अब दक्षिण में शुरू हुई तीसरे मोर्चे की कवायद
पूस की कड़कड़ाती सर्दी के बाद अब सूर्य के उत्तरायण होने के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सियासी गर्मी भी बढ़ने लगी है। हालांकि इसके केंद्र में अभी उत्तरप्रदेश समेत पांच राज्यों के चुनाव हैं, लेकिन इसके समानांतर एक और सियासी घटनाक्रम ठोस आकार ग्रहण कर चुका है। यह घटनाक्रम है तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के बीच मुलाकात। इसी सप्ताह की शुरूआत में हैदराबाद से एक विशेष विमान अचानक पटना पहुंचा और तेजस्वी यादव तथा उनकी पार्टी के कतिपय नेता उससे हैदराबाद गये। देर रात ये सभी पटना लौट भी आये, लेकिन कुछ घंटे की इस यात्रा ने सियासी हलके में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट की चर्चा को बल दे दिया। दरअसल तेजस्वी और गैर-कांग्रेस. गैर-भाजपा दल मान चुके हैं कि 2024 के चुनाव में तीसरा मोर्चा बेहद जरूरी है। इसके नेतृत्व का सवाल ही सबसे बड़ा मुद्दा है, क्योंकि ये दल यह भी मान चुके हैं कि अखिलेश यादव या ममता बनर्जी का अधिकांश समय उनके अपने ही राज्य में बीत रहा है। इसलिए उनसे अधिक उम्मीद नहीं की जा सकती है। अरविंद केजरीवाल के नाम पर सहमति बन सकती है, लेकिन दक्षिण में उनकी गैर-हाजिरी एक बाधा है। इन तमाम संभावनाओं के बीच तेजस्वी-केसीआर की मुलाकात की सियासी संभावनाओं को टटोलती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह की खास रिपोर्ट।
इसी सप्ताह मंगलवार को पटना के जयप्रकाश अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक विशेष विमान उतरा। अपेक्षाकृत कम कोहरे के दिन विमान के लैंड होने के कुछ देर बाद राजद नेता तेजस्वी यादव और पार्टी के कुछ अन्य नेता हवाई अड्डे पहुंचे और उन्हें लेकर विमान उड़ गया। बताया जा रहा है कि यह विशेष विमान तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने राजद नेताओं के लिए पटना भेजा था। देर रात वही विमान एक बार फिर पटना लौटा और तेजस्वी समेत तमाम नेता उससे उतर कर अपने-अपने घर चले गये। कहीं कोई सुगबुगाहट या बयानबाजी नहीं हुई। अगले दिन दक्षिण के कुछ अखबारों ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और तेजस्वी की मुलाकात की खबर और तस्वीर प्रकाशित की, तब पता चला कि विशेष विमान की उस यात्रा का उद्देश्य कुछ और नहीं, सियासी था। इस मुलाकात ने सियासत में नयी हलचल मचा दी है। के चंद्रशेखर राव और तेजस्वी की इस मुलाकात को गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेस दलों को एक साथ लाने के प्रारंभिक प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है।
एक हफ्ते पहले ही चंद्रशेखर राव माकपा और भाकपा नेताओं से मिले थे और करीब एक महीने पहले वह तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से भी मिल चुके हैं। तेलंगाना में टीआरएस और भाजपा के बीच चल रहे राजनीतिक टकराव के दौरान इन सभी मुलाकातों और बैठकों के दौर को काफी अहम माना जा रहा है।
तीसरे मोर्चे की अटकलें
चंद्रशेखर राव की विपक्ष के नेताओं से लगातार मुलाकात से 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले संभावित तीसरे मोर्चे के गठन की अटकलों को एक बार फिर हवा मिल रही है। हालांकि टीआरएस के नेताओं का कहना है कि चंद्रशेखर राव की तेजस्वी यादव से मुलाकात के अभी कोई सियासी मायने नहीं निकालने चाहिए। फरवरी में पांच राज्यों में होने वाले चुनावों के परिणाम के बाद ही असल तस्वीर सामने आयेगी।
पांच राज्यों के चुनावी नतीजे का इंतजार
बताया जा रहा है कि टीआरएस नेतृत्व पांच राज्यों के चुनावी नतीजों का इंतजार कर रहा है, क्योंकि ये नतीजे विपक्षी पार्टियों को पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ लड़ाई के लिए धार तेज करने का रास्ता बना सकते हैं। गौर से देखें तो ममता बनर्जी तो अभी से इस लड़ाई में खुद को झोंक चुकी हैं और अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव के साथ-साथ शरद पवार भी इस मैदान में कूद गये हैं। टीआरएस सूत्रों ने बताया कि पांच राज्यों के चुनाव के बाद तीसरे मोर्चे को लेकर सक्रियता बहुत बढ़ने वाली है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर तीसरा मोर्चा बनाने के लिए माहौल अभी से बनाया जा रहा है।
राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका की तलाश
कहा जा रहा है कि तीसरे मोर्चे के गठन के नेतृत्व की कोशिश करने वाले चंद्रशेखर राव राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका की तलाश कर रहे हैं और वह कई राष्ट्रीय नेताओं के संपर्क में हैं। 2018 में तेलंगाना विधानसभा चुनाव में एकतरफा जीत के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी राष्ट्रीय राजनीति में इसी तरह की भूमिका खोज रहे थे और क्षेत्रीय पार्टियों से मिल कर गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेस गठबंधन बनाने का प्रयास कर रहे थे। केसीआर राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस और भाजपा के बिना एक संघीय मोर्चा बनाने की वकालत करते रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि दोनों दल देश का विकास करने में नाकाम रहे हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री राज्य से धान और चावल के कोटे की खरीद में विफल रहने के लिए बार-बार भाजपा सरकार की आलोचना कर रहे हैं। वहीं वह कांग्रेस और भाजपा से एक समान दूरी बना कर रखे हुए हैं।
तीसरा मोर्चा बनाने की अपनी इसी कवायद के तहत तब उन्होंने बीजू जनता दल के प्रमुख और ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की थी। तब उन्होंने कहा था कि तीसरा मोर्चा वक्त की मांग है। यह भी कहा गया कि उन्होंने बसपा प्रमुख मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव से भी मुलाकात करने का कार्यक्रम बनाया था और इन नेताओं से मुलाकात के लिए विशेष विमान भी तैयार कर लिया गया था।
सधे कदम बढ़ा रही टीआरएस
हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका को लेकर केसीआर ने कुछ नहीं कहा है, लेकिन जब उन्होंने पिछले साल 14 दिसबंर को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से मुलाकात की, तो उन्होंने इस बात के संकेत दिये। हालांकि इससे पहले चंद्रशेखर राव 2020 में भाजपा विरोधी मंच का एलान कर चुके हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि जिस कांग्रेस से उम्मीद की जा रही थी कि वह भाजपा के खिलाफ टक्कर लेने में कामयाब होगी, वह बुरी तरह फेल रही। इस कारण अब अन्य दलों पर भी इसका असर पड़ा है। ऐसे में टीआरएस इसकी शुरूआत करेगी।
जानकारों की मानें, तो अपनी इस भूमिका को निभाने से पहले चंद्रशेखर राव बहुत सधे हुए कदम बढ़ा रहे हैं और टीआरएस नेतृत्व इस साल भाजपा शासित गोवा के चुनाव में टीएमसी के प्रदर्शन पर भी नजर रख रही है। टीआरएस प्रमुख, टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी की तरह कांग्रेस के कमजोर पड़ने के कारण राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका तलाश रहे हैं। माना जा रहा है तीसरे मोर्चे का सहारा लेकर वे मोदी सरकार को घेरने की रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं।
पहले भी हो चुकी है कोशिश
हालांकि इससे पहले 2019 में बेंगलुरू में एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान भी भाजपा विरोधी नेताओं का एक साथ जमावड़ा देखा गया था और कहा गया था कि भाजपा के खिलाफ तीसरे मोर्चे की बात शुरू हुई है, लेकिन यह कोशिश सफल नहीं रही। अब केसीआर पांच राज्यों और खासतौर पर गोवा के चुनाव परिणाम का इंतजार इसलिए करना चाहते हैं, ताकि वह इस बात का अंदाजा लगा सकें कि ममता बनर्जी, जो विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर खुद की दावेदारी पेश कर रही हैं, वह इस चुनाव में कितनी मजबूत हुई हैं।
तीसरे मोर्चे की राह में कई चुनौतियां
यह सही है कि तीसरा मोर्चा बनाना चंद्रशेखर राव के लिए आसान नहीं होगा और इस राह में कई चुनौतियां हैं। सबसे बड़ा सवाल इसी बात को लेकर है कि इस मोर्चे का नेतृत्व कौन करेगा? एक तरफ ममता बनर्जी इसी कवायद में लगी हैं और दूसरी तरफ केसीआर। तो क्या मायावती, अखिलेश यादव, शरद पवार, नवीन पटनायक, स्टालिन और अरविंद केजरीवाल सरीखे नेता केसीआर का नेतृत्व स्वीकार करेंगे?
केसीआर का मानना है कि युवा पीढ़ी के नेता ही तीसरे मोेर्चे को ठोस आकार दे सकते हैं। उनका यह भी मानना है कि यूपी की सत्ता में भाजपा की वापसी के बाद तीसरे मोर्चे के नेतृत्व के लिए दक्षिण के ही किसी नेता को सामने आना होगा। इसमें केसीआर के सामने केवल स्टालिन हैं, जिनकी स्वीकार्यता उतनी नहीं है। इन तमाम संभावनाओं के बीच तेजस्वी की केसीआर से मुलाकात के बाद तीसरे मोर्चे की परिकल्पना कितना ठोस आकार लेती है, यह देखना बेहद दिलचस्प होगा।