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    Home»Breaking News»INTERVIEW : बाबूलाल आप कहां हैं, झामुमो आपको ढूंढ़ रहा है
    Breaking News

    INTERVIEW : बाबूलाल आप कहां हैं, झामुमो आपको ढूंढ़ रहा है

    azad sipahiBy azad sipahiMay 12, 2022No Comments21 Mins Read
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    • बोले बाबूलाल, आदिवासी सिर्फ हेमंत सोरेन ही नहीं, बाबूलाल और अर्जुन मुंडा भी हैं
    • 2002 में मैंने ही शिबू सोरेन को राज्यसभा भेजा था, वह भाजपा के साथ तो नहीं थे
    • जैक खत्म होने के बाद बार-बार अफसर शिबू सोरेन की कोठी खाली कराने के लिए फाइल लेकर आते थे, हमने अपने पीएस आरके श्रीवास्तव से कहा, फाइल आलमारी में रख दो, ताकि कोई गलती से भी साइन नहीं करा सके

    झारखंड की राजनीतिक गर्मी ने तापमान नापनेवाले यंत्र को भी गरम कर दिया है। नौ मई की शाम झामुमो के महासचिव सह राष्टÑीय प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने प्रेस कांफ्रेंस में यह कह कर सबको चौंका दिया कि बाबूलाल मरांडी ट्रेसलेस हो गये हैं। उन्होंने रघुवर दास के संबंध में भी कहा कि वह भी कहीं गुम हो गये हैं। अखबार में खबर प्रकाशित होने के बाद आजाद सिपाही संवाददाता बाबूलाल मरांडी को ढूंढ़ते हुए मोरहाबादी स्थित उनके सरकारी आवास पर जा धमका। सोमवार को समय रहा होगा करीब 11 बजे का। बाबूलाल मरांडी आवास के पोर्टिको में ही बैठे हुए थे। शोभा यादव और चार-पांच और भाजपा नेताओं के साथ बातचीत कर रहे थे। मैं उनके पास गया और कहा कि हमें आपसे कुछ सवालों के जवाब चाहिए। वह वहां से उठे और मुझे अपनी केबिन में ले गये। केबिन में उन्होंने एसी आॅन करने की कोशिश की। वह आॅन नहीं हो रहा थी। दो-तीन बार स्विच को ऊपर-नीचे किया। बाद में उन्होंने रिमोट को देखा, तो वोल्टेज सौ के आसपास ही था, जबकि एसी के लिए दो सौ से ऊपर होना चाहिए। मैंने कहा कि छोड़िये एसी की क्या जरूरत! उन्होंने कहा कि थोड़ी देर बाद कमरे में उमस हो जायेगी। दो-चार मिनट इधर-उधर की बातें। फिर उनका मूड भांप कर जैसे ही मैंने झारखंड में चल रहे राजनीतिक हाइवोल्टेज ड्रामे के बारे में सवाल दागना शुरू किया, वैसे ही एसी चल पड़ा। उमस भरा कमरा अब ठंडा हो रहा था। मैंने उनसे कहा कि मैं जो सवाल पूछना चाहता हूं, उसमें कुछ सवाल मेरे हैं, कुछ झामुमो के हैं और कुछ झारखंड की राजनीति में तैर रहे हैं। सहमति मिलते ही संवाददाता ने उनसे पहला सवाल दागा। आप भी पढ़िये आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह के सवाल और बाबूलाल मरांडी के जवाब।

    सवाल: दो दिन से आप कहां थे। झामुमो आपको ढूंढ़ रहा था। कह रहा था, आप ट्रेसलेस हो गये हैं?
    सवाल सुनते ही उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान, फिर आश्चर्य के भाव। बोले- देखिये झारखंड में झामुमो की ही सरकार है और उनके पास पूरा सूचना तंत्र है। मुझे लगता है कि उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं थी। सचमुच में अगर झामुमो के नेता को मुझसे संपर्क करना होता, तो वह आसानी से मुझे ढूंढ़ निकाल सकते थे। मेरा मोबाइल तो 24 घंटे आॅन ही रहता है। इन दो दिनों में दो ही समय मेरा मोबाइल आॅफ था। जब मैं शुक्रवार को फ्लाइट में चढ़ा था, और दूसरा कल जब मैं हवाई जहाज से वापस लौट रहा था। इस दौरान दोनों बार एक-एक घंटा मेरा मोबाइल स्विच आॅफ था।

    मैंने उन्हें टोकते हुए कहा कि इस बीच अगर कोई आपसे कुछ पूछता, तो जवाब देने के लिए आप मौजूद थे? उन्होंने कहा, हां मैं बिल्कुल मौजूद था और हूं हर सवाल का जवाब देने के लिए। इस दरम्यान जिन लोगों ने मुझसे बात करनी चाही, उनसे मेरी बात हुई। जैसे ही मैं झारखंड पहुंचा और यहां के अखबारों पर मेरी नजर पड़ी, तो देखा कि झामुमो की नजर में मैं गायब हो गया हूं। मुझे आश्चर्य लगा कि सत्ता में बैठे हुए सूचना तंत्र से लैस लोग हमें नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं, तो ये लोग सत्ता कैसे चला रहे हैं।

    सवाल: जब आप मुख्यमंत्री थे, तब आपने कहा था कि भ्रष्टाचार और घूसखोरी को देख कर आपको रात में नींद नहीं आती, क्या आज आपको नींद आ रही है?
    जवाब: स्वाभाविक है नहीं। चूंकि शुरू से ही हम भ्रष्टाचार को मिटाने का संकल्प लेकर राजनीति में उतरे, जाहिर सी बात है कि मेरे जैसे व्यक्ति को नींद नहीं आयेगी। जिस समय हम राजनीति में आये, उस समय झारखंड एकीकृत बिहार का हिस्सा था। आप सभी को याद होगा कि पहले बिहार में किस प्रकार से भ्रष्टाचार चरम पर था। किस प्रकार शासन को हांका जा रहा था। चारा घोटाले से लेकर कई घोटाले उजागर हो रहे थे। उसके बाद झारखंड अलग राज्य बना। हम सब लोग नारा देते थे कि भ्रष्टाचार को मिटाना है। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद मैं राज्य का पहला मुख्यमंत्री बना। उस वक़्त भी शिकायतें आ रही थीं कि यहां भ्रष्टाचार है, यहां ऐसे पैसा लिया जा रहा है, वैसे लिया जा रहा है, तो चिंता होना स्वाभाविक है। अगर कोई व्यक्ति चिंतित नहीं हो, तब तो मुझे लगता है कि वह सेंसलेस हो गया है। कोई भी सजीव इंसान जो करप्शन के खिलाफ लड़ाई लड़ कर सत्ता तक पहुंचता है और उसके बाद उसे करप्शन सुनाई देता है, तो उसे चिंतित होना, विचलित होना स्वाभाविक है। आज भी मैं चारों तरफ जब भ्रष्टाचार के किस्से सुनता हूं, तो मैं चिंतित हो जाता हूं कि झारखंड में ऐसा क्यों हो रहा। पूर्व में बिहार में करप्शन के बारे में खूब खबरें आती थीं। चारा घोटाला ने देश में तहलका मचा दिया। लोगों की जुबान पर था कि बिहार की सत्ता लालू यादव के साला चला रहे हैं। ट्रांसफर-पोस्टिंग में पैसे लिये जा रहे हैं। फिर वहां की सत्ता बदली। आज नीतीश कुमार लंबे समय से बिहार के मुख्यमंत्री हैं। ठीक है उनके कई विचारों से हम-आप सहमत हो सकते हैं, नहीं भी हो सकते हैं। उनके काम करने के तरीकों पर कई बार सहमति-असहमति जरूर हो सकती है, लेकिन आज कोई यह नहीं कहता है कि नीतीश का बेटा शासन चला रहा है, या उनके ससुराल वाले शासन चला रहे हैं। या उनके इर्द-गिर्द चार से पांच लोग ही शासन चला रहे हैं। ऐसा कहीं आपको सुनने को नहीं मिलता। लेकिन वही जब लालू यादव की सरकार थी, तब यह सर्वत्र सुनाई देता था। आज वही स्थति झारखंड की है। आप सुनेंगे कि कौन लोग सत्ता को चला रहे हैं। किस प्रकार से चला रहे हैं। यह सब जब सुनने को आता है, तो बड़ा आश्चर्य होता है। आज मैं वही देखता हूं कि प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र भाई मोदी कई सालों तक गुजरात के मुख्यमंत्री और आठ सालों से वह देश की कमान संभाल रहे हैं। तो उनके बारे में भी कभी किसी ने नहीं कहा कि उनके इर्द-गिर्द के लोग सरकार चला रहे हैं। लेकिन यहां झारखंड में आज तो सर्वत्र सुनाई पड़ता है कि सत्ता के कई केंद्र हैं, सब दिखता है। यह सब देख कर सवाभाविक रूप से बड़ी चिंता होती है।

    सवाल: झारखंड में अभी एक नाम की गूंज है। बच्चे-बच्चे की जुबान पर यह नाम छाया हुआ है। वह नाम है पूजा सिंघल का, क्या कहना चाहेंगे ?
    जवाब: देखिय, कहना क्या चाहेंगे, आप खुद ही बता रहे हैं कि एक नाम की गूंज है। पिछले कुछ दिनों से मैं भी देख रहा हूं कि अखबारों में, टेलीविजन में या सोशल मीडिया में हमें लगता है कि उस नाम को छोड़ कर और कोई दूसरा नाम प्रमुखता से नहीं दिखाई पड़ रहा है। स्वाभाविक है, जब उनके कई ठिकानों पर इडी ने छापा मारा, राज्य से बाहर बिहार भी, दिल्ली भी, कोलकाता भी और भी कई राज्यों में तो गूंज तो होगी ही। उनके सीए के घर से जो करोड़ों रुपये बरामद हुए हैं, यह तो एक पार्ट है। लेकिन इसी बीच हमने जब इस कार्रवाई के संबंध में मुख्यमंत्री का यह बयान सुना कि यह गीदड़भभकी है, तो यह मेरी समझ से परे है। मैं समझ नहीं पाया कि मुख्यमंत्री ने आखिर ऐसा क्यों कहा। इडी ने पूजा सिंघल और उनके करीबियों के यहां छापा मारा, करोड़ों रुपये और डेढ़ सौ करोड़ से ज्यादा के कागजात मिले, उसके बाद यह कहना कि हम गीदड़भभकी से नहीं डरते हैं, मैं स्तब्ध हो गया। उसके बाद दो दिनों से मैं देख रहा हूं कि अखबारों में बयानबाजी ही नहीं, बल्कि झामुमो सड़कों पर उतर कर इडी और केंद्र सरकार के खिलाफ जुलूस-प्रदर्शन कर रहा है, तो मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि छापा कहीं और मारा है और दर्द कहीं और हो रहा है।

    सवाल: सत्ता पक्ष के लोगों ने भाजपा के आॅफिस का घेराव किया, आपका घर घेरा, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का घर घेरा, यह आरोप लगाया कि भाजपा सरकार को अस्थिर करना चाहती है, इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?
    जवाब: यह बिल्कुल मेरी समझ से परे है। मैंने तो कई मित्रों से पूछा कि ऐसा क्यों हुआ। छापा इडी ने मारा और छापा मारा गया है पूजा सिंघल के ठिकानों पर, पैसा उसके ठिकानो से मिला और सड़कों पर जुलूस-प्रदर्शन झामुमो के लोग कर रहे हैं। इससे तो यही माना जायेगा न कि इन्हीं लोगों का पैसा उनके ठिकानों पर रहा होगा।

    सवाल: पूजा सिंघल के ऊपर पहले भी कई बार भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जब वह खूंटी और चतरा की डीसी थीं। रघुवर दास की सरकार में भी आरोप लगे, मोमेंटम झारखंड में भी आरोप लगे, लेकिन कार्रवाई तो दूर, उनको क्लीन चिट दे दी गयी। आपको नहीं लगता कि पूजा सिंघल जैसी अधिकारी पर यह कार्रवाई पहले ही हो जानी चाहिए थी?
    जवाब: देखिये, इडी या कोई भी बड़ी एजेंसी जब कार्रवाई करती है, तो सब कुछ छानबीन कर ही करती हंै। तुरंत आरोप लगा और तुरंत कार्रवाई हो गयी, ऐसा बड़ी एजेंसियां नहीं करतीं। वे सबूतों के आधार पर ही कार्रवाई करती हैं। अगर इतने ठिकानो पर एक साथ छापामारी हुई है, तो इतने ठिकानों के बारे में पता करने में भी तो समय लगता है। इडी सिर्फ आरोप पर कार्रवाई नहीं करती, पहले सबूतों को जुटाती है, फिर अपना एक्शन करती है। इसमें समय लगता ही है।

    सवाल: जेएमएम का खुला आरोप है कि हेमंत सोरेन एक आदिवासी मुख्यमंत्री हैं, इसलिए एक षडयंत्र के तहत भाजपा उन्हें अस्थिर करने की कोशिश कर रही है।
    जवाब: बाबूलाल हंसते हुए कहते हैं कि सिर्फ हेमंत सोरेन ही आदिवासी मुख्यमंत्री हैं, फिर बाबूलाल कौन हैं। हम भी तो आदिवासी हैं और 28 महीनों तक मुख्यमंत्री रहे। उसके बाद अर्जुन मुंडा भी मुख्यमंत्री रहे, काफी लंबे समय तक रहे। ऐसा नहीं हैं कि आदिवासी सिर्फ शिबू सोरेन का परिवार ही है और दूसरा कोई आदिवासी नहीं है।
    सवाल: बार-बार यह शिकायत सामने आती है कि झारखंड का अपेक्षित विकास नहीं हुआ। आदिवासियों के हित में काम नहीं हुए। झारखंड में सिर्फ एक बार रघुवर दास को छोड़ दिया जाये, तो सभी के सभी मुख्यमंत्री आदिवासी ही बने। फिर भी ऐसा क्यों कि आज भी आदिवासी पिछड़े के पिछड़े ही हैं, झारखंड गरीब ही है, क्या कारण है ?
    जवाब: देखिये, ऐसा नहीं है कि विकास हुआ ही नहीं है। विकास के रास्ते जरूर खुले हैं। यह सही है कि इंसान जितना सोचता है, उतना हो नहीं पाता है। झारखंड गठन के बाद विकास की जो भी मूलभूत सुविधाएं होती हैं, जैसे आवागमन की सुविधा, सड़क की सुविधा। गांव-गांव, घर-घर बिजली, यह सब झारखंड में हुआ है। अब 24 घंटे बिजली रहती है या आठ घंटे रहती है ये अलग मुद्दा है। विकास के अनगिनत कार्य हुए हैं। लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। हां इतना जरूर कहूंगा कि इन दो वर्षों में आज अगर महागठबंधन की सरकार से पूछा जाये कि इन दो सालों में यहां के लोगों के लिए कौन सा बड़ा काम किया गया है, तो मुझे नहीं लगता कि यह लोग बता पायेंगे कि ये-ये उल्लेखनीय कार्य हुए हैं। वह बार-बार कोरोना का ही रोना रोयेंगे। यह सच है कि झारखंड में विकास कार्य जितना होना चाहिए था, उतना नहीं हुआ है। अभी बहुत कुछ करना है। अभी थोड़ी और प्रतीक्षा करनी होगी।

    सवाल: जेएमएम बार-बार सवाल उठा रहा है कि आपने भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा था। भाजपा के विरोध के कारण जीते थे और फिर आप भाजपा के हो लिये। तो नैतिकता के आधार पर आपको इस्तीफा दे देना चाहिए?
    जवाब: देखिये यह तो कोई मतलब नहीं है। उन लोगों ने भी तो भाजपा के साथ सरकार बनायी थी, जबकि जीवन भर भाजपा से लड़ते रहे। झामुमो ने भाजपा से साथ मिल कर दो-दो बार सरकार बनायी। एक बार शिबू सोरेन खुद मुख्यमंत्री बने भाजपा के सहयोग से। उसके बाद जब अर्जुन मुंडा की सरकार बनी तो, हेमंत सोरेन खुद उस सरकार में डिप्टी सीएम बने। फिर ये लोग किस नैतिकता की बात करते हैं। उस समय भाजपा के साथ कहां मिल कर उन लोगों ने चुनाव लड़ा था। 28 महीनों तक हेमंत सोरेन डिप्टी सीएम बन कर रहे। उसके बाद जब उन्हें सीएम बनने की इच्छा हुई तो स्थानीयता का मुद्दा उठा कर समर्थन विथड्रॉ कर लिया। यह तो हर कोई जानता है कि वे लोग सत्ता में भाजपा के साथ रह चुके हैं। एक बात मैं बताता हूं। शिबू सोरेन जब खुद विधालसभा का चुनाव हार चुके थे। हमें लगता है कि वह 2001 या 2002 में राज्यसभा का चुनाव था। मैं मुख्यमंत्री हुआ करता था। मुझसे आकर शिबू सोरेन ने कहा कि कांग्रेस वाले हमको राज्यसभा नहीं भेजना चाहते हैं, लेकिन हम राज्यसभा जाना चाहते हैं। आपने मुझे चुनाव तो हरा दिया है। मैंने पूछा कि आप क्या चाहते हैं। तब शिबू सोरेन ने कहा कि मुझे राज्यसभा भेज दीजिए। तो मैंने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। दूसरी बात मैं आपको बताता हूं। शिबू सोरेन जैक के अध्यक्ष हुआ करते थे। अभी जो मोरहाबादी में उन्हें कोठी मिली है, उसे अभी तो बड़ा कर लिया है। वहां एक कोठी और थी। उस समय सुधीर महतो जी विपक्ष के लीडर हुआ करते थे। उनकी कोठी को भी उसमें मिला लिया गया। जब अलग झारखंड राज्य बना, तब जैक समाप्त हो गया। तो उस समय के अफसरों ने उस घर को खाली कराने के लिए कई बार मेरे पास फाइल भेजी। लेकिन मैंने उस फाइल पर साइन नहीं किया। मैंने कहा कि आप लोग शिबू सोरेन जी को समझाओ। मैं नहीं चाहता कि उन्होंने झारखंड के लिए इतनी लड़ाई लड़ी है और आज उनका सामान फेंक दिया जाये, यह घोर अनुचित होगा। वह एक लीडर भी तो हैं। मैंने कभी भी उनका सामान वहां से नहीं फेंकवाया। घर खाली करने के लिए अफसर जो फाइल लेकर आये, मैंने उस फाइल पर साइन नहीं किया। उस समय आरके श्रीवास्तव हमारे पीएस हुआ करते थे। उनसे हमने कहा कि आप उस फाइल को आलमीरा में बंद कर दीजिए, ताकि कोई गलती से भी हमसे साइन नहीं करवा सके। तो ये लोग क्या नैतिकता की हमसे बात करेंगे। ये लोग बार-बार कहते हैं, हम रोज-रोज सुनते हैं कि ये नैतिकता, वो नैतिकता। अगर मैं कुछ नहीं बोल रहा हूं तो ऐसा थोड़े है कि मैं कुछ बोल नहीं सकता। मैं तो यह कह रहा हूं कि हमारी पार्टी का विधिवत विलय हुआ है। सर्वसम्मति से से विलय हुआ है। आप उसे मानिये।

    विधानसभा अध्यक्ष जो भी फैसला करें, मैं तैयार हूं : बाबूलाल

    सवाल: आपकी सदस्यता को लेकर विधानसभा न्यायधिकरण में मामला चल रहा है, क्या कहना चाहेंगे ?
    जवाब: देखिये मैं अपनी सदस्यता तो लेकर शुरू से इस बात को जनता था कि ये लोग गड़बड़ करेंगे। सदस्यता रहे या जाये, इससे हमें फर्क नहीं पड़ता। पिछली बार तो लोकसभा से ही मैंने त्यागपत्र दे दिया था, ये विधानसभा तो बहुत छोटी सी चीज है। इनको जो करना है, जल्दी करें। जब हमने भाजपा ज्वाइन की, तो हमने पार्टी को कहा था कि हम रिजाइन करके चुनाव लड़कर आना चाहते हैं। पार्टी ने कहा कि जब पूरी पार्टी ही विलय कर रही है, तब कोई प्रॉब्लम नहीं है। आप मत रिजाइन करिये। हम चूंकि पार्टी में योगदान कर दिये थे और पार्टी से बात हुई तो पार्टी की बात मानना मेरे लिए जरूरी हो जाता है। उसके बाद पार्टी का विलय विधिवत हुआ। हम तीन लोग जीते थे जेवीएम से। चूंकि दो लोग बंधु तिर्की और प्रदीप यादव पहले से ही दल विरोधी काम में संलिप्त थे, उसके बाद हम लोगों ने उन्हें कारण बताओ एक्सप्लनेशन मांगा। और एक्सप्लनेशन भी हम लोगों ने डाक से नहीं भेजा, बल्कि हमने स्पेशल मैसेंजर से बंधु तिर्की और प्रदीप यादव को भेजा। एक्प्लेनेशन में यह लिखा गया था कि आपने ये-ये पार्टी विरोधी काम किया है, अगर आप इसका उत्तर नहीं देंगे, तो आपके ऊपर क्यों नहीं कार्रवाई हो? फिर उन लोगों ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसके बाद जेवीएम से दोनों को निष्काषित कर दिया गया। फिर बाद में भाजपा में हम सबने सर्वसम्मति से विलय कर लिया। उसके बाद जेवीएम पार्टी के भाजपा में विलय की जानकारी हमने इलेक्शन कमीशन को भी दी। इलेक्शन कमीशन ने नियमानुसार पार्टी के विलय की स्वीकृति प्रदान कर दी। पिछले दिनों यहां राज्यसभा का चुनाव हुआ, भाजपा के विधायक के रूप में मैंने मतदान भी किया। एक बात और, जिनको हम लोगों ने निकाला, लंबे समय तक उन लोगों ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं की। वे दोनों बंधु तिर्की और प्रदीप यादव कांग्रेस पार्टी में चले गये। लंबे समय के बाद अचानक विधानसभा के अध्यक्ष के यहां .से नोटिस आता है। यानी सुओ मोटो, यानी उन्होंने स्वत:संज्ञान लिया कि यह टेंथ शेड्यूल का उल्लंघन है। विधानसभा अध्यक्ष ने जब नोटिस भेजा तो हमने उसके खिलाफ हाइकोर्ट में चुनौती दी। मैंने आपत्ति की कि विधानसभाध्यक्ष स्वत: संज्ञान नहीं ले सकते। यह संविधान के खिलाफ है, टेंथ शेड्यूल के खिलाफ है। हाइकोर्ट में उसकी सुनवाई हुई। हाइकोर्ट ने भी इस बात को एक्सेप्ट किया कि यह गलत है। उसके बाद विधानसभाध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट चले गये। फिर सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभाध्यक्ष को कहा कि आप हाइकोर्ट में जाकर के जवाब दीजिए। उसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने हाइकोर्ट में यह लिख कर दिया कि हम केस वापस लेते हैं।
    उसके बाद उन्होंने फिर राजकुमार यादव से मेरे खिलाफ एप्लीकेशन डलवायी कि यह टेंथ शेड्यूल का वायलेशन है, इनकी सदस्यता समाप्त की जाये। मुझे लगता है कि उसके बाद विधानसभा अध्यक्ष को लगा होगा कि राजकुमार यादव तो विधानसभा के सदस्य नहीं हैं। यह सवाल खड़ा हो सकता है कि वह बाबूलाल मरांडी से हारे हुए प्रत्याशी हैं। फिर उसके बाद गुमला के विधायक भूषण तिर्की से आवेदन करवाया गया। वह झामुमो के विधायक हैं। मुझे लगता है कि उसके बाद शायद विधानसभाध्यक्ष को लगा होगा कि वह खुद भी जेएमएम से आते हैं, भूषण तिर्की भी जेएमएम से हैं, तो यह भी सवाल आगे शायद उठ सकता है, तब तीसरा आवेदन उन्होंने महगामा की विधायक दीपिका पांडेय से करवाया कि यह टेंथ शेड्यूल का वायलेशन है। उसके बाद भी शायद लगा होगा कि इनमें से कोई तो उस पार्टी से जुड़ा हुआ नहीं है, यह सवाल शायद उठ सकता है। तब उसके बाद विधानसभाध्यक्ष ने प्रदीप यादव और बंधु तिर्की से आवेदन डालवाया।
    पूरे विस्तार से बताते हुए बाबूलाल ने कहा कि हाइकोर्ट से विथड्रा करने के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने एक कमेटी बनायी। क्योंकि तब तक यह स्पष्ट हो चुका था कि विधालनसभा अध्यक्ष सुओ मोटो नहीं ले सकते। स्टीफन मरांडी की अध्यक्षता में तीन लोगों की कमिटी बनायी गयी। कमेटी ने यह अनुशंसा की कि दलबदल से संबंधित मामला होने पर कोई भी व्यक्ति आवेदन दे सकता है। हम लोगों ने उस पर आपत्ति भी जतायी थी। कहा था कि कोई भी व्यक्ति शब्द को हटा दीजिए, नहीं तो फिर कोई भी आवेदन करता रहेगा। फिर तो अनंतकाल तक सुनवाई चलती रहेगी। हमने कहा कि कम से कम ये करिये की जिस पार्टी से संबंधित मामला हो, उस पार्टी से संबंधित लोग ही आवेदन करें। दूसरा हमने कहा कि इसमें कोई टाइम लिमिट, टाइम बाउंड भी तो होना चाहिए, लेकिन उन्होंने नहीं सुनी। चूंकि उनके पास बहुमत है, तो फिर इसे उन्होंने नियमावली में जोड़ दिया। इनकी जो मंशा है, वह साफ है। विधानसभा अध्यक्ष मुख्यमंत्री के दबाव में हैं। ऐसे में जाहिर है कि वह क्या फैसला देंगे। इसलिए इस मामले में मैं निश्चिंत हूं।

    सवाल: भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश यह आरोप लगा रहे हैं कि झारखंड में अवैध खनन से हर दिन करोड़ों रुपयों की उगाही हो रही है। आखिर ये पैसे कहां जा रहे हैं?
    जवाब: देखिये मैंने भी कई दफा सार्वजनिक रूप से कहा है, हमने भी बहुत तहकीकात करने की कोशिश की है। मैं एक उदाहरण आपको दे रहा हूं। सिर्फ बीसीसीएल का उदाहरण। मैं कई दफा धनबाद आते-जाते रहता हूं। मैंने समझने की कोशिश की कि कोयला की चोरी किस प्रकार से होती है। कौन करते हैं और कितनी चोरी होती है। इतना तो पहले से पता था कि साइकिल और अन्य संसाधनों से कोयला एक जगह जमा किया जाता था और वहां से दूसरे ठिकानो तक चोरी का कोयला जाता था। कभी कम ज्यादा मात्रा में। लेकिन इन दिनों जो कोयला चोरी का पैटर्न बन गया है, वह संगठित रूप से हो रहा है। मैंने कई बार कोल इंडिया के चेयरमैन को पत्र भी लिखा है। उस पत्र को मैंने सोशल मीडिया पर भी पोस्ट किया था। उस चोरी की जब हमने तहकीकात की, इसकी जड़ तक गये तो पाया कि इसमें तो सभी लोग मिले हुए हैं। राज्य सरकार के तमाम पदाधिकारी से लेकर बीसीसीएल के कर्मचारी, पदाधिकारी जो उस क्षेत्र में काम कर रहे हैं मिले हुए हैं। हमने चोरी के पैटर्न को समझने कि कोशिश की। साइकिल पर चोरी कम ज्यादा तो एक हिस्सा है, लेकिन इन दिनों बड़े पैमाने पर चोरी हो रही है आउटसोर्सिंग के माध्यम से। बीसीसीएल में आउटसोर्सिंग कंपनी कोयला खनन करती है। खेला ऐसे होता है। कोई 100 ट्रक कोयला एक दिन में आउटसोर्सिंग वाला निकाल रहा है, तो उनमें 40 ट्रक कोयला तो किसी और से मिल कर बाहर भेज दिया जाता है। लोगों ने बताया कि वहां से जो कोयला निकल रहा है, उसमें 90 हजार रुपये प्रति ट्रक कोयला के हिसाब से पुलिस कप्तान को मिलता है। यह 90 हजार रुपये ऊपर तक जाता है। डीएसपी को 30 हजार मिल रहा है। यहां तक कि 30 हजार रुपये प्रति ट्रक की दर से सीआइइसएफ को भी मिलता है। जिस थाने से ट्रक गुजरता है, उस थाने को प्रति ट्रक दस हजार रुपये मिलता है। प्रति टन ट्रक का जो भाड़ा होता है 500 रुपये मिलता है, 30 हजार रुपये लोडिंग चार्ज है, 50 हजार रुपये मिसलेनियस खर्च होता है। उसमें नेता भी हैं, पत्रकार भी हैं, यानी जिससे भी उन्हें खतरा महसूस हो, यह पैसा उनमें बंटता है। तहकीकात के दौरान मैंने पूछा कि इतनी बड़ी रकम अगर लोग बांट रहे हैं, तो ये कैसे हो रहा है। मुझे बताया गया कि बड़े ट्रक में 40 से 45 टन कोयला लोड होता है। प्रति टन कोयले की कीमत् 10 से 12 हजार रुपये होती है। मैंने फिर जोड़ कर देखा कि इस प्रकार से तो सिर्फ बीसीसीएल के इलाके से प्रति दिन 1000 ट्रक कोयला की चोरी हो रही है। उसी से आप सीसीएल और अन्य क्षेत्रों के के बारे में भी अंदाज लगा सकते हैं। सबसे बड़ी बात, इन सारी चीजों की जानकारी सरकार को भी है। ये सरकार के नॉलेज के बिना हो ही नहीं सकता। आप समझ सकते हैं कि पैसों की बदरबांट किस प्रकार से चल रही है।

    सवाल: हेमंत सोरेन का अब तक का जो कार्यकाल है उसका मूल्यांकन आप कैसे करते हैं, उसे किस नजरिये से देखते हैं?
    जवाब: देखिये मुझे लगता है कि हेमंत सोरेन को जिस प्रकार से अवसर मिला था, उन्होंने 28 महीनों में इसे पूरी तरह से गंवा दिया है। मैं इसलिए लोगों को बार-बार कहता हूं कि राजनीति सेवा करने का माध्यम है। जीवन में बहुत से लोग विभिन प्रकार से समाज की सेवा करते हैं। जिसे खेल-कूद में रुचि है, उसकी मदद के लिए समाज सेवा के माध्यम से लोग तन-मन-धन से जुड़ जाते हैं। कोई बीमार है तो उसके लिए भी समाज द्वारा मदद की जाती है। बहुत सारे लोग एनजीओ के माध्यम से समाज की सेवा करते हैं। हमारे जैसा व्यक्ति राजनीति के माध्यम से समाज सेवा करना चाहता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो सत्ता को पैसा कमाने का जरिया बना लेते हैं। हेमंत सोरेन को भी राजनीति को समाज सेवा का माध्यम बनाना चाहिए था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसी कारण से उनके समक्ष मुसीबतें खड़ी हुई हैं। उनके इर्द-गिर्द जो लोग हैं, उनमें कोई किसी फील्ड विशेष का एक्सपर्ट नहीं है। बल्कि हेमंत सोरेन ने जो एक्सपर्ट अपने पास रखा है, वे उनके लिए मुसीबतें ही खड़ी कर रहे हैं।

    सवाल: चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन को जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत नोटिस भेजा है। इसकी चर्चा पूरे देश में है। क्या हेमंत सोरेन सचमुच में दोषी हैं?
    जवाब: देखिये हम लोगों ने तो महामहिम राज्यपाल से मिल कर ज्ञापन सौंपा था। हम लोग एक्सपर्ट लोगों से राय-मशविरा करने के बाद ही राज्यपाल के पास गये थे। हमने राज्यपाल से कहा कि ऐसा करना गलत है और इस पर कार्रवाई होनी चाहिए। अब ये तो इलेक्शन कमीशन के हाथ में है। हमें उनके निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। इलेक्शन कमीशन जो करेगा, कानूनसम्मत करेगा। हां, जितना एक्सपर्ट लोगों से बातचीत होती है, जितना मैंने समझा है, तो मुझे नहीं लगता है की इसमें इन्हें कोई रियायत मिलेगी। (समाप्त।)

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