दुनिया भर में सनातन संस्कृति के परिचायक भारत में भक्ति के अनेक रूप हैं। जिसमें एक प्रमुख है बाबा भोले शंकर की आराधना के लिए कांवर यात्रा। देश के विभिन्न हिस्सों में सावन के महीने में कांवरिया गंगा नदी से जल लेकर विभिन्न चर्चित शिवालयों में जाते हैं। लेकिन बिहार के मिथिला में माघ महीने के कड़ाके की ठंड में भी कांवर यात्रा होती है और यह कांवर यात्रा देश की सबसे लंबी कांवर यात्रा होती है। मिथिला की राजधानी कहे जाने वाले दरभंगा और आसपास के जिलों से हजारों शिवभक्त तीन सौ किलोमीटर से भी अधिक की यात्रा कर बसंत पंचमी (सरस्वती पूजा) के अवसर पर झारखंड के देवघर में रावण द्वारा स्थापित बाबा बैद्यनाथ की पूजा-अर्चना करने करते हैं। इसका कांवर यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि देश के अन्य हिस्सों के शिवभक्त दो से ढ़ाई किलो के कांवर में सिर्फ जल लेकर शिवालय पहुंचते हैं लेकिन मिथिला के यह हठी शिवभक्त अपने कंधे पर 25 किलो से भी अधिक वजन का कांवर लेकर चलते हैं। उस कांवर में ना केवल जल होता है, बल्कि 20 दिनों से अधिक की यात्रा के दौरान रास्ते में करने वाले भोजन की भी सभी सामग्री रहती है।

इसी कड़ी में एक बार फिर दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर तथा नेपाल के हजारों से भक्त बेगूसराय के रास्ते देवघर की ओर लगातार प्रस्थान कर रहे हैं। यह लोग दरभंगा से चलकर रोसड़ा से आगे बढ़ने के बाद बेगूसराय के दो विभिन्न रास्तों से चलकर मुंगेर घाट में गंगा नदी पार करते हैं और सुल्तानगंज होते हुए देवघर पहुंचते हैं। कुछ लोग खोदावंदपुर, चेरिया बरियारपुर, मंझौल के रास्ते आगे बढ़ते हैं, जबकि अधिकतर कांवरिया छौड़ाही, गढ़पुरा, बखरी के रास्ते चलते हैं। यह लोग बसंत पंचमी के दिन पांच फरवरी को देवघर में बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करेंगे। उसी दिन फौजदारी बाबा के नाम से चर्चित बासुकीनाथ का भी जलाभिषेक करेंगे और वापसी का रास्ता अलग होगा। वापसी के दौरान यह लोग मिथिला के प्रवेश द्वार सिमरिया में गंगा स्नान कर जल लेकर अपने घर पहुंचते हैं।

बसंत पंचमी के अवसर पर देवघर में बाबा भोलेनाथ पर जलाभिषेक के लिए कांवरियों के जाने का सिलसिला लगातार जारी है। बड़ी संख्या में कावंरियों का झुंड पिछले पांच दिनों से बेगूसराय जिला होते हुए देवघर के लिए आगे बढ़ रहे हैं, जिससे पुरे इलाके में आस्था की बयार बह रही है। सुबह से रात तक पूरा इलाका ”बोल बम का नारा है बाबा एक सहारा है” से गूंज रहा है। इसमें सबसे खास बात यह देखी जाती है कि कांवरियों के झुंड में पुरुष के साथ महिलाएं भी आस्था पूर्वक कांवर लेकर ओम नमः शिवाय का जप करते हुए आगे बढ़ते हैं। बताया जाता है इनका रात्रि पड़ाव पूर्व से निर्धारित होता है, जत्थे में शामिल नवयुवक साथी अपने पड़ाव पर पहुंच कर अन्य साथियों के लिए खान-पान एवं अलाव की व्यवस्था करते हैं। जबकि स्थानीय लोग इन कांवरियों को सुख-सुविधा मुहैया कराने के लिए तत्पर रहते हैं।

ग्रामीण इन कांवरियों की सेवा के लिए हर संभव सहायता करते हैं। रात्रि के समय आवासन, ठहराव, शौच एवं पेयजल आदि की सुविधा बहाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। बताया जाता है दिन ही नहीं रात्रि के समय भीषण ठंड में भी शौच के उपरांत स्नान करना होता है, तभी आगे बढ़ सकते हैं, अलाव की व्यवस्था सबसे अहम होती है। दिन में भी अगर कहीं शौच की आवश्यकता महसूस हुई तो काम पर रखने के लिए पहले सफाई की जाती है, उसके बाद शौच से आने पर स्नान करने के बाद ही यह आगे बढ़ सकते हैं। जब कांवरियों के द्वारा अलाव के बगल में खड़ा होकर बाबा भोलेनाथ का भजन प्रारंभ किया जाता है तो आसपास के लोग भी सुनने के लिए उमड़ पड़ते हैं। इस दौरान लोग घंटों आस्था में लीन होकर झूमते रहते हैं, जिससे पूरा इलाका भक्तिमय बना रहता है।

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