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    Home»विशेष»अब भारत के सच्चे इतिहास को सामने लाने का वक्त
    विशेष

    अब भारत के सच्चे इतिहास को सामने लाने का वक्त

    azad sipahiBy azad sipahiMarch 20, 2022No Comments17 Mins Read
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    क्यों कश्मीर पंडितों के कत्लेआम को छिपाया गया, क्यों अकबर को महान और महाराणा प्रताप के शौर्य को दबाया गया

    इन दिनों पूरे देश और दुनिया में भी हिंदी की ऐतिहासिक फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ की खूब चर्चा हो रही है। कश्मीरी पंडितों के पलायन की त्रासदी के ऐतिहासिक तथ्यों को सिनेमा के पर्दे पर उतारना वाकई साहस का काम था और इसकी जितनी भी तारीफ की जाये, कम है। इस फिल्म के बहाने अब भारत में उन ऐतिहासिक तथ्यों को तर्क और प्रमाण की कसौटी पर कसा जाने लगा है, जो अब तक लिबरल्स और वामपंथी इतिहासकारों ने लिखा-बताया। इस प्रक्रिया में साफ पता चलता है कि भारत के इतिहास का बहुत सारा पक्ष कभी सामने लाया ही नहीं गया, जैसे कश्मीर में पंडितों का नरसंहार और उनका विस्थापन। हर समाज को अपने अतीत पर गर्व करने का अधिकार होता है, लेकिन भारत के साथ विडंबना यह है कि उसके अतीत के सभी पक्षों को कभी सामने रखने की कोशिश ही नहीं की गयी। इसका परिणाम यह हुआ कि आधे-अधूरे और अपूर्ण इतिहास को जान कर भारतीय समाज न अपने अतीत पर गर्व करने लायक बचा और न ही भविष्य को गढ़ने के लिए उसके पास कुछ रह गया। लेकिन ‘कश्मीर फाइल्स’ के बहाने एक बार फिर देश में अपने गौरवशाली इतिहास को सामने लाने की बहस चल पड़ी है, जिसकी एक झलक हाल में यूपी समेत पांच राज्यों में हुए चुनावों में दिख चुकी है। अब उम्मीद की जा रही है कि 2024 का आम चुनाव इसी ऐतिहासिकता और गौरवशाली अतीत को पुनर्स्थापित करने के मुद्दे पर लड़ा जायेगा। इस संभावना को टटोलती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह की खास रिपोर्ट।

    छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी, लेकिन किस बात को छोड़ें और कौन सी बात पुरानी है, उसे जानना-समझना भी बहुत जरूरी है। आखिर कब तक भारत के इतिहास को भारत से छिपाया जायेगा। आखिर कब तक भारत के जख्मों को ढंकने की साजिश रची जाती रहेगी। आखिर कब तक आजाद भारत के कश्मीर में घटी कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार की घटना को इतिहास के पन्नों से दूर रखा जायेगा। आखिर कब किताबों में दर्ज होगी अयोध्या में घटी कार सेवकों के नरसंहार की कहानी। आखिर कब पढ़ाया जायेगा राम मंदिर, काशी और मथुरा के ध्वस्त होने की कहानी। आखिर कब तक भारत के नौजवानों से और आनेवाली पीढ़ियों से भारत के जख्मों को छिपाया जायेगा। आखिर कब तक तथाकथित सेक्युलर बुद्विजीवियों द्वारा लिखे गये मनगढ़ंत इतिहास को, कहानियों को भारत के युवाओं को परोसा जायेगा। आखिर कब स्कूल की परीक्षाओं में पूछा जायेगा कि कश्मीरी पंडितों का नरसंहार कब हुआ था। कब पूछा जायेगा कि भारत की आजादी के एक दिन पहले 14 अगस्त 1947 को क्या हुआ था। कब पूछा जायेगा कि कब हुआ था आजाद भारत में गोली कांड, जहां राम मंदिर आंदोलन में हिस्सा लेने जा रहे अनगिनत कारसेवकों का नरसंहार हुआ था।

    लेकिन अब वक्त आ गया है कि मां भारती के जख्मों को देश के सामने लाया जाये। किस प्रकार से उन जख्मों को देश के लोगों से दूर रखा गया, उसे भी बताया जाये। किसने दूर रखा, यह भी बताया जाये। क्यों दूर रखा, यह भी बताया जाये, क्योंकि अब बतानेवाले भी हैं और सुननेवाले भी। जिस प्रकार से भारत की जनता के आंख-कान-नाक-मुंह को ढंक दिया गया था, आज उस पर से पर्दा उठाने का वक्त आ गया है। भारत को आजाद हुए 75 साल हो गये, लेकिन आज भी भारत के जख्म आजाद नहीं हुए हैं। जिस प्रकार से तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवियों द्वारा भारत के युवाओं को दिग्भ्रमित किया गया, जिस प्रकार से भारत के युवाओं का ब्रेन वॉश किया गया, जिस प्रकार से भारत के युवाओं को दिशाहीन किया गया, जिस प्रकार से भारत के युवाओं को सशक्त होने से रोका गया, वह एक निर्धारित षडयंत्र की पोल खोलता है। जैसे ही नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में केंद्र की सत्ता संभाली और भारत के नेतृत्व को एक अलग दिशा दी, तभी युवाओं को लगने लगा कि अब परिवर्तन की बारी है। परिवर्तन न्याय का। परिवर्तन सोच का। परिवर्तन जख्मों को देखने और जानने का। परिवर्तन सच्चाई को जानने का। परिवर्तन खुद के वजूद को तलाशने का। परिवर्तन उन माताओं की कराह को सुनने का, जिनके साथ कश्मीर में गैंग रेप हुआ था। परिवर्तन उन पिताओं की तड़प को समझने का, जिनकी बच्चियों के साथ उनके सामने ही बलात्कार कर उन्हें काट दिया गया था। जिनके शरीर ही नहीं, आत्मा तक पर घाव कर दिया गया हो। परिवर्तन उन लाखों हिंदुओं के दर्द को समझने का, जिन्हें उनके ही घरों से रातों-रात बेघर कर दिया गया । परिवर्तन उन हजारों कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की घटना को बेधड़क दुनिया के सामने रखने का। इसी परिवर्तन का एक जीता-जागता उदाहरण है, ‘द कश्मीर फाइल्स’। ‘द कश्मीर फाइल्स’ सिर्फ एक फिल्म नहीं है, एक चीख है कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार की। एक जवाब है कि अब इस देश में मां भारती पर हुए जुल्मों की कहानी, भारत के इतिहास के साथ जो छेड़छाड़ हुई है, उसे जनता के सामने रखा जायेगा। अब इतिहास दबेगा नहीं, इतिहास चिल्लायेगा। दहाड़ेगा भी। विवेक रंजन अग्निहोत्री ने जिस साहस, सच्चाई और निष्ठा के साथ ‘कश्मीर फाइल्स’ बनायी है, उन्हें सलाम। उन्होंने एक मुहिम शुरू की है, देश की सच्चाई देश के सामने रखने की।

    यह मुहिम है कश्मीरी हिंदुओं के उस दर्द को सामने लाने की, जिसे 32 सालों तक 130 करोड़ भारतीयों से दूर रखा गया। परिवर्तन उन राजनीतिक पार्टियों को सबक सिखाने का, जिसने उस वक्त हर सरकारी तंत्र के हाथ-पांव बांध दिये। सड़कों पर से पुलिस गायब रही। क्या हुआ था 19 ज ो दिन पहले, यह भी जानना जरूरी है। पुलिस कमिश्नर ने वहां के मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला को कहा था कि गांवों में आतंकियों ने शरण ली हुई है। सीआरपीएफ को गांव में ही रखा जाये। शहर में न लाया जाये। लेकिन सीआरपीएफ को 17 जनवरी को शहर बुला लिया जाता है। ठीक 18 जनवरी को फारूख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देते हैं। अब सीआरपीएफ को आदेश देनेवाला कोई नहीं बचा, क्योंकि वहां कोई सरकार ही नहीं रही। न कोई पुलिस कमिश्नर रहा, न कोई लेफ्टिनेंट गवर्नर। फिर 19 जनवरी की सर्द काली रात को आतंकियों ने कश्मीर में आतंक का जो नंगा नाच किया, आज 32 साल बाद भारत की 130 करोड़ की जनता समझ रही है, उस जख्म को महसूस कर रही है। उस रात कश्मीर की मस्जिदों से इस्लामिक रिपब्लिक आॅफ पकिस्तान के नारे लगने शुरू हुए। ‘यहां क्या चलेगा, निजाम-ए-मुस्तफा’, ‘कश्मीर में अगर रहना है, अल्लाहू अकबर कहना है’, ‘असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान’, मतलब हमें पाकिस्तान चाहिए और हिंदू औरतें भी मगर अपने मर्दों के बिना। यह संदेश था कश्मीर में रहनेवाले हिंदू पंडितों के लिए, कश्मीरी पंडितों के लिए।

    भारत के एक कोने में कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार हो रहा था। उस वक़्त 90 करोड़ का यह देश इस खबर से अनजान था। एक तरफ भारत सो रहा था, दूसरी तरफ कश्मीर सुलग रहा था। कश्मीरी हिंदुओं की माताओं-बहनों के साथ बलात्कार हो रहा था। कश्मीरी हिंदुओं के घरों के सामने उनके पड़ोसियों का सिर धड़ से अलग कर लटकाया जा रहा था। उन्हें घर से बेघर किया जा रहा था। अपने ही देश में उन्हें शरणार्थियों की तरह रहने को मजबूर किया गया। कोई बेटी अपने पिता की नंगी लाश को देखने को मजबूर थी, क्योंकि उसे ही अपने पिता का क्रिया-कर्म भी करना था। किसी की मां को उसकी ही संतान के सामने बलात्कार कर गोली मार दी गयी। यहां तक कि एक दो साल के मासूम को भी मारा गया, क्योंकि उसके माता-पिता की गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी और वह बच्चा रो रहा था।

    भारत की सोच में, समझ में अब परिवर्तन आना चाहिए। परिवर्तन उन शक्तियों को सबक सिखाने का, जिसने भारत के इतिहास को भारत से छीना। परिवर्तन इस भयावह कुकृत्य को दुनिया के सामने लाने का, जो उस वक्त मीडिया घरानों द्वारा, सरकार द्वारा और तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा छिपाया जा रहा था। कहां मर गये थे उस वक्त मानवाधिकार वाले। क्या कश्मीरी हिंदुओं का कोई मानवाधिकार नहीं था।
    एक तरफ 1984 के दंगों और 1992 में बाबरी विध्वंस को अंतरराष्ट्रीय कवरेज मिलता है, वहीं 1990 की दो घटनाओं को मीडिया से दूर रखा जाता है। 19 जनवरी 1990 को कश्मीरी पंडितों का नरसंहार, तो दूसरी तरफ दो नवंबर 1990 को अयोध्या में गोलीकांड। इन सभी घटनाओं को इतिहास की किताबों में जगह मिलनी ही चाहिए। आनेवाली पीढ़ियों को भी पता होना चाहिए कि 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक भारत में लगे आपातकाल के वक्त क्या हुआ था। आखिर इन घटनाक्रमों को क्यों किताबों में जगह नहीं मिलती है। आखिर भारत में लगी इमरजेंसी पर अब तक फिल्म क्यों नहीं बन पायी। 14 अगस्त 1947 को जब भारत का विभाजन हुआ था, उन सभी दृश्यों को शब्दों ओर चलचित्र के माध्यम से लोगों तक क्यों नहीं पेश किया गया। क्यों नहीं बताया गया कि कैसे पाकिस्तान से लौट रहे लाखों हिंदुओं का कत्लेआम हुआ। कैसे अनगिनत माताओं और बहनों के साथ बलात्कार हुआ। कैसे इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान में हिंदुओं की जनसंख्या खत्म होने के कगार पर है और भारत में मुसलमान उतना ही सुरक्षित है, जितना हिंदू।

    14 अगस्त 2021 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट भी किया था कि देश के बंटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता। नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गंवानी पड़ी। उन लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने ‘पार्टीशन हॉरर्स रिमेंबरेंस डे’ का हैशटैग भी उसे किया था। जैसे ही प्रधानमंत्री ने इस हैशटैग का इस्तेमाल किया, तो बहुतों को इससे कष्ट होने लगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी कि जब हमने भारत विभाजन के दिन 14 अगस्त को ‘हॉरर डे’ के रूप में याद करने का तय किया, तो कई लोगों को बड़ी मुसीबत हो गयी। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि आज ‘कश्मीर फाइल्स’ नाम की फिल्म लोगों के सामने है, तो अभिव्यक्ति की आजादी के झंडे लेकर घूमनेवाली पूरी जमात बौखला गयी है।

    आखिर भारत में हिंदुओं की बात क्यों नहीं हो। उन पर हुए अत्याचारों की बात क्यों नहीं हो। क्यों हिंदुओं पर हुए अन्याय की घटनाओं को दबाया जाता है। क्यों यह प्रचारित किया जाता रहा है कि हिंदुओं में एकता नहीं, क्योंकि जब-जब हिंदू अलग हुआ है, देश गुलाम हुआ है। जब-जब हिंदू एकता सशक्त हुई, उसे हमेशा ब्राह्मण, राजपूत, जाट, गुज्जर, दलित की श्रेणी में बांट दिया जाता रहा। हिंदू आपस में लड़ते रहे और राज करनेवाले राज करते रहे। कभी सोचा है कि अगर हिंदू इकट्ठा हो गये, तो क्या होगा। जरा सोचिए कि अगर हिंदू एकता की बात होने लग जाये, तो क्या होगा। तब वही होगा कि जो तथाकथित दरबारी सेक्युलरिस्ट हैं, उनकी जमीन हिल जायेगी, उनके आकाओं की खोखली जड़ें दिखायी देने लगेंगी।

    आज यह विचारणीय है कि इतिहास की किताबों में क्यों अकबर को महान बताया जाता है और महाराणा प्रताप के शौर्य को दबाया जाता है। अकबर, जिसने अपने सैनिकों द्वारा 30 हजार निर्दोष हिंदुओं का कत्लेआम करवा दिया था। यह नरसंहार उसे कौन सी महानता की उपाधि देता है। स्कूलों में हमें बाबर और उसके पूरे खानदान की कहानी पढ़ायी गयी। इन किताबों में बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब जैसे मुगल शासकों का बखान किया गया, लेकिन इन किताबों में कितने ही हिंदू राजाओं के बारे में जिक्र किया गया। और अगर जिक्र भी किया गया, तो आधी-अधूरी जानकारी ही क्यों। क्यों नहीं पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, शिवाजी महाराज की शौर्य गाथाओं से युवाओं को परिचित करवाया गया। अगर मुगलों को राष्ट्र निर्माता बताया गया, तब मौर्य और गुप्त क्या कर रहे थे। क्यों नहीं मौर्य, मराठा, राजपूत, अहोम, चोल, विजयनगर और गुप्त साम्राज्य के बारे में विस्तार से जिक्र किया गया।

    आज उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अगर राजपूत होने पर गर्व करते हैं, तो उस पर भी विवाद हो जाता है। आखिर कोई भी व्यक्ति अपनी जाति या धर्म पर गर्व करता है, तो उसमें क्या बुराई है। योगी ने साफ कहा, मेरा क्षत्रिय कुल में जन्म हुआ है, तो इसमें कौन सी बुरी बात है। सच्चा क्षत्रिय वही है, जो छत्र बन कर गरीब, दीन-दुखियों की रक्षा के लिए खुद को होम कर ले। अजय सिंह बिष्ट मेरा जन्म का नाम था। संन्यास के बाद मेरे गुरु ने योगी आदित्यनाथ नाम दिया। मुझे गर्व है कि मैं उत्तम कुल में पैदा हुआ हूं। मुझे समाज और देश की जनता की सेवा करने का सौभाग्य मिला है। जिस व्यक्ति ने जन कल्याण के लिए अपना घर-बार छोड़ दिया हो, जिस व्यक्ति ने खुद का पिंडदान कर संन्यास का रास्ता अपना लिया हो, उसे भी तथाकथित सेक्युलरिस्ट सवालों के कठघरे में खड़ा कर देते हैं।

    देश में ऐसी भी राजनीतिक पार्टियां हैं, राजनेता हैं, जिन्होंने देश की सेना पर ही सवाल खड़े कर दिये। देश के जवानों से उनके शौर्य का सबूत तक मांग डाला। यह तब हुआ, जब भारत ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक की। यह नया भारत है, शक्तिशाली भारत है, इसे मानने में उन्हें क्यों तकलीफ होती है, क्योंकि भारत की कमान नरेंद्र मोदी के हाथ में है। जो व्यक्ति भारत को विश्व पटल पर मजबूती से प्रस्तुत कर रहा हो, जिसके एक अनुरोध पर यूके्रन में फंसे भारतीय छात्रों को वापस लाने के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध में युद्ध विराम लग जाता हो, जिसकी वैज्ञानिकों की सेना ने कोरोना जैसी महामारी से लड़ने के लिए हथियार के रूप में वैक्सीन का निर्माण कर दिया हो और सिर्फ निर्माण ही नहीं, युद्ध स्तर पर लगभग देश के हर नागरिक को वैक्सीनेट भी कर दिया हो, क्या इस बात पर विरोधियों को विश्वास नहीं होता। यह नया भारत है। नया भारत दुश्मनों की आंखों में आंख डाल कर बात करता है। चाहे वह कोरोना हो या पकिस्तान हो या चीन।

    जब कश्मीर से धारा 370 हटी, तो लगा कि वहां के पारंपरिक राजनेताओं की चूलें हिल गयी हों। जो अब तक कश्मीर में डर फैला रहे थे, अचानक उन्हें सांप सूंघ गया। जिन्होंने कश्मीर को अपनी बपौती समझ ली थी, उनके साम्राज्य की दीवारें ढहने लगीं, क्योंकि अब वहां एक राष्ट्र, एक विधान और एक निशान का बोलबाला होगा। राज्य की कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी, जो अब तक मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी होती थी, वह सीधे केंद्र सरकार के अधीन होगी। अब वहां वही कानून चलेगा, जो संसद में पास होगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भी अमल होगा। धारा 370 को हटाने का आॅपरेशन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में गृह मंत्री अमित शाह लीड कर रहे थे।
    आज लोग बड़े गर्व से कह रहे हैं कि उत्तरप्रदेश की जीत भारत के इतिहास को संजोये रखने की जीत है। उत्तरप्रदेश की जीत भगवान राम के दरबार के फिर से सजने का प्रमाण है। भव्य राम मंदिर बनने का प्रमाण है, नरेंद्र मोदी द्वारा काशी विश्वनाथ धाम के पुनर्निर्माण का आशीर्वाद है। उत्तरप्रदेश की जीत भारत में हिंदुत्व की ताकत की जीत है। यह जीत जनता के हित में लिये गये फैसलों की जीत है। यह जीत महिलाओं की सुरक्षा की जीत है, उनके सशक्तिकरण की जीत है। यह जीत दंगाइयों पर लगाम लगाने की जीत है। यह जीत कानून-व्यवस्था को नियंत्रित रखने की जीत है। यह जीत माफियाओं के मंसूबों पर बुलडोजर चलाने की जीत है। यह जीत 2024 में होनेवाले लोकसभा चुनाव का बिगुल है, जिसके नायक होंगे मोदी, योगी और शाह।

    लेकिन अब वक्त आ गया है कि मां भारती के जख्मों को देश के सामने लाया जाये। किस प्रकार से उन जख्मों को देश के लोगों से दूर रखा गया, उसे भी बताया जाये। किसने दूर रखा, यह भी बताया जाये। क्यों दूर रखा, यह भी बताया जाये। क्योंकि अब बतानेवाले भी हैं और सुननेवाले भी। जिस प्रकार से भारत की जनता के आंख-कान-नाक-मुंह को ढंक दिया गया था, आज उस पर से पर्दा उठाने का वक्त आ गया है। भारत को आजाद हुए 75 साल हो गये, लेकिन आज भी भारत के जख्म आजाद नहीं हुए हैं। जिस प्रकार से तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवियों द्वारा भारत के युवाओं को दिग्भ्रमित किया गया, जिस प्रकार से भारत के युवाओं का ब्रेन वॉश किया गया, जिस प्रकार से भारत के युवाओं को दिशाहीन किया गया, जिस प्रकार से भारत के युवाओं को सशक्त होने से रोका गया, वह एक निर्धारित षडयंत्र की पोल खोलती है।

    देश में ऐसी भी राजनीतिक पार्टियां हैं, राजनेता हैं, जिन्होंने देश की सेना पर ही सवाल खड़े कर दिये। देश के जवानों से उनके शौर्य का सबूत तक मांग डाला। यह तब हुआ, जब भारत ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक की। यह नया भारत है, शक्तिशाली भारत है, इसे मानने में उन्हें क्यों तकलीफ होती है, क्योंकि भारत की कमान नरेंद्र मोदी के हाथ में है। जो व्यक्ति भारत को विश्व पटल पर मजबूती से प्रस्तुत कर रहा हो, जिसके एक अनुरोध पर यूके्रन में फंसे भारतीय छात्रों को वापस लाने के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध में युद्ध विराम लग जाता हो, जिसकी वैज्ञानिकों की सेना ने कोरोना जैसी महामारी से लड़ने के लिए हथियार के रूप में वैक्सीन का निर्माण कर दिया हो और सिर्फ निर्माण ही नहीं, युद्ध स्तर पर लगभग देश के हर नागरिक को वैक्सीनेट भी कर दिया हो, क्या इस बात पर विरोधियों को विश्वास नहीं होता। यह नया भारत है। नया भारत दुश्मनों की आंखों में आंख डाल कर बात करता है। चाहे वह कोरोना हो या पकिस्तान हो या चीन।

    14 अगस्त 2021 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट भी किया था कि देश के बंटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता। नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गंवानी पड़ी। उन लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने ‘पार्टीशन हॉरर्स रिमेंबरेंस डे’ का हैशटैग भी उसे किया था। जैसे ही प्रधानमंत्री ने इस हैशटैग का इस्तेमाल किया, तो बहुतों को इससे कष्ट होने लगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी कि जब हमने भारत विभाजन के दिन 14 अगस्त को ‘हॉरर डे’ के रूप में याद करने का तय किया, तो कई लोगों को बड़ी मुसीबत हो गयी। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि आज ‘कश्मीर फाइल्स’ नाम की फिल्म लोगों के सामने है, तो अभिव्यक्ति की आजादी के झंडे लेकर घूमनेवाली पूरी जमात बौखला गयी है।

    भारत को आजाद हुए 75 साल हो गये, लेकिन आज भी भारत के जख्म आजाद नहीं हुए हैं। जिस प्रकार से तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवियों द्वारा भारत के युवाओं को दिग्भ्रमित किया गया, जिस प्रकार से भारत के युवाओं का ब्रेन वॉश किया गया, जिस प्रकार से भारत के युवाओं को दिशाहीन किया गया, जिस प्रकार से भारत के युवाओं को सशक्त होने से रोका गया, वह एक निर्धारित षडयंत्र की पोल खोलती है। जैसे ही नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में केंद्र की सत्ता संभाली और भारत के नेतृत्व को एक अलग दिशा दी, तभी युवाओं को लगने लगा कि अब परिवर्तन की बारी है। परिवर्तन न्याय का। परिवर्तन सोच का। परिवर्तन जख्मों को देखने और जानने का। परिवर्तन सच्चाई को जानने का। परिवर्तन खुद के वजूद को तलाशने का। परिवर्तन उन माताओं की कराह को सुनने का, जिनके साथ कश्मीर में गैंग रेप हुआ था। परिवर्तन उन पिताओं की तड़प को समझने का, जिनकी बच्चियों के साथ उनके सामने ही बलात्कार कर उन्हें काट दिया गया था। जिनके शरीर ही नहीं, आत्मा तक पर घाव कर दिया गया हो। परिवर्तन उन लाखों हिंदुओं के दर्द को समझने का, जिन्हें उनके ही घरों से रातों-रात बेघर कर दिया गया । परिवर्तन उन हजारों कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की घटना को बेधड़क दुनिया के सामने रखने का। इसी परिवर्तन का एक जीता-जागता उदाहरण है, ‘द कश्मीर फाइल्स’। ‘द कश्मीर फाइल्स’ सिर्फ एक फिल्म नहीं है, एक चीख है कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार का। एक जवाब है कि अब इस देश में मां भारती पर हुए जुल्मों की कहानी, भारत के इतिहास के साथ जो छेड़छाड़ हुई है, उसे जनता के सामने रखा जायेगा। अब इतिहास दबेगा नहीं , इतिहास चिल्लायेगा। दहाड़ेगा भी। विवेक रंजन अग्निहोत्री ने जिस साहस, सच्चाई और निष्ठा के साथ ‘कश्मीर फाइल्स’ बनायी है, उन्हें सलाम है। उन्होंने एक मुहिम शुरू की है, देश की सच्चाई देश के सामने रखने की।

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