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    Home»Jharkhand Top News»कलप रही है तिरूलडीह के शहीदों की आत्मा
    Jharkhand Top News

    कलप रही है तिरूलडीह के शहीदों की आत्मा

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJanuary 3, 2021No Comments3 Mins Read
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    अजय शर्मा
    रांची। रांची से जमशेदपुर जाने के क्रम में चौका पड़ता है। यहां एक बड़ा चौराहा है। बड़ा फ्लाइओवर भी है। चौराहे पर सिल्ली जाने वाले रास्ते में धूल धूसरित दो मूर्ति दिखी। आजाद सिपाही की टीम एक जनवरी को सरायकेला जा रही थी। चौक पर टीम रुकी तो ये दो मूर्तियां एक पेड़ के नीचे लगायी गयी थीं। पूरी तरह से धूल और कीचड़ से सनी हुई थीं। पूछने पर पता चला कि 21 अक्टूबर 1982 को इचागढ़ अंचल कार्यालय में अलग राज्य के आंदोलन और अन्य मांगों के समर्थन में ये दोनों ज्ञापन देने गये थे और फायरिंग में मारे गये थे। मूर्ति के नीचे शहीद धनंजय महतो जन्मतिथि 03/11/1956 और अजीत महतो की उम्र 18/05/1958 लिखी हुई थी। देखने से ऐसा लगा कि मूर्ति की सुधि लेनेवाला कोई नहीं है। न कोई रखरखाव और ना ही देखभाल। वर्तमान सरकार शहीद स्थलों के कायाकल्प में जुटी है। शहीदों के परिजनों को सम्मानित भी कर रही है। चौका में लगे इन शहीदों की मूर्ति पर भी सरकार का ध्यान जाना चाहिए।
    बता दें, यह गोलकांड उस समय हुआ था, जब मोर्चा का एक प्रतिनिधिमंडल अंचलाधिकारी के कार्यालय में विभिन्न मांगों को लेकर अधिकारी से लिखित आश्वासन ले रहा था। मोर्चा के सदस्य समझ नहीं पाये कि गोली कैसे और किसके आदेश से चली, जबकि अंचलाधिकारी खुद कार्यालय में मौजूद थे। घटना के बाद प्रखंड मुख्यालय में मौजूद 42 लोगों को हिरासत में ले लिया गया था। बाद में शाम को उन्हें छोड़ दिया गया था।
    38 साल बाद भी नहीं हो पाया खुलासा
    इचागढ़ के तत्कालीन प्रखंड मुख्यालय तिरूलडीह में 21 अक्टूबर 1982 को हुए गोलीकांड का 38 साल बाद भी खुलासा नहीं हो पाया है। ऐसे इस घटना में मारे गये क्रांतिकारी छात्र युवा मोर्चा के दो सदस्य चौका के कुरली निवासी और सिंहभूम कॉलेज चांडिल के छात्र अजीत महतो एवं ईचागढ़ के आदरडीह गांव निवासी धनंजय महतो की याद में प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला शहादत दिवस महज औपचारिकता ही रह गया है।
    रिपोर्ट अब तक जारी नहीं की गयी
    इस घटना की जांच के लिए एक टीम गठित की गयी थी, जिसकी रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की गयी है। सरकार भी अब तक नहीं बता पायी है कि घटना के लिए जिम्मेदार कौन है? वक्त के साथ-साथ लोग मायूस होते गये लेकिन हर साल 21 अक्टूबर को शहादत दिवस मनाकर अजीत और धनंजय को याद करना नहीं भूले। धनंजय महतो के पुत्र उपेन महतो को सरकार ने नौकरी देने का वादा किया था, जो अब तक पूरा नहीं हुआ है।
    एफआइआर में मृतक का नाम ही गायब : इस गोलीकांड में उस समय जो एफआइआर दर्ज किया गया, उसमें शहीदों का नाम ही गायब है। इसकी भी जांच होनी है।

    The soul of the martyrs of Tiruldih is shaken
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