रांची: टाटा स्टील एवं दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) द्वारा अनधिकृत रूप से सरकारी भूमि को सबलीज एवं बिक्री कर राज्य सरकार को 4400 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान पहुंचाया गया है। इसका खुलासा भारत सरकार के नियंत्रक महालेखाकार ने 31 मार्च 2016 को समाप्त हुए वर्ष में झारखंड सरकार के प्रतिवेदन में किया है। यह प्रतिवेदन गुरुवार को झारखंड विधानसभा के पटल पर रखा गया। इसके बाद एकाउंटेंट जेनरल सी निडुनचेझियान ने पत्रकारों को बताया कि लेखापरीक्षा अवलोकनों से ज्ञात हुआ कि इसके कारण लगभग 11676 करोड़ के राजस्व से राज्य वंचित रहा है। विभाग/ सरकार ने 99 प्रतिशत लेखापरीक्षा अवलोकनों को स्वीकार किया है।
1970 से 2014-15 के बीच “3376.24 करोड़ का घाटा : उन्होंने बताया कि टाटा स्टील और दामोदर घाटी निगम ने 469.38 एकड़ भूमि को एक हजार 279 व्यक्तियों/ उद्योगों को 25 जून 1970 और अक्टूबर 2009 के बीच सरकार के पूर्व अनुमोदन के बिना सबलीज पर दे दिया था। इन अनियमित उपपट्टे के संबंध में सूचनाएं उप समाहर्ता, टाटा लीज कार्यालय और सचिव राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के कार्यालय में उपलब्ध थी, लेकिन प्रावधानों के अनुसार उपपट्टे की भूमि की वापसी या सरकारी राजस्व की वसूली के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गयी। इस तरह सरकार 1971-72 से 2014-15 तक सलामी, लगान और उपकर के रूप में 3376.24 करोड़ के राजस्व से वंचित हो गयी।
लाफार्ज इंडिया को “550 करोड़ में बेची गयी 122.82 एकड़ भूमि
टाटा स्टील ने पट्टे वाले क्षेत्र में एक सीमेंट प्लांट स्थापित किया था, पर इसके बाद नवंबर 1999 में 122.82 एकड़ भूमि के माप वाले प्लांट क्षेत्र का पट्टा अधिकार लाफार्ज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरित कर दिया गया। टाटा स्टील ने इसे लाफार्ज इंडिया को 550 करोड़ में बेच दिया, जिससे सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ। उन्होंने बताया कि वर्ष 1934-35 से 2013-14 के बीच निष्पादित पट्टा समाप्त होने के बावजूद लीजधारियों ने पट्टा पर अपना अधिकार जारी रखा। साथ ही लगान के भुगतान के बिना 2547 एकड़ भूमि का लाभ लिया। विभाग पट्टे पर से बेदखल या नवीकरण नहीं किया और लगान एवं ब्याज के रूप में 3965 करोड़ वसूल करने में भी विफल रहा।