29 दिसंबर को खरमास के बावजूद जब हेमंत सोरेन ने तीन मंत्रियों के साथ मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो इस ओर कम लोगों का ध्यान गया कि उन्होंने अपने शरीर पर पीतवर्णी दुशाला धारण किया हुआ था। खरमास की नकारात्मकता के बीच शुभ्रता के प्रतीक इस पीतांबर को धारण करके हेमंत सोरेन ने जहां खुद को शुभत्व का वाहक बताया, वहीं यह भी दर्शा दिया कि बीती सरकार की समस्त नकारात्मकताओं को वह अपनी नेतृत्व क्षमता के शुभत्व से समाप्त कर देंगे। सीएम बनने और उसके बाद उनके बयान देखें या व्यवहार, यह साबित होता है कि उन्होंने इस दिशा में सार्थक कार्रवाई शुरू कर दी है और धरती आबा बिरसा मुंडा के सपनों का झारखंड वह बनाकर रहेंगे।
उनके बयानों के अनुरूप यदि झारखंड में काम हुआ, तो यह राज्य में सुरसा की तरह मुंह फैलाये भ्रष्टाचार के सीने में खंजर की तरह होगा और अपने इस कार्य से हेमंत झारखंड के मुख्यमंत्रियों में सर्वाधिक ऊंचाई हासिल करनेवाले नेता बन सकते हैं। हालांकि यह राह आसान नहीं है, क्योंकि जहां भी यज्ञ होता है, वहां राक्षस आ ही जाते हैं। पर हेमंत सोरेन ने इसे खत्म करने का जज्बा दिखा कर जनता का दिल जीता है।

वाणिज्यकर और खान विभाग के अफसरों पर कसेगी नकेल
आठ जनवरी को पांचवीं विधानसभा के पहले सत्र के तीसरे और आखिरी दिन हेमंत सोरेन ने राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए बेहद महत्वपूर्ण बातें कहीं। उन्होंने साफ किया कि नौकरशाही का राजनीतिकरण गलत है और नौकरशाह परखे जायेंगे। उन्होंने कहा कि वाणिज्यकर और खान विभाग में भ्रष्टाचार है और इस भ्रष्टाचार पर लगाम कस कर सरकार 15 हजार करोड़ रुपये बचायेगी।
अब इन दो बातों के निहितार्थ पर गौर करें। हेमंत सोरेन यह अच्छी तरह जानते हैं कि पूर्व की सरकारों में नौकरशाही का राजनीतिकरण हुआ। इस राजनीतिकरण का दुष्परिणाम यह हुआ कि नौकरशाह जनता के कल्याण के लिए काम करनेवाली सरकारी मशीनरी का महत्वपूर्ण पुर्जा न रह कर सत्तारूढ़ दल विशेष की कठपुतली हो गये और इससे उनका काम प्रभावित हुआ। नौकरशाही का यह आचरण न उनकी सेवा शर्ताें के अनुकूल है और न किसी दल विशेष को दबाव डालकर नौकरशाहों को इस तरह के आचरण के लिए मजबूर करना चाहिए। कुल मिलाकर हेमंत सोरेन नौकरशाही को उसकी गरिमा के अनुकूल आचरण करते देखना चाहते हैं और झारखंड की सवा तीन करोड़ जनता के नेतृत्वकर्ता के रूप में उनकी यह अपेक्षा उचित भी है। हेमंत सोरेन पहले भी सीएम रह चुके हैं और उनके 14 महीने का कार्यकाल भी बाबूलाल मरांडी के 28 महीने के कार्यकाल की तरह ही जनता के जेहन में है। वह जानते हैं कि झारखंड खनिज संपदा से भरपूर राज्य है और राज्य की आमदनी का मुख्य स्रोत भी यही है। पर इस स्रोत का दुरुपयोग हुआ है और वाणिज्य कर वसूलने और खानों को लीज पर देने की प्रक्रिया में भी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है। उनके पास ऐसी जानकारियां भी आयी हैं कि पिछली सरकार के कार्यकाल में जिन कंपनियों के पास

सरकार का करोड़ों रुपये बकाया था,
उनसे बिना यह रकम वसूले और राज्य में आचार संहिता लागू होने के समय माइंस ट्रांसफर की गयी। यह खुलेआम लूट नहीं तो और क्या है। हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री के तौर पर इस स्थिति को बदलना चाहते हैं।
हेमंत यह भी जानते हैं कि पिछली सरकार ने उन्हें खाली खजानेवाला राज्य सौंपा है और इसका फाइनेंशियल मैनेजमेंट करना बतौर मुख्यमंत्री उनकी प्राथमिकता है। उन्होंने जब खनन विभाग और वाणिज्य कर विभाग की नब्ज टटोली, तो उनके पास इन दोनों विभागों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की रिपोर्ट आयी और उन्होंने यह साफ किया कि इन दोनों विभागों में भ्रष्टाचार पर नकेल कसेंगे। वहीं भ्रष्टाचार पर लगाम कसकर वह 15 हजार करोड़ रुपये बचायेंगे और यह राशि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च की जायेगी।

वहीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बयानों के निहितार्थ यह कहा जा सकता है कि हेमंत सोरेन झारखंड की माटी के बेटे हैं। दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने यह नारा दिया था कि झारखंड को हमने बनाया है, हम ही उसे संवारेंगे। अपने पिता के इस सपने को चरितार्थ करने का काम हेमंत सोरेन कर रहे हैं। गुरुजी के लंबे संघर्ष के बाद झारखंड अलग राज्य बन पाया। एक मां ही उस बेटे का दर्द महसूस कर सकती है, जिसने उसके प्रसव की पीड़ा झेली हो। झारखंड अलग राज्य बनाने के पीछे गुरुजी का मकसद यह था कि झारखंडियों के सपने पूरे हों। उन्हें शोषण से मुक्ति मिले। यही कारण था कि उन्होंने महाजनी प्रथा का अंत किया। हेमंत सोरेन अब झारखंड के हर वर्ग के नेता बन कर उभरे हैं और वे ग्लोबल लीडर बनने जा रहे हैं। वह दिन दूर नहीं है, जब भारत के सर्वमान्य नेताओं में उनकी गिनती होगी। इसका एक चित्र उनके मोरहाबादी मैदान में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में दिखा। वह बीआइटी मेसरा से इंजीनियरिंग कर रहे थे और अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहते थे, पर इस दौरान उनके पिता आंदोलनरत थे और उनके सपनों को पूरा करने में उनका सहयोग उन्हें चाहिए था, इसलिए उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इसके बाद वह पढ़ाई छोड़कर राजनीति में आये। उन्होंने पहले खुद को पार्टी में प्रूव किया फिर जनता के बीच भी प्रूव किया। वह झारखंड की जनता का कल्याण चाहते हैं और अपने बयानों से उन्होंने झारखंड को सही राह पर ले जाने के अपने ब्लू प्रिंट का खाका ही बताया है।

तो हो जायेगा झारखंड का कायाकल्प
झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि हेमंत सोरेन ने अपने बयानों से जो जाहिर किया है, उसे यदि वह क्रियान्वित करने में सफल रहे, तो इससे झारखंड का कायाकल्प हो सकता है। उन्होंने कहा है कि वह सरकार की स्वस्थ आलोचनाओं का स्वागत करेंगे तथा इसके जरिये सरकार की त्रुटियों को दूर करेंगे। नौकरशाह यदि राजनीतिक दलों की चाटुकारिता से मुक्त हो जायेंगे, तो वे वहीं करेंगे जो जनता के हित में होगा। इससे विकास की धारा स्वाभाविक रूप से बहेगी और इसका फायदा जनता को समान रूप से होगा। वहीं हेमंत यह अच्छी तरह से जानते हैं कि उन्हें एक खाली खजानेवाला राज्य मिला है और वाणिज्य कर तथा खान, ये दोनों सर्वाधिक राजस्व देनेवाले सेक्टर हैं। यदि इन दोनों सेक्टर से मिलनेवाले राजस्व में गिरावट आयी है, तो इसका कारण भ्रष्टाचार है। हेमंत इन दोनों विभागों में भ्रष्टाचार के साथ राज्य में फैले भ्रष्टाचार पर वार करना चाहते हैं और यह राज्य तथा राज्य की जनता के हित में है। हेमंत यह अच्छी तरह से जानते हैं कि भ्रष्टाचार का सर्वाधिक नुकसान गरीब जनता को होता है। भ्रष्टाचार की भेंट उनके हिस्से का निवाला चढ़ जाता है। और वे भूख से मरने को मजबूर होते हैं। हेमंत इस स्थिति को बदलना चाहते हैं।
सबकी अच्छाइयां ग्रहण करने का जज्बा दिखा रहे हेमंत
मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद हेमंत सोरेन दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से मिले और उन्होंने अरविंद के विकास के मॉडल की प्रशंसा करते हुए झारखंड में उनके शिक्षा और स्वास्थ्य का मॉडल लागू करने की बात कही। आम तौर पर किसी राजनेता के लिए यह सहज नहीं होता कि वह किसी दूसरे सीएम की अच्छाइयों को स्वीकार करे। पर हेमंत ने झारखंड के सर्वाधिक बड़े दल का नेता होने के साथ बड़ा दिल भी दिखाया और केजरीवाल के मॉडल की खुले दिल से प्रशंसा की। उन्होंने यह भी कहा कि वह समाज को आइना दिखानेवाली पत्रकारिता की सराहना करेंगे। इस कार्य से भी उन्होंने एक प्रखर नेतृत्वकर्ता के तौर पर खुद को साबित किया है और झारखंडी माटी का बेटा होने का फर्ज अपने से बड़े नेताओं के पैर छूकर और अन्य का संथाली में अभिवादन करके तथा बाबूलाल मरांडी सरीखे नेताओं से मिलकर जाहिर कर रहे हैं। जाहिर है कि उनके इन शुरुआती कार्यों से झारखंड एक सकारात्मक बदलाव की दिशा में कदम बढ़ा चुका है।

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