30 अक्टूबर को जब भाजपा ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में सुखदेव भगत को निष्कासित किया, तो इसे उन्होंने बड़ी सहजता से लिया। निष्कासन पर उनके बोल थे, धन्यवाद भाजपा और इसके बाद उन्होंने चुप्पी साध ली। हालांकि उनके दिल में कहने के लिए बहुत कुुछ था, पर वह जानते थे कि इस समय कम बोलना ही उनके लिए अच्छा है। दरअसल, सुखदेव भगत को भाजपा के इस कदम का पूर्वानुमान था और वह इसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। बेरमो में कांग्रेस प्रत्याशी अनुप सिंह के पक्ष में प्रचार करने और कांग्रेस में उनकी घर वापसी की अर्जी से जो नतीजे निकलनेवाले थे, इससे सुखदेव भगत अंजान नहीं थे। और भाजपा ने जब उन्हें पार्टी से निकाला, तो सुखदेव भगत बंधन मुक्त हो चुके थे। अब वह कांग्रेस में अपनी वापसी की राह पर और गंभीरता से काम कर रहे हैं। हालांकि उनके लिए यह रिटर्न जर्नी आसान नहीं होगी। कांग्रेस में सुखदेव भगत की घर वापसी की कोशिशों और उनकी राह में आनेवाली चुनौतियों पर नजर डालती दयानंद राय की रिपोर्ट।
ंराजनीति की शतरंज पर किसी राजनेता का हर दांव सही पड़े ऐसा बहुत कम होता है और वक्त ने यह साबित कर दिया है कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में सुरक्षित भविष्य तलाशने की चाहत रखनेवाले कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत का भाजपा में जाने का फैसला सही नहीं था। उनके साथ भाजपा में गये मनोज यादव और आजसू में गये प्रदीप बलमुचू और राधाकृष्ण किशोर का भी फैसला राजनीतिक दृष्टि से गलत साबित हुआ। इसलिए जब डॉ अजय कुमार आप छोड़कर कांग्रेस में वापस आये, तो सुखदेव भगत के साथ प्रदीप बलमुचू ने भी कांग्रेस में वापसी की अर्जी डाल दी और सुखदेव भगत ने बेरमो में अनुप सिंह के पक्ष में प्रचार करके यह बता दिया कि वह भाजपा में गये जरूर थे, पर दिल से कांग्रेसी ही हैं।
कई रोड़े हैं सुखदेव भगत की राह में
कांग्रेस में सुखदेव भगत की वापसी की राह में कई रोड़े हैं। पहली कठिनाई तो लोहरदगा विधानसभा सीट है। इस सीट पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव ने बीते विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी और इसी जीत की वजह से उन्हें सरकार में बड़ा ओहदा मिला। अब कांग्रेस में आने के बाद सुखदेव भगत फिर इसी सीट से चुनाव लड़ना चाहेंगे। वह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। ऐसे में उनकी घर वापसी से डॉ रामेश्वर उरांव को चुनौती मिल सकती है। वहीं, सुखदेव भगत के पार्टी से जाने के बाद डॉ रामेश्वर उरांव पार्टी के निर्विवाद अध्यक्ष बने रहे, लेकिन अब सुखदेव भगत की वापसी से उन्हें चुनौती मिल सकती है।
डॉ रामेश्वर उरांव सोनिया गांधी के करीबी माने जाते हैं और यदि दिल्ली दरबार में उनकी चली, तो सुखदेव की घर वापसी की राह कठिन हो जायेगी। उनकी तरह ही प्रदीप बलमुचू भी कांग्रेस में वापसी की आस लगाये हुए हैं। बीते विधानसभा चुनाव में घाटशिला सीट से टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने आजसू का दामन थामा था, लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आ गया कि आजसू में उनके रहने या नहीं रहने से कोई अंतर नहीं पड़नेवाला है। आजसू में उनका कोई भविष्य नहीं है।
लोहरदगा में डॉ उरांव के खिलाफ लड़े थे
वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में सुखदेव भगत का टिकट काटकर पार्टी ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव को उम्मीदवार बनाया था। इस सीट से टिकट कटने से नाराज सुखदेव भगत कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गये थे और भाजपा के टिकट पर डॉ रामेश्वर उरांव के खिलाफ चुनाव लड़ा था, पर उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा था। विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही सुखदेव भाजपा में बहुत सक्रिय नहीं दिख रहे थे। बेरमो में वह अनुप सिंह के प्रचार में लगे रहे और उनके नामांकन में भी शामिल हुए।
तगड़ी जुगत भिड़ा चुके हैं सुखदेव
पहले बैंक और बाद में राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी का पद छोड़कर राजनीति में आनेवाले सुखदेव भगत कांग्रेस में वापसी के लिए तगड़ी जुगत भिड़ा चुके हैं। इसके लिए वे बीते माह ही कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह और सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल से मिल कर आये हैं। उन्हें उम्मीद है कि कांग्रेस आलाकमान की सहमति मिलने के बाद जिस तरह डॉ अजय कुमार की घर वापसी हुई है, वैसे ही उनकी भी हो जायेगी। हालांकि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव और सांसद धीरज साहू उनकी वापसी के पक्षधर नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस में एक धड़ा ऐसा भी है, जो सुखदेव भगत की वापसी चाहता है और मानता है कि इससे कांग्रेस को मजबूती मिलेगी, क्योंकि प्रशासनिक और राजनीतिक, दोनों अनुभवों से सुखदेव न केवल लैस हैं, बल्कि समय के साथ अधिक परिपक्व भी हुए हैं।
इसलिए कांग्रेस में वापसी चाहते हैं
झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि सुखदेव भगत की राजनीति का केंद्र लोहरदगा है। उन्होंने इस क्षेत्र से सांसद बनने का भी प्रयास किया था, पर हार गये थे। लोहरदगा कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। हालांकि वह यहां से भाजपा विधायक सधनू भगत को हराकर राजनीति में आये थे। वर्ष 2019 में लोहरदगा सीट से लोकसभा चुनाव लड़कर सुखदेव ने अपना कद और बड़ा करने की कोशिश की थी।
चुनाव में उन्होंने भाजपा के सुदर्शन भगत को भितरघात के बावजूद कड़ी टक्कर दी थी। लोहरदगा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी सभाओं के बाद लोगों को लग रहा था कि सुखदेव भगत अपनी जमानत भी नहीं बचा पायेंगे, पर उन्होंने सुदर्शन भगत को कड़ी चुनौती दी। एक दूसरी वजह यह है कि सुखदेव भगत का पैतृक आवास भी लोहरदगा है और यहां की माटी से वह अच्छी तरह परिचित हैं। ऐसे में यदि वह कांग्रेस में वापस आते हैं, तो यहां उनके लिए राजनीति में स्कोप ज्यादा है।
इधर, कांग्रेस में सुखदेव भगत के शामिल होने की बाबत पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव ने कहा कि वह इस संबंध में मीडिया में कोई बयान नहीं देंगे। उन्हें जो कुछ भी कहना है, दिल्ली में पार्टी आलाकमान को कहेंगे। जाहिर है कि डॉ रामेश्वर उरांव इस संबंध में कुछ बोलना नहीं चाहते, पर उनके और सुखदेव भगत के बीच जो शीतयुद्ध चल रहा है, वह सुखदेव भगत की वापसी से जोर ही पकड़ेगा।