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    Home»Jharkhand Top News»हेमंत के काफिले पर हमले से सबक लें अफसर
    Jharkhand Top News

    हेमंत के काफिले पर हमले से सबक लें अफसर

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskJanuary 8, 2021No Comments6 Mins Read
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    मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के काफिले पर चार जनवरी को रांची के किशोरगंज इलाके में हुए हमले से राज्य की सियासत एकबारगी गरम हो गयी है। सत्तारूढ़ झामुमो और उसके सहयोगी दलों ने जहां इस हमले के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया है, वहीं भाजपा इस घटना को राज्य की कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति से जोड़ कर सड़क पर उतर चुकी है। दूसरी तरफ झामुमो ने भी बाकायदा सड़क पर उतर कर भाजपा का पुतला जलाया है। इस तरह साफ हो गया है कि आनेवाले दिनों में किशोरगंज की वारदात एक बड़ा और प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन जायेगी। ऐसे में दोनों पक्षों के बीच टकराव की आशंका भी स्वाभाविक तौर पर बढ़ गयी है। इसलिए पुलिस-प्रशासन को किशोरगंज की घटना से सबक लेकर आगे की तैयारी करनी चाहिए, ताकि किसी भी संभावित टकराव को समय रहते टाला जा सके। इसके साथ ही पुलिस-प्रशासन को सभी स्तरों पर आत्ममंथन भी करना चाहिए कि सीएम की सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक आखिर कैसे हो गयी। इस वारदात ने साबित कर दिया है कि पुलिस-प्रशासन खासकर थाना का आम लोगों से संपर्क कमजोर हो रहा है और जरूरी सूचनाएं भी उस तक नहीं पहुंच रही हैं। इस तरह किशोरगंज की एक वारदात ने अपने साथ कई सवाल तो छोड़े ही हैं, कई सीख भी दी है, जिन पर अभी से ही काम करने की जरूरत है। इस वारदात के संभावित राजनीतिक परिणाम और पुलिस-प्रशासन के सामने उत्पन्न चुनौती को रेखांकित करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के काफिले पर चार जनवरी को हुए हमले की घटना ने राजनीतिक वार छेड़ दिया है। भाजपा के आंदोलन के खिलाफ सत्तारूढ़ झामुमो और सहयोगी भी इसे लेकर सड़क पर उतर गये हैं। झामुमो और उसके सहयोगी दलों ने इस घटना को जहां भाजपा की कारस्तानी करार दिया है, वहीं भाजपा ने इसे राज्य की खराब होती कानून-व्यवस्था का परिचायक बताते हुए आंदोलन का एलान किया है। इस घटना की राजनीतिक प्रतिक्रिया पूरी तरह स्वाभाविक है, क्योंकि आक्रामक राजनीति के वर्तमान दौर में ऐसी घटनाएं अकसर राजनीतिक मुद्दा ही बनती हैं। चाहे यूपी के हाथरस की घटना हो या फिर अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत, बदायूं का दुष्कर्म कांड हो या बंगाल के वर्द्धमान में नरेन मंडल हत्याकांड, या अब रांची के ओरमांझी की दिल दहला देनेवाली घटनाएं-ये अकसर राजनीतिक दलों को ईंधन मुहैया कराती हैं।
    झारखंड में अपनी तरह की इस पहली वारदात ने राजनीतिक माहौल गरमा दिया है, अब तो इसे लेकर टकराव की जमीन भी तैयार होने लगी है। आम तौर पर राजनीतिक आंदोलनों में हिंसक गतिविधियां नहीं होती हैं, लेकिन मामला जब हिंसा के विरोध का हो, तो फिर ऐसे तत्वों को रोकने के लिए जरूरी तैयारी पहले से कर लेनी चाहिए। किशोरगंज में मुख्यमंत्री के काफिले में चल रहे वाहन पर भीड़ की ओर से किये गये हमले की घटना के खिलाफ सत्ताधारी झामुमो ने भी पूरे राज्य में भाजपा का पुतला दहन किया और इस दौरान खूब नारेबाजी भी हुई। सोशल मीडिया पर भी खूब आरोप-प्रत्यारोप लगातार चल रहे हैं। ऐसे में इन आरोप-प्रत्यारोपों पर बारीक निगाह रखने की जरूरत है, ताकि किसी संभावित टकराव को समय से पहले ही टाला जा सके। इसके लिए पुलिस-प्रशासन को पूरी तरह सचेत और सक्रिय होने की जरूरत है। पुलिस-प्रशासन को समझना होगा कि लकीर पीटने भर से अब काम नहीं चलनेवाला है, बल्कि अब ऐसी परिस्थिति पैदा करनी है कि लकीर ही नहीं खिंच सके।
    दरअसल किशोरगंज की घटना ने पुलिस-प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती पेश कर दी है। इस घटना ने साफ कर दिया है कि पुलिस-प्रशासन का आम जनता से संपर्क लगातार कम हो रहा है और उसके पास जरूरी सूचनाएं नहीं आ रही हैं। यह पुलिस अधिकारियों की समाज से दूरी ा का नतीजा है। यह कल्पना भी नहीं की जा सकती है कि एक सिर कटी लाश की पहचान पांच दिन तक नहीं हो पाये। यह पुलिस के सूचना तंत्र और उसकी कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। ऐसा नहीं है कि झारखंड पुलिस काम नहीं कर रही है, लेकिन अब हर स्तर के पुलिस अधिकारियों को समझना होगा कि इतने भर से काम नहीं चलनेवाला है। उन्हें अधिक चुस्त-चौकस होने की जरूरत है। इसके लिए पुलिस बल को हर स्तर पर प्रयास करना होगा और उन्हें अधिक तन्मयता से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना होगा। इतना ही नहीं, पुलिस अधिकारियों को इस बात को लेकर आत्ममंथन भी करना चाहिए कि आखिर राज्य के मुखिया की सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक कैसे और किन परिस्थितियों में हो गयी। यह मंथन भी सर्वोच्च स्तर से लेकर निचले स्तर तक के पुलिसकर्मियों के लिए बेहद जरूरी है।
    इन तमाम सवालों और परिस्थितियों के बीच एक बात जो सुकून देती है, वह है मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का संयम। अपने काफिले पर भीड़ द्वारा हमला किये जाने के बावजूद उन्होंने अब तक संयम बनाये रखा है। वह चाहते तो बड़ी आसानी से इसे तूल दे सकते थे और कार्रवाई का आदेश दे सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया है। बल्कि इसमें पुलिस अपने हिसाब से काम कर रही है। यदि इस तरह की घटना किसी दूसरे राज्य में हुई होती, तो अब तक न जाने कितने अधिकारी नप चुके होते। हाल ही में बंगाल में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष के काफिले पर हमला हुआ, तो उसका किस कदर हल्ला मचाया गया, यह सर्वविदित है। लेकिन झारखंड में मुख्यमंत्री के स्तर पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं किया जाना गंभीर और जनोन्मुख राजनीति का परिचायक है। मुख्यमंत्री को इस बात का एहसास है कि यदि उन्होंने इस घटना के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया, तो इलाके के कई निर्दोष लोग बेवजह मुश्किल में पड़ जायेंगे। इसलिए उन्होंने घटना के जिम्मेवार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पुलिस-प्रशासन को पूरी तरह खुला छोड़ दिया है।
    कुल मिला कर किशोरगंज की घटना ने पुलिस-प्रशासन के सामने बड़ा सवाल यह खड़ा कर दिया है कि आखिर उसका सूचना तंत्र इतना कमजोर कैसे हो गया। इलाके की शांति समितियों और समाज के ऐसे वर्ग के लोगों के साथ उसका रिश्ता बिखर क्यों रहा है। इस सवाल के साथ अब पुलिस-प्रशासन को आम लोगों को यह भरोसा भी दिलाना होगा कि वह राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति को बनाये रखने के लिए पूरी तरह मुस्तैद है। जब तक ऐसा नहीं होगा, किशोरगंज की घटना जैसी वारदात होती रहेंगी और उसकी आग में शहर और गांव झुलसते रहेंगे। पुलिस के लिए किशोरगंज की घटना के आरोपियों को पकड़ना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है सिर कटी युवती की पहचान करना, उसके हत्यारों को पकड़ना और सजा दिलाना। पुलिस याद रखे, अगर उसने ओरमांझी की घटना का जल्द पर्दाफाश नहीं किया, तो एक वर्ग उसे बार-बार कठघरे में खड़ा करेगा। यह भी कि ऐसी घटनाओं की जिम्मेदारी अब बड़े अधिकारियों को भी लेनी होगी। खास कर पुलिस कप्तानों को। ऐसा नहीं हो कि जब अपराधी पकड़े जायें तो उनके बारे में वरीय अधिकारियों को पहले ही सूचना मिल जाती है और वे टीम गठित कर उन्हें पकड़वा भी लेते हैं, लेकिन जब कोई रूह कंपा देनेवाली घटना घट जाती है, तो उसके बारे में अधिकारियों को कोई सूचना नहीं मिलती। अब हर हाल में जिला के पुलिस कप्तानों को गंभीर घटनाओं की जिम्मेदारी तो लेनी ही होगी, यही है समय का तकाजा, सिर्फ थाना पुलिस को दोषी ठहरा कर उन पर कार्रवाई कर देना न्यायोचित नहीं है।

    Officers take lessons from attack on Hemant's convoy
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