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    Home»विशेष»अलौकिक और नयनाभिराम है रामलला की प्रतिमा
    विशेष

    अलौकिक और नयनाभिराम है रामलला की प्रतिमा

    adminBy adminJanuary 21, 2024Updated:January 23, 2024No Comments10 Mins Read
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    विशेष
    -कृष्ण शैली में है मूर्ति, श्यामल है रंग, आभामंडल में दशावतार
    -प्रभु के दर्शन से अभिभूत ही नहीं, भावविभोर हो जायेंगे श्रद्धालु
    -अरुण योगीराज ने प्रतिमा ही नहीं गढ़ी, भक्ति का इतिहास रचा है

    भारत की आध्यात्मिक राजधानी श्रीअयोध्या धाम में प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा का वह पवित्र और भाव-विह्वल कर देनेवाला क्षण आ गया है, जिसकी प्रतीक्षा दुनिया भर के सनातनियों को पांच सौ साल से थी। मंदिर के उद्घाटन और प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के इस अलौकिक आयोजन की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और दुनिया अब उस पल के इंतजार में है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रामलला की अलौकिक प्रतिमा की आंखों पर बंधी पट्टी को खोल कर इसे भक्तों के दर्शन के लिए अर्पित कर देंगे। इसके बाद अयोध्या में रामलला के दर्शन के लिए भक्तों का जो सैलाब उमड़ेगा, उसकी कल्पना मात्र से सिहरन होती है। लेकिन दर्शन से पहले यह जानना भी जरूरी है कि आखिर इस प्रतिमा में ऐसी क्या विशेषताएं हैं, जिनके कारण भारत के आध्यात्मिक पुनर्जागरण के प्रतीक इस मंदिर में स्थापित किया जा रहा है। कर्नाटक के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा गढ़ी गयी इस प्रतिमा की विशेषताओं की जानकारी के बिना इसके दर्शन का वास्तविक आनंद प्राप्त नहीं हो सकता है। इसलिए इस प्रतिमा की समस्त विशेषताएं, चाहे वह आध्यात्मिक हो या धार्मिक या फिर कलात्मक, जान लेना जरूरी है। भगवान श्रीराम की बाल स्वरूप की यह प्रतिमा अद््भुत और अलौकिक ही नहीं, भक्तों को भाव-विह्वल कर देनेवाली है। क्या है इस प्रतिमा की विशेषताएं और कौन हैं अरुण योगीराज, जिन्होंने इसे गढ़ा है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
    अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का क्षण बस आने ही वाला है। इससे पहले यहां विधियों और अनुष्ठानों का क्रम शुरू हो गया है। प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान के दौरान तमाम धार्मिक कर्मकांड पूरे किये गये और अब भक्तों की आंखें उस रामलला के दर्शन के लिए तरस रही हैं, जो कुछ घंटे बाद प्राण प्रतिष्ठित होनेवाले हैं। पांच सौ साल की तपस्या, संकल्प, संघर्ष और बलिदान के बाद अंतत: वह क्षण आ ही गया है, जब रामलला अपनी जन्मभूमि पर बनाये गये मंदिर में विराजेंगे। आज जब पूरी दुनिया राममय हो चुकी है, तो यह जानना दिलचस्प है कि अयोध्या के जन्मभूमि मंदिर में जिस रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है, उसकी विशेषता क्या है। मंदिर में स्थापित होनेवाली रामलला की मूर्ति की बेहद खास है। प्रतिमा में उनके पूरे स्वरूप को देखा जा सकेगा। रामलला माथे पर तिलक लगाये बेहद सौम्य मुद्रा में दिख रहे हैं।

    रामलला की प्रतिमा की क्या विशेषता है
    अयोध्या में राम जन्मभूमि पर निर्मित भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित होनेवाली भगवान राम के बाल रूप की प्रतिमा को गर्भ गृह में स्थापित कर दिया गया है। दरामलला माथे पर तिलक लगाए बेहद सौम्य मुद्रा में दिख रहे हैं। राम लला के चेहरे पर भक्तों का मन मोह लेने वाली मुस्कान दिखाई दे रही है। मूर्ति की विशेषताएं देखें, तो इसमें कई तरह की खूबियां हैं। मूर्ति श्याम शिला से बनायी गयी है, जिसकी आयु हजारों साल होती है। मूर्ति को जल से कोई नुकसान नहीं होगा। चंदन, रोली आदि लगाने से भी मूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। मूर्ति का वजन करीब दो सौ किलोग्राम है। इसकी कुल ऊंचाई 4.24 फीट, जबकि चौड़ाई तीन फीट है। कमल दल पर खड़ी मुद्रा में मूर्ति, हाथ में तीर और धनुष है। कृष्ण शैली में मूर्ति बनायी गयी है।

    और क्या खास है?
    मूर्ति के ऊपर स्वास्तिक, ॐ, चक्र, गदा, सूर्य भगवान विराजमान हैं। रामलला के चारों ओर आभामंडल है। श्रीराम की भुजाएं घुटनों तक लंबी हैं। मस्तक सुंदर, आंखें बड़ी और ललाट भव्य है। भगवान राम का दाहिना हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में है। मूर्ति में भगवान विष्णु के 10 अवतार दिखाई दे रहे हैं। मूर्ति के नीचे एक ओर भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमान जी, तो दूसरी ओर गरुड़ जी को उकेरा गया है।
    झलक रही है बाल सुलभ कोमलता
    मूर्ति में पांच साल के बच्चे की बाल सुलभ कोमलता झलक रही है। मूर्ति को मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाया है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के अधिकारियों का कहना था कि जिस मूर्ति का चयन हुआ उसमें बालत्व, देवत्व और एक राजकुमार तीनों की छवि दिखाई दे रही है।

    कठिन था मूर्ति का चयन
    अयोध्या के श्रीराम मंदिर में तीन मूर्तियों को स्थापित किया जायेगा, जिसमें से एक मूर्ति को गर्भगृह में स्थापित किया जायेगा। इनके बनने के बाद सबसे बड़ा सवाल तो यह था कि गर्भ गृह में किस रूप में राम लला विराजमान होंगे। मूर्तिकारों ने तीनों मूर्तियों को इतना सुंदर बनाया कि चयन करना कठिन हो रहा था कि कौन सी सुंदर है और कौन सी उतनी नहीं है। अंतत: बाल रूप वाली मूर्ति को राम मंदिर के गर्भ गृह में विराजने का फैसला लिया गया।

    विग्रह की हैं अनेक विशेषताएं, मूर्ति के प्रतीकों में है खास ऊर्जा
    गर्भगृह में विराजमान रामलला का विग्रह बेहद सुंदर है और भावुक कर देने वाला है। विग्रह के अनुसार रामलला की आयु पांच वर्ष है और उनके चारों और कुछ प्रतीक बनाये गये हैं, जिनसे इस विग्रह को ऊर्जा प्राप्त होगी।

    विग्रह के खास चिह्न
    आम तौर पर जो प्रकट विग्रह होते हैं, वो कुछ खास चिह्न और निशानी लेकर प्रकट होते हैं, जो कि उनकी शक्ति को बढ़ा देते हैं। मूर्तिकार ने इसी बात का विशेष ध्यान रखा है। अगर ध्यान से देखें तो कहीं से भी पत्थर को तोड़ा नहीं गया है। श्री राम लला विराजमान के मस्तक के ठीक ऊपर भगवान सूर्य नारायण का प्रतीक है। सूर्य जगत की आत्मा है और श्री राम सूर्यवंशी हैं, इसलिए उनके मस्तक के ऊपर आशीर्वाद के रूप में सूर्य नारायण को रखा गया है।

    मूर्ति की दायीं ओर ॐ और स्वस्तिक
    मूर्ति की दायीं ओर ॐ और स्वस्तिक का चिह्न है। शिवपुराण विद्येश्वर संहिता के अनुसार शिव के पांच मुख हैं और ॐ उनके मुख से निकली पहली ध्वनि है। शब्द सिद्धि के लिए ॐ बेहद जरूरी है, इसलिए मूर्तिकार ने ॐ के प्रतीक को बनाया। इसके बाद स्वास्तिक को भी जगह दी, जिसके बिना कोई शुभ कार्य नहीं हो सकता। स्वास्तिक को हिंदू धर्म में गणेश जी का प्रतीक माना गया है, इसलिए विघ्नहर्ता के रूप में स्वास्तिक विराजमान हुआ है।

    मूर्ति की बायीं ओर चक्र और गदा
    इसके बाद विग्रह की बायीं ओर देखेंस तो चक्र और गदा है। इसका सीधा संबंध विष्णु से है। दरअसल विष्णु को देवताओं का नायक कहा गया है और देवासुर संग्राम में विष्णु ही देवताओं की मदद करते हैं। श्री राम उन्हीं विष्णु के अवतार हैं और वो चक्र-गदा को धारण करते हैं। इसलिए आसुरी शक्तियों का नाश करने के लिए इस विग्रह को चक्र और गदा से आभामंडित किया गया है।

    श्री विष्णु के 10 अवतार
    अगर और ध्यान से देखें, तो दायीं और बायीं दोनों ओर श्री विष्णु के 10 अवतारों के प्रतीकों को उकेरा गया है। मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि अवतार को दोनों ओर जगह दी गयी है।

    हनुमान जी को श्री राम के चरणों के पास स्थान
    दायीं ओर वामन अवतार के नीचे हनुमान जी विराजमान हैं, जो शिव के रूद्र रूप हैं और त्रेता में उन्होंने श्री राम की सेवा के लिए रुद्रावतार लिया था। इसलिए मूर्तिकार ने हनुमान जी को श्री राम के चरणों के पास स्थान दिया है। श्री राम के चरण के पास ही कमल है, जो श्री यानी लक्ष्मी का प्रतीक है। श्री विष्णु कभी भी अपनी शक्ति के बिना कोई कार्य नहीं करते, इसलिए कमल को शक्ति रूप में विराजित किया गया है।

    गरुड़ को भी दिया स्थान
    बायीं ओर कल्कि अवतार के प्रतीक के नीचे गरुड़ को विराजित किया है। महाभारत के अनुसार ऋषि कश्यप और विनता के पुत्र गरुड़ को श्री विष्णु ने अपना वाहन बनाया था, इसलिए मूर्तिकार ने इस बात का भी विशेष ख्याल किया और गरुड़ को श्री राम के चरण के पास स्थान दिया है। इससे श्री विष्णु की ऊर्जा इस विग्रह को प्राप्त होती रहेगी।

    मूर्तिकार अरुण योगीराज : सात्विक आहार, हादसे के बाद आंख की सर्जरी, छह महीने परिवार से नहीं मिले
    अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर में वैसे तो आज प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम होना है, लेकिन उससे पहले ही रामलला की प्रतिमा की तस्वीर सोशल मीडिया पर सामने आ गयी। इसके बाद भक्त भाव-विह्वल हो गये और पांच सौ वर्षों के संघर्ष एवं बलिदान के बाद आये इस पल पर अपनी खुशी रोक नहीं पाये। रामलला की इस प्रतिमा को कृष्णशिला से गढ़ने वाले कर्नाटक के मूर्तिकार अरुण योगीराज की भी भूरि-भूरि प्रशंसा हो रही है।
    अरुण योगीराज मैसूर के रहने वाले हैं। उत्तराखंड स्थित केदारनाथ धाम में जगद्गुरु शंकराचार्य की जिस प्रतिमा का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनावरण किया था, उसे उन्होंने ही बनाया था। इतना ही नहीं, दिल्ली के इंडिया गेट पर पीएम मोदी ने ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जिस प्रतिमा का अनावरण किया था, उसे भी अरुण योगीराज ने ही गढ़ा था। अब उनकी बनायी रामलला की प्रतिमा राम मंदिर के गर्भगृह में स्थापित हुई है। इस प्रतिमा को बनाने के दौरान वह सात्विक आहार पर थे और उनकी आंख में जख्म भी आया।
    अयोध्या के लिए अरुण सबसे उत्तम प्रतिमा बनाना चाहते थे। इस दौरान वह छह महीने तक अपने परिवार वालों तक से नहीं मिले। अयोध्या में वह अपने कुलदेव की पूजा के साथ दिन की शुरूआत करते थे। इसके बाद वहां के पंडितों द्वारा की जाने वाली पूजा-अर्चना में हिस्सा लेते थे। रामकथा के विद्वानों ने उनकी मदद की। उन्हें बताया कि श्रीराम कैसे दिखते थे, उनमें आमजन क्या देखते हैं। मूर्ति बनाने के दौरान एक हादसा भी हो गया और उनकी आंख में एक पत्थर का नुकीला टुकड़ा घुस गया था। इसके बाद उनकी सर्जरी हुई। कई दिनों तक उन्हें एंटीबायोटिक और पेनकिलर पर रखा गया। हालांकि, रामलला की भव्य प्रतिमा गढ़ने से उन्हें कुछ भी नहीं रोक सका। उनकी पत्नी विजेता ने जानकारी दी कि अरुण योगीराज 2008 में मैसूर यूनिवर्सिटी से स्नातक कर चुके हैं, लेकिन निजी कंपनी में नौकरी छोड़ कर उन्होंने अपने पारिवारिक पेशे को चुना। मैसूर के गुज्जे गौदाना पुरा स्थित एक जगह से पत्थर लाया गया, जिससे रामलला की प्रतिमा गढ़ी गयी है। यह दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन पत्थरों में से एक है।
    अरुण योगीराज ने पहले ही कहा था कि यह भगवान राम के बाल स्वरूप की प्रतिमा है, लेकिन यह दिव्य भी होनी चाहिए, क्योंकि लोग उनमें ईश्वर को देख कर दर्शन करेंगे। अरुण योगीराज के दादाजी ने ही उनके मूर्तिकार बनने की भविष्यवाणी कर दी थी। वह बसवन्ना शिल्पी के 17 पोते-पोतियों में से एक हैं। उनके पिता का नाम योगीराज है। उनके दादा ने गायत्री मंदिर और भुवनेश्वरी मंदिर की प्रतिमाओं को गढ़ा। बसवन्ना शिल्पी मैसूर राजघराने के शिल्पश्री सिद्धलिंगा स्वामी के प्रिय शिष्यों में से एक थे।

    मूर्तिकार नवरत्न प्रजापति ने पेंसिल पर उकेरी भगवान राम की मूर्ति
    अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। इसको लेकर समूचा देश भगवान राम की भक्ति में डूबा हुआ है। इसी क्रम में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड धारक मूर्तिकार नवरत्न प्रजापति ने एक नया रिकॉर्ड बना दिया है। उन्होंने पेंसिल की नोक पर भगवान राम की अत्यंत सुंदर मूर्ति बनायी है। इसकी जानकारी देते हुए नवरत्न प्रजापति ने बताया, इसे पूरा करने में मुझे पांच दिन लगे। मूर्ति की ऊंचाई सिर्फ 1.3 सेमी है। यह दुनिया की सबसे छोटी मूर्ति है। मैं इसे श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को उपहार में दूंगा और कोशिश करूंगा कि इसे श्री राम संग्रहालय में जगह दी जाये। गौरतलब है कि नवरत्न प्रजापति ने इससे पहले पिछले साल जनवरी में ही दुनिया का सबसे छोटा चम्मच बनाने का रिकॉर्ड बनाया था। उनके इस रिकॉर्ड को गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया था। उनका यह चम्मच मात्र दो मिलीमीटर लंबा था। जबकि इसका हैंडल मात्र बाल के बराबर मोटा था। इस चम्मच के आगे का प्याला 0.75 मिलीमीटर का था। उल्लेखनीय है कि नवरत्न प्रजापति इससे पहले भी कई मूर्तियों को पेंसिल पर उकेर चुके हैं।

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