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    Home»Top Story»बजट सत्र में अपने ही हथियार का वार झेलेगी भाजपा
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    बजट सत्र में अपने ही हथियार का वार झेलेगी भाजपा

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskFebruary 26, 2020No Comments6 Mins Read
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    जब से झारखंड बना है झारखंड विधानसभा का सत्र और उसमें हो-हल्ला तथा हंगामा एक-दूसरे के पर्याय रहे हैं। 28 फरवरी से शुरू हो रहा झारखंड की पांचवीं विधानसभा का बजट सत्र भी इसका अपवाद नहीं होगा। सत्र में जहां इसकी प्रबल संभावना है कि हेमंत सरकार पूर्व की रघुवर सरकार के कार्यकाल में हुई अनियमितताओं की बखिया उधेड़ कर भाजपा को दागदार बताने की कोशिश करे, तो भाजपा जवाब में हेमंत सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए बुरुगुलीकेरा हत्याकांड और बिगड़ती कानून व्यवस्था पर सरकार को घेरे। बजट सत्र में भाजपा के खेमे का नेतृत्व जहां राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के हाथों में होगा, वहीं सत्ता पक्ष का नेतृत्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन करेंगे। इस कवायद में दोनों पक्षों की ओर से आरोपों और प्रत्यारोपों के तीर चलेंगे। झारखंड विधानसभा के बजट सत्र के दौरान भाजपा और महागठबंधन की एक-दूसरे को घेरने और उसके संभावित परिणामों पर नजर डालती दयानंद राय की रिपोर्ट।
    बात 11 फरवरी की है। प्रोजेक्ट भवन सभागार में संसदीय विशेषाधिकार पर झारखंड विधानसभा के विधायकों के प्रशिक्षण और प्रबोधन शिविर के पहले दिन सीपी सिंह अपने विधानसभाध्यक्ष के तौर पर भूमिका का जिक्र कर रहे थे। उन्होंने कहा कि विधानसभाध्यक्ष की भूमिका पंच परमेश्वर की होती है। जब मैं विधानसभा अध्यक्ष था, तो कानून जो कहता था, वही काम मैंने किया। मेरी कोशिश रही कि सही को सही कहूं और गलत को गलत कहूं।
    कई बार मेरी पार्टी के लोगों को लगा कि मैं उनकी मदद करूंगा, लेकिन मैंने वही किया, जो विधिसम्मत था। सत्ता शाश्वत नहीं है। यह धुरी बदलती रहती है। उनके भाषण के बाद सीपी सिंह को घेरते हुए हेमंत सोरेन ने कहा कि सीपी सिंह ने कार्यक्रम में कई बातों को रखा है। किसी को आईना दिखाने की जरूरत नहीं है। लोगों को खुद को शीशे में उतार कर देखना चाहिए। यह उस टकराव की भूमिका थी, जो 17 दिन बाद 28 फरवरी को झारखंड विधानसभा के बजट सत्र में झामुमो और भाजपा के बीच दिखेगी।
    झारखंड विधानसभा के बजट सत्र के दौरान झामुमो भाजपा पर हमलावर रहेगा और रघुवर सरकार के शासनकाल के दौरान हुई अनियमितताओं की पोल-पट्टी खोलने की कोशिश करेगा। फिर चाहे वह मोमेंटम झारखंड हो या फिर सीवरेज-ड्रेनेज का मामला, या फिर 84 करोड़ से हरमू नदी को नाला बनाने का मामला। भाजपा को घेरने का कोई मौका झामुमो खाली नहीं जाने देगा। 16 फरवरी को झामुमो के केंद्रीय कार्यालय में आयोजित प्रेसवार्ता में इसका संकेत झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य दे भी चुके हैं। उन्होंने साफ किया है कि वर्ष 2000 से हुए घपले-घोटालों की फाइल सरकार खोलेगी। झामुमो यह भी कह सकता है कि नगर विकास मंत्री रहते सीपी सिंह ने आवास विभाग की टेंडर की व्यवस्था आॅनलाइन क्यों नहीं होने दी, जबकि अन्य विभागों में आॅनलाइन टेंडर की व्यवस्था हो गयी थी। जाहिर है कि बजट सत्र में महागठबंधन की सरकार के निशाने पर रघुवर दास और सीपी सिंह के वे फैसले होंगे, जिन पर झामुमो पहले भी सवाल उठा चुका है। चूंकि रघुवर दास विधानसभा चुनाव हार चुके हैं, इसलिए विधानसभा में वह तो होंगे ही नहीं, पर अब भाजपा का नेतृत्व बाबूलाल के हाथ में है, तो उन्हें ही झामुमो के आरोपों का जवाब देने की रणनीति तैयार करनी होगी।
    खजाना खाली होने का मुद्दा भी उठेगा
    बजट सत्र में सत्ताधारी महागठबंधन के प्रमुख घटक दल झामुमो भाजपा सरकार के कार्यकाल में राज्य का खजाना खाली होने का मुद्दा भी प्रमुखता से उठायेगा, वहीं रघुवर सरकार के कार्यकाल के दौरान एक लाख नौकरियां देने में हुए फर्जीवाड़े को भी उठाने से नहीं चूकेगा। सरयू राय भी इस मामले में सरकार के खिलाफ मुखर रहे थे, वहीं टाटा कंपनी से कमीशन की मांग के मामले को भी झामुमो उठायेगा। इन आरोपों के जवाब में भाजपा को भी आक्रामक मोड में आना होगा और इसका नतीजा यह होगा कि नये विधानसभा के गोल-गुंबद के नीचे हंगामे और शोर-गुल का स्वर पूरी ताकत से गूंजेगा। पूरी ताकत से इसलिए, क्योंकि जहां भाजपा के पास भी 26 विधायक हैं और वह मजबूत स्थिति में है, वहीं महागठबंधन के पास भी पर्याप्त संख्या बल है और हेमंत सोरेन सरकार के 59 दिनों के कार्यकाल में सरकार पर कोई बड़ा आरोप भी चस्पां नहीं हुआ है। 28 दिसंबर 2014 से 29 दिसंबर 2019 की संध्या तक राज्य में एकछत्र राज्य भाजपा का रहा।
    इस दौरान रघुवर सरकार ने झामुमो पर हमलावर होने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। इनके जख्म झामुमो के सीने में हैं और ताजा हैं। उस समय भाजपा सत्ता में थी और अब झामुमो सत्ता में है। जाहिर है कि झामुमो अब उन सारे जख्मों के प्रत्युत्तर में हमलावर दिखे। बजट सत्र के पहले भाजपा हो या झामुमो, दोनों सत्र की तैयारियों में जुट गये हैं।
    सत्र एक महीने का है, इसलिए इस दौरान हंगामा भी लंबा और जबर्दस्त होने के आसार हैं। बेहतर तो यही होगा कि महागठबंधन के घटक दल और भाजपा, दोनों पूर्व के कार्यकाल की खटास को भुलाकर अपने-अपने दायित्व का निर्वाह करें। पर यह आदर्श स्थिति है और आदर्श हमेशा व्यवहार से अलग होता है।
    बजट सत्र में केंद्रीय भूमिका में तो हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी होंगे, पर सवालों की बारिश करनेवाले विधायकों में प्रदीप यादव और विनोद सिंह भी होंगे। बगोदर विधायक विनोद सिंह वाम खेमे के झारखंड विधानसभा में इकलौते विधायक हैं। अपने पिता स्वर्गीय महेंद्र सिंह की तरह उनका फोकस सत्र के दौरान जनमुद्दों पर रहेगा। इसलिए भाजपा और झामुमो से इतर वे एक तीसरी जनपक्षधर धारा का नेतृत्व करेंगे। सत्र के दौरान जब भाजपा पर आरोपों की बौछार होगी, तो सीपी सिंह भला कैसे चुप रहेेंगे। वे बोलेंगे और बोलेंगे अनंत ओझा और भानु प्रताप शाही। उनके साथ भाजपा के दूसरे सूरमा भी बोलेंगे। भाजपा रघुवर सरकार के कार्यकाल में चल रही कल्याणकारी योजनाओं के बंद करने की सरकार की मंशा पर सवाल उठा सकती है। यह कह सकती है कि सरकार बदले की भावना से कार्य कर रही है। वहीं आलमगीर आलम, डॉ रामेश्वर उरांव, बन्ना गुप्ता और झामुमो के मिथिलेश ठाकुर भी पूर्व की भाजपा के कार्यों की हकीकत सदन में रखेंगे। झारखंड विधानसभा के बजट सत्र में जो कुछ भी घटित होगा, वह तो भविष्य के गर्भ में है, पर जो संकेत मिल रहे हैं, उससे यह तय है कि इसके हंगामेदार होने के आसार ज्यादा हैं।

    BJP will bear the brunt of its own weapon in the budget session
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