मनोज यादव, बादल पत्रलेख और बिट्टू सिंह को भी अपने पाले में लाना चाहती है भाजपा
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रांची। धनबाद के बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो की मुश्किलें बढ़नेवाली हैं। झारखंड हाइकोर्ट के न्यायमूर्ति एके गुप्ता की कोर्ट ने…
सिमरिया से आजसू ने किया विधानसभा चुनाव का शंखनाद
रांची। रघुवर दास सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। इसके तहत झारखंड में तीसरी, चौथी और क्लास टू के अराजपत्रित…
ऐ..एसपी आपका बेटा गुम होता, तब आपको पता चलता
सूरज..सुन रहे हो, गरीबों को मिलना चाहिए योजनाओं का लाभ
विनोबा भावे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो रमेश शरण और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बीच गहराता जा रहा है। सोमवार को रांची विश्वविद्यालय परिसर में जो भी हुआ, उससे शिक्षा और उससे जुड़ी मर्यादाएं ही तार-तार नहीं हुईं, बल्कि गुरु-शिष्य का रिश्ता कलंकित हुआ तथा गुरुकुल की परंपरा की हंसी भी उड़ी। कौन गलत है, कौन सही, यह तो सक्षम लोग ही तय कर सकते हैं, पर जो बीज बोये जा रहे हैं, वे छात्र और देश के भविष्य के लिए कहीं से भी उचित नहीं है। मामला अब सिर्फ विवाद भर नहीं रह गया है। पानी सिर से ऊपर जा चुका है। ऐसे में अब सक्षम पदाधिकारियों को यह देखने की जरूरत है कि आखिर चूक कहां है। यदि कुलपति कहीं से भी गलत हैं, तो राज्यपाल को कार्रवाई करनी चाहिए। यदि छात्र गलत हैं, तो भाजपा को उन्हें रोकने की पहल करनी चाहिए। इतना ही नहीं, यदि कुलपति प्रो रमेश शरण को लगता है कि उन्हें विवादों में धसीटा जा रहा है और उनमें स्वाभिमान है, तो आगे बढ़ कर पद छोड़ क्यों नहीं देते। एक महीने से चल रहे इस विवाद पर राजभवन की चुप्पी भी समझ से परे है। कुल मिला कर इस मामले से पूरे देश में झारखंड की ही छवि धूमिल हो रही है। पेश है आजाद सिपाही की विशेष रिपोर्ट।
रांची : मां, मुझे माफ करना, तुम्हारा नालायक बेटा..और फिर फंदे से झूलकर सुमित ने जान दे दी। जिसने भी…
नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दुनियाभर के नेताओं से मिलने का अपना अलग अंदाज है। वह गले मिलते…
रघुवर ने केंद्र से मांगी अर्द्धसैनिक बलों की 275 कंपनियां, 2015 से 2019 के बीच नक्सली घटनाओं में 60 फीसदी कमी
झारखंड की सत्ता पर काबिज होने के लिए छटपटा रहे झारखंड के सबसे बड़े क्षेत्रीय दल झामुमो अपने पहाड़ जैसे प्रतिद्वंद्वी के मुकाबले के लिए हर दांव अपना रहा है। लोकसभा चुनाव में अपने गढ़ संथाल की राजधानी दुमका से पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन की हार के बाद यह साफ हो गया कि झामुमो में दिशोम गुरु का युग अब अंतिम सांस ले रहा है। शिबू सोरेन के राजनीतिक उत्तराधिकारी और झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने पार्टी को नये सिरे से खड़ा करने की कवायद तेज भी कर दी है। इस क्रम में उन्होंने झारखंड के सबसे ताकतवर गैर-आदिवासी जातीय समूह कुर्मियों की पार्टी के प्रति नाराजगी दूर करने की कोशिश शुरू की है। इसके तहत उन्होंने जमशेदपुर के आस्तिक महतो को पार्टी का सचिव बना कर कुर्मी समाज को एक संदेश देने की कोशिश की है। आस्तिक की प्रोन्नति से इस धारणा को भी बल मिला है कि झामुमो में अभी गुरुजी का दौर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। हेमंत सोरेन के इस कदम राजनीतिक असर का आकलन करती दयानंद राय की खास रिपोर्ट।
हजारीबाग: कुख्यात नक्सली नेता कोबाड गांधी उर्फ कमाल उर्फ आजाद को सोमवार को सूरत की एक अदालत में पेश किया…