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    Home»Jharkhand Top News»सरकार को सांसत में डाल दिया है कुछ नौकरशाहों ने
    Jharkhand Top News

    सरकार को सांसत में डाल दिया है कुछ नौकरशाहों ने

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskSeptember 23, 2020No Comments4 Mins Read
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    अजय शर्मा
    रांची। हाल के दिनों में राज्य सरकार को कम से कम तीन मामलों में सांसत में डाल कर नौकरशाही कहीं अपनी पीठ थपथपा रही है। इन गिने-चुने नौकरशाहों के कारण सरकार को इन तीन मामलों में अपने कदम पीछे खींचने पड़े हैं। पूर्व की सरकार के दो और वर्तमान सरकार के एक फैसले से यह स्थिति उत्पन्न हुई है। सरकार को सांसत में डालने के पीछे राज्य के कतिपय अधिकारियों का हाथ है। राज्य सरकार को चाहिए कि वैसे अधिकारियों को चिह्नित करे और कार्रवाई करे, नहीं तो आनेवाले दिनों में भी इस तरह की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। पूर्व की सरकार के अधिकारी अगर नियोजन नीति को गंभीरता से तैयार करते, तो अभी यह स्थिति उत्पन्न नहीं होती।
    उच्च न्यायालय में सरकार के निर्णय को तो खारिज कर ही दिया गया, 14 से 20 हजार लोगों की नौकरियों पर तलवार लटक गयी है। उनकी नौकरी जानी लगभग तय है। सरकार को इस गलती के लिए जिम्मेवार अधिकारियों को जरूर चिह्नित करना चाहिए। हर कोई जानता है कि किसी भी नौकरी में एक सौ फीसदी आरक्षण किसी भी स्थिति में नहीं दिये जाने का प्रावधान है।
    क्या कहा है कोर्ट ने
    हाइकोर्ट ने झारखंड के 13 शिड्यूल जिलों के लिए हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति में दिये गये आरक्षण पर बड़ा फैसला सुनाया है। इस फैसले से कई वर्ग प्रभावित हुए हैं। शिक्षक नियुक्ति को रद्द किया गया है। इससे 8423 लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा। इसके अलावा इन जिलों में तीसरे और चौथे दर्जे के पदों पर 2016 में तैयार नियोजन नीति के आधार पर हुईं नियुक्तियों को रद्द करने की स्थिति बन गयी है। इस तरह हाइकोर्ट के इस फैसले से 14 से 20 हजार नौकरियां जानी तय है। इसलिए जरूरी है कि दोषपूर्ण नियोजन नीति बनानेवाले अधिकारी को चिह्नित किया जाये।
    लैंड म्यूटेशन बिल
    झारखंड का यह अनोखा बिल है। कैबिनेट से पास होते ही इस बिल पर लोगों का ध्यान गया। इस बिल में यह प्रावधान किया गया है कि जमीन का गलत म्यूटेशन करनेवाले अधिकारियों पर सीधे कार्रवाई नहीं होगी। अगर यह बिल विधानसभा के पटल पर रखा जाता, तो निश्चित तौर पर यह पास हो जाता। इसके बाद तो जमीन लूट की छूट मिल जाती। वक्त रहते मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का ध्यान इस पर चला गया और इस बिल को विधानसभा में पेश नहीं किया गया। इस बिल को जिन जूनियर अधिकारियों ने तैयार किया है, उन्हें जरूर चिह्नित किया जाना चाहिए।
    अधिकारियों के कारण 130 करोड़ रुपये का जुर्माना
    झारखंड में अधिकारियों के कारण ही एनजीटी को 130 करोड़ का जुर्माना लगाना पड़ा है। हुआ यह था कि नये हाइकोर्ट और विधानसभा भवन को लेकर पर्यावरणीय क्लीयरेंस नहीं लिया गया था और दोनों भवन बन कर तैयार कर लिये गये। इसमें भी सरकार की फजीहत हुई। यह जुर्माना सरकार क्यों भरे। जुर्माना तो वैसे अधिकारियों से वसूला जाना चाहिए, जिनके कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई।
    पुलिस में अनुबंध पर नियुक्ति क्यों
    झारखंड अनोखा राज्य है। यहां सबसे महत्वपूर्ण विभाग पुलिस में भी अनुबंध पर नियुक्ति की गयी। सहायक पुलिस के नाम पर ढाई हजार लोगों की नियुक्ति की गयी। नियुक्ति के समय यह साफ कहा गया था कि ये स्थायी नहीं होंगे। वे अब स्थायीकरण को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। सहायक पुलिसकर्मियों की जरूरत आखिर इस राज्य में क्यों पड़ी, जबकि खुफिया सूचना एकत्रित करने के लिए एक बड़ा विभाग है। सरकार प्रति वर्ष इस पर अरबों रुपया खर्च करती है। एसएस फंड के नाम पर मोटी रकम भी दी जाती है। इस विभाग में भी ढेर सारी नियुक्तियां हुई हैं, फिर ये सहायक पुलिस क्यों। इसका आइडिया देनेवाले अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए। अगर ये स्थायी हो गये, तो आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका, किसान मित्र, अन्य क्लब के सदस्य भी आंदोलन की राह पकड़ सकते हैं।

    Some bureaucrats have put the government in breath
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