रांची। पिछले सप्ताह दो फरवरी को झारखंड मुक्ति मोर्चा ने दुमका में अपने स्थापना दिवस पर बड़ी रैली का आयोजन किया। इस रैली में पार्टी अध्यक्ष शिबू सोरेन, कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन और पार्टी के तमाम छोटे-बड़े नेता, सांसद और विधायक भी शामिल हुए। रैली में गुरुजी ने खूब भाषण दिया। उनकी भाषण शैली और आवाज से कहीं भी यह नहीं लगा कि उनमें उत्साह की कमी है या उम्र ने उनको कमजोर कर दिया है। गुरुजी ने भाजपा पर जम कर निशाना साधा, अपने चिर-परिचित अंदाज में झारखंड की अस्मिता, सभ्यता, संस्कृति और जनजातीय परंपरा की रक्षा के लिए एकजुट होने की बात की और चुनावों के लिए कमर कस लेने का आह्वान किया। देर शाम शुरू हुई रैली देर रात तक चली और झामुमो के गढ़ कहे जानेवाले दुमका में लोग अंत तक डटे रहे। ये वे लोग थे, जो झामुमो की पूंजी हैं। इनकी बदौलत ही झामुमो संथाल परगना को अपना गढ़ मानता है।
दुमका की रैली के बाद गुरुजी ने धनबाद में भी पार्टी के स्थापना दिवस की रैली को संबोधित किया। हालांकि वहां उन्होंने कोई नयी बात नहीं कही, लेकिन उनके अंदाज और उनकी सक्रियता ने साबित कर दिया कि झारखंड के इस सबसे बुजुर्ग और प्रतिष्ठित राजनीतिक व्यक्तित्व की चकाचौंध राज्य की राजनीति को आज भी प्रभावित करने की ताकत रखती है। चाहे दुमका हो या धनबाद, लोगों ने गुरुजी की बातों को गौर से सुना, बीच-बीच में तालियां भी बजायीं और नारे भी लगाये।
जब गुरुजी राजनीतिक परिदृश्य के नेपथ्य में थे, तब पार्टी को हेमंत सोरेन दिशा दे रहे थे। पार्टी के तमाम फैसले हेमंत ही करते थे, लेकिन इतना जरूर है कि वह गुरुजी की राय जरूर लेते थे और उस पर अमल भी कर रहे थे। चाहे संघर्ष यात्रा हो या कोलेबिरा विधानसभा उपचुनाव, महागठबंधन पर बातचीत का मसला हो या सीट शेयरिंग का फार्मूला तय करने का मुद्दा, हेमंत सोरेन सबसे पहले गुरुजी की राय लेते रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि झामुमो को गुरुजी के लंबे राजनीतिक अनुभव के साथ युवा हेमंत के उत्साह की टॉनिक मिलती रही। इससे पार्टी के कार्यकर्ता कभी राजनीतिक रूप से ठंडे नहीं पड़े।
अब, जबकि लोकसभा चुनाव महज तीन महीने दूर है, राज्य में दूसरी पार्टियों की अपेक्षा झामुमो अधिक सक्रिय नजर आ रहा है। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी राजनीतिक परिपक्वता का जो परिचय दिया था, उससे पार्टी को बहुत लाभ हुआ था। इस बार संसदीय चुनाव में हालांकि उन्होंने कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने का मन बनाया है, लेकिन गठबंधन के रास्ते में हर दिन पैदा हो रही अड़चनों से वह अनजान नहीं हैं। इसलिए झामुमो ने अपने सभी विकल्प खुले रखे हैं।
झामुमो की चुनावी तैयारियों का संकेत इसी बात से मिल जाता है कि पलामू से लेकर दुमका तक और कोडरमा से लेकर बहरागोड़ा तक पार्टी का संगठन पूरी तरह तैयार है। गांव से लेकर जिला और प्रमंडल स्तर से हर दिन पार्टी के रांची स्थित मुख्यालय में फीडबैक लिया जा रहा है और कहां क्या कार्यक्रम किया जाना है, इसका खाका तैयार किया जा रहा है। इस काम में हेमंत सोरेन खुद जुटे हुए हैं, लेकिन गुरुजी भी समय-समय पर इसका जायजा लेने लगे हैं। इसके तहत ही गुरुजी के आवास पर लंबे समय के बाद पार्टी के विधायक दल की बैठक आयोजित की गयी और तमाम मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया। बैठक में गुरुजी ने जो कुछ कहा, उसे पार्टी के सबसे निचले स्तर पर ले जाने की जिम्मेदारी भी विधायकों को सौंपी गयी। यह झामुमो की कार्यशैली में सकारात्मक बदलाव का संकेत है।
इसके साथ ही गुरुजी ने पार्टी में नयी जान फूंक दी है। उनके लंबे राजनीतिक अनुभव का ही परिणाम है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी ने विधानसभा चुनाव से पहले ही हेमंत सोरेन को नेता मानने की घोषणा कर दी। गुरुजी को नजदीक से जाननेवाले बताते हैं कि हाल के दिनों में उन्होंने लगभग हर मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त की है और यह तो सभी जानते हैं कि आज भी शिबू सोरेन के फैसले को पलटने का माद्दा झामुमो में किसी को नहीं है।
गुरुजी की सक्रियता और झामुमो के उत्साह का संसदीय चुनाव में क्या असर होगा, यह तो वक्त ही बतायेगा, लेकिन इतना तय है कि झारखंड की सबसे ताकतवर प्रादेशिक पार्टी ने नया चोला पहन लिया है, जिसमें अनुभव और उत्साह का शानदार तालमेल है। झामुमो के इस नये कलेवर से झारखंड की राजनीति भी नये रंग में रंगेगी, ऐसा राजनीतिक पंडितों को विश्वास है।