषज्ञों से राय के आधार पर तैयार की गयी।

    दो प्रमुख प्रौद्योगिकी संस्थानों- आइआइटी दिल्ली और आइआइटी रुड़की ने मिल कर इस परियोजना स्थल के लिए व्यापक भूकंपीय विश्लेषण किया। पवन वेग के परीक्षण के लिए एक सुरंग में इस पुल का एक मॉडल रखा गया और 266 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवा चलायी गयी। इससे प्राप्त जानकारी का उपयोग पुल के डिजाइन में किया गया।

    रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के परामर्श से इसमें आतंकवाद निरोधी विशेषताओं को शामिल किया गया। साथ ही इस क्षेत्र के विशेषज्ञों के परामर्श से अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए मुख्य मेहराब की नींव को सहारा देने वाले पहाड़ों के ढलान को स्थिर किया गया है।
    इस पुल की लंबाई 1,315 मीटर है। इसमें 17 स्पैन यानी पाट हैं। नदी के पार जाने वाले मुख्य मेहराब की लंबाई 467 मीटर है। यह अब तक बनी किसी भी ब्रॉड गेज लाइन की सबसे लंबी मेहराब है। भारत में पहली बार किसी परियोजना में कंक्रीट से भरे लोहे के मेहराब का उपयोग पुल के मेहराब के तौर पर किया जायेगा। यह अत्यधिक ऊंचाई पर विभिन्न ताकतों के खिलाफ पुल की स्थिरता प्रदान करेगा। इस पुल को रिक्टर पैमाने पर सात और उससे अधिक की तीव्रता के भूकंपों को झेलने के लिहाज से तैयार किया गया है। साथ ही यह 266 किमी प्रति घंटे हवा के झोंकों और माइनस 20 डिग्री सेल्सियस तक की ठंड का सामना करने में समर्थ होगा।

    वर्तमान में श्रीनगर छोर पर इस ब्रिज के खाई सेतु का काम पूरा हो चुका है। खाई सेतु में जमीनी स्थलाकृति के लिहाज से सीधे और घुमावदार दोनों हिस्से हैं, जिस पर पुल को खड़ा किया गया है। खाई सेतु का वक्र भाग 2.74 डिग्री के घुमाव पर है। यूएसबीआरएल के निर्माण इंजीनियरों ने खाई सेतु के घुमावदार हिस्से के निर्माण के लिए लॉन्चिंग नोज के जरिये लॉन्चिंग तकनीकों का उपयोग किया है। देश में पहली बार किसी घुमाव पर इस तरह की तकनीक का सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है। खाई सेतु के सुपर स्ट्रक्चर को परियोजना स्थल पर विशेष रूप से स्थापित अत्याधुनिक कार्यशाला में बनाया गया है।

    मुख्य मेहराब स्पैन को बनाने और उसे उठाने के लिए आवश्यक व्यवस्था की गयी है। परियोजना स्थलों पर स्थापित चार बड़े कार्यशालाओं और दो आरडीएसओ द्वारा अनुमोदित कार्यशालाओं को विनिर्माण कार्य सौंपा गया है। फिलहाल इन कार्यशालाओं में लगभग 24,541 एमटी स्टील गर्डरों को तैयार किया गया है। दोष रहित एवं सटीक उत्पाद तैयार करने के लिए नवीनतम डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। सुरंडी (श्रीनगर छोर) के कार्यशाला में पिएर बनाने का काम पूरा हो चुका है।
    लोहे के स्तंभों को उठाने के लिए पूरी घाटी में फैले लंबे केबल क्रेनों (915 मीटर) के साथ तोरणों की व्यवस्था की गयी है। बक्कल छोर (कटरा की ओर एस40) पर 131 मीटर मेहराब नींव और केरई छोर (श्रीनगर की ओर एस50) पर 107 मीटर मेहराब की नींव सहित लोहे के स्तंभों को उठाने का काम पूरा हो चुका है।

    मुख्य मेहराब का शुभारंभ अपने आप में एक उपलब्धि है। इसके लिए दुनिया की सबसे लंबी केबल क्रेन व्यवस्था की मदद से श्रीनगर छोर पर स्थित कार्यशाला से भारी टुकड़ों (32 एमटी तक) को ले जाया गया है और उसे दोनों छोर से उठाने का काम किया गया है। क्रेन के जरिये मेहराव के उन टुकड़ों (एक अपस्ट्रीम और अन्य डाउनस्ट्रीम) को जोड़ा गया है। इस प्रकार मुख्य मेहराब के निर्माण का लगभग 80 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है।

    इन खंभों और केंद्रीय मेहराब के सहारे टिकी पट्टी यानी डेक पर रेल लाइन बिछायी जायेगी। इसे करीब 5,000 टन वजन के साथ पूरी तरह भरे ट्रेन को 100 किमी प्रति घंटे की गति से चलाने के लिहज से तैयार किया गया है। निरीक्षण के लिए डेक में साइड गैलरी भी होंगी। हवा के वेग की जांच के लिए सेंसर लगाये जायेंगे।

    यूएसबीआरएल बीजी लाइन परियोजना ने सभी मौसम में सवारी एवं माल ढुलाई के लिए एक नया रास्ता खोल कर जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए एक नये युग की शुरूआत की है। चिनाब ब्रिज के पूरा होने और चालू होने से आस-पास के गांवों में रहने वाले स्थानीय लोगों के लिए संपर्क और रोजगार के नये अवसर खुलेंगे। इस परियोजना के लिए रेलवे द्वारा बनायी गयी सड़कों ने इस दुर्गम क्षेत्र में विकास की लहर पहले ही पैदा कर चुकी हैं। समझा जाता है कि रेललाइन के आने से इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में तेजी आयेगी और यात्रा एवं पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। रेलवे द्वारा इस क्षेत्र के समग्र विकास के लिए की गयी इस पहल से प्रवास एवं अशांति जैसी कई सामाजिक समस्याओं के निराकरण की संभावना है।
    (लेखक : डिजिटल कंसल्टेंट, सूरत हैं। इनकी लोक नीति, अर्थशास्त्र, रक्षा रणनीति, साइबर सुरक्षा एवं राजनीति में गहरी रुचि है।)

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