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कोरोना संकट के कारण पिछले 57 दिन से लॉकडाउन में चल रहे भारत में यदि आज की दो बड़ी समस्याओं के बारे में पूछा जाये, तो लोग महामारी के बाद प्रवासी मजदूरों की तकलीफों का ही नाम लेंगे, लेकिन शायद ही किसी ने उन मजदूरों की समस्या की तरफ ध्यान दिया है, जो अपने ही राज्य के दूसरे जिलों में या तो फंस गये हैं या अपने गांव लौटे हैं। इन्हें न तो कोई विशेष सहायता मिली है और न ही इनकी तकलीफों का किसी को आभास है।

आज से करीब सवा दो सौ साल पहले 1781 में जब गवर्नर जनरल लॉर्ड कॉर्नवालिस ने भारत में पुलिस प्रणाली की स्थापना की थी, तब उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि दुनिया भर में चर्चित उनका यह प्रयोग खुद की वर्दी पर बदनामी के इतने दाग लगा लेगा। भारत में आम जनता के बीच पुलिस की छवि एक ऐसी खौफनाक संगठन की बनती जा रही है, जो आम लोगों की दोस्त नहीं, शोषक है।

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कोरोना संकट के कारण देशव्यापी लॉकडाउन का चौथा और संभवत: अंतिम चरण शुरू हो गया है। हालांकि इस चरण में कई तरह की छूट की घोषणा की गयी है, लेकिन अब तक प्रवासी मजदूरों की सुरक्षित घर वापसी, यानी सेफ रिवर्स माइग्रेशन के लिए किसी ठोस उपाय का एलान नहीं किया गया है।