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    Home»Jharkhand Top News»पूछता है झारखंड : एनएमसी ने तीन मेडिकल कॉलेजों को मान्यता क्यों दी
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    पूछता है झारखंड : एनएमसी ने तीन मेडिकल कॉलेजों को मान्यता क्यों दी

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskNovember 8, 2020No Comments6 Mins Read
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    झारखंड के तीन मेडिकल कॉलेजों में नामांकन पर नेशनल मेडिकल काउंसिल की रोक का विवाद गहराता जा रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एनएमसी को पत्र भेज कर अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। एनएमसी ने कहा है कि दुमका, हजारीबाग और पलामू मेडिकल कॉलेजों में आश्वासन के बावजूद निर्धारित समय में वे सारे संसाधन नहीं जुटाये गये, जिनकी मेडिकल की पढ़ाई में जरूरत होती है। इसलिए इन तीन मेडिकल कॉलेजों में नामांकन नहीं लिया जा सकता। यह दलील तो ठीक है, लेकिन इसमें एक सवाल भी पैदा होता है कि आखिर पहले एनएमसी ने बिना संसाधनों के ही इन कॉलेजों में नामांकन की अनुमति क्यों दी। क्या उसका यह फैसला इन तीन मेडिकल कॉलेजों में पढ़ रहे विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं था। और यदि उसने पूर्व की सरकार के आश्वासन के भरोसे पर ही उनमें नामांकन की अनुमति दी, तो फिर इस सरकार के आश्वासन पर उसे संदेह क्यों है। झारखंड के इन सवालों का जवाब एनएमसी को देना ही होगा, क्योंकि यह इस गरीब और विकास की दौड़ में पिछड़े राज्य की सवा तीन करोड़ आबादी का सवाल है। इस सवाल का जवाब शायद किसी के पास नहीं है। झारखंड के तीन मेडिकल कॉलेजों के विवाद और एनएमसी की भूमिका पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    झारखंड के तीन मेडिकल कॉलेजों में नामांकन पर रोक लगाने से पैदा हुआ विवाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा चिट्ठी लिखे जाने के साथ और गहरा गया है। देश में मेडिकल की पढ़ाई को नियंत्रित करनेवाली संस्था नेशनल मेडिकल काउंसिल ने झारखंड के हजारीबाग, पलामू और दुमका के मेडिकल कॉलेजों में इस सत्र में नामांकन लिये जाने पर पिछले महीने रोक लगा दी है। यह रोक इन मेडिकल कॉलेजों में न्यूनतम सुविधाओं और संसाधन के अभाव के कारण लगायी गयी है। एनएमसी का तर्क है कि इन मेडिकल कॉलेजों के पास न भवन है और न ही योग्य प्राध्यापक। वहां वे उपकरण या सुविधाएं भी नहीं हैं, जिनकी मदद से मेडिकल की पढ़ाई जारी रखी जा सके। काउंसिल ने जो कारण बताये हैं, वे गलत नहीं हैं। पिछले साल भारी प्रचार-प्रसार कर इन मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई शुरू की गयी थी। तब एनएमसी, जिसका नाम मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया है, ने इन कॉलेजों को न केवल मान्यता दी थी, बल्कि बिना किसी संसाधन के इनमें पढ़ाई शुरू करने की भी अनुमति दी थी। लेकिन महज एक साल के भीतर एनएमसी का नजरिया बदल गया है।
    यहां सवाल यह उठता है कि जब इन मेडिकल कॉलेजों के पास संसाधन नहीं था, सुविधाएं नहीं थीं, उपकरण नहीं थे, तो इन्हें मान्यता कैसे दी गयी और नामांकन की अनुमति क्यों दी गयी। एनएमसी की दलील है कि उस समय राज्य सरकार ने एक साल के भीतर इन मेडिकल कॉलेजों को साधन संपन्न बनाने का आश्वासन दिया था, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ, तो उसे नामांकन पर रोक लगानी पड़ी। लेकिन एनएमसी की यह दलील भी सवालों के घेरे में है। सवाल यह है कि यदि बिना संसाधन के एक साल तक पढ़ाई जारी रखी जा सकती है, तो फिर दूसरे साल में भी ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता। इसके साथ दूसरा सवाल यह भी उठता है कि जिन विद्यार्थियों ने इन कॉलेजों में एडमिशन ले लिया है, उनके भविष्य का क्या होगा। क्या एनएमसी का फैसला उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं है। उन्हें संसाधन विहीन कॉलेजों में पढ़ने के लिए किसने मजबूर किया। यदि एनएमसी ने एक सरकार के आश्वासन पर भरोसा किया, तो फिर इस सरकार के आश्वासन पर उसे भरोसा क्यों नहीं है। हकीकत यह है कि इस सरकार के कार्यकाल में कोरोना महामारी ने सब कुछ अस्त-व्यस्त कर दिया है, सारे कार्य ठप हो गये थे, सात महीने का समय लॉकडाउन में ही निकल गया। एनएमसी को इस विपरीत परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना चाहिए। ऐसा नहीं है कि झारखंड सरकार ने इन तीन मेडिकल कॉलेजों के बारे में सुप्रीम कोर्ट में दिये आश्वासन पर कदम नहीं बढ़ाया, लेकिन यह कदम कोरोना और लॉकडाउन के कारण थम गये। इसलिए इसमें देरी हुई। काउंसिल को इस आपात परिस्थिति को ध्यान में रखना चाहिए। जब मेडिकल कॉलेजों में नामांकन के लिए प्रतियोगिता परीक्षा देर से आयोजित की जा सकती है, तो फिर कॉलेजों को नामांकन के लिए तैयार करने में भी तो देरी सहज स्वाभाविक है। इन तीन मेडिकल कॉलेजों की जमीनी हकीकत यह है कि इनका 95 फीसदी काम पूरा हो चुका है। दूसरी सुविधाएं भी तेजी से मुहैया करायी जा रही हैं। इसके बावजूद एनएमसी के इस फैसले पर संदेह इसलिए भी होता है, क्योंकि इन तीन मेडिकल कॉलेजों की मान्यता तो उसने स्थगित कर दी है, लेकिन देवघर में बन रहे एम्स को उसने मान्यता प्रदान कर दी है, जबकि वह अब तक अस्तित्व में भी नहीं आया है।
    अब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एनएमसी को इस बाबत एक पत्र लिख कर अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। उन्होंने झारखंड की वर्तमान परिस्थितियों का विस्तार से विवरण देते हुए एनएमसी से सहायता करने की अपील भी की है। उन्होंने कहा है कि एनएमसी से जवाब मिलने के बाद वह आगे की रणनीति पर विचार करेंगे। इससे साफ हो जाता है कि एनएमसी का फैसला अब केंद्र के साथ झारखंड सरकार के बीच टकराव का एक मुद्दा बन गया है। यहां यह उल्लेख भी समीचीन है कि मेडिकल की पढ़ाई के क्षेत्र में झारखंड पहले से ही काफी पिछड़ा है। यहां केवल तीन मेडिकल कॉलेज हैं, जहां हर साल तीन सौ विद्यार्थियों का दाखिला होता है। अभी एक निजी मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई है। राज्य की समूची स्वास्थ्य व्यवस्था इन तीन सरकारी मेडिकल कॉलेजों पर ही निर्भर है। इसी तरह झारखंड में केवल एक सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज है। एक आइआइटी और एक एनआइटी को जोड़ दिया जाये, तो यह संख्या तीन होती है। सवा तीन करोड़ की आवादी वाले दूसरे राज्यों से तुलना करने पर साफ हो जाता है कि तकनीकी शिक्षा के मामले में झारखंड बेहद पिछड़ा है और इसे अतिरिक्त प्रोत्साहन और रियायत का हक है। राजनीतिक वैमनस्यता या संस्थागत अहं के लिए ऐसा कोई कदम उठाना अकसर महंगा पड़ता है। यह बात नेशनल मेडिकल काउंसिल को ध्यान में रखन्ी चाहिए।
    बहरहाल, झारखंड सरकार ने इन तीन मेडिकल कॉलेजों में इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी जरूरतों को एक महीने में पूरा करने का फैसला किया है। साथ ही फैकल्टी की नियुक्ति भी तेजी से करने की बात कही है। तो अब इस परिस्थिति में काउंसिल को झारखंड सरकार को इतनी मोहलत देने पर विचार करना ही चाहिए, ताकि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े झारखंड के बच्चों को दूसरे राज्यों में जाने की जहमत नहीं उठानी पड़े। यह मोहलत देने से किसी का अहित नहीं होगा, बल्कि एक पिछड़े राज्य को आगे बढ़ने का अवसर देना ही कहा जायेगा और इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

    Asks Jharkhand: Why NMC recognized three medical colleges
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