Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Friday, June 6
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»विशेष»मुफ्त की होड़ में गायब हैं दिल्ली के बुनियादी मुद्दे
    विशेष

    मुफ्त की होड़ में गायब हैं दिल्ली के बुनियादी मुद्दे

    shivam kumarBy shivam kumarJanuary 23, 2025Updated:January 24, 2025No Comments7 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    विशेष
    सड़क से सीवर तक की समस्याओं पर नहीं है किसी का ध्यान
    राष्ट्रीय राजधानी में इस बार का चुनाव कह रहा है अलग कहानी
    हर दल की तरफ से मतदाताओं के लिए हुआ है रेवड़ियों का वादा

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    देश की राजनीतिक राजधानी, यानी दिल्ली इन दिनों विधानसभा चुनाव की तपिश झेल रही है। चुनाव प्रचार जोर पकड़ चुका है और राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी चल रहा है। इस बार दिल्ली विधानसभा का चुनाव कुछ अलग कहानी कह रहा है। हाल के दिनों में यह पहली बार है कि चुनावी विमर्श से दिल्ली के बुनियादी मुद्दे गायब हैं। चाहे लगातार चौथी बार दिल्ली की सत्ता में वापस आने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी हो या फिर उसे रोकने के लिए पूरी ताकत झोंक चुकी भाजपा, या फिर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की जुगत में भिड़ी कांग्रेस, किसी ने भी दिल्ली के बुनियादी मुद्दों पर बात करने की जहमत तक नहीं उठायी है। दिल्ली में सीवर, पीने के पानी, स्वास्थ्य और सड़क जैसी समस्याएं ऐसी हैं, जिनसे हर व्यक्ति परेशान है, चाहे वह वहां रहता हो या नहीं, लेकिन आश्चर्य है कि इन मुद्दों पर किसी भी राजनीतिक दल का ध्यान नहीं गया है। इन दलों ने अपने-अपने चुनावी वादों की लिस्ट में मुफ्त की रेवड़ियों की झड़ी लगा दी है। दूसरे शब्दों में कहें तो दिल्ली का मतदाता अब यही सोच रहा होगा कि कौन सी पार्टी उसे अधिक दे रही है। किसी भी चुनाव के लिए यह स्वस्थ परंपरा नहीं है और खास कर दिल्ली जैसे महानगर के लिए तो कतई ठीक नहीं है, क्योंकि दिल्ली केवल यहां के मतदाताओं की नहीं, बल्कि भारत के हर मतदाता के लिए है। ऐसे में मुफ्त की यह होड़ दिल्ली चुनाव को कैसे और कितना प्रभावित कर रही है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    सड़क से लेकर सीवर तक, पर्यावरण से लेकर विकास तक दिल्ली के बुनियादी मुद्दों की जगह मुफ्त की सुविधाओं की होड़ ने दिल्ली के चुनाव को जिन त्रासद दिशाओं में धकेला है, वह न केवल दिल्ली, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति के लिए एक चिंता का बड़ा सबब बन रहा है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी -तीनों दलों ने अपने-अपने घोषणापत्र जारी किये हैं, लेकिन उनमें दिल्ली से जुड़े जरूरी और बुनियादी मुद्दों के स्थान पर नगद और मुफ्त की सुविधाओं के ही अंबार लगे हैं। दिल्ली चुनाव में अधिकांश बहस तरह-तरह की मुफ्त सुविधाओं की अप्रासंगिक और अवांछित विषयों पर केंद्रित है। जल्दी ही दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहे देश की राजनीतिक राजधानी के चुनाव में इससे बेहतर की उम्मीद की जा रही थी। दिल्ली के चुनाव प्रचार अभियान में चूंकि जरूरी मुद्दे नहीं उठ रहे हैं, इसलिए भाषा भी निम्नस्तरीय बनी हुई है, दोषारोपण एवं छिद्रान्वेषण ही हो रहा है।

    राजनीतिक दलों द्वारा अप्रासंगिक मुद्दों पर बात करने की एक खास वजह चुनावों की प्रक्रिया में मुफ्त की सुविधाएं और नगद राशि का बढ़ता आकर्षण है। भाजपा दिल्ली को विकसित और अत्यंत आधुनिक राजधानी बनाना चाहती है, तो उसके लिए यह अवसर था कि वह अपनी भावी योजनाओं और भविष्य के खाके पर बात करती, लेकिन वह भी महिलाओं और मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए बढ़-चढ़ कर रेवड़ी संस्कृति का सहारा ले रही है। कांग्रेस के लिए यह मौका था कि वह उन क्षेत्रों को रेखांकित करती, जिनमें आप सरकार अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी। वह मतदाताओं के सामने बेहतर विकल्प भी प्रस्तुत कर सकती थी। कांग्रेस को चाहिए था कि वह शीला दीक्षित के दौर में हुए दिल्ली के विकास को चुनावी मुद्दा बनाती, दिल्ली को पेरिस बनाने की बात पर बल दिया जाता, लेकिन उसका प्रचार अभियान मुफ्त की सुविधओं के इर्द-गिर्द ही घूम रहा है, जो एक विडंबना और त्रासदी ही है।

    यह दुर्भाग्य की बात है कि दिल्ली चुनाव में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है, जो दिल्ली की बड़ी समस्याओं का समाधान करता हो। दिल्ली के मतदाताओं को मोटे तौर पर व्यक्तिगत हमले सुनने को मिल रहे हैं और ऐसे मुद्दों पर बात हो रही है, जो दिल्ली को आगे ले जाने वाले और विकसित राजधानी बनाने वाले नहीं हैं। भारत को तेज आर्थिक विकास की आवश्यकता है। दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर देश की राजधानी के चुनाव को इसके लिए पूंजी, पर्यावरण और ऊर्जा की टिकाऊ वृद्धि सुनिश्चित करने पर केंद्रित रहना चाहिए। इससे जुड़ा एक मसला रोजगार तैयार करने का है। सबसे अहम मुद्दा दिल्ली का विकास और प्रदूषण मुक्त परिवेश का है। लेकिन सभी राजनीतिक दल इन मुद्दों से हटकर मुफ्त की सुविधाओं पर ही केंद्रित हैं। ऐसे में भला दिल्ली में अच्छे दिन कैसे आयेंगे और विकास की तस्वीर कैसे बनेगी?

    दिल्ली के चुनावी मैदान में प्रत्याशियों के चयन और मतदाताओं को रिझाने के कार्य में तेजी आ गयी है, लेकिन जनता से जुड़े जरूरी मुद्दों पर एक गहरा मौन पसरा है। न गरीबी मुद्दा है, न बेरोजगारी मुद्दा है। महंगाई, बढ़ता भ्रष्टाचार, बढ़ता प्रदूषण, राजनीति का अपराधीकरण और दिल्ली का विकास जैसे ज्वलंत मुद्दे नदारद हैं। दिल्ली की मानसिकता घायल है और जिस विश्वास के धरातल पर उसकी सोच ठहरी हुई थी, वह भी हिली है। पुराने चेहरों पर उसका विश्वास नहीं रहा। अब प्रत्याशियों का चयन कुछ उसूलों के आधार पर होना चाहिए, न कि मुफ्त की संस्कृति और जीतने की निश्चितता के आधार पर। मतदाता की मानसिकता में जो बदलाव अनुभव किया जा रहा है, उसमें सूझ-बूझ की परिपक्वता दिखाई दे रही है, लेकिन फिर भी अनपढ़ और गरीब मतदाता मुफ्त की सुविधाओं पर सोचता है और अक्सर उसी आधार पर वोट देता है। जबकि एक बड़ा मतदाता वर्ग ऐसा भी है, जो उन्नत सड़कें, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं को भी बेहतर देखना चाहता है। उसके लिए यमुना में बढ़ता प्रदूषण भी चिंता का एक कारण है। समय पर जलापूर्ति न होना भी उसकी समस्याओं में शामिल है। चूंकि मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग योग्यता और व्यापक जनहित के मुद्दे पर नहीं करता, इसलिए वह मुफ्त की संस्कृति में डूबा है। इसलिए उसके जीवन स्तर में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं आता है, विकास तो बहुत पीछे रह जाता है।

    सब दल और उनके नेता सत्ता तक येन-केन-प्रकारेण पहुंचना चाहते हैं, लेकिन जनता को लुभाने के लिए उनके पास बुनियादी मुद्दों का अकाल है, जबकि दिल्ली अनेक समस्याओं से घिरी है, लेकिन इन समस्याओं की ओर किसी भी राजनेता का ध्यान नहीं है। जनता के मतों का ही नहीं, उसकी मेहनत की कमाई पर लगे करोें का भी जम कर दुरुपयोग हो रहा है। राजनेताओं द्वारा चुनाव के दौरान मुफ्त बांटने की संस्कृति ने जन-धन के दुरुपयोग का एक और रास्ता खोल दिया है।

    हमारे चुनावी लोकतंत्र की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि बुनियादी मुद्दों की चुनावों में कोई चर्चा ही नहीं होती। मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त शिक्षा, मुफ्त चिकित्सा, महिलाओं के खातों में नगद सहायता पहुंचाने से लेकर कितनी तरह से मतदाता को लुभाने और लूटने के प्रयास होते हैं। न हवा शुद्ध, न पानी शुद्ध, सड़कों पर गड्ढे- इनके कारणों की कोई चर्चा नहीं। आप सरकार के दावों के बावजूद दिल्ली की शिक्षा और चिकित्सा की हालत जर्जर है।

    इस बार की दिल्ली की लड़ाई कई दलों के लिए आर-पार की है। दिल्ली के सिंहासन को छूने के लिए सबके हाथों में खुजली हो रही है। उन्हें केवल चुनाव जीतने की चिंता है, अगली पीढ़ी की नहीं। वे मतदाताओं के पवित्र मत को पाने के लिए पवित्र प्रयास की सीमा लांघ रहे हैं। यह त्रासदी बुरे लोगों की चीत्कार नहीं है, भले लोगों की चुप्पी है, जिसका नतीजा दिल्ली भुगत रहा है और तब तक भुगतता रहेगा, जब तब भले लोग मुखर नहीं होंगे।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleनई दिल्ली के कर्तव्य पथ पर दिखेगी झारखंड की झांकी
    Next Article अवंतीपोरा में सरकारी स्कूल से हथियार और गोला-बारूद बरामद
    shivam kumar

      Related Posts

      ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद अब ऑपरेशन घुसपैठिया भगाओ

      June 4, 2025

      झारखंड की स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर रिजल्ट ने उठाये सवाल

      June 3, 2025

      अमित शाह की नीति ने तोड़ दी है नक्सलवाद की कमर

      June 1, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • प्रधानमंत्री ने चिनाब रेलवे पुल का किया उद्घाटन, वंदेभारत ट्रेन को दिखाई हरी झंडी
      • मुख्यमंत्री ने गुपचुप कर दिया फ्लाईओवर का उद्घाटन, ठगा महसूस कर रहा आदिवासी समाज : बाबूलाल
      • अलकतरा फैक्ट्री में विस्फोट से गैस रिसाव से कई लोग बीमार, सड़क जाम
      • लाभार्थियों के खातों में ट्रांसफर की गयी मंईयां सम्मान योजना की राशि
      • लैंड स्कैम : अमित अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट से मांगी बेल
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version