आपका आजाद सिपाही पांच साल का हो गया। पांच साल, यानी एक हजार आठ सौ सत्ताइस दिन। यह आजाद सिपाही का नहीं, आपके भरोसे की सालगिरह है। इसलिए आज दीन-दुनिया से अलग हट कर केवल इसकी ही बात होगी। आज हम राजनीति, अपराध, बिजनेस, खेलकूद और सामाजिक क्षेत्र की खबरों की नहीं, अपने पांच साल के सफर पर बात करेंगे कि कहां से हमने आपके भरोसे की पूंजी के साथ यह सफर शुरू किया था और आज हम कहां पहुंचे हैं। यह हमारे बीच की बेबाक बात है। कहीं कोई छिपाव या दुराव नहीं है।
—आजाद सिपाही… ये क्या है। पांच साल पहले जब हम किसी को अपना परिचय देते थे, तब लोग यही सवाल पूछते थे। हम जवाब देते थे, जी, अखबार है। रांची से प्रकाशित होता है। पांच साल बाद आज हमारे फोन की घंटी बजती है और हम उसे रिसीव करते हैं, तो कुछ लोग बेबाकी से पूछते हैं, कल हमने खबर दी थी, आज क्यों नहीं छपी! पांच साल के हमारे सफरनामे का यही लब्बोलुआब है। इतना ही नहीं, आज यदि आप गूगल पर आजाद सिपाही सर्च करें, तो .61 सेकेंड में 2.67 लाख परिणाम आपके सामने आ जायेंगे। आपके इस अखबार आजाद सिपाही के पांच साल के सफरनामे को एक वाक्य में बताने के लिए यह पर्याप्त है।
मीडिया और खास कर प्रिंट मीडिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती के इस दौर में यदि आजाद सिपाही सुबह-सुबह आपके दरवाजे पर पहुंच रहा है, तो इसके पीछे दूसरी कोई ताकत नहीं, केवल आपका भरोसा है। आपके इसी भरोसे ने हमसे पूछे जानेवाले सवालों के दायरे को इतना बड़ा कर दिया है।
पांच साल का समय बहुत लंबा तो नहीं होता, लेकिन इतिहास का एक अध्याय बनाने और लिखने लायक तो होता ही है। आजाद सिपाही ने पांच साल पहले जब आज ही के दिन अपना सफर शुरू किया था, तो हमारे पास कुछ भी नहीं था। हमारी सबसे बड़ी पूंजी आपका भरोसा और हमारे छोटे से परिवार का आत्मविश्वास था। यह आत्मविश्वास शुरू में डगमगाया भी, लेकिन हमने हार नहीं मानी। आपका भरोसा और प्यार हमारा संबल बना। आज जब हम पीछे मुड़ कर देखते हैं, तो हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि हम केवल आपके भरोसे ही इतनी दूर तक आ सके हैं।
शुरुआत
किसी भी संस्थान की शुरुआत बेहद रोमांचकारी तरीके से होती है। हम अक्सर पढ़ते-सुनते आये हैं कि संस्थानों ने कैसे सफलता की सीढ़ियां तय की या फिर धूमकेतु की तरह प्रकट होकर गायब हो गये। आजाद सिपाही की कहानी थोड़ी अलग है, क्योंकि हमारे पास न भारी-भरकम पूंजी थी और न ही संसाधन। न किसी पूंजीपति का साथ था और न ही किसी राजनीतिक दल का समर्थन। आजाद सिपाही वह सपना था, जिसे पूरे परिवार ने मिल कर देखा, गुना और फिर उसे पूरा करने में जुट गया। बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों, भारी-भरकम पूंजी और गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा के दौर में आजाद सिपाही के नन्हे से कदम से किसी को न कोई फर्क पड़ना था और न पड़ा। बाजार को भले ही फर्क नहीं पड़ा, लेकिन हमारे और आपके रिश्ते की उस भरोसेमंद शुरुआत से हमें जरूर संबल मिला। हमारा सपना थोड़ा और रंगीन हुआ, हमारा संकल्प थोड़ा और मजबूत हुआ। कहा जाता है कि अगर किसी को तैरना सिखाना हो, तो उसे गहरे समंदर में फेंक दो। हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। बिना किसी समारोह और कार्यक्रम के हम खबरों के महासागर में कूद पड़े। हमारा लाइफ जैकेट आपका भरोसा था। शुरुआत धमाकेदार तो नहीं हुई, लेकिन हमारे कदम सधे हुए जरूर थे। हम न किसी राजनीतिक दल के समर्थक थे और न विरोधी। हमें न किसी से दोस्ती थी और न ही दुश्मनी। हमारे सामने केवल आप थे और हमें आपका ही ध्यान था।
सफर की शुरुआत हुई, तो रास्ते खुद ब खुद निकलने लगे। अंधेरी सुरंग में प्रवेश करने का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि शुरुआत में ही अंधेरे से लड़ने की ताकत मिल जाती है। हमें भी यह ताकत मिली। यह ताकत कहीं और से नहीं, आपसे मिली, आपके भरोसे से मिली। हम एक-एक कदम धरते गये। आपने डांटा-फटकारा, दुलारा और पुचकारा भी। यह हमारे लिए पूंजी थी। हमें चिंता थी आपकी खबरों की भूख शांत करने की, आपको सूचनाओं से समृद्ध करने की। हम कभी इस भ्रम में नहीं रहे कि हम बहुत ताकतवर हैं और न कभी आपको इस भ्रम में रखा कि आजाद सिपाही के पास जादू की छड़ी है, जिसे घुमाते ही आपकी सारी समस्याएं दूर हो जायेंगी। हम तो आपका आइना बनने चले थे और हमारा काम आपको सूचनाओं-खबरों से समृद्ध करना था। संसाधनों की कमी रास्ते में बाधा बनी, तो आप हमारे रिपोर्टर बन गये। किसी न किसी माध्यम से आप हर जरूरी सूचना हम तक पहुंचाते रहे। इसका सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि हमारे और आपके बीच का रिश्ता केवल अखबार और पाठक का रिश्ता नहीं रहा, बल्कि यह लगातार मजबूत होता गया और आज पांच साल बाद हम कह सकते हैं कि यह रिश्ता भरोसे में बदल चुका है। आजाद सिपाही को भरोसा है कि कोई भी सूचना उस तक जरूर पहुंचेगी और आपको यह भरोसा है कि सूचना दी गयी है, तो वह आजाद सिपाही में जरूर छपेगी।
हमारे इस प्रयास में खबरों को जानने की, समझने की छटपटाहट भी थी। हमने महसूस किया कि खबरों के इस महासागर में झारखंड का आम आदमी कहीं पीछे तो नहीं छूट रहा है। चाहे सिमडेगा का आखिरी गांव हो या गढ़वा, चतरा का सुदूर इलाका हो या फिर गोड्डा की पथरीली सड़कों से जुड़ने के लिए छटपटा रहा टोला, हरेक की अपनी जरूरत थी और चाहत भी। आजाद सिपाही ने इस जरूरत को, सूचना की चाहत को और लोगों के सपनों को महसूस किया। हमने यह भी महसूस किया कि गोड्डा की खबर यदि गढ़वा के लोगों तक नहीं पहुंचे और गढ़वा की सूचनाओं से घाटशिला के लोग अंजान रहें, तो फिर अखबार का कोई मतलब नहीं रह जायेगा। उस समय तक दूसरे अखबार स्थानीय स्तर के हो चुके थे, जिनमें बाहर की सूचनाओं का अभाव रहता था। हमने आपके लिए इस अभाव को दूर करने का फैसला किया। हमारे इस अभिनव प्रयोग की खूब हंसी भी उड़ायी गयी। कहा गया कि यह आत्महत्या करने जैसा कदम है। लेकिन हमें आपका भरोसा था और अपने संकल्प पर भी। इसलिए हमने पूरे झारखंड का एक समग्र अखबार निकाला। हमारा कोई अलग बिजनेस मॉडल नहीं था। हमारे पास पूंजी नहीं थी कि हम कई-कई संस्करणों में अखबार को बांट सकें। इसलिए जरूरी संस्करण की पुरानी, लेकिन स्थापित अवधारणा को हमने अपनाया।
सधी हुई शुरुआत और आपके भरोसे के सहारे हम पहली सालगिरह तक पहुंचे। 2016 का साल, जब सूचनाओं के संसार में सब कुछ तेजी से घटित हो रहा था। सोशल मीडिया पूरे उफान पर था और लोग प्रिंट मीडिया के अवसान की भविष्यवाणी करने लगे थे। उस दौर में सूचनाओं की विश्वसनीयता कटघरे में थी, लेकिन यह आपका भरोसा और हमारा संकल्प था कि हम रास्ते से डिगे नहीं। सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा हमें भी था और आपको भी, लेकिन हमें विश्वास था कि हम एक अलग धारा विकसित करेंगे, ताकि आप तक सही और ठोस सूचनाएं पहुंच सकें। हमने गांवों-गलियों की खाक छानी, शहरों के कोलाहल को झेला और हमारी खबरों ने साबित कर दिया कि हम सही रास्ते पर चल रहे हैं। हर दिन-हर पल आप हमारे साथ बने रहे। इससे हमारी ताकत कुछ और बढ़ी। ताकत बढ़ी, तो स्वाभाविक था कि कुनबा भी बढ़ा। परिवार बड़ा हुआ। 30 लोगों का सपना एक साल के भीतर ही एक सौ के करीब लोगों का सपना बन चुका था। इस बड़े होते कारवां को देख कर हम तो फूले समा ही रहे थे, आप भी खूब खुश हो रहे थे, क्योंकि आजाद सिपाही आपका अपना था।
2017 में हम अपनी दूसरी सालगिरह तक पहुंचे, तो हमें एकबारगी यह एहसास हुआ कि हमें अपना दायरा बढ़ाना चाहिए। संसाधनों की कमी तब भी थी। हम आकार में छोटे जरूर थे, लेकिन हमारा इरादा और हमारा हौसला आसमानी ऊंचाई लिये हुए था। हमारे पास आपके भरोसे की पूंजी थी। आपकी पैनी नजर हमें हर पल सतर्क रखती थी। हमारा कुनबा बढ़ा, लोग जुड़ते गये और कारवां बनता गया। नये जिलों में आजाद सिपाही के कार्यालय दिखने लगे और कई शहरों में तो आपने अपने घर में हमें पनाह दी। हमें कभी महसूस ही नहीं हुआ कि हम आपसे अलग हैं। आप हमेशा हमारे साथ खड़े रहे। खबरें भेजने से लेकर अखबार के प्रसार तक के कामों की आप निगरानी करते रहे। यह हमारे लिए बड़ी पूंजी बनी, हमारी ताकत बनी। हम बड़े हो रहे थे। आपका आजाद सिपाही बड़ा हो रहा था। छुटपन की चंचलता उसमें भी थी। शरारतें भी थीं, लेकिन कहीं न कहीं इनके पीछे आपका ही ध्यान था। इसलिए उन चंचलता और शरारतों का आपने कभी बुरा नहीं माना। वे शरारतें आपके मन को पुलकित करती थीं, क्योंकि आप जानते थे कि उनके पीछे कोई गलत मंशा कभी नहीं रही।
तीसरी सालगिरह तक हम अपने पैर जमा चुके थे। प्रिंट के साथ-साथ डिजिटल संसार में भी हमारी धमक महसूस की जाने लगी थी। यू-ट्यूब, फेसबुक और ट्विटर के जरिये हम झारखंड के साथ-साथ देश-विदेश में अपनी धाक जमाने में लग गये। आपका भरोसा और मजबूत होता गया और हमारा परिवार भी बढ़ता गया। झारखंड के शहरों से निकल कर हम प्रखंड मुख्यालयों तक पहुंचने लगे। आपके विश्वास और भरोसे की ताकत के साथ हमारा कारवां लगातार आगे बढ़ रहा था। साथ ही हमारी जिम्मेदारी, जो हमने पहले दिन ही अपने ऊपर ली थी, भी बड़ी हो रही थी। हमारी खबरों का असर होने लगा और हमारा उत्साह बढ़ने लगे। कहते हैं कि अति-उत्साह में कभी-कभी गड़बड़ियां हो जाती हैं। हमारे साथ भी हुई। आपने हमें ताकीद की और हम अपनी गलतियों से सीख लेकर आगे बढ़ते-बढ़ते चौथे साल में पहुंच गये।
2019 में देश में आम चुनाव हुए और साल के अंत में विधानसभा के चुनाव। अखबारों की प्रतिबद्धता आप समझने लगे। हमें भी कसौटी पर कसा गया। लेकिन हम संकल्पबद्ध थे कि हम न किसी का समर्थन करेंगे और न विरोध। आपकी पैनी नजर हम पर थी, क्योंकि आजाद सिपाही आपका अपना था। हमने आपको निराश नहीं किया। वस्तुपरक राजनीतिक रिपोर्टिंग और ठोस जानकारी के बल पर हम वहां तक पहुंच गये, जहां पहुंचने के लिए दूसरे अखबारों को सालों तक पसीना बहाना पड़ा। दिल्ली से लेकर रांची तक के सत्ता के गलियारों और राजनीतिक दलों के दफ्तरों से लेकर नेताओं-कार्यकर्ताओं के घरों तक में जब भी किसी सूचना की विश्वसनीयता जांचनी होती थी, सबसे पहले आजाद सिपाही का नाम लिया जाने लगा। यह विश्वसनीयता हमने आपकी मदद से और अपने संकल्प से हासिल की। हमारी रिपोर्टिंग टीम वहां तक पहुंचती रही, जहां दूसरे अखबारों को मशक्कत करनी पड़ रही थी। यह सब संभव हुआ आपकी बदौलत। आपने हमें चलना सिखाया, फिर रास्ता भी दिखाया।
फिर आया 2020, जिसने न केवल मीडिया के सामने, बल्कि पूरे समाज के सामने अंधेरा कायम कर दिया। महामारी के दौर में मीडिया समेत दूसरे संस्थान सिमटने लगे, उनका दायरा छोटा होने लगा। लेकिन आजाद सिपाही के पास आपके भरोसे की पूंजी थी, जिसने हमें हिम्मत दी, आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। हमने संकट के इस दौर में भी अपनी हिम्मत बनाये रखी, तो इसके पीछे भी आप ही थे। दूसरे मीडिया संस्थानों में जहां पैर समेटने का दौर चल रहा है, हम आज भी अपने विस्तार में लगे हैं। हम आज झारखंड के हर प्रखंड मुख्यालय में मौजूद हैं। शुरुआत में महज दो-ढाई दर्जन सदस्यों का आजाद सिपाही परिवार आज तीन सौ सदस्यों तक पहुंच चुका है। झारखंड के दूर-दराज के इलाकों से हम निरंतर संपर्क में हैं। कहीं हमारी टीम के सक्रिय सदस्य हैं, तो कहीं यह जिम्मेदारी हमारे पाठक और शुभेच्छु निभा रहे हैं।
आज जब हम इस पांच साल के सफरनामे पर नजर दौड़ा रहे हैं, तो हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि हमने झारखंड की अखबारी दुनिया में एक इतिहास रचा है। आजाद सिपाही के लाखों पाठकों के साथ-साथ हम अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिये तीन करोड़ से अधिक लोगों तक पहुंच रहे हैं। डेढ़ लाख से अधिक सब्सक्राइबरों के जरिये आज हम झारखंड से सबसे बड़े न्यूज पोर्टल बन चुके हैं। हमारी व्यूअरशिप 11 करोड़ से अधिक मिनट की हो चुकी है। इतना सब कुछ होते हुए आज भी हमारा दामन पूरी तरह बेदाग है, क्योंकि आजाद सिपाही ने कभी सफलता का शॉर्टकट नहीं अपनाया। हमने कभी किसी का भयादोहन नहीं किया और आज तक कभी आजाद सिपाही पर यह आरोप नहीं लगा कि यह अखबार ब्लैकमेल करता है। मीडिया की दुनिया के स्याह पक्ष को हमने पहले दिन से ही वर्जनाओं की सूची में रखा था और आज भी इस पर कायम हैं।
हमें यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि आजाद सिपाही का अब तक का सफर बहुत आसान नहीं रहा। रास्ते कठिन थे, चुनौतियां बड़ी थीं। लेकिन हमें भरोसा केवल अपने संकल्प पर था और आप तो हमारे संबल थे ही। बड़ी पूंजी, महंगे संसाधन और महंगे प्रचार हमारे लिए कभी नहीं रहे। हम अपनी मामूली स्थिति से ही संतुष्ट थे, इस संकल्प के साथ कि हम पारदर्शी तरीके से नैतिक रास्ते पर चलते हुए अपनी स्थिति सुधारेंगे। हम आज एक बार फिर आपको विश्वास दिलाते हैं कि हमारा वह संकल्प आज भी जीवित है। आजाद सिपाही के पांच साल के सफर में आपने जो भरोसा दिया, संकट के दौर में हमारे साथ खड़े रहे, उसके एवज में थैंक यू या आभार बहुत छोटा शब्द है। हमारे पास शब्द नहीं हैं। इसलिए हम केवल इतना ही कह सकते हैं कि आपका सहयोग बना रहे, भरोसा कायम रहे। हम आपके और आप हमारे हैं। बस, इतना ही।