विशेष
रविवार के साथ शुरू होनेवाला वर्ष 2023 दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए सियासी सरगर्मियों और चुनावों के नाम होगा। इस वर्ष देश के नौ राज्यों में चुनाव होंगे, जबकि जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव की तैयारियां हो रही हैं। 2024 के शुरू में ही लोकसभा चुनाव होने हैं, इसलिए 2023 को लोकसभा का चुनावी वर्ष भी मान सकते हैं। इसी साल लोकसभा चुनाव के रण की तैयारी भी होगी और विभिन्न राज्यों में विधानसभा चुनावों का भी तांता लगा रहेगा। आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश का निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण प्रकरण के बाद काफी अहम और चर्चित हो गया है। यह चुनाव भी 2023 में ही होना है। दिल्ली की कुर्सी समेत सबसे अधिक राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगियों की सत्ता है। इसलिए अपनी हुकूमतों को बचा पाने के लिए भाजपा के लिए आगामी वर्ष बेहद चुनौतीपूर्ण और सियासी व्यस्तता भरा होगा। दूसरी तरफ कांग्रेस और भाजपा विरोधी तमाम क्षेत्रीय दलों के लिए 2023 ‘करो या मरो’ के संघर्ष से भरा होगा। भाजपा जैसे शक्तिशाली दल से लड़ने के लिए आगामी वर्ष में विपक्षी दलों की एकजुटता के प्रयास किसी बड़ी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होंगे। इसलिए साल 2023 किसी के लिए रहे या नहीं, भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। विभिन्न राज्यों के चुनावी नतीजे लोकसभा चुनाव के नतीजों की आहट बतायेंगे। ऐसे ही देश के कई राज्यों में कांग्रेस, भाजपा और क्षेत्रीय दलों का कॉकटेल जनाधार विधानसभा चुनावों में यह भी तय करेगा कि किस क्षेत्रीय दल का किस राष्ट्रीय पार्टी से कैसा रिश्ता है। 2023 में लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनावों की तैयारियों की बेला में सरकारें जन कल्याणकारी योजनाओं की झड़ी से जनता को लुभाने का भरपूर प्रयास करेंगी। इसके अतिरिक्त चुनावी सियासत ध्रुवीकरण के प्रयास और भावनात्मक कार्ड खेलने का माहौल भी पैदा कर सकती है। 2023 में ही अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर का निर्माण भी पूरा हो जाने की पूरी संभावना है। इसके अतिरिक्त संभावना है कि समान नागरिक कानून पास करवा कर भाजपा चुनावों में लाभ लेने का प्रयास करे। हिंदुत्व, विकास, राष्ट्रवाद के मुद्दों और ध्रुवीकरण की बिसात की काट के बीच पिछड़ा वर्ग, आरक्षण, महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों का शोर भी 2023 में सुनाई देगा। वर्तमान में झारखंड के जो राजनीतिक हालात हैं और जिस तरह से केंद्र-राज्य संबंधों में खटास है, वैसे में यहां भी राजनीतिक शोर मचने की आशंका प्रबल है। इस तरह देखा जाये, तो 2023 का साल सियासी सरगर्मियों से भरा होगा। इन सियासी गतिविधियों पर नजर दौड़ा रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंंह।
दुनिया भर में 2023 के आगमन को लेकर खासा उत्साह है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भी इससे अछूता नहीं है। लेकिन तमाम धूम-धड़ाकों के बीच भारत में इस बात की भी चर्चा हो रही है कि यह साल पूरी तरह सियासी गतिविधियों और चुनावी बिसात का साल होगा। राजनीतिक रूप से यह साल काफी महत्वपूर्ण होनेवाला है। इसके साथ ही इस पूरे साल सियासी गर्मी बनी रहेगी, क्योंकि मध्यप्रदेश और राजस्थान समेत नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव इसी साल होंगे। इतना ही नहीं, कश्मीर में भी चुनाव की तैयारियां हो रही हैं। इसके साथ ही 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर भी सियासी बिसात इसी साल बिछनी शुरू हो जायेगी। नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम तय करेंगे कि दिल्ली का सफर किस पार्टी के लिए आसान होना वाला है। ऐसे में इस साल सियासी गहमागहमी बनी रहेगी।
पूर्वोत्तर से पश्चिम तक चढ़ेगा सियासी पारा
साल 2023 चुनावी मौसम वाला रहेगा। यह मौसम किस पार्टी के लिए खुशनुमा रहेगा, यह तो वक्त बतायेगा, लेकिन प्रत्येक राजनीतिक पार्टी के लिए इस साल हो रहे विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना मजबूरी है, क्योंकि इससे 2024 के आसन्न लोकसभा चुनाव के लिए मजबूत सियासी पिच तैयार हो जायेगी, साथ ही जनता के बीच सकारात्मक संदेश भी जायेगा। अब देखना अहम होगा कि क्या विपक्षी दल एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ उतरते हैं या फिर कोई अलग रणनीति अपनाते हैं।
इन राज्यों में होंगे विधानसभा चुनाव
साल 2023 में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होनेवाले हैं। बताया जा रहा है कि जम्मू कश्मीर में भी चुनाव कराया जा सकता है। हालांकि इसको लेकर अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। साल 2023 का विधानसभा चुनाव हर पार्टी के लिए सेमीफाइनल साबित होगा। असल राजनीतिक फाइनल मुकाबला तो 2024 लोकसभा चुनाव में देखने को मिलेगा। वैसे भाजपा और कांग्रेस समेत अन्य दलों ने चुनावी मौसम को देखते हुए कमर कसनी शुरू कर दी है। राजनेताओं की उन राज्यों में सक्रियता तेज हो गयी है, जिन राज्यों में इस साल विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा इसी से जोड़ कर देखी जा रही है।
इस साल कांग्रेस की होगी अग्नि परीक्षा
यह साल कांग्रेस के लिए राजनीतिक लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हाल ही में आये चुनाव परिणाम में भले ही हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने वापसी की हो, लेकिन पार्टी की अन्य राज्यों में हालत बहुत अच्छी नहीं है। कांग्रेस को आगामी नौ राज्यों में होनेवाले विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंकनी ही होगी और बेहतर प्रदर्शन करना होगा। हालांकि भाजपा के सामने कांग्रेस के लिए यह काम इतना आसान भी नहीं है। वैसे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी को लेकर ही देखा जा रहा है। साथ ही उन राज्यों से होकर राहुल गांधी की पदयात्रा गुजरी है, जहां पर इस साल विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। इस हिसाब से राहुल गांधी एक तीर से दो शिकार कर रहे हैं। वैसे वक्त बतायेगा कि इस पदयात्रा से कांग्रेस पार्टी को कितना नफा या नुकसान हुआ।
गहलोत-पायलट की जंग बनी सिरदर्द
देशभर की निगाहें इस साल राजस्थान में होनेवाले विधानसभा चुनाव पर हैं। सत्तारूढ़ कांग्रेस इस राज्य में अंदरूनी कलह से जूझ रही है। भाजपा इसका फायदा उठाने के लिए टकटकी लगा कर देख रही है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सत्ता के लिए संघर्ष खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। कई बार इन दोनों के बीच में समझौता कराने के लिए हाइकमान को भी सामने आना पड़ा, लेकिन उसका कोई फर्क नहीं पड़ा। राजस्थान में साल 2018 में कांग्रेस ने विधानसभा की दो सौ में एक सौ सीटें जीत कर भाजपा को सत्ता से बेदखल किया था। 2013 के चुनाव में 163 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल करनेवाली भाजपा साल 2018 में महज 73 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पायी। इस साल फिर से भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है। हालांकि सीएम अशोक गहलोत और उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट के बीच की टक्कर खत्म न होने से कांग्रेस के लिए सिरदर्द बना हुआ है, जो कि पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है।
दक्षिण के राज्यों पर भाजपा की नजर
कर्नाटक में भी इसी साल चुनाव होने जा रहे हैं। एकमात्र दक्षिणी राज्य को बचाने के लिए भाजपा अभी से तैयारी में जुट चुकी है। साल 2018 में पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बाद इस राज्य में खूब ड्रामे हुए थे, साथ ही जम कर बवाल भी हुआ था। त्रिशंकु विधानसभा के बाद बीएस येदियुरप्पा को राज्यपाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलायी, लेकिन बाद में बहुमत नहीं जुटा पाने की वजह से उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद कांग्रेस ने जनता दल (सेक्यूलर) के साथ गठबंधन कर एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व में सरकार बनायी। हालांकि 14 महीने बाद सत्तारूढ़ गठबंधन के एक दर्जन से ज्यादा विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और कुमारस्वामी की सरकार गिर गयी। इसके बाद जुलाई 2019 में येदियुरप्पा के स्थान पर भाजपा ने बसवराज बोम्मई को सीएम बनाया। कर्नाटक भाजपा के लिए इस हिसाब से काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दक्षिण भारत का एकमात्र राज्य है, जहां पर भाजपा शासन कर रही है।
तेलंगाना में भाजपा का यह है प्लान
जब से केंद्र में मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी है, तब से पार्टी हर राज्य के चुनाव को उतना ही तवज्जो देती है, जितना पार्टी शासित राज्यों में देती आ रही है। इसी कड़ी में भाजपा तेलंगाना विधानसभा चुनाव में इंट्री करने के लिए अपनी रणनीति तैयार कर रही है। मौजूदा वक्त में तेलंगाना के गठन के बाद से चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति सत्ता पर काबिज है। भाजपा यहां पर पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। वैसे केसीआर मोदी को टक्कर देने के लिए केंद्र की राजनीति में काफी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। भारत राष्ट्र समिति के रूप में अपनी पार्टी को उन्होंने फिर से लांच किया है। भाजपा भी केसीआर को राज्य में कड़ी टक्कर देने के लिए जमीन पर उतर रही है। ऐसे में देखना होगा कि साल 2023 विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा होगा।
छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश में कांग्रेस फिर बनना चाहेगी सबसे बड़ी पार्टी
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने पिछले चुनाव में भाजपा के 15 साल के राज को खत्म करते हुए 90 सदस्यीय विधानसभा में 68 सीटें जीत कर प्रचंड बहुमत हासिल किया था। भाजपा को सिर्फ 15 सीटें मिली थीं। हाल ही में हुए भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भी सत्तारूढ़ कांग्रेस ने सीट बरकरार रखी। वहीं मध्यप्रदेश में 2018 में विधानसभा चुनाव के बाद एक बड़ा राजनीतिक नाटक देखा गया, जब कमलनाथ भाजपा के 15 साल के शासन को खत्म कर मुख्यमंत्री बने। हालांकि, शिवराज सिंह चौहान दो साल बाद सत्ता में लौट आये। दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस के 22 मौजूदा विधायकों ने भाजपा में शामिल होकर कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। अब इन दोनों राज्यों में भी 2023 चुनावी साल है। कांग्रेस की चाहत इन दोनों राज्यों में वापसी की होगी, जबकि भाजपा इन राज्यों में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी। यह झकझूमर काफी दिलचस्प होनेवाला है।
झारखंड पर भी रहेगी देश की नजर
यों तो झारखंड में 2024 लोकसभा चुनाव से पहले विधानसभा चुनाव नहीं है और यहां हेमंत सोरेन सरकार के नेतृत्व में बहुमत वाली सरकार चल रही है। संख्या बल के हिसाब से भाजपा आसपास भी नहीं है। इसके बावजूद मौजूदा राजनीतिक हालात को लेकर झारखंड चर्चा में है। जिस तरह से भाजपा ने अवैध खनन और मनरेगा घोटाले को लेकर सरकार को घेरा है और जिस तरह से यहां इन मामलों में केंद्रीय जांच एजेंसी इडी सक्रिय हुई है, वैसे भी खुद सत्ता दल के लोग यह मान कर चल रहे हैं कि यहां कुछ भी हो सकता है। अपने तीन साल के शासन काल को पूरा करने के वक्त मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मीडिया के समक्ष मुखातिब होते हुए यह कहा कि हो सकता है भाजपा हमें जेल भी भेज दे, लेकिन उसकी हमें चिंता नहीं है। हम जेल से भी भाजपा का सूपड़ा साफ कर देंगे। राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि 2023 में झारखंड में राजनीतिक धमाका हो सकता है। केंद्रीय जांच एजेंसियां कोई भी कदम उठा सकती हैं।
2024 की तैयारियों में जुटेंगे दल
इसके अलावा 2024 के आम चुनाव की तैयारियां भी इसी साल शुरू होंगी। 2014 और 2019 में प्रचंड बहुमत हासिल कर चुकी भाजपा का पूरा दारोमदार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर होगा, जबकि विपक्ष अब तक बिखरा हुआ नजर आ रहा है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के खत्म होने के बाद कांग्रेस की तैयारियां जोर पकड़ेंगी, ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं। उधर बिहार और झारखंड में भी इस साल खासी सियासी सरगर्मी रहने के आसार हैं।