विशेष

-संसद में दिये गये भाषणों से साबित हुई पीएम मोदी की नेतृत्व क्षमता

-विपक्ष के बुने जाल में फंसने की बजाय उसके इरादों पर पानी फेर दिया

-बदलते भारत की शानदार तस्वीर उकेर साबित कर दी अपनी कार्यशैली

-एक बार फिर सामने लाकर रख दी विपक्ष की दिशाहीनता

पिछले नौ साल से दुनिया भर में 140 करोड़ लोगों की नुमाइंदगी कर रहे विश्व के अब तक के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी का एक रूप पिछले दो दिनों में संसद के दोनों सदनों में दिखा। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा के जवाब में पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा, उससे साफ हो गया कि आज भी उनकी नेतृत्व क्षमता का कोई जोड़ किसी के पास नहीं है। उन्होंने इन दोनों भाषणों के दौरान खुद को एक बार फिर साबित किया और विपक्ष द्वारा बुने गये जाल में फंसने की बजाय उसके ही इरादों पर पानी फेर दिया। प्रधानमंत्री ने लगातार आगे बढ़ रहे भारत की वह तस्वीर दुनिया के सामने रखी, जिससे विपक्ष पूरी तरह मुद्दाविहीन हो गया है। उसे समझ में ही नहीं आ रहा है कि वह कौन सा मुद्दा लेकर जनता के बीच जाये। यह पीएम मोदी की उस उत्कृष्ट कार्यशैली का नमूना है, जिसकी मदद से वह भारत को दुनिया के नक्शे पर न केवल स्थापित कर रहे हैं, बल्कि इसे विश्वगुरु बनाने की हरसंभव कोशिश भी कर रहे हैं। विपक्षी नेताओं, खास कर कांग्रेस द्वारा लगाये गये बिना सिर-पैर के आरोपों को नजरअंदाज करना पीएम की गंभीरता का परिचायक तो रहा ही, उनका यह कहना कि टीवी-मीीिडया में चेहरा चमका कर वह लोकप्रिय नहीं बने, बल्कि पसीना बहाया है, यह साबित करता है कि पीएम मोदी कितने कर्मठ हैं। संसद में प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों का राजनीतिक विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

देश की सबसे बड़ी पंचायत, संसद के दोनों सदनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो कुछ कहा, उसके कई निहितार्थ हैं। पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में अपने भाषणों से पीएम मोदी ने न केवल विपक्ष के तरकश के सभी तीरों को एक साथ भोथरा कर दिया, बल्कि एक बार फिर यह साबित कर दिया कि वह दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता क्यों बने हुए हैं। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव को लेकर हुई चर्चा में विपक्षी नेताओं और विशेष रूप से राहुल गांधी ने जो आरोप लगाये थे, उनका जवाब प्रधानमंत्री ने अपनी स्टाइल में दिया और यही उनके भाषण की विशेषता रही। उन्होंने विपक्ष द्वारा मचाये जा रहे उस शोर को शांत करने का ही काम किया, जो न केवल अनावश्यक, बल्कि भारत विरोधी भी है। आम तौर पर प्रधानमंत्री विपक्ष के आरोपों का चुन-चुन कर जवाब देते हैं, लेकिन इस बार उन्होंने रणनीति के तहत आरोपों पर कुछ नहीं कहा। इससे उन्होंने बिना कुछ कहे यही संदेश दिया कि विपक्ष निराधार आरोप लगा रहा है। वास्तव में प्रधानमंत्री ने यह कह कर विपक्ष के बुने जाल में फंसने की बजाय उसके इरादों पर पानी फेर दिया कि झूठ और झूठ के हथियार से उन्हें हराया नहीं जा सकता। उनके इस कथन का कोई मतलब है तो यही कि विपक्ष जो कुछ कहने और सिद्ध करने की कोशिश कर रहा है, उसमें कोई दम नहीं। उन्होंने विपक्ष को आइना दिखाने के लिए यूपीए सरकार के समय हुए उन घोटालों का भी जिक्र किया, जो सच में हुए थे। यह सही है कि मोदी सरकार के खिलाफ राहुल गांधी ने तमाम आरोप उछाले थे और प्रधानमंत्री मोदी को भी कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी, लेकिन उनके आरोपों में कोई तथ्य और प्रमाण नहीं था। शायद यही कारण रहा कि उनके वक्तव्य के कुछ हिस्से संसद की कार्यवाही से हटा दिये गये। इतना ही नहीं, निराधार आरोपों से सदन को गुमराह करने की शिकायत करते हुए उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस भी दिया गया। यह तय है कि इस सब पर कांग्रेस यही कहेगी कि उसकी आवाज को दबाने का काम किया जा रहा है, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि कांग्रेस अथवा अन्य विपक्षी नेता अभी तक यह ऐसा कुछ साबित नहीं कर सके हैं कि तमाम गड़बड़ियों में मोदी सरकार की सहभागिता या सहमति है।
नि:संदेह विपक्ष अभी भी यही कोशिश करता रहेगा कि सरकार की मिलीभगत से कहीं कोई बड़ा घोटाला हुआ है, लेकिन जब तक नियामक एजेंसियां इस ओर कोई संकेत नहीं करतीं, तब तक उसे कुछ हासिल होनेवाला नहीं है। विपक्ष अपने आरोपों को सही सिद्ध करने की चाहे जितनी कोशिश करे, मोदी सरकार की ईमानदारी और पारदर्शिता पर संदेह नहीं पैदा कर सकता।
प्रधानमंत्री ने लोकसभा की तरह राज्यसभा में जिस प्रकार विपक्ष को निशाने पर लिया, वह इसलिए और आसान हो गया, क्योंकि स्वयं विपक्षी सांसदों ने उनके संबोधन के समय लगातार नारेबाजी करके यही सिद्ध किया कि उनके पास न तो कहने को कुछ है और न ही सुनने को। अपने हंगामे के पक्ष में विपक्षी सांसदों के पास कुछ तर्क हो सकते हैं, लेकिन उन्होंने खीझ पैदा करने वाली अपनी नारेबाजी से प्रधानमंत्री के इस कथन को सही साबित किया कि एक अकेला कितनों पर भारी पड़ रहा है। यह कहना कठिन है कि विपक्ष प्रधानमंत्री की किसी नसीहत पर ध्यान देगा, लेकिन उन्होंने यह सही कहा कि जितना कीचड़ उछालोगे, उतना ही कमल खिलेगा। विपक्ष को यह आभास हो जाये, तो अच्छा कि झूठ के पांव नहीं होते। वह अपने अरोपों के पक्ष में कोई ठोस प्रमाण नहीं दे पा रहा है। वास्तव में इसीलिए वह जनता को यह समझाने में भी नाकाम है कि मोदी सरकार घोटालों में लिप्त है। राज्यसभा संसद का उच्च सदन है और यह माना जाता है कि यहां निचले सदन के विपरीत कहीं अधिक धीर-गंभीर चर्चा होती हैं, लेकिन पिछले अनेक अवसरों की तरह से इस बार भी यह धारणा ध्वस्त हुई। विपक्ष का काम केवल अपनी बात कहना ही नहीं, बल्कि सत्ता पक्ष की बात सुनना भी है। समझना कठिन है कि वह राज्यसभा में प्रधानमंत्री की बात सुनने को तैयार क्यों नहीं था? इससे भी महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि उसे प्रधानमंत्री के संबोधन के समय खलल डालने से हासिल क्या हुआ?
मोदी के भाषण के बाद साफ हो गया है कि विपक्ष पूरी तरह मुद्दाविहीन हो गया है। यह भारत का दुर्भाग्य है कि वर्तमान विपक्ष का बड़ा समूह अभी भी देश के सामूहिक मनोविज्ञान में आये बदलाव को समझने में विफल है। इस कारण विपक्षी राजनीति को वहां ले जाना चाहते हैं, जिनसे भारत का आमजन आगे निकल चुका है। इस तरह भारत में विपक्ष का व्यवहार निराश करता है। विपक्षी दल और नेता भाजपा को पराजित तो करना चाहते हैं, पर समझ नहीं पा रहे कि किन मुद्दों को लेकर संघर्ष करें और जनता के बीच जायें। कहीं कोई भाजपा को ब्राह्मणवादी या दलित-पिछड़ा विरोधी साबित कर स्वयं को इनका झंडाबरदार बता रहा है, तो कहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निशाने पर ले रहा है। यदि वह यह सोच रहा है कि इससे जिम्मेदार विपक्ष के रूप में उसकी भूमिका अधिक अच्छे से रेखांकित होगी, तो ऐसा होनेवाला नहीं है, क्योंकि उसने अपनी दिशाहीनता ही बयान की। विपक्ष की पूरी रणनीति को प्रधानमंत्री ने पहले लोकसभा में नाकाम किया और फिर राज्यसभा में। उन्होंने इस मामले में विपक्ष के सवालों पर सीधे तौर पर कुछ न कह कर यही संदेश दिया कि इस मसले पर सरकार को नहीं घेरा जा सकता।

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