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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्ववाली भारत सरकार ने देश की आजादी के अमृत वर्ष में गणतंत्र दिवस के फौरन बाद देशवासियों को एक और तोहफा दिया। इस सरकार ने देश की गुलामी के एक और प्रतीक को हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दफन कर दिया। भारत सरकार ने राष्ट्रपति भवन के प्रख्यात मुगल गार्डन का नाम बदल कर ‘अमृत उद्यान’ कर दिया है। इसके साथ ही गुलामी का यह प्रतीक चिह्न भी रेसकोर्स रोड और राजपथ की तरह 130 करोड़ भारतीयों के दिलो-दिमाग से मिट गया है। मोदी सरकार द्वारा राष्ट्र गौरव के इस फैसले की बहुत से लोग यह कह कर आलोचना कर रहे हैं कि नाम बदलने से क्या हो जायेगा। ऐसे विघ्न संतोषियों से यह पूछा जाना चाहिए कि यदि नाम बदलने से कुछ नहीं होगा, तो फिर नाम बदलने के फैसले पर उन्हें एतराज क्यों है। देश की गुलामी के प्रतीक चिह्नों को मिटाने के लिए मोदी सरकार जिस तरह कदम उठा रही है, उससे न केवल देश में, बल्कि दुनिया भर में उसकी धाक कायम होती जा रही है। यह पहली बार नहीं है कि नाम बदले गये हैं। इससे पहले मद्रास चेन्नई हो गया और बंबई को मुंबई कहा जाने लगा, जबकि कलकत्ता को कोलकाता पुकारा जाने लगा। बंगलोर को बेंगलुरु और इलाहाबाद को प्रयागराज कहा जाने लगा। नाम बदलने का यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। लेकिन एक बात ध्यान देने वाली है कि नाम बदलने का फैसला करने के पीछे एक अवधारणा या उत्प्रेरणा होती है, इसलिए इसे साहसिक भी कहा जाता है। क्या है मुगल गार्डन का नाम बदलने के पीछे का कारण और इस चर्चित उद्यान का इतिहास, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

देश के 74वें गणतंत्र दिवस के दो दिन बाद 28 जनवरी को जब सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी किया गया, तो 130 करोड़ भारतीयों का सीना एक बार फिर गर्व से चौड़ा हो गया। वह वीडियो एक बुलडोजर का था, जिस पर ‘मुगल गार्डन’ का बोर्ड था। इसी वीडियो के अंत में राष्ट्रपति भवन परिसर के उस प्रख्यात बाग के प्रवेश द्वार पर ‘अमृत उद्यान’ का बोर्ड लगाया जा रहा था। कहने को तो यह महज एक घटना थी, लेकिन वह घटना इतिहास बना रही थी। भारत के सीने पर अंकित गुलामी का एक और प्रतीक चिह्न ढह रहा था और इसका सारा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्ववाली उस केंद्र सरकार को गया, जिसने पिछले नौ साल में ऐसे कई प्रतीक चिह्नों को इतिहास के पन्नों में दफन कर भारत की राष्ट्रीय भावना को मजबूती प्रदान की है।
मोदी सरकार ने 130 करोड़ देशवासियों को गणतंत्र दिवस का यह नायाब तोहफा देते हुए एलान किया कि राष्ट्रपति भवन के सभी बागों का नाम ‘अमृत उद्यान’ कर दिया गया है। राष्ट्रपति भवन की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि ‘अमृत उद्यान’ में उद्यान उत्सव 2023 के मौके पर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू मौजूद रहेंगी। जनता के लिए इसे 31 जनवरी से 26 मार्च तक के लिए खोल दिया जायेगा। मोदी सरकार के इस फैसले का आम तौर पर स्वागत किया जा रहा है। लोग इसे गुलामी की मानसिकता से बाहर आने का मोदी सरकार का एक और ऐतिहासिक फैसला बता रहे हैं। लेकिन हमेशा की तरह कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो इस फैसले को अनावश्यक और सस्ती लोकप्रियता पाने वाला बता रहे हैं।
पहले भी बदले गये हैं नाम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के साल 2014 में सत्ता में आने के बाद से कई शहरों, सड़कों और स्टेशनों के नाम बदले गये हैं। इसे लेकर राजनीति भी होती रही है। अभी जिस राष्ट्रपति भवन के ‘मुगल गार्डन’ का नाम बदला गया, उसी से निकलने वाले ‘राजपथ’ का नाम पिछले साल बदल दिया गया। मोदी सरकार ने इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक जाने वाले ‘राजपथ’ का नाम 2022 में बदल कर ‘कर्तव्य पथ’ कर दिया था। पहले इसका नाम जॉर्ज पंचम के नाम पर ‘किंग्स वे’ था और आजादी के बाद इसका नामकरण ‘राजपथ’ कर दिया गया। इससे पहले अगस्त 2015 में दिल्ली नगरपालिका परिषद ने ‘औरंगजेब रोड’ का नाम बदल कर ‘एपीजे अब्दुल कलाम रोड’ कर दिया, हालांकि अलग-अलग स्तरों पर इस सड़क का नाम सरदार पटेल के नाम पर करने की मांग होती रही थी।

पहले भी बदलते रहे हैं नगरों के नाम
2014 से पहले भी कई नगरों के नाम बदले गये थे। 1996 से पहले का मद्रास अब चेन्नई कहलाता है, तो बंगलोर को बेंगलुरु कहा जाता है। पांडिचेरी का नया नाम पुद्दुचेरी है, तो 1995 से पहले का बंबई का नाम बदल कर मुंबई किया गया। इसी तरह 2000 का कलकत्ता अब कोलकाता है, तो 2015 में गुड़गांव को गुरुग्राम किया गया। 2018 से इलाहाबाद अब प्रयागराज है, तो मुगलसराय अब दीनदयाल उपाध्याय नगर।

क्या है ‘अमृत उद्यान’ का इतिहास?
15 एकड़ में फैले ‘अमृत उद्यान’ का इतिहास आजादी से काफी पहले का है। इसकी खूबसूरती ऐसी है कि इसे राष्ट्रपति भवन की ‘आत्मा’ तक कहते हैं। यह उद्यान जम्मू-कश्मीर के मुगल गार्डन, ताजमहल के आसपास के बागों, भारत और इरान की मिनियेचर पेंटिंग से प्रेरित है। इस उद्यान को भी उसी अंग्रेज वास्तुशिल्पी ने डिजाइन किया था, जिसके पास पूरी दिल्ली को डिजाइन करने की जिम्मेदारी थी। उनका नाम था सर एडविन लुटियंस। सेंट्रल दिल्ली के पूरे इलाके को आज भी लुटियंस दिल्ली कहते हैं। मुगल साम्राज्य के समय भी राजधानी दिल्ली ही थी। मुगल शासकों ने दिल्ली और दूसरे शहरों में कई बाग बनाये थे। मुगलों के पहले शासक बाबर ने ही बागों को बनाना शुरू किया था। अकबर ने अपने कार्यकाल के दौरान दिल्ली में खूब बाग बनवाये। आज का जो मुगल गार्डन है, उसे मुगल शासकों द्वारा तैयार की गयी खूबसूरती की एक झलक कह सकते हैं, क्योंकि सर लुटियंस भी मुगलों की डिजाइन से प्रेरित थे। साल 1911 में अंग्रेजों ने अपनी राजधानी कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट की थी। राजधानी शिफ्ट होने के बाद रायसीना की पहाड़ियों को काट कर वायसराय हाउस बनाया गया। उसी वायसराय हाउस को आज राष्ट्रपति भवन कहा जाता है। इस इमारत को बनाने वाले सर लुटियंस ने मुगलों और पश्चिमी वास्तुकला को मिलाया था। वायसराय हाउस के सामने एक गार्डन की भी परिकल्पना की गयी। फिर सर लुटियंस ने 1917 तक इस गार्डन की डिजाइन तैयार की। हालांकि गार्डन में प्लांटेशन का काम साल 1928-29 में ही शुरू हुआ।
इस बात में संदेह नहीं है कि नाम बदलने के पीछे ‘ध्रुवीकरण की मंशा’ होती है। लेकिन नाम बदलने का हर फैसला इसी कारण से नहीं होता। कहा जा सकता है कि कुछ नाम ऐसे होते हैं, जिनसे पहली नजर में वितृष्णा पैदा होती है, क्योंकि नाम ही किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, संस्था या संगठन की असल पहचान है। इसलिए राष्ट्रीय महत्व के स्थानों का नामकरण राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाने के लिए ही किया जाना चाहिए, किसी व्यक्ति के नाम को याद रखने के लिए नहीं। इस लिहाज से ‘अमृत उद्यान’ नामकरण करना मोदी सरकार का ऐतिहासिक फैसला है।

 

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