वैश्विक महामारी कोरोना की मार से पूरी दुनिया में तबाही मची हुई है, हर जगह भागम-भाग की हालत है। इसने दक्ष डाक्टर, इलाज, अच्छे अस्पताल की जरूरत दुनियां को समझाया है। रोजगार छिन जाने का खतरा, आर्थिक संकट, विकास रुक जाने जैसी समस्याओं को भी जन्म दे दिया है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़, बढ़ती आबादी, उस अनुपात में पृथ्वी पर प्राकृतिक चीजों की कमी और अनेक संकटों को भी पैदा करने का खामियाजा भुगतने का संदेश भी दिया है। इसके साथ मानवतावादी बनने का एक बेबसी भरा अवसर भी दे दिया। पांच महीने से बैठे लोगों के मानसिक पीड़ा का अनुभव भी भयावह है। गरीब और आर्थिक तंगी वाले, पढ़ाई से वंचित छात्र, परदेस कमाने वाले कमाई छोड़कर आए लोग की पीड़ा बयां करने लायक नहीं है।
कोरोना संकट की चौतरफा मार झेल रहे मानव जाति को इससे उबारने के लिए दुनिया भर में प्रयास जारी हैं। वैज्ञानिक, चिकित्सक, बुद्धिजीवी, सरकार सभी इससे उबरने और बाद की उपजी परिस्थितियों के अध्ययन में लगे हैं। लॉकडाउन से उत्पन्न आर्थिक बदहाली ने लोगों की कमर तोड़ दी है। लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न शहरों से श्रमिकों के घर आने और यह काम नहीं मिलने के कारण फिर वापस जाने का सिलसिला जारी है। लेकिन इन सारी कवायदों के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किए गए गरीब कल्याण रोजगार अभियान ने श्रमिकों को एक उर्जा दी है। गरीब कल्याण रोजगार अभियान के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए जब केंद्र सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर योजना की शुरुआत की गई तो बिहार सरकार ने भी विकास योजनाओं से प्रवासी श्रमिकों को जोड़ने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य आरंभ कराये हैं।
जिला प्रशासन द्वारा इस अभियान के मूल उद्देश्य को धरातल पर उतारने के लिए सकारात्मक प्रयास किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, प्रधानमंत्री ऊर्जा गंगा योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना, सामुदायिक शौचालय निर्माण, जल संरक्षण, पौधरोपण, रेलवे, एनएचएआई, बीएसएनल, कृषि विभाग आदि के विभिन्न योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। इन अभियानों में भले ही महज कुछ हजार श्रमिकों को काम मिला। लेकिन विभिन्न तरह की लोक कल्याणकारी और विकासात्मक परियोजनाओं के शुरू होने और स्वरोजगार अभियान की गति तेज होने से देश के तमाम शहरों से कामगार नई आशा और उम्मीद लेकर अपने गांव लौट रहे हैं।
विभिन्न संचार माध्यमों से जानकारी मिली कि सरकार द्वारा रोजगार देने की पहल के साथ-साथ औद्योगिक संरचना विकास के लिए कलस्टर बनाकर विभिन्न स्वरोजगार शुरू कराए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम अभियान के माध्यम से शिक्षित बेरोजगारों को उद्योग विभाग मदद कर रही है। यह जानकर बरसों से परदेस में रह रहे लोग गांव की ओर रुख कर रहे हैं। वह एक उम्मीद लेकर आ रहेे हैं कि गांव में हीं स्वरोजगार कर खुद के साथ-साथ आसपास के लोगों को भी आत्मनिर्भर बनाएंगे, उनकी आर्थिक प्रगति में सहायक बनेंगे। सोमवार को असम के डिब्रूगढ़ से लौटे सुरेश पासवान, मनोज पासवान, रामाधार पासवान, विनोद पासवान आदि ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान की विशेष जानकारी पाकर हम गांव लौटे हैं। यहां पर अपना रोजगार शुरू करने केेेे लिए सरकारी मदद लेंगे, अगर मदद मिल गई तो अपना रोजगार शुरू करेंगे। मदद नहीं मिली तो भी अब इतना दूर काम की तलाश में नहीं जाएंगे। बटाईगिरी पर खेत लेकर खेती-किसानी करेंगे, पशुपालन करेंगे, लेकिन बाहर परदेस नहीं जाएंगे।