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    Home»Top Story»हेमंत तोड़ेंगे गार्ड आफ आनर की रूढ़िवादी परंपरा
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    हेमंत तोड़ेंगे गार्ड आफ आनर की रूढ़िवादी परंपरा

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJanuary 4, 2020No Comments6 Mins Read
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    अजय शर्मा
    रांची। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बोझिल हो चुकी एक व्यवस्था को तोड़ना चाहते हैं। अंग्रेज जमाने का वह सिस्टम, जो राजशाही परंपरा को दर्शाता है, अब सीएम चाहते हैं कि झारखंड में इसे बंद कर दिया जाये। गॉर्ड आॅफ आॅनर के नाम से इसे जाना जाता है। अंग्रेज कमिश्नर जब कहीं जाते थे, तब उनके सम्मान में कालीन बिछाकर पुलिसकर्मी उन्हें सैल्यूट करते थे। आजादी के बाद भी यह परंपरा जारी है। हेमंत सोरेन चाहते हैं कि वह जहां भी जायें, उन्हें गॉर्ड आॅफ आॅनर नहीं दिया जाये। वह पूरी तरह से आम नागरिक के रूप में रहना चाहते हैं। बीते गुरुवार को सीएम रजरप्पा गये थे। वहां ढेर सारे पुलिसकर्मी उनका इंतजार कर रहे थे। मंदिर के मुख्य गेट पर गॉर्ड आॅफ आॅनर की व्यवस्था थी। तेज बारिश में पुलिसकर्मी वहां डटे थे। यही बात सीएम के दिल को छू गयी। उन्होंने रांची लौटकर निर्णय लिया कि यह व्यवस्था ही समाप्त कर दी जाये। सीएम ने कहा है कि रजरप्पा में चप्पल पहन कर गॉर्ड आॅफ आॅनर लेने की घटना को अलग-अलग तरह से देखा गया। कुछ लोग इसे सादगी से जोड़कर देख रहे हैं, तो वहीं इक्के-दुक्के लोग यह बता रहे हैं कि चप्पल पहन कर मैंने परंपरा का पालन नहीं किया। सच यह है कि पुलिस के जवान भाई मेरे इंतजार में बारिश में काफी पहले से खड़े थे। इसलिए मैं जिस रूप में था, पहले उनका सम्मान किया। बकौल हेमंत सोरेन, दूसरी बात यह है कि चप्पल-जूतों के रिवाज अंग्रेजों द्वारा बनाये गये हैं। यह दकियानूसी परंपरा है, जिसे मैं नहीं मानता। पिछले शासन द्वारा मुख्यमंत्री के हर दौरे पर दिये जानेवाले गॉर्ड आॅफ आॅनर की इस परंपरा को जल्द से जल्द समाप्त करने के लिए संकल्पित हूं। इससे हमारे पुलिसकर्मी, वीवीआइपी रूढ़िवादिता में समय व्यर्थ करने की बजाय अपना समय जनता की सेवा में लगा सकेंगे। सीएम के इस फैसले की चारों तरफ प्रशंसा हो रही है। लोगों का कहना है कि लोकतंत्र में इस तरह की परंपरा को समाप्त किया ही जाना चाहिए। सीएम ने यह संकेत दिया है कि वह वीवीआइपी तामझाम से दूर रहना चाहते हैं।

    सत्ता की सामंती सोच तोड़ने की पहल का स्वागत है हेमंत जी
    त्वरित टिप्पणी
    शंभुनाथ चौधरी
    लाल बहादुर शास्त्री से जुड़ा एक प्रसंग है। वह रेल मंत्री थे। एक दफा ट्रेन से बंबई जा रहे थे। उनके लिए फर्स्ट क्लास का डिब्बा लगा था। गाड़ी खुली, तो शास्त्री को महसूस हुआ कि डिब्बे के अंदर ठंडक है, जबकि बाहर स्टेशन पर तापमान बहुत ज्यादा था। उन्होंने अपने सहयोगी से इसकी वजह पूछी, तो बताया गया कि डिब्बे में कूलर लगाया गया है। शास्त्री जी चौंक उठे- कूलर कैसे लग गया? मुझसे पूछ तो लेते। उन्होंने कहा-क्या ट्रेन में सफर कर रहे बाकी लोगों को गर्मी नहीं लग रही होगी? कायदे से मुझे भी थर्ड क्लास में सफर करना चाहिए था। चलिए, कुछ वजहों से इतना नहीं हो सकता लेकिन जितना संभव है, उतना जरूर होना चाहिए। उन्होंने कहा, अगले स्टेशन पर कूलर हटवाने का इंतजाम करवाया जाये। मथुरा स्टेशन पर ट्रेन रुकी। तय वक्त में कूलर हटवाया गया। फिर गाड़ी आगे बढ़ी।
    आज, सत्ता में आते ही नेताओं पर खुद के ‘खास’ हो जाने की जैसी हनक सवार हो जाती है, उसमें ऐसे उदाहरण दुर्लभ हैं। सत्ता हमेशा आडंबरों की इतनी दीवारें खड़ी कर देती है कि जनता के बीच से चुनकर आने वाला नेता उनसे ही दूर हो जाता है। हेमंत सोरेन दूसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं। उन्होंने अच्छी शुरुआत की कोशिश की है। चुनावी जीत के बाद बुके की जगह बुक देने का उनका आग्रह हो, खरसावां में अपने लिए स्पेशल सोफे को हटवाकर साधारण कुर्सी लगवाने की पहल हो और अब गार्ड आॅफ आॅनर की परंपरा को खत्म करने का निर्णय- इन सबसे उन्होंने एक तरीके से अपनी सदिच्छा का इजहार किया है कि वे जनसाधारण के करीब रहना चाहते हैं। ऊपर शास्त्री जी से जुड़े प्रसंग के जिक्र का आशय यह कतई नहीं कि यहां हेमंत सोरेन की तुलना उनसे की जा रही है, बल्कि सिर्फ यह बताने की कोशिश है कि जो नेता सत्ता के आडंबरों की वजह से पैदा होते फासले को पाटने में कामयाब रहते हैं, वे हमेशा लोगों के दिलों के करीब होते हैं। जिस नेतृत्व को झारखंड की जनता ने स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता सौंपी है, उससे यह उम्मीद तो हर कोई करेगा कि वह जनहित में मजबूत इच्छाशक्ति के साथ फैसले लेगा और उन पर अमल करेगा।
    बीते गुरुवार को हेमंत सोरेन जब रजरप्पा के छिन्नमस्तिका मंदिर में मत्था टेकने गये थे तो परंपरा के अनुसार उन्हें गार्ड आॅफ आॅनर पेश किया गया। हेमंत साधारण वेषभूषा में थे। उन्होंने पांवों में स्लीपर पहन रखी थी। हेमंत सोरेन ने फेसबुक पर अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए लिखा है: कुछ लोग मुझे बता रहे हैं कि चप्पल पहन मैंने गार्ड आॅफ आॅनर ले परंपरा का पालन नहीं किया। बारिश हो रही थी, लेकिन गार्ड आॅफ आॅनर देने के लिए पुलिसकर्मी पहले से खड़े कर दिये गये थे। इसलिए मैं जिस रूप में था – सबसे पहले उनका सम्मान कर उन्हें मुक्त करना जरूरी समझता था। उन्होंने कहा है कि वे मुख्यमंत्री के हर दौरे पर निभायी जाने वाली इस रूढ़िवादी परंपरा को खत्म करेंगे।
    हेमंत सोरेन के इस निर्णय का खुले दिल से स्वागत किया जाना चाहिए। उनके फेसबुक पोस्ट पर शेखर सिंह नामक एक पुलिसकर्मी ने अपने कमेंट में लिखा है-कल तक तो मैं भी यही बात सोच रहा था सर कि आपने चप्पल में गार्ड आॅफ आॅनर क्यों लिया? क्योंकि मैं भी एक पुलिसकर्मी हूं इसलिए ये बात मुझे पता थी…. पर आज आपकी बात, आपकी सादगी और पुलिस के प्रति आपकी सोच के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। वो दिन दूर नहीं, जब आप झारखंड की गद्दी के साथ साथ जनता के दिलों पर भी राज करेंगे।

    हकीकत यही है कि पुलिस महकमे में निचले दर्जे के कर्मियों को आज भी अंग्रेजों के दौर से चली आ रही कई दकियानूसी परंपराओं का पालन करना पड़ रहा है। कुछ नियम पुलिस के किसी मैन्युअल में दर्ज नहीं, लेकिन सत्ता के मठाधीशों ने अपनी मर्जी से सामंती रवायतें गढ़ दीं। सुरक्षाकर्मियों का नेताओं से लेकर उनके बीवी-बच्चों तक का थैला ढोने, दौड़कर गाड़ी का दरवाजा खोलने, पांवों में जूते पहनाने की तस्वीरें आम हैं। सवाल उठना लाजिम है कि जिन जवानों को सुरक्षा के लिए नियुक्त किया गया है, उनसे इस तरह का सलूक क्यों ? आज ही राजस्थान के कोटा स्थित अस्पताल में बच्चों की मौत के बाद निरीक्षण करने पहुंचे मंत्री के स्वागत में ग्रीन कारपेट बिछाये जाने की तस्वीर पर पूरे देश में चर्चा हो रही है। सोचिए, स्वागत की परंपरा के नाम पर संवेदनहीनता की इससे बढ़कर पराकाष्ठा और क्या हो सकती है? इसलिए, सत्ता की सामंती सोच और रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ने के लिए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पहल की है तो इसकी सराहना होनी ही चाहिए।

    Hemant will break the conservative tradition of guard of honor
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