लोकतंत्र में हर नागरिक को अभिव्यक्ति की, अर्थात बोलने या लिखने की आजादी होती है। भारतीय संविधान में यह आजादी मौलिक अधिकार के रूप में दर्ज है, लेकिन इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि हर व्यक्ति अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करते समय मर्यादा की सीमाओं का पालन करेगा। इसका सीधा मतलब यह होता है कि अभिव्यक्ति के समय ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे दूसरों को तकलीफ हो या उनकी अभिव्यक्ति की आजादी में खलल पड़े। लेकिन जामताड़ा से दूसरी बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गये डॉ इरफान अंसारी को शायद इस बात का इल्म नहीं है। लगातार दूसरी बार विधायक चुने जाने के बाद उनका आत्मविश्वास सातवें आसमान से भी ऊंचा हो गया है और अपने इस कार्यकाल की शुरुआत से ही वह बेहद ‘वोकल’ नजर आ रहे हैं। विधायक को बोलनेवाला होना ही चाहिए, लेकिन डॉ इरफान अंसारी इतना अधिक और बेतुका बोलने लगे हैं कि लोग उन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। उनके बयान इतने बेतुके और विवादित हो रहे हैं कि उनके साथ-साथ कांग्रेस की भी किरकिरी हो रही है। डॉ अंसारी की इस बयानबाजी के पीछे का कारण क्या है और इसका राजनीतिक असर क्या होगा, इसका विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
यह 2005 की घटना है। गोड्डा के सांसद थे फुरकान अंसारी। अविभाजित बिहार के दिनों से ही कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं में शुमार किये जाते थे। एक मुलाकात के दौरान उन्होंने कहा कि अपने कुछ युवा नेताओं की बिना सोचे-समझे बोलने की आदत कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है। पार्टी को अपने युवा नेताओं के लिए एक सघन प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना चाहिए। फुरकान साहब को उस समय शायद इस बात का आभास तक नहीं था कि उनके पुत्र भी इसी श्रेणी के नेताओं की पंक्ति में शुमार होने के लिए बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। हम बात कर रहे हैं, यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर चुके जामताड़ा के विधायक और फुरकान अंसारी के राजनीतिक उत्तराधिकारी डॉ इरफान अंसारी की।
वर्ष 2014 में जब डॉ इरफान अंसारी पहली बार विधायक चुने गये, तो उन्होंने अपनी कोई खास छाप नहीं छोड़ी। इतना जरूर हुआ कि वह अपने क्षेत्र में बेहद सक्रिय रहे और लोगों की समस्याओं को हल करने का हरसंभव प्रयास किया। इसलिए 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर उन पर दांव लगाया और वह दूसरी बार विधायक चुने गये। लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से ही डॉ इरफान अंसारी लगातार अपने विवादित बयानों के कारण अपनी तो किरकिरी करा ही रहे हैं, साथ ही पार्टी के लिए भी मुसीबतें खड़ी कर रहे हैं।
पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले डॉ अंसारी ने अपने पिता को गोड्डा से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाने के लिए बगावत का रास्ता अख्तियार कर लिया। वह अपने कुछ समर्थकों को लेकर दिल्ली तक चले गये, लेकिन उनकी दाल नहीं गली। इसके बाद उन्होंने प्रदेश प्रभारी और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उनके खिलाफ लगातार टिप्पणी करते रहे। बताते हैं कि उन्हें शांत कराने के लिए आलाकमान को हस्तक्षेप करना पड़ा।
लेकिन डॉ इरफान अंसारी बहुत दिनों तक शांत नहीं रह सके। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के इस्तीफे के बाद उन्हें पांच कार्यकारी अध्यक्षों में से एक स्थान दिया गया, तो उन्हें लगा कि वह पार्टी के नीति नियंता बन गये हैं। विधानसभा में वह विपक्ष के वरिष्ठ विधायकों से अनावश्यक उलझे और पार्टी को परेशानी में डाला। फिर मंत्री नहीं बनाये जाने के कारण वह कांग्रेस में एक बार फिर बगावत के रास्ते पर उतरे और दिल्ली दरबार में अपनी ही पार्टी के नेताओं की शिकायत दर्ज कराने चले गये। जब इससे भी बात नहीं बनी, तो उन्होंने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और दूसरे वरिष्ठ नेताओं को निशाने पर लेना शुरू किया। इसी दौरान वह विपक्ष के नेताओं के खिलाफ भी बेतुकी बयानबाजी करते रहे, जिससे कांग्रेस के भीतर असहज स्थिति पैदा हुई।
कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन की शुरुआत में डॉ इरफान अंसारी ने अपने क्षेत्र में लोगों की खूब आर्थिक मदद की, लेकिन इस दौरान वह सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान नहीं रख सके और इस पर काफी विवाद भी हुआ।
अब डॉ इरफान अंसारी ने नया शगूफा छोड़ा है। उन्होंने खुद को जामताड़ा का सीएम घोषित कर दिया है। उनके इस बेतुके बयान का सोशल मीडिया पर खूब मजाक उड़ाया जा रहा है। उनके इस बयान ने विपक्ष को बैठे-बिठाये एक मुद्दा दे दिया है। विपक्ष सवाल कर रहा है कि जामताड़ा में समानांतर शासन स्थापित करने का दावा करनेवाले इस विधायक के खिलाफ सरकार क्या कार्रवाई करेगी। यह माना जा सकता है कि डॉ इरफान अंसारी ने यह बयान हल्के-फुल्के अंदाज में दिया है, लेकिन एक निर्वाचित विधायक का यह बयान न तो नीतिसंगत माना जा सकता है और न ही परिपक्व। डॉ अंसारी को समझना चाहिए कि वह कोई सड़क छाप व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि इस राज्य की सबसे बड़ी पंचायत के एक सदस्य हैं। उनकी हर गतिविधि और हर बयान आम जनता के लिए नजीर होती है और लोग उनके दिखाये रास्ते पर चलने की कोशिश करते हैं। उनकी हर बात को गंभीरता से लिया जाता है। यदि किसी जन प्रतिनिधि की बातों को जनता मजाक में उड़ा देती है, तो यह उसके खिसकते जनाधार का परिचायक होता है, न कि उसकी बढ़ती लोकप्रियता का संकेत। मजाकिया लहजे में कोई बात कहना अलग बात है और किसी जन प्रतिनिधि द्वारा बेतुकी बात कहना अलग माना जाता है। डॉ अंसारी को यह भी समझना चाहिए कि इस तरह की बयानबाजी से वह न केवल अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं, बल्कि पार्टी को भी भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं।
डॉ इरफान अंसारी की बेतुकी बातों से कांग्रेस के लोग भी असहज महसूस करने लगे हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वह अपने इस विधायक को कैसे रोकें। पार्टी के भीतर एक धड़ा डॉ अंसारी की गतिविधियों को लेकर बेहद गुस्से में है, क्योंकि उसे लगता है कि इस तरह की हरकतों से पार्टी का जनाधार कम हो रहा है। इसलिए निजी तौर पर कांग्रेस के कुछ नेता चाहते हैं कि आलाकमान ही विधायक पर लगाम लगाये। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अपने इस कार्यकारी अध्यक्ष को कैसे शांत कराता है या फिर अपनी किरकिरी कराता है।