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    Home»Top Story»बाबूलाल को सिर ताज, लेकिन उसमें कांटे भी हैं
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    बाबूलाल को सिर ताज, लेकिन उसमें कांटे भी हैं

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskFebruary 25, 2020No Comments6 Mins Read
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    झारखंड भाजपा विधायक दल का बॉस बनने के बाद बाबूलाल के समक्ष चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। उनकी पहली चुनौती जहां हार के बाद छितराई और कुम्हलायी भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश भरने की है, वहीं अमित शाह और जेपी नड्डा सरीखे वरीय नेताओं की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की भी है। भाजपा बीते विधानसभा चुनाव में झारखंड की जिन 28 में से 26 एसटी सीटों पर पराजित हुई थी, वहां पार्टी की स्थिति मजबूत करना अब बाबूलाल के समक्ष महती जिम्मेवारी होगी। पर, उनके लिए राहत की बात यह है कि वे जिस घर के मुखिया बने हैं, वहां उनके खिलाफ प्रतिरोध के स्वर उठने की संभावना न्यून है। पर हेमंत सोरेन के लोकप्रिय होते जा रहे आभामंडल के बरक्स खुद को मजबूत ताकत के रूप में पेश करना और समझा जाना झारखंड भाजपा के खेवनहार बाबूलाल मरांडी के सामने आसान नहीं होगा। भाजपा विधायक दल का नेता बनने के साथ बाबूलाल मरांडी के सामने आनेवाली चुनौतियों को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।

    24 फरवरी की दोपहर ने झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी के सिर पर भाजपा विधायक दल के नेता का ताज सजा दिया। भाजपा के 25 विधायकों ने सर्वसम्मति से उन्हें नेता मान लिया और इसके बाद प्रदेश भाजपा कार्यालय के सभागार में आयोजित प्रेसवार्ता में पार्टी के राष्टÑीय महामंत्री अरुण सिंह ने उनकी ताजपोशी की घोषणा कर दी। इस नयी जिम्मेदारी के साथ जहां बाबूलाल मरांडी का रूतबा अचानक कई गुणा बढ़ गया, वहीं उनके समक्ष नयी चुनौतियां एक के बाद एक आने को बेकरार दिख रही हैं। बाबूलाल के सिर पर जो ताज सजा है, उसमें फूल ही नहीं, कांटे भी हैं। हालांकि बाबूलाल मरांडी को जो जिम्मेदारी सोमवार दोपहर सौंपी गयी, उससे बड़ी जिम्मेदारी यानि झारखंड के पहले मुख्यमंत्री का निर्वहन वे कुशलतापूर्वक कर चुके हैं, पर तब और अब की परिस्थितियों में अंतर है और इस दौरान झारखंड की राजनीति की नदी में ढेर सारा पानी बह चुका है। हालात अब पूरी तरह बदल चुके हैं। विधायक दल का नेता बनने के बाद उनके सामने जो दो प्रमुख समस्याएं हैं, उनमें से एक झाविमो का चौदह साल तक नेतृत्व कर चुकने के बाद दूसरी पार्टी से आकर अब भाजपा विधायकों से तालमेल बिठाना है। वहीं पार्टी को एक सूत्र में बांध कर उसे सशक्त नेतृत्व भी प्रदान करना है। यह स्थिति इसलिए है, क्योंकि उनकी टीम में ऐसे भी नेता और विधायक हैं, जिनकी लगभग पूरी उम्र भाजपा में गुजर चुकी है। ऐसे नेताओं में सीपी सिंह और नीलकंठ सिंह जैसे नेता शामिल हैं। इनमें से एक विधानसभाध्यक्ष तक का दायित्व संभाल चुके हैं और दूसरे संसदीय कार्य मंत्री रह चुके हैं। जिस जिम्मेदारी का भार लिये बाबूलाल भाजपा में आये हैं, उसमें महागठबंधन के तूफान को रोकना भी बाबूलाल के समक्ष बड़ी चुनौती है। झारखंड में तेजी से लोकप्रिय होते जा रहे हेमंत की लोकप्रियता के उफान को रोकना तथा संथाल और कोल्हान में भाजपा को मजबूत स्थिति में लाने का हरकुलियन टास्क भी उन्हें पूरा करना है।
    यदि अगले चार साल में वे यह काम कर सके तो भाजपा झारखंड की सत्ता में वापसी का सपना 2024 में देख सकेगी, वरना भाजपा का सत्ता में वापसी का सपना सपना ही रह सकता है। यह काम यदि बाबूलाल मरांडी नहीं कर पाये तो हो सकता है कि यह उनकी अंतिम राजनीतिक पारी हो।
    अब 25 विधायकों के कुनबे का नेतृत्व करना है
    पर जैसा कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, इस ताज के साथ सुखद पक्ष यह है कि भाजपा में कोई भी नेता बाबूलाल की अवज्ञा करने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि झारखंड भाजपा में बाबूलाल की अवज्ञा करने का अर्थ पार्टी आलाकमान के आदेश के विपरीत जाने की तरह होगा। बाबूलाल मरांडी के लिए अच्छा यह है कि झाविमो के अध्यक्ष के रूप में वे सिर्फ दो विधायकों के प्रमुख होते, पर अब 25 विधायकों के कुनबे का नेतृत्व उन्हें करना है। और जैसा कि हर बड़ी जिम्मेदारी के साथ होता है नेतृत्वकर्ता को उन चुनौतियों पर खरा उतरना होता है। मृदु स्वभाव के बाबूलाल मरांडी के साथ प्लस प्वाइंट यह है कि भाजपा से अलग रहकर भी उनके भाजपा नेताओं से संबंध अच्छे रहे हैं, इसलिए उनके भाजपा में लौटने के बाद पार्टी में प्रतिरोध की स्थिति या स्वर फूटने की गुंजाइश कम है। बाबूलाल मरांडी अमित शाह और जेपी नड्डा जैसे नेताओं के आग्रह पर भाजपा में शामिल हुए हैं, इसलिए इनकी बात का अनादर करना आलाकमान की नजर में चढ़ने जैसा होगा।
    बाबूलाल मरांडी खांटी आदिवासी नेता
    वहीं हेमंत सोरेन भी बाबूलाल मरांडी को लेकर अधिक आक्रामक नहीं हो पायेंगे, क्योंकि बाबूलाल मरांडी खांटी आदिवासी नेता हैं और दोनों संथाल से ही आते हैं। ऐसे में बाबूलाल को रघुवर दास की तरह छत्तीसगढ़ी या बाहरी बताना झामुमो के लिए मुश्किल होगा। बाबूलाल मरांडी पर राजनीति में लंबी पारी के बावजूद किसी तरह के घपले या घोटाले के आरोप चस्पां नहीं हुए। उनका 28 महीने तक झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के रूप में व्यतीत कार्यकाल भी लगभग साफ-सुथरा ही रहा और उनके इस कार्यकाल की तारीफ भी हुई।
    हालांकि 16 फरवरी को आयोजित एक प्रेसवार्ता में झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि झारखंड गठन के साथ के पांच साल के भाजपा सरकार के पाप का पिटारा भी खुल गया है। उसमें मैनहर्ट भी शामिल है। मैनहर्ट घोटाला उनके कार्यकाल में ही हुआ था, इसलिए बाबूलाल मरांडी का भाजपा में जाना संयोग नहीं प्रयोग है। उनकी साफ-सुथरी छवि के बहाने भाजपा अपने पाप के पिटारों पर पर्दा डालने की कोशिश करेगी, पर ऐसा होगा नहीं। सुप्रियो के इस बयान से स्पष्ट है कि महागठबंधन सरकार 2000 के कार्यकाल वाली सरकार के कामकाज की भी जांच करवायेगी, लेकिन बीस साल बाद क्या यह इतना आसान है।
    खैर, यह तो समय बतायेगा कि क्या होनेवाला है, लेकिन इतना तय है कि हेमंत सोरेन भी महागठबंधन की सरकार के मुखिया होने के कारण किसी प्रकार के बेवजह विवाद में आने से बचना चाहेंगे। इन सबका निष्कर्ष यह है कि बाबूलाल मरांडी के समक्ष खेलने को खुला मैदान है और उन्हें अपने राजनीतिक अनुभवों का अधिकतम या फिर अमित शाह की भाषा में महत्तम उपयोग करना है।
    अमित शाह ने उन्हें योद्धा बताया है तो बाबूलाल के समक्ष उसे सिद्ध करने की चुनौती भी है। चुनौतियों के साथ अवसरों ने एक साथ बाबूलाल मरांडी के दरवाजे पर दस्तक दी है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बाबूलाल इस अवसर का क्या और कैसा इस्तेमाल करते हैं।

    but he also has thorns Crown crown to Babulal
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