आजाद सिपाही संवाददाता
रांची। कांके स्थित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की आधारभूत संरचना अब तक दुरुस्त नहीं होने पर हाइकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने शुक्रवार को मौखिक कहा, राज्य सरकार के पास सिर्फ दो विकल्प हैं। वह या तो इसे वार्षिक फंड दे या इसे बंद कर दे। यह टेंपल आॅफ लर्निंग है, जहां से सीखने के बाद स्टूडेंट कानून के क्षेत्र में नाम रौशन करेंगे। हरेक राज्य में लॉ यूनिवर्सिटी होते हैं, जिसमें लाइब्रेरी समेत विद्यार्थियों की पढाई के लिए हरेक तरह की सुविधाएं रहती हैं। लेकिन झारखंड में लॉ यूनिवर्सिटी पर ध्यान नहीं दिया गया। अदालत ने यह टिप्पणी लॉ यूनिवर्सिटी की आधारभूत संरचना से संबंधित कोर्ट के स्वत: संज्ञान पर सुनवाई के दौरान की। मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की आधारभूत संरचना को अविलंब दुरुस्त किया जाना चाहिए। यह एक गंभीर विषय है, जिस पर कोर्ट को सोंचना होगा। यह झारखंड का प्रमुख संस्थान है। इसके साथ सौतेला व्यवहार उचित नहीं है। वर्ष 2012 से यह पीआइएल चल रहा है। अब तक लॉ यूनिवर्सिटी को बेहतर आधारभूत संरचना नहीं मिल सकी है। यह दुखद स्थिति है। वर्केबल लाइब्रेरी, फैकल्टी के लिए आवास आदि नहीं बन पाया है। यह इस लॉ यूनिवर्सिटी के साथ कैसा व्यवहार हो रहा है?
खंडपीठ ने मौखिक कहा कि पीआइएल से नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई थी, कहीं ऐसा न हो कि इसी पीआइएल से लॉ यूनिवर्सिटी बंद हो जाये। कोर्ट ने मामले में मुख्य सचिव, वित्त सचिव और भवन निर्माण सचिव को अगली सुनवाई में कोर्ट में सशरीर उपस्थित रहने का निर्देश दिया। साथ ही निर्देश दिया सरकार के ये अधिकारी प्लान के साथ आयें, ताकि यूनिवर्सिटी को सुविधा मिले और पढाई का माहौल बने। अधिकारी एक-दूसरे के कंधे पर जिम्मेदारी न फेंके। महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कोर्ट से एक सप्ताह की बजाय ज्यादा समय देने का आग्रह किया, लेकिन कोर्ट ने इसे नहीं माना। खंडपीठ ने मौखिक कहा कि कोई भी यूनिविर्सिटी क्या स्टूडेंट के फीस से चल सकती है। भारत में क्या कोई ऐसी यूनिवर्सिटी है।
लॉ यूनिवर्सिटी को वार्षिक फंड दें या इसे बंद कर दें
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