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दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपने 18वें आम चुनाव की तैयारियों में जुट गया है। लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण अनुष्ठान में लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने में लगी है। पिछले नौ साल से लोकप्रियता के शिखर पर डटे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके ‘चाणक्य’ कहे जानेवाले गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा इस बार समेकित चुनावी रणनीति की बजाय हर राज्य के लिए अलग-अलग रणनीति अपनाने के पक्ष में हैं। इसलिए पार्टी इसी लाइन पर काम कर रही है। जिन राज्यों को लेकर यह कहा जा रहा है कि पार्टी की स्थिति कमजोर हुई है, उसकी भरपाई के लिए पार्टी अलग रणनीति पर काम कर रही है। इस रणनीति के तहत फोकस चार राज्यों की 93 संसदीय सीटों पर है। भाजपा के लिए 2024 में सत्ता में वापसी की राह में इन चार राज्यों की इन 93 सीटों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इसलिए इन पर अधिक ध्यान दिये जाने की जरूरत है। ये सीटें पश्चिम बंगाल (42), तेलंगाना (21), ओड़िशा (17) और पंजाब (13) में हैं। इन चारों राज्यों में एक समानता यह है कि 2019 में इन राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन संतोषजनक तो था, लेकिन अभी यहां विरोधी दलों की सरकार है। दूसरी बड़ी बात यह है कि इन चारों राज्यों में कांग्रेस की स्थिति कमजोर हुई है। इसलिए इन संसदीय सीटों को जीतने के लिए भाजपा को अलग रणनीति की जरूरत आन पड़ी है। भाजपा के इस ‘मिशन 93’ के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सियासी माहौल में चुनावी रंग घुलने लगा है। हालांकि इसमें अभी एक साल से ज्यादा का वक्त है, लेकिन राजनीतिक दलों के भीतर इसकी सुगबुगाहट लगातार बढ़ती जा रही है। 2024 में होनेवाले चुनाव का सबसे बड़ा पहलू यह होनेवाला है कि क्या पिछले दो चुनावों में प्रचंड जीत हासिल कर इतिहास रचनेवाली दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा हैट्रिक बना सकेगी या फिर कांग्रेस खुद को राजनीतिक इतिहास बनने से रोक सकेगी। जाहिर है, भाजपा इतिहास बनाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है और कांग्रेस भी कोई कोशिश बाकी नहीं रख रही है। लेकिन इन दोनों राजनीतिक दलों में बड़ा अंतर यह है कि दोनों का चुनावी नजरिया अलग है। कांग्रेस जहां चुनाव को एक आम राजनीतिक कवायद मानती है, वहीं भाजपा इसे राजनीति का सबसे गंभीर अध्याय मानती है। इसलिए बात भाजपा की करते हैं।
2024 के आम चुनावों को लेकर भाजपा की तैयारियों का आलम यह है कि इसने देश भर की सभी 543 संसदीय सीटों का पहले दौर का आकलन पूरा कर लिया है। इस आकलन में पार्टी को जो चीजें पता चली हैं, उनमें से एक है ‘42, 21, 13,17’, यानी ‘मिशन 93’। ये 93 सीटें चार ऐसे राज्यों की हैं, जहां विरोधी दलों की सरकार है। इनमें से कई सीटों पर भाजपा का कब्जा है, लेकिन पार्टी को लगता है कि अगले चुनाव, यानी 2024 में नतीजे और भी बेहतर हो सकते हैं। इसके पीछे एक बड़ी वजह पिछला चुनाव भी है। भाजपा 2024 में हैट्रिक लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और अध्यक्ष जेपी नड्डा के नेतृत्व में अलग-अलग राज्यों के हिसाब से रणनीति तैयार कर रही है। इसलिए उसका फोकस इस बार चार ऐसे राज्यों पर है, जहां उसकी सरकार नहीं है और वहां कभी कांग्रेस मजबूत स्थिति में थी। कांग्रेस इन राज्यों में कमजोर हुई है और भाजपा इसका ध्यान रखते हुए रणनीति बना रही है। सिर्फ एक यही वजह नहीं है। पार्टी को लगता है कि यहां प्रदर्शन अगले चुनाव में काफी बेहतर हो सकता है, क्योंकि पिछली बार हार-जीत का अंतर कम था। ये चार राज्य हैं, तेलंगाना (21), पंजाब (13), पश्चिम बंगाल (42) और ओड़िशा (17)। ये राज्य भाजपा की रणनीति के केंद्र में हैं। खास बात यह है कि इन चारों ही राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है। इसके लिए पार्टी के भीतर मंथन लगातार जारी है। इस मंथन के केंद्र में इन चार राज्यों के आने के पीछे कई वजह है और उसमें एक है, पिछला यानी 2019 का लोकसभा चुनाव।
भाजपा के निशाने पर लोकसभा की 93 सीटें
भाजपा ने इन चार राज्यों की 93 सीटों पर ध्यान केंद्रित किया है, उसके पीछे बड़ी वजह है 2019 का लोकसभा चुनाव। इन चार राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकार है। खासकर इनमें क्षेत्रीय क्षत्रप हैं और प्रमुख चुनावी खिलाड़ी यही हैं। साथ ही यहां कभी कांग्रेस एक बड़ी पार्टी हुआ करती थी। 2019 के लोकसभा चुनावों में इन चारों राज्यों में कई सीटों पर जीत-हार का अंतर काफी कम था। साथ ही जो भी विजयी उम्मीदवार थे, उनमें से कई कुल डाले गये वोटों का 50 फीसदी भी हासिल नहीं कर सके थे। प्रतिशत के हिसाब से देखा जाये, तो ओड़िशा में जो उम्मीदवार जीते, उनमें 85 फीसदी से अधिक सीटों पर उम्मीदवारों को 50 प्रतिशत से कम वोट मिले। इसके अलावा बाकी तीन राज्य पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और पंजाब है। वहां भी आम तौर पर यही स्थिति थी कि 75 फीसदी सीटों पर जीत-हार का अंतर बहुत कम था। इन सभी सीटों पर दूसरे स्थान पर भाजपा ही रही थी।
कांग्रेस के प्रदर्शन पर भी रहेगी नजर, भाजपा ने बढ़ाये कदम
इन चार राज्यों को देखा जाये, तो तेलंगाना और पंजाब में कांग्रेस कमजोर हुई है, लेकिन उतनी नहीं। वहीं पश्चिम बंगाल और ओड़िशा में उसकी स्थिति इन दो राज्यों के मुकाबले और भी कमजोर है। भाजपा की रणनीति में इस बार खास तौर पर ‘मिशन साउथ’ है और उसमें तेलंगाना प्रमुख है। पार्टी को लगता है कि यहां वह सरकार बना सकती है। वहीं पंजाब को लेकर भाजपा खास रणनीति तैयार कर रही है। पार्टी ने अगले दो महीने में पंजाब के लिए खास तैयारी की है। यह तैयारी 2024 के लिए पूरी योजना का हिस्सा है। मार्च महीने से शुरू होने वाली भाजपा की यात्रा पंजाब की सभी 13 लोकसभा सीटों में से हर सीट पर 18 दिन रुकेगी। पंजाब कांग्रेस के कई बड़े नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह, सुनील जाखड़ और हाल ही में मनप्रीत बादल भी इस सूची में शामिल हो गये हैं। इसलिए भाजपा इन नेताओं को लेकर अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने में जुट गयी है।
इन सभी राज्यों में एक समानता यह भी है कि पिछले चुनाव में यहां जीत-हार का अंतर बहुत कम था। करीब 80 फीसदी सीटों पर दूसरे स्थान पर भाजपा रही थी। ऐसे में पार्टी को लगता है कि थोड़ा जोर लगाने पर वह इन सीटों को अपनी झोली में कर सकती है।
इन राज्यों में अब भी भाजपा मजबूत, लेकिन बाकी का क्या
देश के सबसे बड़े सियासी राज्य यूपी और गुजरात समेत कई ऐसे राज्य हैं, जहां भाजपा की स्थिति अब भी मजबूत देखी जा रही है। यूपी समेत 12 ऐसे राज्य हैं, जिनमें लोकसभा की कुल 244 सीटें हैं और भाजपा ने 2019 में इनमें से 215 पर जीत हासिल की थी। खास बात यह भी है कि इन राज्यों में भाजपा को 50 फीसदी से अधिक वोट हासिल हुए। यूपी और गुजरात के अलावा दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश इनमें शामिल हैं। इन राज्यों में भाजपा की अब भी स्थिति मजबूत है, लेकिन कुछ राज्य ऐसे हैं, जहां पिछले चुनाव में भाजपा मजबूत थी, लेकिन साथी बदलने से इस बार स्थिति वैसी नहीं है। हाल के सर्वे में भी इस तरह की बात सामने आयी है। इनमें खासकर बिहार और महाराष्ट्र हैं। इन दोनों राज्यों में पिछले चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया था, लेकिन इस बार समीकरण थोड़े अलग हैं।
इसलिए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उन सीटों पर फोकस कर रहा है, जहां उसके जीतने की संभावना बन सकती है। इसके तहत अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग रणनीति पर काम चल रहा है। इस साल नौ राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की इसी रणनीति का एक बड़ा हिस्सा नजर आयेगा और इन चुनावों के परिणाम पार्टी की रणनीति के असर का भी खुलासा कर देंगे।