विशेष

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आम चुनाव ऐसा राजनीतिक आयोजन है, जो हर बार नयी चुनौती, नये मुद्दे और नया रोमांच लेकर आता है। भारत में अगला लोकसभा चुनाव 2024 के मध्य में होगा, लेकिन उसको लेकर अभी से ही राजनीतिक दलों की तैयारी शुरू है। इस तैयारी के बीच अब तक इस सवाल का जवाब नहीं मिला है कि आखिर पीएम मोदी के सामने विपक्ष का चेहरा कौन होगा। विपक्षी दलों के बीच क्या कोई गठबंधन होगा, इसको लेकर भी सवाल है। साथ ही क्या सीटों को लेकर बात आसानी से बन जायेगी। इन तैयारियों के बीच देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस न केवल राजनीति की मुख्य धारा में वापसी के लिए प्रयासरत है, बल्कि इसके नेता राहुल गांधी इस समय भारत जोड़ो यात्रा के अंतिम चरण में हैं। कांग्रेस की इन कोशिशों के बीच उसके सामने 210 एक ऐसी संख्या बन कर उभरा है, जिसने उसकी पूरी रणनीति पर सवाल खड़ा कर दिया है। यह संख्या चार बड़े राज्यों में लोकसभा की सीटों की कुल संख्या है, जिन पर जीत हासिल किये बिना दिल्ली की सत्ता हासिल करना असंभव माना जाता है। कांग्रेस के पास इन 210 में से अभी महज पांच सीटें हैं। दूसरी बात यह है कि इन चार राज्यों में हरेक में कांग्रेस के सामने भाजपा के अलावा दो-दो क्षेत्रीय दलों की चुनौती होगी। राहुल गांधी की यात्रा भी इन 210 सीटों में से महज 23 को कवर कर सकी है। ऐसे में यह सवाल तो बनता ही है कि कांग्रेस 2024 में इन 210 सीटों पर जीत के लिए क्या करेगी। इन तमाम सवालों का जवाब दे रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

देश में 18वें आम चुनाव में अभी डेढ़ साल का समय बाकी है, लेकिन राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी चुनावी मशीनरियों को दुरुस्त करना शुरू कर दिया है। देश भर की 543 सीटों पर होनेवाला यह चुनाव हर बार जहां नये मुद्दे और नया गणित लेकर आता है, वहीं नये राजनीतिक समीकरण बनाता-बिगाड़ता भी है। इस बार का चुनाव अधिक रोमांचक इसलिए होगा, क्योंकि भाजपा लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने के उद्देश्य से मैदान में होगी, जबकि आजादी के बाद देश के राजनीतिक क्षितिज पर सबसे ज्यादा राज करनेवाली कांग्रेस के लिए इस बार का चुनाव अस्तित्व बचानेवाला होगा। कांग्रेस के सामने करो या मरो की स्थिति है। कांग्रेस यह जानती भी है और इसलिए अभी से ही उसने कवायद शुरू कर दी है। पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे दावा कर रहे हैं कि इस बार पार्टी जरूर जीतेगी, तो दूसरी तरफ राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के अंतिम चरण में हैं। लेकिन कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा सवाल उन 210 सीटों को लेकर है, जो देश के चार बड़े राज्यों में हैं। इस सवाल के बीच यह सच है कि भारत जोड़ो यात्रा को लेकर राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी उत्साहित है। यात्रा के बीच राहुल गांधी को लेकर कुछ अच्छी खबरें भी सामने आती हैं। कुछ दलों की ओर से यह बात कही जाती है कि आगामी लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी विपक्षी दलों की अगुवाई कर सकते हैं। अभी लोकसभा चुनाव से पहले नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हैं। लेकिन कांग्रेस इन 210 सीटों की पहेली को हल नहीं कर पा रही है। वैसे भारत जोड़ो यात्रा से उत्साहित कांग्रेस की ओर से एक संदेश विपक्षी दलों को देने की कोशिश हुई। कुछ दिन पहले पार्टी के महासचिव की ओर से कहा गया है कि भाजपा का राष्ट्रीय स्तर पर एकमात्र विकल्प उनकी पार्टी है और यह नामुमकिन है कि विपक्षी एकता के नाम पर कांग्रेस अगले लोकसभा चुनाव में सिर्फ दो सौ सीट पर लड़े। कांग्रेस की ओर से जो बात कही गयी है, उसमें एक बात यह भी है कि त्याग के लिए केवल कांग्रेस ही नहीं है। दूसरे दलों को भी इस बारे में सोचना होगा। कांग्रेस की ओर से जो बात कही गयी है, उससे पहले कांग्रेस को भी 210 सीटों का जवाब खोजना होगा। इन सीटों को जीते बिना दिल्ली का सफर असंभव ही होता है।
क्या है 210 सीटों का गणित, इन चार राज्यों से निकलेगा हल
वर्तमान समय में लोकसभा की कुल 543 सीटें हैं। इन 543 सीटों में से 210 सीटें केवल चार राज्यों से आती हैं। लोकसभा की सबसे अधिक सीटें उत्तरप्रदेश में हैं। यहां कुल 80 सीटें हैं। इसके बाद महाराष्ट्र का नंबर है, जहां 48 सीटें और तीसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल है, जहां से लोकसभा की 42 सीटें हैं। इसके बाद इस सूची में चौथे पायदान पर है बिहार, जहां 40 सीटें हैं। पूर्व के चुनावों में यह देखने को मिला है कि जो भी दल इन राज्यों में बढ़त बनाने में कामयाब हुआ, उसकी दिल्ली की राह आसान हो गयी। भाजपा की दो बार से शानदार जीत के पीछे भी इन चार राज्यों का काफी योगदान है। अब कांग्रेस को भी इन 210 सीटों का जवाब खोजना होगा और रही बात चुनाव से पहले गठबंधन की, तो सीटों को लेकर यहां मामला जरूर अटकेगा, क्योंकि इन चार राज्यों में से प्रत्येक में दो-दो मजबूत क्षेत्रीय दल कांग्रेस के सामने चुनौती बन कर खड़े हैं।
सबसे पहले बात देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश की। यहां लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं, जो किसी भी राज्य से कहीं अधिक हैं। पिछले चुनाव की बात की जाये, तो यहां कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गये। पूरे प्रदेश में कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली, वह भी रायबरेली की। यहां से सोनिया गांधी जीत हासिल करने में कामयाब हुईं। इस बार 2024 से पहले कोई गठबंधन विपक्षी दलों के बीच होता है, तो उसमें समाजवादी पार्टी और बसपा का स्टैंड बहुत मायने रखता है। भाजपा के बाद प्रदेश में सपा का दूसरा सबसे बड़ा जनाधार है। उसके बाद बहुजन समाज पार्टी है। पिछले साल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का क्या हश्र हुआ, सबने देखा। वर्तमान राजनीतिक समीकरण को देखा जाये, तो यहां विपक्षी दलों के बीच अखिलेश की ही चलेगी। ऐसे में कौन समझौता करेगा, यह देखने वाली बात होगी। हालांकि यह सब कुछ गठबंधन पर निर्भर करेगा।
यूपी के बाद सबसे अधिक लोकसभा सीटें महाराष्ट्र में हैं। यहां पर लोकसभा की कुल 48 सीटें हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में इस राज्य से भी कांग्रेस के खाते में केवल एक सीट आयी। हालांकि महाराष्ट्र में इस बार राजनीतिक समीकरण अलग है। पिछली बार शिवसेना और भाजपा का गठबंधन था, लेकिन अब मामला अलग है। महाराष्ट्र में अब विपक्षी दलों की बात की जाये, तो इसमें उद्धव ठाकरे की पार्टी है। शरद पवार की एनसीपी है और कांग्रेस को इन दोनों से बात करनी होगी। हालांकि राज्य में इन तीन दलों का मुख्य गठबंधन है और एकनाथ शिंदे के अलग होने से पहले इनकी ही राज्य में सरकार थी। अब 2024 में इन तीन दलों के बीच गठबंधन होता है, तो कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा, यह देखने वाली बात होगी।
तीसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल है और यहां पर लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं। यहां पिछले चुनाव में मुख्य मुकाबला टीएमसी और भाजपा के ही बीच देखने को मिला था। कांग्रेस को इस राज्य में केवल दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा। सीटों के लिहाज से यह राज्य काफी अहम है। कांग्रेस के सामने इन दोनों दलों के अलावा माकपा भी है। बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी विपक्षी दलों की नेता बनने के लिए कोशिश कर रही हैं और इस राज्य में कांग्रेस और टीएमसी के बीच क्या कोई गठबंधन होगा, यह भी देखना काफी दिलचस्प होगा। विपक्षी दलों में कांग्रेस और टीएमसी के अलावा वामदल भी हैं। इन तीनों का गठबंधन हुआ, तभी सही मायने में विपक्ष का गठबंधन माना जायेगा।
अब बारी बिहार की, जहां की जनता सियासी तौर पर काफी जागरूक मानी जाती है। बिहार चौथा राज्य है, जहां लोकसभा की सीटें अधिक हैं। यहां कुल 40 सीटें हैं। इस राज्य में भी समीकरण इस बार अलग है। पिछले लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा-जदयू का गठबंधन था और इस गठबंधन ने शानदार जीत हासिल करते हुए 40 में से 39 सीटों पर कब्जा जमाया था। एक सीट कांग्रेस के खाते में गयी थी। लेकिन इस बार अब राजद-जदयू दोनों साथ हैं। इन दोनों के अलावा कांग्रेस भी है। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि जदयू और राजद के बीच कांग्रेस की यहां कितनी चलती है। हालांकि यह गठबंधन पर ही निर्भर करेगा।
इस परिदृश्य में यह साफ है कि कांग्रेस के लिए 210 की पहेली को सुलझाना आसान नहीं होगा। ऐसे में यह भी जानना दिलचस्प है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जिन दो सौ से अधिक सीटों से होकर गुजरी है, उनमें से महज 23 ही इस 210 में शामिल हैं। इन दो सौ सीटों पर कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इन तमाम पहेलियों को कैसे सुलझाती है।

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