हर बड़ा सपना अपनी पूर्णाहूति के लिए बड़े संघर्ष की मांग करता है। और बंगाल चुनाव में देश की अन्य पार्टियों की तरह अपनी ताकत झोंक, खुद को विस्तार देने के लिए झामुमो और आजसू भी संघर्ष कर रही है। दोनों दल वृहद झारखंड के सपने के हिमायती हैं और भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियां इस मुद्दे पर बात करने से बचती हैं। बंगाल चुनाव में झामुमो और आजसू के उतरने की बड़ी वजह तो ये है कि दोनों पार्टियां यहां विस्तार की संभावनाएं देख रही हैं। दोनों पार्टियां राज्य से सटे पुरुलिया, बांकुड़ा और मिदनापुर जैसे बंगाल के आदिवासी इलाकों की विधानसभा सीटों पर नजरें गड़ाये हुए हैं। झामुमो और आजसू दोनों इन इलाके में अपने विस्तार की संभावनाएं देखती हैं। दोनों दलों ने वर्ष 2016 के बंगाल विधानसभा चुनाव में भी किस्मत आजमायी थी, पर यहां अपना खाता खोलने में विफल रहे थे। इस बार भी दोनों दल यहां चुनाव लड़ने के लिए रेस हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस बार झामुमो और आजसू यहां अपना खाता खोल पायेंगे।बंगाल चुनाव में झामुमो और आजसू की चुनावी रणनीति की पड़ताल करती दयानंद राय की रिपोर्ट।
वर्ष 2016 के बंगाल विधानसभा चुनाव में झामुमो ने 20 और आजसू ने 12 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। पर दोनों ही दलों को यहां सीटें जीतने में सफलता नहीं मिली थीं। इस बार झामुमो और आजसू दोनों पार्टियां यहां रेस हैं। झामुमो महासचिव विनोद पांडेय कहते हैं कि बंगाल के लोगों की अपेक्षाएं झारखंड मुक्ति मोर्चा से हैं। पार्टी का यहां मजबूत संगठन है, इसलिए बंगाल की जनता के हक की लड़ाई लड़ने के लिए हम चुनाव के मैदान में हैं। 28 जनवरी को पार्टी की झारग्राम में रैली है। इस रैली में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी रहेंगे। रैली के बाद पार्टी की बंगाल प्रदेश कमिटी के लोगों के साथ विचार-विमर्श के बाद कितनी सीटों पर पार्टी प्रत्याशी उतारेगी, यह तय किया जायेगा। वहीं, आजसू पार्टी की बात करें तो आजसू अपने दो राज्यस्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन पुरुलिया और लहरिया में कर चुकी है। आजसू के केंद्रीय प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत ने बताया कि बंगाल चुनाव में पार्टी कितनी सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी, यह तय किया जाना बाकी है, पर पार्टी का बंगाल चुनाव लड़ना तय है। मिदनापुर, बांकुड़ा और पुरुलिया के साथ झारग्राम की विधानसभा सीटों पर पार्टी की चुनाव में उतरने की योजना है। इन चार जिलों में 43 विधानसभा सीटें आती हैं। हम यहां वोट की नहीं बल्कि यहां के लोगों को उनका हक दिलाने की राजनीति कर रहे हैं। यहां लीडरशिप का अभाव था, जिससे यहां के लोगों को उनका हक नहीं मिल पाया। आजसू पार्टी यहां के लोगों के हक की आवाज बनेगी।
बंगाल में दोनों दलों के लिए स्कोप बहुत है
झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि बंगाल में झारखंड से सटे चार जिलों पुरुलिया, बांकुड़ा, मिदनापुर और झारग्राम में 43 विधानसभा सीटें आती हैं। इस लिहाज से 81 विधानसभा सीटों वाले झारखंड की आधी से अधिक सीटें यहां हैं। इस इलाके की संस्कृति झारखंड की संस्कृति से मेल खाती है और यह इलाका ब्रिटिश काल से ही उपेक्षा का शिकार रहा है। इससे यहां के लोगों को सार्थक नेतृत्व की तलाश है। झामुमो और आजसू वृहद झारखंड राज्य के सपने के हिमायती रहे हैं। ऐसे में यहां के लोगों की आवाज बनकर दोनों न सिर्फ अपना विस्तार कर सकेंगे बल्कि अपने सपने को पूरा करने की दिशा में भी कदम बढ़ायेंगे। झारखंड की राजनीति में झामुमो और आजसू दोनों के पास विजनरी नेतृत्व है। झामुमो जहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में जनाधार के विस्तार की दिशा में अग्रसर है, वहीं आजसू भी सुदेश महतो के नेतृत्व में लगातार आगे बढ़ रही है। दोनों पार्टियां क्षेत्रीय दल की अपनी संज्ञा से मुक्त होकर राष्टÑीय दल बनने का सपना पूरा करना चाहती हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली में आम आदमी पार्टी को स्थापित करने के बाद देश के अन्य राज्यों में उसका विस्तार करने में जुटे हुए हैं। झामुमो और आजसू दोनों ही राष्ट्रीय फलक पर छाना चाहते हैं। ऐसे में बंगाल चुनाव दोनों ही पार्टियों के लिए एक सुनहरा अवसर है। आजसू पार्टी ने पुरुलिया में हुए राज्यस्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन में मानभूम-जंगलमहल क्षेत्रीय प्रशासन की मांग करके अपना मास्टरस्ट्रोक चल दिया है। वहीं झामुमो की बंगाल प्रदेश कमिटी यहां संगठन को मजबूत करने में जुटी हुई है। इस लिहाज से दोनों दल यहां पूरी मेहनत कर रहे हैं। बीते विधानसभा चुनाव में यहां भले ही दोनों दलों को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली, लेकिन इस प्रयास में दोनों दलों का संगठन यहां मजबूत होता गया है। दोनों दलों के पास प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की तदाद भी खड़ी हो रही है। ऐसे में बंगाल चुनाव में ताकत झोंकना दोनों दलों के लिए फायदे का ही सौदा है।
परिणाम अच्छे आ सकते हैं
बंगाल चुनाव के लिए झामुमो और आजसू जिस तरह से सक्रिय हैं ऐसे में इसके अच्छे परिणाम दोनों दलों को मिल सकते हैं। 28 जनवरी की झामुमो की झारग्राम में होनेवाली रैली के लिए पार्टी वृहद स्तर पर तैयारियां कर रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस रैली को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करेंगे। ऐसे में इस रैली के बाद झामुमो का स्टैंड पूरी तरह साफ हो जायेगा। जहां तक आजसू का सवाल है तो उसकी रणनीति की झलक दो कार्यकर्ता सम्मेलनों में मिल चुकी है। दोनों दलों में बंगाल की राजनीति में बड़ी ताकत के रूप में उभरने की पूरी गुंजाइश है, लेकिन इसके लिए मेहनत भी दोनों दलों को कठोरता से करनी होगी। सटीक रणनीति और क्षेत्र की जनता की आवाज बनने में यदि दोनों दल सफल रहे तो विधानसभा चुनाव के परिणाम दोनों दलों के लिए अच्छे निकल सकते हैं।