विशेष
जोशीले अंदाज में वी विल कम बैक सून की हुंकार से रघुवर ने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी
-तालियों, पटाखों और ढोल-नगाड़ों की गूंज से रघुवर दास का हुआ भव्य स्वागत
-माहौल हुआ ऊर्जावान, रघुवर की वापसी से झारखंड भाजपा में भर गया जोश
-अपनी प्रशासनिक और सांगठनिक क्षमता का परिचय दे चुके हैं रघुवर दास
-झारखंड भाजपा में ओबीसी के सबसे बड़े चेहरे के रूप में दिखायेंगे कमाल
-फिट एंड फाइट का मंत्र देकर, कार्यकर्ताओं को दिखा दी नयी राह
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड के अब तक के इतिहास में पांच साल का कार्यकाल पूरा करनेवाले एकमात्र मुख्यमंत्री रहे रघुवर दास ने एक बार फिर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है और सक्रिय राजनीति के दरवाजे पर दस्तक दे दी है। वह भाजपा के कद्दावर नेताओं में से एक हैं और 14 महीने पहले ओड़िशा के राज्यपाल बनाये गये थे, लेकिन पिछले महीने उन्होंने इस पद से इस्तीफा देकर सक्रिय राजनीति में लौटने का एलान कर दिया था। राज्यपाल और मुख्यमंत्री के अलावा रघुवर दास दो बार झारखंड प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम के साथ राज्य में मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। रघुवर दास की सक्रिय राजनीति में वापसी का सियासी मतलब यही निकाला जा सकता है कि भाजपा अब झारखंड में अपनी वापसी के लिए नये सिरे से रणनीति तैयार करेगी। हाल में संपन्न विधानसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार और ओबीसी वोटरों के छिटकने को पार्टी ने गंभीरता से लिया है। रघुवर दास भाजपा में ओबीसी वर्ग का सबसे बड़ा चेहरा हैं और तमाम प्रशासनिक और सांगठनिक जिम्मेदारियों को वह बखूबी निभा चुके हैं। इसलिए भाजपा अब उनका इस्तेमाल संगठन के लिए करेगी। रघुवर दास की सबसे बड़ी खासियत है कि संगठन को मजबूत करने में उनकी कोई सानी नहीं है। रघुवर दास की भाजपा में वापसी से पार्टी में कितना उत्साह है, इसका अंदाजा पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में हुए समारोह के दौरान ही लग गया। एक तरफ रघुवर की हुंकार, तो दूसरी तरफ कार्यकर्ताओं का उत्साह देखते बन रहा था। माहौल को देखते हुए रघुवर दास ने ऐसा मंत्र फूंका कि पूरा परिसर तालियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा। कह दिया हम फिर वापस आयेंगे। वी विल कम बैक सून। विधानसभा चुनाव में करारी हार से हताश भाजपा को रघुवर दास की वापसी से कितना जोश मिलेगा और क्या होगी रघुवर दास की भावी भूमिका, इसका आकलन कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड में लगातार पांच साल तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनानेवाले रघुवर दास करीब 14 महीने बाद फिर से सक्रिय राजनीति में आ गये हैं। सदस्यता लेते ही उनके मुख से निकला यह लब्ज बहुत कुछ संकेत दे गया कि मैं अपनी मां के आंचल में आ गया हूं। उन्होंने एक बार फिर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है, जो ओड़िशा का राज्यपाल बनाये जाने के बाद उन्होंने छोड़ दी थी। इससे पहले उन्होंने 1980 में भाजपा की सदस्यता उस समय ली थी, जब पार्टी की स्थापना हुई थी। तब से लेकर रघुवर दास ने पार्टी के महासचिव, दो बार प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री और मंत्री के अलावा राज्यपाल का पद भी संभाला है और हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है। 10 जनवरी को झारखंड भाजपा के मुख्यालय में आयोजित समारोह में रघुवर दास ने भाजपा की सदस्यता लेते ही हुंकार भर दी कि वी विल कम बैक सून, यानी हम फिर वापस आयेंगे। यह नारा झारखंड भाजपा के भीतर पैदा हुए उस उत्साह का परिचायक है, जो रघुवर दास के आने से संचार हुआ है। हाल में संपन्न विधानसभा चुनाव में करारी हार से बुरी तरह हताश झारखंड भाजपा का यह नया जोश बताता है कि पार्टी ने सब कुछ नये सिरे से शुरू करने का फैसला किया है। फिट एंड फाइट का भी नारा रघुवर दास ने दे डाला है। कहा, अब नये जोश के साथ मैदान में उतरने की तैयारी करनी है।
झारखंड भाजपा में नया जोश, कार्यकर्ताओं ने कहा शेर आया, शेर आया
रघुवर दास की भाजपा में वापसी से पार्टी के भीतर नया जोश पैदा हुआ है। प्रदेश मुख्यालय पर काफी दिनों बाद उत्साह का माहौल देखा गया। विधानसभा चुनाव में हार के बाद से पार्टी के भीतर जो हताशा का माहौल था, वह अब कम होता नजर आया। खुद रघुवर दास ने भी कहा कि हार से निराश होने की जरूरत नहीं है। हम दोगुने उत्साह से काम करेंगे और वापसी करेंगे। रघुवर दास की वापसी को लेकर पार्टी में कितना उत्साह है, यह उनके प्रदेश मुख्यालय पहुंचने पर पता चल गया। रघुवर दास के स्वागत के लिए भाजपा कार्यकर्ता सुबह 10 बजे से ही उत्साहित थे। मुख्यालय में भाजपा नेताओं की आवा-जाही बढ़ने लगी थी। ढोल-नगाड़ों की आवाज से माहौल गूंज रहा था। रघुवर की एक झलक के लिए कार्यकर्ता टकटकी लगाये खड़े थे। जैसे ही रघुवर दास ने भाजपा मुख्यालय में एंट्री मारी, कार्यकर्ताओं ने कहा शेर-आया शेर-आया। रघुवर दास जिंदाबाद के नारों से माहौल रघुवरमय हो गया।
इसलिए हुई है रघुवर दास की वापसी
झारखंड में हाल में संपन्न विधानसभा चुनाव में जिस तरह से भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है, उसे देखते हुए कहा जा रहा है कि पार्टी उन्हें झारखंड में संगठन को मजबूत करने के इरादे से लायी है। रघुवर दास को 14 महीने पहले ओड़िशा का राज्यपाल बना कर सक्रिय राजनीति से दूर भेज दिया गया था और विधानसभा का चुनाव उनकी अनुपस्थिति में लड़ा गया। इस चुनाव में भाजपा की करारी हार हुई और तब रघुवर दास को वापस लाने का फैसला किया गया। झारखंड का चुनाव हारने के बाद भाजपा को लग रहा है कि उसने 2014 में जो गैर आदिवासी राजनीति शुरू की थी, उसे छोड़ना उसके लिए आत्मघाती साबित हुआ है। झारखंड में 50 फीसदी से ज्यादा आबादी पिछड़ी जातियों, यानी ओबीसी की है, जिसमें सबसे बड़ा समूह वैश्य और उसमें भी तेली-साहू समाज का है। उनकी दोबारा सक्रिय राजनीति में एंट्री से माना जा रहा है कि गैर आदिवासी नेता के तौर पर भाजपा ने रघुवर दास का चेहरा एक बार फिर आगे करके अपनी खोयी हुई राजनीतिक जमीन वापस लाने की कवायद तेज कर दी है। रघुवर दास में यह क्षमता है कि वह पिछड़ा, वैश्य और बाहरी सबको एकजुट कर सकते हैं। ऐसा लग रहा है कि भाजपा को लगने लगा है कि झारखंड में आदिवासी समाज अभी कुछ समय तक हेमंत सोरेन के साथ ही रहेगा, ऐसे में रघुवर दास जैसा कोई नेता गैर आदिवासी वोट साथ ला सकता है। तभी उनकी भाजपा में वापसी के साथ ही झारखंड में राजनीति तेज हो गयी है।
क्या होगी रघुवर दास की भूमिका
भाजपा की तरफ से अब तक रघुवर दास की नयी भूमिका के बारे में कोई संकेत नहीं दिया गया है, लेकिन ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि उन्हें संगठन में कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जायेगी। खुद रघुवर दास कहते हैं कि राजनीति में उनकी क्या भूमिका होगी, यह भारतीय जनता पार्टी तय करेगी। वह एक कार्यकर्ता के रूप में खुद को धन्य मानते हैं। 1980 में जब वह भाजपा में शामिल हुए थे, तब भी उन्हें पार्टी से कोई अपेक्षा नहीं थी लेकिन पार्टी ने उन्हें बहुत कुछ दिया। आज भी वह खुद को एक साधारण कार्यकर्ता मानते हैं। कहते हैं, उन्हें जो भी जिम्मेदारी मिलेगी, उसे पूरी निष्ठा से निभायेंगे।
बाबूलाल और रघुवर के साथ डबल अटैक करेगी भाजपा
रघुवर दास की भाजपा में वापसी को भाजपा आलाकमान की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। ऐसी संभावना है कि पार्टी अपने बड़े आदिवासी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को विधानसभा में विधायक दल का नेता बनायेगी और ओबीसी नेता रघुवर दास को संगठन की कमान सौंपी जायेगी। इस तरह पार्टी डबल अटैक की रणनीति पर काम करेगी। पार्टी ने पिछली विधानसभा में अमर बाउरी को विधायक दल का नेता बनाया था, लेकिन वह चुनाव हार गये हैं। इसलिए अब पार्टी कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं है।
राजनीति का नया अध्याय शुरू
अब यह तय है कि रघुवर दास की वापसी से झारखंड की राजनीति का नया अध्याय शुरू होगा। वह दो बार प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। इसलिए उनकी सांगठनिक क्षमता पर संदेह नहीं किया जा सकता है। 2019 में चुनाव हारने के बावजूद रघुवर दास ने अपना जनाधार जिस तरह बनाये रखा, उससे उनकी नेतृत्व क्षमता का पता चलता है। जाहिर है कि झारखंड भाजपा को आज अपने सबसे बड़े ओबीसी नेता की सबसे अधिक जरूरत है, क्योंकि उसे लग रहा है कि ओबीसी वोटर उससे बिदक गया है। यह एक तल्ख सच्चाई है कि रघुवर दास के सक्रिय राजनीति से अलग हटते और ओड़िशा के राज्यपाल बनाये जाते ही तेली-साहू समाज का एक बड़ा वर्ग पार्टी से अलग हो गया था। वे चाहे सुनील साहू रहे हों या हरिनाथ साहू, लगभग एक दर्जन सक्रिय नेता या तो अलग दल बना कर काम करने लगे या भाजपा से अलग-थलग हो गये थे। यहां तक कि मूलवासी सदान मोर्चा की भी दूरी भाजपा से बढ़ने लगी थी। सिख समाज के लोग भी भारी मन से ही भाजपा के साथ जुड़े थे, या तो शांत बैठ गये थे। मारवाड़ी समाज का एक बड़ा वर्ग खामोश बैठ गया था। अलग-थलग हुए लोगों के बारे में उम्मीद लगायी जा रही है कि उनकी भी सक्रियता अब देखने को मिलेगी। सदस्यता ग्रहण समारोह के बाद प्रेस कांफ्रेंस में ऐसे चेहरे दिखायी भी पड़े, जो खामोश हो गये थे। पिछले एक हफ्ते के अंदर ऐसे कई नेताओं ने रघुवर दास से जाकर मुलाकात की है, जो खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे थे। ऐसे में रघुवर दास के सामने भी अब भाजपा को झारखंड में वापस लाने का लक्ष्य है, जिस पर उन्हें खरा उतरने की चुनौती है।