- इस नये ‘पावर सेंटर’ ने राज्य को बहुत नुकसान पहुंचाया
पिछले कुछ दिनों से झारखंड में एक नाम की चर्चा हो रही है, जिसका न तो कोई चेहरा है और न किसी को यह पता है कि वह करता क्या है। लोगों को केवल इतना पता है कि वह नाम है मनोज गुप्ता, जिसने कुछ महीने पहले तक पूरे सिस्टम को अपने हाथ में ले रखा था और जब जिसे चाहता था, अपनी पसंद के अनुसार नचाता था। इस मनोज गुप्ता नामक शख्स के बारे में जो जानकारी अब सामने आ रही है, उसके अनुसार उसके लिए दर्जनों लोग काम करते थे, जिनमें अपराधी भी थे, पुलिस अधिकारी भी थे और राजनीतिक हस्तियां भी। इस गंठजोड़ ने न केवल झारखंड के कोयला कारोबार पर कुंडली जमा रखी थी, बल्कि अफसरशाही के रौब में उद्यमियों और कारोबारियों से अवैध वसूली का धंधा भी चला रहा था। इस चौकड़ी के खिलाफ झारखंड ही नहीं, आसपास के राज्यों की पुलिस भी कार्रवाई से कतराती थी, क्योंकि इसकी ताकत का अंदाजा सभी को था। मनोज गुप्ता की इस चौकड़ी ने झारखंड के कोयला आधारित उद्योग से करोड़ों रुपये की वसूली तो की ही, कई उद्यमियों को सड़क पर लाकर खड़ा भी कर दिया। कई उद्यमियों ने इस चौकड़ी के डर से अपना कारोबार बंद कर दिया, जिसका सीधा असर वहां काम करनेवाले लोगों पर पड़ा। इस तरह इस चौकड़ी ने झारखंड को भीतर से खोखला बनाना शुरू कर दिया। अब इस चौकड़ी के कारनामों की फेहरिस्त खुल रही है, तो पता चलता है कि यह चौकड़ी तो कोरोना महामारी से भी खतरनाक है। ‘मनोज गुप्ता’ चौकड़ी पर आजाद सिपाही टीम की विशेष रिपोर्ट।
मनोज गुप्ता ने धनबाद के उद्यमी से 40 लाख की रंगदारी मांगी, थाने में एफआइआर। कौन है मनोज गुप्ता और किसके लिए वसूलता है पैसा। चर्चा में है मनोज गुप्ता। तीन-चार दिन पहले जब यह खबर अखबारों में प्रकाशित हुई, तब लोगों को यह पता भी नहीं था कि यह मनोज गुप्ता कौन है और क्या करता है। आखिर इस व्यक्ति के पास इतनी ताकत कहां से आयी कि यह उद्यमियों को फोन कर और बुला कर रंगदारी के रूप में लाखों रुपये की मांग करता है।
काले हीरे के नाम से जाना जानेवाला कोयला न जाने कितनों के दामन को काला कर गया है, यह अब धीरे-धीरे सामने आने लगा है। जानकारी मिल रही है कि कोयला के कारोबार पर एकछत्र राज कायम करने के उद्देश्य से ही मनोज गुप्ता नामक शख्स को सामने लाया गया। इस शख्स ने धनबाद के वैसे उद्यमियों पर सबसे पहले निशाना साधा, जो कोयला आधारित उद्योग चलाते हैं। झारखंड के कुछ अधिकारी और राजनीतिक चेहरों ने मनोज गुप्ता का दामन थाम लिया और धीरे-धीरे इस चौकड़ी ने कोयला क्षेत्र में सक्रिय आपराधिक गिरोहों से भी सांठगांठ कर ली। पावर और पैसे के बल पर मनोज गुप्ता पूरे सिस्टम पर हावी हो गया। मनपसंद अधिकारियों की पोस्टिंग कराने लगा और जो अधिकारी इसकी राह में बाधा पैदा करते थे, उन्हें तत्काल हटा देना इसके बायें हाथ का खेल हो गया था।
मनोज गुप्ता और उसकी चौकड़ी का खेल झारखंड में पिछले सात-आठ साल से चल रहा था। धनबाद के एक उद्यमी ने पुलिस को जो शिकायत पत्र भेजा है, उससे साफ हो जाता है कि यह चौकड़ी 2012 में ही सक्रिय थी। झारखंड के अलावा बंगाल की पुलिस भी उद्यमियों की शिकायत पर कार्रवाई नहीं कर रही थी। बकौल सांवरिया, इस चौकड़ी का खौफ इतना अधिक था कि वह उच्चाधिकारियों के पास शिकायत भी नहीं करते थे।
धनबाद को देश की कोयला राजधानी कहा जाता है। यहां कोयले का अवैध कारोबार भी खूब होता है और दुनिया को इसकी जानकारी भी है। लेकिन मनोज गुप्ता की चौकड़ी ने इस अवैध कारोबार को चांडिल, रांची और रामगढ़ होते हुए हजारीबाग, लातेहार और गिरिडीह तक पहुंचा दिया और इस तरह पूरे झारखंड को इस अवैध कारोबार का अड्डा बना दिया। कोयले का अवैध खनन और गैर-कानूनी तरीके से उसकी दूसरे राज्यों तक ढुलाई के जरिये इस कारोबार को स्थानीय आपराधिक गिरोहों की मदद से बढ़ाया गया। इस पूरे कारोबार में पुलिस के कुछ अधिकारी संरक्षक की भूमिका में आ गये। इस गिरोह को कोयले के इस अवैध कारोबार से अकूत पैसा आ गया, तो इसका नंगा नाच शुरू हो गया।
अलग राज्य बनने के बाद से झारखंड की चर्चा राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार के लिए होती रही, लेकिन इसकी आड़ में यह चौकड़ी भी खूब फलती-फूलती रही। इस चौकड़ी का आतंक इतना अधिक था कि कोई इसके खिलाफ जुबान नहीं खोलता था। यदि कभी किसी अधिकारी ने इस चौकड़ी के रास्ते में आने की कोशिश की, तो उसका तत्काल तबादला कर दिया जाता था। इस चौकड़ी ने आपराधिक गिरोहों को भी अपने साथ मिला लिया। सुशील श्रीवास्तव और भोला पांडेय जैसे सरगनाओं के खात्मे के बाद उनके गिरोहों के अपराधियों को इस चौकड़ी ने संरक्षण दिया और तब दबंगई के सहारे अपना धंधा चलाने लगा। कहा जाता है कि शेर को एक बार खून का स्वाद पता लग जाये, तो वह आदमखोर बन जाता है। मनोज गुप्ता की चौकड़ी को भी पैसे का स्वाद लग गया था और इसने सिस्टम को अपने कब्जे में करने का खेल शुरू कर दिया। इस चौकड़ी की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कहीं बाहर से एक बैजनाथ प्रसाद गुप्ता नामक शख्स आता है और झारखंड की राजधानी रांची में सत्ता की नाक के ठीक नीचे स्पेशल ब्रांच के समानांतर कार्यालय पर परोक्ष रूप से कब्जा कर लेता है। उसे दो-दो बॉडीगार्ड और विशेष शाखा के दो ड्राइवर भी मुहैया करा दिया जाता है। इतना ही नहीं, इस कार्यालय में विशेष शाखा के तकनीशियनों को तैनात भी कर दिया जाता है और यहां से विरोधी राजनीतिज्ञों, बिल्डरों और बड़े व्यवसायियों के फोन टेप किये जाने लगते हैं। पैसा और पावर आ गया, तो गलत हरकतें भी होने लगती हैं। इस चौकड़ी ने बेकसूर की गाड़ी में गांजा रखवा दिया और फिर पुलिस से उसे पकड़वा दिया। यह सब एक खास शौक पूरा करने के लिए किया गया। यह पूरी चौकड़ी पुलिस विभाग के एक वरीय अधिकारी के संरक्षण में काम कर रही थी। उसी का पूरा संरक्षण इस चौकड़ी के साथ था। अब भी वह अधिकारी सिस्टम के इन घुन को बचाने की पूरी कोशिश कर रहा है।
अब जैसे-जैसे इस चौकड़ी के कारनामों की परतें खुल रही हैं, लोगों को पता चल रहा है कि झारखंड के असली गुनहगार कौन हैं। लोग यह भी समझने लगे हैं कि यह चौकड़ी कोरोना वायरस से भी अधिक खतरनाक है, जो न केवल लोगों के लिए खतरा है, बल्कि इसने राज्य के आर्थिक आधार को ही खोखला बना दिया है। लोगों को उम्मीद बंधी है कि अब इस चौकड़ी का अंत निकट है। यह उम्मीद जितनी जल्दी पूरी होगी, राज्य के लिए उतना ही श्रेयस्कर होगा।