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    Home»Breaking News»झारखंड में गहरायी भाजपा और आजसू के बीच की खाई
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    झारखंड में गहरायी भाजपा और आजसू के बीच की खाई

    azad sipahiBy azad sipahiFebruary 3, 2019Updated:February 3, 2019No Comments4 Mins Read
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    रांची। देश भर में टूटते बिखरते एनडीए के कुनबे के बीच झारखंड में भी इस गठबंधन में दरार आने के साफ संकेत दिखाई देने लगे हैं। वजह सिल्ली और गोमिया का उपचुनाव भी कहीं न कहीं बना है। इधर, तीन राज्यों में शिकस्त के बाद संभलने में लगी भाजपा को झारखंड में झटका लगने के आसार भी दिख रहे हैं। कयास लगाया जा रहा है कि आजसू पार्टी खुद को भाजपा गठबंधन से अलग कर सकती है। गौरतलब है कि दोनों दलों ने पिछला विधानसभा चुनाव तालमेल कर लड़ा था। राज्य में भाजपानीत गठबंधन सरकार में आजसू कोटे से एक मंत्री भी है। हालांकि, सरकार गठन के बाद से लेकर अब तक ऐसे कई मौके आये, जब आजसू ने सरकार के नीतिगत फैसलों के खिलाफ अपना विरोध सार्वजनिक किया है।

    जमीन संबंधी कानून में संशोधन, स्थानीयता नीति की घोषणा आदि पर आजसू का रुख सरकार से अलग रहा। हाल में पारा शिक्षकों के आंदोलन से कड़ाई से निबटने का भी आजसू ने विरोध किया। आजसू प्रमुख सुदेश महतो सरकार के कामकाज के तरीके से भी संतुष्ट नहीं दिखते। वह अक्सर सरकार की खिंचाई करते हैं। कुछ दिन पूर्व पार्टी की केंद्रीय समिति की बैठक में भाजपा से अलग राह अख्तियार करने के उन्होंने स्पष्ट संकेत दिये हैं। पार्टी ने राज्य सरकार को अल्टीमेटम दिया है कि अगर नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार नहीं किया गया, तो आजसू कड़ा निर्णय करेगी। संभव है कि इसी बहाने आजसू पार्टी भाजपा से अलग होने का ऐलान कर दे। आजसू पार्टी और भाजपा के बीच की तल्खी पिछले विधानसभा उपचुनाव के दौरान बढ़ी थी। दो सीटों सिल्ली और गोमिया में उपचुनाव के दौरान आजसू ने भाजपा से समर्थन मांगा था।
    भाजपा ने सिल्ली में समर्थन दिया, लेकिन गोमिया में अपना प्रत्याशी खड़ा कर दिया। सिल्ली से आजसू प्रमुख सुदेश महतो खुद उम्मीदवार थे। हालांकि, यह सीट भाजपा-आजसू के हाथ से छिटक गयी। इससे आजसू को गहरा धक्का लगा। इधर, केंद्रीय प्रवक्ता देवशरण भगत ने भी कहा कि आजसू पार्टी ने स्वराज स्वाभिमान यात्रा के तहत जनसंपर्क करती रही है। आजसू के शीर्ष नेतृत्व का मत है कि राज्य में नेतृत्वकर्ता गैर जिम्मेदार हैं और अफसर गैर उत्तरदायी। इससे लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर हो गयी है।
    झारखंड में अपनी जमीन को मजबूत करने में आजसू ने पूरी ताकत झोंक दी है।

    भाजपा को भी यह अंदेशा है कि कहीं न कहीं ऐन वक्त पर आजसू अपना पल्ला गठबंधन से झाड़ सकती है। यही वजह है कि भाजपा अपने को आजसू से अंदरुनी तौर पर अलग कर चुनावी रणनीति पर काम कर रही है। भाजपा ने इसी माह से लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। झारखंड के 14 लोकसभा सीटों को पांच कलस्टर में बांट कर भाजपा चुनावी तैयारी कर रही है। शनिवार को चतरा लोकसभा कलस्टर की बैठक हुई। इसमें मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम किया। वहीं रविवार को गिरिडीह में सीएम और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाया। भाजपा की रणनीति है कि लोकसभा चुनाव की घोषणा के पहले वह झारखंड की सभी लोकसभा सीटों में अपने कार्यकर्ताओं को उत्साहित करे।

    जानकारी के अनुसार कई केंद्रीय नेता भी कलस्टर सम्मेलन में शामिल होंगे। इस बीच यह चर्चा जोरों पर है कि आजसू कांग्रेस पार्टी से संपर्क साधे हुए है। कांग्रेस के प्रभारी आरपीएन सिंह की नजर आजसू पर भी है। उनका मानना है कि महागठबंधन में आजसू के आने से एनडीए झारखंड में पूरी तरह से कमजोर हो जायेगा। उन्होंने प्रदेश संगठन को इस बात की साफ ताकीद की है कि आजसू के खिलाफ किसी तरह की टिप्पणी नहीं की जाये। आजसू की झारखंड की दो लोकसभा सीटों पर नजर है। इसमें हजारीबाग और गिरिडीह शामिल है। महागठबंधन में आजसू को जगह मिले या न मिले, वह इन दोनों सीटों पर प्रत्याशी देने का मन बना ली है। कांग्रेस के साथ भी इसी मुद्दे पर बातचीत चल रही है। जानकारी के अनुसार कांग्रेस आजसू के लिए गिरिडीह सीट छोड़ने को तैयार है। यदि ऐसा होता है, तो झारखंड में कांग्रेस को बड़ी मजबूती मिल सकती है।

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