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    Home»Top Story»अंदर से सुलग रही है झारखंड भाजपा
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    अंदर से सुलग रही है झारखंड भाजपा

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJanuary 4, 2020No Comments5 Mins Read
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    चुनाव में मिली जीत किसी पार्टी के लिए जश्न का अवसर होता है। झारखंड में झामुमो और कांग्रेस यही जश्न मना रही है। साथ में हार की समीक्षा भी होती है, जो भाजपा जिला से लेकर राष्टÑीय स्तर पर कर रही है। जीत के जश्न में झामुमो और कांग्रेस की कमियां छिप गयी हैं, पर हार ने भाजपा की कमियों को और उजागर कर दिया है और नेता से लेकर कार्यकर्ता तक इस हार की वजह तलाशने में जुटे हुए हैं। हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष ने इस्तीफा दे दिया है, लेकिन नये प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हुई है और न भाजपा विधायक दल के नेता का चयन हुआ है। इससे भाजपा के नवचयनित विधायकों के समक्ष भी असमंजस की स्थिति है। झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार और उसके कारणों के साथ पार्टी में भड़के असंतोष की पड़ताल करती दयानंद राय की रिपोर्ट।

    विस्फोट से पहले ज्वालामुखी का क्रेटर जिस तरह सुलगता है, कुछ उसी तरह झारखंड में भाजपा पार्टी की करारी हार के बाद अंदर ही अंदर असंतोष की आग सुलग रही है। हालांकि मुख्यमंत्री रघुवर दास और प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ के बाद पार्टी के राष्टÑीय नेतृत्व ने हार की जिम्मेवारी ली है, पर पार्टी नेता और कार्यकर्ता इससे संतुष्ट होते नहीं दिख रहे हैं। उनमें सत्ता जाने के आद असंतोष बढ़ रहा है और इससे निबटने की कोई अचूक रणनीति तलाश करने में भाजपा लगी हुई है। पर इसमें पार्टी को अभी सफलता नहीं मिली है। पार्टी के राष्टÑीय अध्यक्ष अमित शाह ने गुरुवार को कहा कि झारखंड में भाजपा की हार आत्मचिंतन का विषय है और पार्टी अध्यक्ष होने के नाते वह हार की जिम्मेवारी लेते हैं। पर उनके इस बयान के बाद भी पार्टी में असंतोष कम होने का नाम नहीं ले रहा है। हार के बाद से भीतर से सुलग रही भाजपा में नेतागण एक-दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ने में लगे हैं। गुरुवार को अपने आवास पर आयोजित प्रेसवार्ता में पार्टी के खूंटी से सांसद और कैबिनेट मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि चुनाव में हार-जीत के कई कारण होते हैं और पार्टी को हार का सामना क्यों करना पड़ा, इसकी संगठन स्तर पर समीक्षा होगी।

    भाजपा की हार के एक नहीं, कई कारण हैं
    जो भाजपा वर्ष 2014 के विधानसभा चुनावों में 81 में से 37 सीटें अकेले अपने दम पर जीतने में सफल रही थी और इसी वर्ष मई में हुए लोकसभा चुनावों में 14 में से 11 सीटें जीतने में सफल रही थी, वह आक्रामक कैंपेन और स्टार प्रचारकों की जंबो जेट फौज के बाद भी क्यों हारी, इसके एक नहीं कई कारण हैं। झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव में एक नहीं, कई गलतियां की, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा। पार्टी ने प्रत्याशियों के चयन में कार्यकर्ताओं की भावना का ध्यान नहीं रखा। चुनाव में प्राथमिकता क्या है और किन मुद्दों पर जनता को विश्वास में लेना है, यह भी तय नहीं कर पायी। राज्य के आदिवासी समुदाय का विश्वास जीतने में पार्टी असफल रही, इसलिए 28 एसटी सीटों में से 26 सीटों पर भाजपा को हार मिली। पार्टी के सारे निर्णय एक व्यक्ति पर केंद्रित रहे, इसका भी नुकसान हुआ। वहीं पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं पर भरोसा जताने की जगह पार्टी ने आयातित नेताओं पर भरोसा किया। इसका भी नतीजा अच्छा नहीं हुआ। अर्जुन मुंडा और कड़िया मुंडा जैसे नेताओं ने पहले ही साफ किया था कि सीएनटी और एसपीटी एक्ट से छेड़छाड़ अच्छी नहीं, पर पार्टी ने इनकी सलाह को दरकिनार किया। भाजपा और आजसू का गठबंधन न होने और विपक्ष के गठबंधन के मजबूत होने का खामियाजा भी भाजपा को भुगतना पड़ा। सरयू राय को टिकट नहीं देना और उनका रघुवर के खिलाफ चुनाव लड़ने से भी गलत संदेश गया। सरयू राय मुद्दों पर राजनीति के लिए जाने जाते हैं और उनकी बात हल्की नहीं होती। वहीं पार्टी की हार के कारणों पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि विपक्ष का गठबंधन एकजुट था। उनके नकारात्मक अभियान का मुकाबला भाजपा नहीं कर पायी। आजसू के साथ दोस्ती टूटने से आजसू और भाजपा दोनों को नुकसान हुआ। झारखंड विधानसभा की 16 सीटें ऐसी थीं, जहां साथ लड़ते तो हमारी जीत होती, पर ऐसा नहीं होने से हमें हार का सामना करना पड़ा। भाजपा और आजसू में गठबंधन नहीं होने का संदेश भी जनता में अच्छा नहीं गया।
    इन तमाम मुद्दों के बीच में ऐन विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के दर्जन भर नेताओं के निष्कासन के फैसले पर भी सवाल उठने लगे हैं। पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अमरप्रीत सिंह काले द्वारा आलाकमान को भेजे गये पत्र के बाद भाजपा के भीतर का असंतोष जोर पकड़ने लगा है। इस पत्र में बहुत सी बातें कही गयी हैं, जिन पर विचार करने की आवश्यकता जतायी गयी है।

    भविष्य में पार्टी क्या करेगी
    भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं में अभी जो असंतोष की स्थिति है, उससे निबटने के लिए भाजपा बहुत गंभीरता से चिंतन कर रही है। हार के कारणों पर चिंतन के लिए पार्टी जिला से लेकर केंद्रीय स्तर तक समीक्षा करेगी। इस क्रम में सांसदों से भी सवाल पूछे जायेंगे और उनके प्रदर्शन पर भी बात होगी। भाजपा के दो सांसदों विद्युतवरण महतो और सुदर्शन भगत का प्रदर्शन विधानसभा चुनाव में अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा है। ऐसे में उनके नेतृत्व और कार्यशैली पर सवाल उठ सकते हैं। हार के कारणों की समीक्षा के बाद पार्टी एक सर्वमान्य चेहरे को नया प्रदेश अध्यक्ष बनायेगी, इसकी चर्चा हर तरफ है। विधायक दल के नेता के रूप में भी पार्टी को एक सर्वमान्य चेहरा चाहिए। विधानसभा चुनाव में हार के बाद भाजपा 2024 में होनेवाले लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर रणनीति बनायेगी। पार्टी नेताओं के परफॉरमेंस को समीक्षा का आधार बनायेगी और उसी के आधार पर आगे की रणनीति तय करेगी। पार्टी को उम्मीद है कि जो असंतोष की आग सुलगी है, उस पर वह मल्टी लेयर्ड रणनीति से काबू पाने में सफल रहेगी और आगामी चुनावों में प्रदर्शन सुधारने में भी। यह काम जितनी जल्दी हो जाये, दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के लिए उतना ही अच्छा होगा।

    Jharkhand BJP is burning inside
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