-फिर भी पक्ष-विपक्ष को थाह मिलेगा, कौन कितने पानी में
-एनडीए और महागठबंधन की साख दांव पर
झारखंड का रामगढ़ उपचुनाव काफी रोमांचक होनावाला है। दोनों पक्षों ने अपने-अपने प्रत्याशियों को आगे कर दिया है। एक तरफ जहां आजसू और एनडीए गठबंधन की प्रत्याशी गिरिडीह सांसद और पूर्व मंत्री चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता चौधरी होंगी, वहीं कांग्रेस और महागठबंधन उम्मीदवार पूर्व विधायक ममता देवी के पति बजरंग कुमार महतो होंगे। यह कम्पलीट फेमिली शो होनेवाला है। कोई पूर्व मंत्री की पत्नी है, तो कोई पूर्व विधायक का पति। वैसे इस चुनाव की पटकथा भी कोई फिल्मी पटकथा से कम नहीं होनेवाली। बजरंग महतो के साथ उनका दुधमुंहा बच्चा भी चुनाव प्रचार में घूमेगा। चूंकि उनकी पत्नी ममता देवी अभी जेल में बंद हैं। उनकी विधायकी जाने के बाद ही यहां उपचुनाव हो रहा है। दरअसल, रामगढ़ उपचुनाव में आजसू-भाजपा की साख भी दांव पर लगी है, वहीं कांग्रेस और महागठबंधन सरकार के लिए रामगढ़ उपचुनाव का चुनावी परिणाम भी काफी अहम माना जा रहा है। अहम इसलिए माना जा रहा है, क्योंकि सरकार के तीन साल का लेखा-जोखा भी इससे तौला जायेगा। 1932 के खतियान का हश्र, बेरोजगारी पर जनता का पक्ष और पाराटीचर का गुस्सा बतायेगा कि महागठबंधन सरकार के लिए आगे की डगर कैसे होनेवाली है। फूलों सी या कांटों जैसी। वहीं रामगढ़ उपचुनाव अगर आजसू जीतती है, तो सुदेश महतो का कद बढ़ना तय है। भाजपा भी अपनी मूंछ पर ताव देगी, क्योंकि 2019 के बाद झारखंड में जितने भी उपचुनाव हुए उसमें भाजपा हार गयी। समझा जा सकता है, अगर यह दांव आजसू जीतती है, तो उसका वजन आनेवाले विधानसभा में कितना बढ़ेगा! जाहिर है 2024 में उसकी पूछ बढ़ेगी। क्योंकि 2024 का विधानसभा चुनाव भाजपा अब बिना आजसू और आजसू बिना भाजपा के नहीं लड़नेवाली। सबक 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्हें बढ़ियां से मिल चुका है। एनडीए के लिए यह जीत बहुत मायने रखती है। यह जीत उसे संजीवनी जरूर देगी और आनेवाले चुनावों में उसका भविष्य भी दिखने लगेगा। फिलहाल अमित शाह ने भी झारखंड में एक महीने के भीतर दो बार दौरा कर लिया है। फिर लोग तो बात करेंगे ही। अमित शाह का झारखंड में आना-जाना बढ़ गया है, तो उनकी भी साख दांव पर होगी। साख तो झारखंड भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं की भी होगी। कैसे रामगढ़ उपचुनाव पक्ष-विपक्ष के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन चुका है, कैसे यह आनेवाले 2024 के विधानसभा का रोडमैप तैयार करेगा, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

वोटों का गणित, सहानुभूति और फोटोवाली स्ट्रेटेजी
2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी ममता देवी को 99944 मत हासिल हुए थे। वहीं आजसू की सुनीता चौधरी को 71226 मिले थे। भाजपा प्रत्याशी को 31874 वोट मिले थे। उस विधानसभा चुनाव में भाजपा और आजसू ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। यानी वोट बंट गया और ममता देवी बाजी मार गयीं। अगर भाजपा आजसू के वोटों को जोड़ दिया जाये , तो 71226 + 31874 =103100 होते हैं। यानी ममता देवी के वोट से 3156 ज्यादा। उस वक्त ममता देवी के पक्ष में सहानुभूति की लहर थी। दरअसल, रामगढ़ के दुलमी स्थित आइपीएल फैक्ट्री में 2016 में विस्थापित रैयतों ने 16 सूत्री मांगों को लेकर आंदोलन किया था। आंदोलन को भाजपा नेता राजीव कुमार ने धार दी थी और ममता देवी ने उसका नेतृत्व किया था। उस वक्त वह गोला क्षेत्र से जिला परिषद सदस्य थीं। करीब एक माह तक चले आंदोलन में ममता देवी की सक्रिय भागीदारी रही थी। इसके बाद उग्र प्रदर्शन हुआ और पुलिस को अश्रु गैस के गोले के अलावा आत्मरक्षार्थ गोली चलानी पड़ी थी। इस घटना में दो लोगों की मौत हो गयी थी और कई गंभीर रूप से घायल हो गये थे। इस घटना के बाद भाजपा नेता राजीव जायसवाल और तत्कालीन जिला परिषद सदस्य ममता देवी को जेल जाना पड़ा था। ममता देवी और राजीव पर चार विभिन्न प्राथमिकी दर्ज की गयी थीं। इनमें दो गोला और दो रजरप्पा थाना में दर्ज की गयी थीं। ममता देवी जब जेल गयीं थीं, उस वक्त उनकी बेटी दो साल की थी। ममता देवी के जेल जाने की घटना ने उनके जीवन को बदल कर रख दिया था। 2017-18 में वह क्षेत्र में प्रसिद्ध हो चुकी थीं और आंदोलनकारी नेता की उनकी छवि बन गयी थी। उस प्रसिद्धि का असर यह हुआ कि 2019 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस ने उन्हें अपना प्रत्याशी बना दिया। क्षेत्र में पकड़, आंदोलन और मां-बेटी के रिश्तों के भावनात्मक पहलू ने चुनाव में उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया। परिणामस्वरूप वह सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता चौधरी को मात देकर विजयी हुईं। यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि इससे पहले चंद्रप्रकाश चौधरी चार बार यहां से विधायक बने थे। वह सीट आजसू के लिए अजेय मानी जाती थी। जिस गोला गोलीकांड के बाद प्रसिद्धि के शिखर पर ममता देवी चढ़ीं, उसी कांड में आये कोर्ट के फैसले के बाद उनकी विधानसभा की सदस्यता रद्द हो गयी। कोर्ट ने ममता देवी सहित अन्य को पांच साल की सजा सुनायी है। विधानसभा चुनाव 2019 में ममता देवी ने जेल में बंद अपनी तस्वीर और बाहर खड़ी दो साल की बेटी की तस्वीर आगे कर आमजनों की भावनाओं को छुआ था। यह तस्वीर सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हुई थी। अब एक बार फिर वह जेल में बंद हैं और रामगढ़ में उपचुनाव होनेवाला है। अबकी बार भी सहानुभूति बटोरने के लिए वह अपने दुधमुंहे बच्चे को सामने करेंगी। पूर्व की तरह ही एक बार फिर से एक और फोटो वायरल किया जा रहा है, जिसमें ममता देवी को जेल में और बाहर पांच माह के उनके बेटे को दिखाया जा रहा है। इस बार कैंडिडेट हैं ममता देवी के पति बजरंग कुमार महतो। लेकिन नॉमिनेशन से पहले उनके परिवार में ही सियासी लड़ाई छिड़ गयी थी। ममता देवी के पति और देवर दोनों टिकट के लिए आमने-सामने खड़े हो गये थे। दोनों भाइयों ने विधानसभा उपचुनाव के लिए कांग्रेस की ओर से दावेदारी पेश कर दी थी। उसके बाद क्षेत्र में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया था। मैसेज तो यही गया कि देखो ममता तो जेल में बंद हैं, बाहर उनके पति और देवर कुर्सी की होड़ में आपस में ही लड़ रहे हैं। मतलब कुर्सी इम्पोर्टेंट है, व्यक्ति नहीं। जनता भी यह समझ रही है।

आजसू के लिए रामगढ़ उपचुनाव जीतना कितना जरूरी
आजसू के लिए रामगढ़ उपचुनाव का परिणाम बहुत मायने रखता है। चूंकि पिछले विधानसभा चुनाव में आजसू ने 58 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन वह महज दो सीटों पर विजय पताका फहरा पायी। सिल्ली से सुदेश महतो और गोमिया से लंबोदर महतो ही अपने सिर पर जीत का सेहरा बांध पाये। इतनी सीटों पर हुई हार के बाद आजसू को अपनी चादर समझ में आ गयी। वह समझ गयी कि बिन भाजपा उसका बेड़ा पार नहीं हो सकता। भाजपा भी यह अच्छी तरह समझ गयी कि बिन आजसू वह अपने पूर्व के इतिहास को नहीं दुहरा सकती। दरअसल, 2019 के चुनाव में 81 में से 79 सीटों पर भाजपा ने चुनाव लड़ा था। उसे करीब 34% वोट मिले थे। वहीं आजसू को 58 सीटों पर चुनाव लड़ने पर 8.43 % मत मिले। दोनों पार्टियों का साझा वोट प्रतिशत 42.43 % होता है। दूसरी तरफ महागठबंधन की सबसे बड़ी घटक जेएमएम को 18.75 %, कांग्रेस को 13.81 % और राजद को 2.93 % मत मिले थे। तीनों को जोड़ दें तो 35 % होता है। समझा जा सकता है कि अगर भाजपा और आजसू ने गठबंधन कर लिया होता तो उनका वोट प्रतिशत महागठबंधन से 7 % अधिक होता। लेकिन सत्ता का नशा ही ऐसा होता है कि कुछ भी करा देता है। हार सामने लिखी होती है, लेकिन खुली आंखों से वह दिखायी नहीं देती, दिमाग भी हाइजैक हो जाता है। लेकिन इस बार दोनों पार्टियों ने पूर्व के सबक से सीख भी ली है। जहां आजसू मजबूत है, वहां भाजपा उसे भरपूर मौका देगी। उसका समर्थन करेगी। रामगढ़ आजसू का गढ़ रहा है। लेकिन 2019 में कांग्रेस ने उसमे सेंधमारी कर दी थी। वहीं 2014 में आजसू प्रत्याशी चंद्रप्रकाश चौधरी को सर्वाधिक 98,987 मत लाने का रिकॉर्ड हासिल हुआ था। उसे ममता देवी ने 2019 में सर्वाधिक 99944 मत लाकर तोड़ दिया था। आजसू अगर यह उपचुनाव जीत जाती है, तो उसका कद जरूर बढ़ेगा। 2019 के बाद हुए उपचुनावों में हुई हार से एनडीए का पिंड छुटेगा। खाता खुलेगा। आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो को भी हवा का ठौर पता चलेगा। इससे रणनीति बनाने ने आसानी होगी। महागठबंधन को किन मुद्दों पर घेरना है, उसका भी पता चलेगा। कुल मायनों में रामगढ़ उपचुनाव सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए लिटमस टेस्ट साबित होनेवाला है। एक तरफ जहां महागठबंधन को भी पता लगेगा कि हाल के दिनों में उसने जो भी फैसले लिये हैं उसका नतीजा क्या होता है और एनडीए को पता चल जायेगा कि 2024 में ऊंट किस करवट बैठने की तैयारी कर रहा है।

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