रांची। बाघमारा के दबंग भाजपा विधायक ढुल्लू महतो की विधायकी कानूनी पचड़े में फंस गयी है। उन्हें अदालत द्वारा एक मामले में सुनायी गयी सजाओं के आलोक में उनकी विधायकी रद्द करने की मांग की गयी है। इस मांग से संबंधित एक ज्ञापन झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष को सौंपा गया है। ढुल्लू महतो के कारनामों के खिलाफ लगातार आवाज उठानेवाले बियाडा के पूर्व अध्यक्ष बिजय कुमार झा ने यह ज्ञापन स्पीकर को सौंपा है। ज्ञापन में बिजय कुमार झा ने कहा है कि ढुल्लू महतो को धनबाद के अनुमंडलीय न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत ने कतरास थाने में दर्ज कांड संख्या 120/2013 (जीआर संख्या 2023/2013) में नौ अक्टूबर 2019 को सजा सुनायी। अदालत ने ढुल्लू महतो को मामले की अलग-अलग धाराओं के लिए अलग-अलग सजाएं सुनायीं, जिसकी कुल अवधि 72 महीने की कैद और जुर्माने के रूप में आठ हजार रुपये की रकम थी। ये सभी सजाएं साथ-साथ चलनी हैं। ढुल्लू महतो को जो सजा सुनायी गयी, उसमें पहली सजा भारतीय दंड विधान की धारा 323 और 149 के उल्लंघन के लिए 12 महीने की कैद और एक हजार रुपये का जुर्माना था। दूसरी सजा भारतीय दंड विधान की धारा 353 और 149 के लिए 12 महीने की कैद और दो हजार रुपये जुर्माना था। तीसरी सजा भारतीय दंड विधान की धारा 332 और 149 के उल्लंघन के लिए 18 महीने की कैद और तीन हजार रुपये जुर्माना था। चौथी सजा भारतीय दंड विधान की धारा 147 के उल्लंघन के लिए 12 महीने की कैद और एक हजार रुपये जुर्माना और पांचवीं सजा भारतीय दंड विधान की धारा 225 और 149 के उल्लंघन के लिए 18 महीने की कैद और एक हजार रुपये का जुर्माना था।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
ज्ञापन में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को नजीर के रूप में पेश किया गया है, जिसमें एक ही मामले की अलग-अलग धाराओं में मिली सजा को जोड़ कर केरल के विधायक की सदस्यता रद्द कर दी गयी थी। 11 जनवरी 2005 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने के प्रभाकरण बनाम पी जयराजन के मामले में फैसला दिया था कि जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 8 (3) में उल्लिखित प्रावधान ‘दो साल से कम कैद की सजा’ का निर्णय किसी मामले में सजायाफ्ता को दी गयी कैद की कुल अवधि की गणना कर होगा। यह मामला केरल के विधायक से संबंधित था, जिन्हें निचली अदालत ने एक मामले की अलग-अलग धाराओं में सजा सुनायी थी, लेकिन सभी सजाओं के एक साथ चलने की बात कही थी। इसके खिलाफ हाइकोर्ट में अपील की गयी, तो वहां सभी सजाओं के एक साथ चलने के फैसले को सही ठहाराया गया। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई होने पर सजाओं के एक साथ चलने के फैसले को तो सही ठहराया गया, लेकिन कैद की कुल अवधि के आधार पर विधायकी रद्द कर दी गयी थी।

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