दीपेश कुमार
रांची। पिछले साल मई 2018 में कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस सरकार में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में बेहद महत्वपूर्ण तसवीर नजर आयी थी। वह तसवीर बता रही थी कि 2019 में महागठबंधन का आकार कैसा हो सकता है। तब यहां गैर भाजपा दलों का जमावड़ा लगा था। इसे 2019 आम चुनाव के लिए विपक्ष की एकता का सबसे बड़ा मंच बताया गया था, लेकिन पिछले माह राजस्थान में शपथ ग्रहण समारोह में जो जमावड़ा लगा, उसमें कुछ प्रमुख चेहरे गायब थे। अशोक गहलोत के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष के कई धुरंधर नेताओं के चेहरे दिखे, पर उनमें अखिलेश यादव और मायावती नदारद थे। उस समय से कई सवाल खड़े होने लगे थे। अब इसकी पुष्टि हो चुकी है। अखिलेश और मायावती कम से कम उस गठबंधन से बाहर हो गये हैं, जिसमें कांग्रेस होगी। यूपी में सपा-बसपा के गठबंधन ने कांग्रेस को बड़े जोर का झटका दिया है। अब राजद नेता और लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव ने इनके साथ मंच साझा कर कांग्रेस की परेशानी बढ़ा दी है। इससे माना यही जा रहा है कि अखिलेश और मायावती को एक मंच पर आने में लालू प्रसाद की भी सहमति है।

जल्द ही देखने को मिल सकते हैं नये राजनीतिक समीकरण
एक जमाने में लालू प्रसाद यादव कांग्रेस के सबसे मजबूत साथी हुआ करते थे। लालू प्रसाद की पार्टी आज अखिलेश और मायावती को बधाई दे रही है। यह चौंकानेवाली बात है। लालू प्रसाद और कांग्रेस दोनों के साथ ने ही बिहार में मजबूत महागठबंधन की नींव रखी थी। यह ऐसा गठबंधन था, जो नीतीश कुमार और जदयू के अलग होने के बाद भी पूरी मजबूती से खड़ा रहा। आज भी बिहार में महागठबंधन की स्थिति अन्य प्रदेशों से काफी अच्छी है। परंतु तेजस्वी और अखिलेश-मायावती के गठजोड़ ने बिहार में कांग्रेस सहित गठबंधन की हवा निकाल दी है। संभव है, जल्द ही बिहार में भी नया राजनीतिक समीकरण देखने को मिले। उधर, इस नये गठजोड़ ने कांग्रेस को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। भले ही यूपी में राज बब्बर और गुलाम नबी आजाद सामने आकर कह रहे हों कि कांग्रेस राज्य की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, पर महागठबंधन में दरार का संदेश तो पूरे देश में चला ही गया है। इससे भाजपा खेमे में एक संतोष की लहर जरूर पहुंची है।

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